Fagun ke Mausam - 19 in Hindi Fiction Stories by शिखा श्रीवास्तव books and stories PDF | फागुन के मौसम - भाग 19

Featured Books
  • चाळीतले दिवस - भाग 6

    चाळीतले दिवस भाग 6   पुण्यात शिकायला येण्यापूर्वी गावाकडून म...

  • रहस्य - 2

    सकाळ होताच हरी त्याच्या सासू च्या घरी निघून गेला सोनू कडे, न...

  • नियती - भाग 27

    भाग 27️मोहित म्हणाला..."पण मालक....."त्याला बोलण्याच्या अगोद...

  • बॅडकमांड

    बॅड कमाण्ड

    कमांड-डॉसमध्ये काम करताना गोपूची नजर फिरून फिरून...

  • मुक्त व्हायचंय मला - भाग ११

    मुक्त व्हायचंय मला भाग ११वामागील भागावरून पुढे…मालतीचं बोलणं...

Categories
Share

फागुन के मौसम - भाग 19

राघव ने जब से वैदेही को देखा था उसका मन बेचैन हो उठा था।
उसे बार-बार लग रहा था कि वो शायद इस लड़की को जानता है लेकिन फ़िलहाल उसका दिमाग पहचान का कोई सूत्र उसके हाथ में नहीं थमा रहा था।

एक बार फिर जब तारा वैदेही के साथ राघव के केबिन में पहुँची तब राघव ने वैदेही की तरफ देखा लेकिन फिर उसने सोचा कि अगर वो एकटक उसे देखेगा तो कहीं ये अजनबी लड़की उसके विषय में कुछ गलत न सोच बैठे कि वो क्यों उसे घूर-घूरकर देख रहा है।
इसलिए उसने तारा की तरफ अपना ध्यान केंद्रित करते हुए कहा, "तारा, तुम ख़ुद भी बैठ सकती हो और अपनी मेहमान से भी बैठने के लिए कह सकती हो।"

हामी भरते हुए जब तारा और वैदेही राघव के सामने रखी कुर्सियों पर बैठ गयीं तब तारा ने कहा, "राघव सुनो न, आज इस कंपनी में मुझे तुमसे एक स्पेशल फेवर चाहिए।"

"मतलब?" राघव ने हैरत से पूछा तो तारा बोली, "राघव, ये लड़की मेरा मतलब जानकी यश की कजन है और इस समय इसे नौकरी की सख़्त ज़रूरत है।
यश ने कहा है कि मैं इसे अपनी ही कम्पनी में रख लूँ तो अच्छा रहेगा।
अब देखो बात मेरे ससुराल की है तो मैं मना नहीं कर पायी।
तुम समझ रहे हो न?"

"हम्म... ठीक है, पर क्या इन्हें हमारे गेमिंग सेक्टर के विषय में कुछ पता है?"

"नहीं लेकिन फिर भी जानकी हमारे बहुत काम आ सकती है।
देखो अब एक महीने बाद मेरी सगाई है और फिर जल्दी ही मेरे विवाह की तारीख भी आ जायेगी जिसके कारण मुझे दफ़्तर से कुछ दिनों की छुट्टी चाहिए होगी।"

"तो क्या तुम जानकी जी को अपनी कुर्सी देने के बारे में सोच रही हो तारा?" राघव ने एक बार फिर असमंजस से पूछा तो तारा बोली, "हाँ मैं जानकी को अपनी ही कुर्सी दूँगी लेकिन चीफ मैनेज़र की नहीं तुम्हारे असिस्टेंट की।
आज तक इस दफ़्तर में मैं दोहरी जिम्मेदारी निभाती आयी हूँ लेकिन अब मुझे अपने पर्सनल लाइफ पर भी थोड़ा ध्यान देना होगा। है न।
इसलिए मैंने ये सोचा है कि अब से जानकी तुम्हारे असिस्टेंट के रूप में तुम्हारे साथ रहकर इस दफ़्तर में काम करेगी।
इससे मेरा बोझ भी हल्का हो जायेगा और मैं अपने वैदेही गेमिंग वर्ल्ड की चीफ मैनेज़र के साथ-साथ एक अच्छी बहू का रोल भी बिना किसी परेशानी के निभा सकूँगी।"

"लेकिन तारा जब ये गेमिंग सेक्टर के विषय में कुछ जानती ही नहीं हैं तो मेरी असिस्टेंट कैसे बन पायेंगी?" राघव ने परेशान होते हुए कहा तो तारा बोली, "ओहो राघव, जानकी को इस पोस्ट पर रहकर करना ही क्या है? बस तुम जो नोट्स लिखवाते हो मुझसे नयी गेम की रिसर्च करते हुए वो लिखना है और क्लाइंट्स के साथ तुम्हारी मीटिंग्स फिक्स करके तुम्हारे साथ मीटिंग्स को अटेंड करके उसके नोट्स बनाने हैं, और साथ ही तुम्हें समय-समय पर याद दिलाना है कि कब तुम्हें किस मीटिंग में जाना है, कहाँ जाना है।
इतने से काम के लिए जानकी को हमारी तरह बैंगलोर जाकर डिग्री लेने की ज़रूरत तो नहीं है न।"

"ठीक है। अब तुमने सोच ही लिया है तो मैं क्या कहूँ? वैसे भी हाल ही में तुम मुझे धमका चुकी हो कि मैं इस दफ़्तर में तुम्हारे लिए गये फैसलों के बीच कुछ न बोलूँ।" ये बात कहते-कहते राघव हँस पड़ा तो तारा भी अपनी खिलखिलाहट रोक नहीं पायी।

उन दोनों को यूँ साथ में हँसते हुए देखकर वैदेही को अपने भीतर कुछ टूटता हुआ सा महसूस हुआ।
बड़ी मुश्किल से अपने होंठ भींचकर वो अपनी भावनाओं पर काबू कर ही रही थी कि तभी तारा ने उससे कहा, "जानकी, तुम पाँच मिनट यहीं बैठो। मैं यश से बात करके आती हूँ। फिर हम तीनों साथ में आश्रम चलेंगे।"

हामी भरते हुए वैदेही ने अपना सिर झुकाकर आँखें बंद कर लीं और राघव ख़ुद को उसके साथ केबिन में अकेला पाकर असहज सा अपना ध्यान इधर-उधर लगाने की कोशिश करने लगा लेकिन फिर भी बीच-बीच में उसकी आँखें बरबस ही वैदेही के चेहरे की तरफ मुड़ ही जा रही थीं और इसके साथ ही उसके धड़कनों की रफ़्तार भी मानों बेकाबू सी हो रही थी।

तारा ने फ़ोन पर यश को राघव और वैदेही के विषय में सब कुछ बताते हुए उसे हिदायत दी कि उनके आश्रम आने से पहले वो दिव्या जी, नंदिनी जी, लीजा, मार्क और वैदेही गेमिंग वर्ल्ड के सभी सहकर्मियों के साथ-साथ तारा और अपने परिवार को जो इस कार्यक्रम में उपस्थित थे, सबको किसी भी तरह ये समझा दे कि राघव के सामने सब लोग वैदेही को जानकी कहकर पुकारेंगे और ये भी जतायेंगे कि वो यश की कजन है।

सारी बातें समझने के बाद यश ने अपना सिर पकड़ते हुए कहा, "लगता है जैसे त्रेता युग में राम और सीता का निजी जीवन अनेक चुनौतियों से भरा हुआ था वैसे ही कलयुग में हमारे इस राघव और वैदेही का जीवन भी अनगिनत चुनौतियों में घिर गया है।"

"हाँ यश लेकिन हम अपने इस राघव और वैदेही को अब एक-दूसरे से दूर और वनवास नहीं भोगने देंगे।
तुम इसमें मेरा साथ दोगे न?"

"अब ये कोई कहने की बात है तारा? चलो तुम बेफ़िक्र होकर यहाँ पहुँचो, मैं सारी सेटिंग करके रखता हूँ।"

"थैंक्यू यश एंड आई लव यू सो मच।" तारा ने मुस्कुराते हुए कहा तो प्रतिउत्तर में यश ने भी उसे आई लव यू टू बोलकर फ़ोन रख दिया।

वापस राघव के केबिन में आते हुए जब तारा ने राघव से पूछा कि वो लंच करने आश्रम चल रहा है या नहीं तब राघव ने उठते हुए कहा, "अभी-अभी तो बिना मुझसे पूछे तुम कहकर गयी थी कि हम तीनों आश्रम जायेंगे, फिर अब ये पूछने की फॉर्मेलिटी क्यों कर रही हो?"

"करनी पड़ती है मिस्टर राघव, आख़िर आप मेरे बॉस हैं। अब चलिये या फिर मैं हाथ पकड़कर आपको घसीटते हुए यहाँ से ले चलूँ?" तारा ने शरारत से उसे आँख मारते हुए कहा तो उसका हाथ थामते हुए राघव बोला, "है दम तो ले चलो घसीटते हुए।"

"दम की बात तो तुम मत ही करो। होली वाले दिन जब तुम बेहोश पड़े थे तब मैंने ही अपने इन मजबूत हाथों में तुम्हें सँभाला था।"

तारा का ये कहना था कि राघव के चेहरे से यकायक हँसी गायब हो गयी जिसे वैदेही ने भी नोटिस कर लिया था।

उसका जी चाहा कि वो अभी इसी समय राघव को बता दे कि अब उसे कभी होली की याद आने पर उदास नहीं होना पड़ेगा लेकिन उसके होंठ जैसे इस समय सिल से गये थे।

इसलिए वो ख़ामोशी से एक-दूसरे का हाथ थामकर पार्किंग की तरफ जा रहे राघव और तारा से एक निश्चित दूरी बनाकर बस उनके पीछे-पीछे चलती रही।

राघव को उदास कर देने की अपनी गलती मानते हुए जब तारा ने अपने कान पकड़े तो उसे ऐसा करने से मना करते हुए राघव ने एक बार फिर मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहा, "इट्स ओके तारा, डोंट वरी। अब जल्दी चलो क्योंकि मुझे भी तेज़ भूख लगी है।"

गाड़ी में बैठने के बाद तारा ने वैदेही से कहा, "यश ने आज शाम को मुझे और तुम्हें अस्सी घाट पर बुलाया है। उसे तुम्हारी बहुत चिंता हो रही है लेकिन अपने पैरेंट्स के सामने वो तुमसे ज़्यादा बात कर नहीं सकता है।
तो एक काम करना तुम शाम को यहीं मेरे दफ़्तर आ जाना, हम यहाँ से साथ ही अस्सी घाट तक चल चलेंगे।"

वैदेही ने तो इस बात पर ख़ामोशी से हाँ में सिर हिला दिया लेकिन राघव ने आश्चर्य से कहा, "जानकी जी तो यश की कजन हैं फिर यश अपने परिवार के सामने इनसे बात क्यों नहीं कर सकता?"

"क्योंकि इसकी माँ जो यश की बुआ हैं उनके और यश के पापा के बीच कुछ पारिवारिक विवाद है लेकिन यश को इन विवादों से कोई लेना-देना नहीं है।" तारा ने जब कहा तो राघव बोला, "चलो ये अच्छी बात है। मुझे पहले से ही पता था कि अपना यश कोई ऐसा-वैसा लड़का हो ही नहीं सकता है।"

"हम्म... मिस्टर राघव, यूँ तो आप अपने आस-पास सबको जानने और पहचानने का दावा करते फिरते हैं लेकिन असल में आपको जिसे पहचानना चाहिए पता नहीं उस तक आपकी आँखें जा क्यों नहीं रही हैं?"

तारा ने जैसे ही कहा, राघव चौंकते हुए बोला, "मैं कुछ समझा नहीं। किसे नहीं पहचानता हूँ मैं?"

इससे पहले कि तारा आगे कुछ कहती वैदेही ने उसे संकेत से चुप रहने के लिए कहा, इसलिए तारा बात बदलते हुए बोली, "अपने आप को नहीं पहचानते हो तुम और क्या। लगता है तुम्हें ख़ुद ही पता नहीं है कि तुम ज़िन्दगी से क्या चाहते हो।"

"तुम और तुम्हारी ये पहेलियां, अब इनसे तुम यश को पकाया करो।" राघव ने मुँह बिचकाते हुए कहा और आश्रम की पार्किंग में गाड़ी लगाने के बाद वो बाहर निकलकर तेज़ी से आश्रम के अंदर चला गया।
क्रमश: