Fagun ke Mausam - 17 in Hindi Fiction Stories by शिखा श्रीवास्तव books and stories PDF | फागुन के मौसम - भाग 17

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फागुन के मौसम - भाग 17

वैदेही और तारा जब उस बिल्डिंग में पहुँचे जहाँ अब वैदेही रहने वाली थी तब तारा को पता चला कि शारदा जी ने एक ही फ्लोर पर आमने-सामने के दो फ्लैट रेंट पर लिए थे।
एक फ्लैट में वैदेही अकेले रहने वाली थी और दूसरे फ्लैट में मार्क और लीजा रहने वाले थे।

अपने फ्लैट में आकर वैदेही ने जब लीजा और मार्क को फ़ोन करके बुलाया तब वो भी तारा से मिलकर बहुत ख़ुश हुए।

जब उन्हें पता चला कि वैदेही आज राघव से नहीं मिलेगी तब लीजा ने हैरत से कहा, "सारे रास्ते तुम जिसके नाम की माला जपती आयी हो अब उससे तुम्हें मिलना ही नहीं है। ये अजीब नहीं है?"

"हाँ सचमुच।" मार्क ने भी कहा तो वैदेही उनकी बातों को नज़रंदाज़ करते हुए तारा से बोली, "तुम्हें क्या लगता है तारा माँ ने हम तीनों को एक साथ एक ही फ्लैट में रहने नहीं दिया ये सही है या गलत?"

"मेरे ख़्याल से तो आँटी ने बिल्कुल सही किया है वैदेही क्योंकि ये भारत है विदेश नहीं। हमारे समाज की अपनी एक सोच है। बेफ़िजूल उससे उलझकर अपने जीवन में तनाव पालने की ज़रूरत ही क्या है?
अभी यहाँ सबको यही लगेगा कि लीजा और मार्क कपल हैं और तुम्हारे दोस्त भी तो उनके साथ उठने-बैठने पर कोई तुम्हारे ऊपर भी ऊँगली नहीं उठायेगा।
है न।"

तारा की बात सुनकर वैदेही ने गहरी साँस लेते हुए कहा, "हम्म... शायद माँ ने इस समाज की ऐसी सोच का इतना ज़्यादा सामना किया है कि अब भी उनके मन से वो डर निकल नहीं पाया है।"

"कोई बात नहीं। मुझे पूरा भरोसा है तुम्हें राघव के साथ ख़ुश देखकर धीरे-धीरे आँटी भी अपनी सारी तकलीफें भूल जायेंगी।"

तारा के इन शब्दों पर वैदेही ने जब अपनी मुस्कान से स्वीकृति की मोहर लगा दी तब उसे अपना ध्यान रखने और शाम में वापस मिलने की बात कहकर तारा अपने दफ़्तर के लिए निकल गयी।

वैदेही भी लीजा और मार्क के साथ अगले दिन होने वाले जश्न के लिए अपनी विशेष प्रस्तुति पर चर्चा करने में व्यस्त हो चुकी थी और जैसी की उसकी आदत थी नृत्य करते समय वो सारी दुनिया भूलकर बस उसी में डूब जाती थी जैसे कोई साधु सांसारिकता से मोह भंग करके अपनी तपस्या में लीन हो जाता है।
*********
राघव जब एक फ़ाइल लेने तारा के केबिन में पहुँचा तब उसने देखा वो गुनगुनाते हुए अपने सिस्टम पर काम कर रही थी।

"बात क्या है तारा, आज तुम कुछ ज़्यादा ही ख़ुश दिखायी दे रही हो? लगता है यश के साथ तुम्हारी डांस रिहर्सल काफ़ी अच्छी हुई है।"

"अरे कहाँ, तुम्हारी तरह वो भी मेरे इस एडवेंचर में मेरा साथ देने से पीछे हट गया। इसलिए अब मैं कल के कार्यक्रम में बस एक दर्शक की ही भूमिका निभाऊँगी।
वैसे तुम बताओ क्या काम था मुझसे?" तारा ने कुर्सी से उठते हुए कहा तो राघव ने उसे डांस के लिए मना करने की बात पर सॉरी बोलते हुए उससे फ़ाइल माँगी और वापस अपने केबिन में आ गया।

शाम में जब राघव ने तारा से घाट किनारे चलने के लिए पूछा तो तारा ने बहाना बनाते हुए कहा कि उसे यश से मिलना है।

"लेकिन यश तो दिल्ली में है और वो कल सुबह बनारस आयेगा।"

राघव ने जैसे ही कहा तारा अपने माथे पर चपत लगाते हुए बोली, "अरे हाँ, असल में मुझे आज घर जल्दी जाना है। माँ को कुछ काम है।"

"ठीक है, तुम्हें मेरे साथ कहीं नहीं जाना है तो मत जाओ लेकिन कम से कम ये उल्टे-सीधे बहाने मत बनाओ।" राघव ने कुछ गुस्से से कहा और तारा की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा किये बिना तेज़ कदमों से अपनी कार की तरफ बढ़ गया।

एक पल के लिए तारा को अपने ऊपर ग्लानि हो आयी कि उसने राघव को हर्ट कर दिया है लेकिन फिर अगले ही पल उसने ख़ुद को समझाया कि अभी वैदेही को उसकी ज़्यादा ज़रूरत है।

तारा चाहती थी कि वर्षों बाद अपनी माँ के बिना बनारस लौटी वैदेही को यहाँ परिवार की कमी न ख़लने लगे जिसके कारण वो दोबारा भारत छोड़कर जाने के विषय में सोचे।

इसी उद्देश्य से जब वो वैदेही से मिलने पहुँची तब वैदेही भी बेचैनी से उसी की राह देख रही थी।

तारा के आते ही वैदेही ने उससे कहा, "तारा तुम्हारे मोबाइल में राघव की लेटेस्ट फोटोज़ हैं क्या?"

"बिल्कुल हैं। कल ही हम घाट किनारे गये थे तब हमने कुछ तस्वीरें ली थीं।" कहते हुए तारा ने अपने मोबाइल की गैलरी खोलकर उसे वैदेही की तरफ बढ़ा दिया।

इन तस्वीरों को देखने के बाद वैदेही ने कहा, "तुम और राघव एक-दूसरे के बहुत क्लोज्ड हो न।"

"हाँ बहुत। आख़िर हम स्कूल के दिनों के दोस्त हैं लेकिन तुम्हें इससे इनसिक्योर फील करने की ज़रूरत नहीं है वैदेही।
राघव की ज़िन्दगी में मेरी और तुम्हारी जगह बिल्कुल अलग है, ठीक वैसे ही जैसे मेरी ज़िन्दगी में राघव और यश की जगह अलग-अलग है।"

हामी भरते हुए वैदेही तारा के साथ उसके घर जाने के लिए निकल गयी।

लीजा और मार्क को वैदेही के साथ जाना सही नहीं लगा इसलिए वो दोनों एक साथ बनारस घूमने चल पड़े।

तारा को अभी राघव के साथ वैदेही का नाम लेना उचित नहीं लगा इसलिए अपने घर पर उसने वैदेही का परिचय अपनी पुरानी सहेली के रूप में दिया।

वैदेही भी कुछ ही समय में तारा के माँ-पापा और भैया-भाभी के साथ सहज हो चुकी थी जैसे ये सब उसके अपने ही हों।

उन्हें भी जब पता चला कि वैदेही यहाँ अकेली रह रही है तब उन्होंने उसे नि:संकोच कभी भी घर आते-जाते रहने और कोई समस्या होने पर किसी भी समय तुरंत फ़ोन करने की हिदायत दी।

उन सबसे मिलकर वापस लौटते हुए वैदेही बस यही सोच रही थी कि कुछ भी हो अपना देश, अपना परिवेश और अपनी मिट्टी के लोग... इनसे चाहे जितना भी दूर रह लो पर इनके अपनेपन की महक मन से कभी बिसर ही नहीं सकती है और इनके सामने आते ही जैसे दूरियों और अजनबीपन की दीवार ख़ुद ही भरभरा कर गिर पड़ती है।

अगली सुबह अपने वादे के अनुसार जब वैदेही लीजा और मार्क को साथ लेकर अपराजिता निकेतन पहुँची तब उसे देखते ही दिव्या जी का चेहरा खिल पड़ा।

उनके साथ ही खड़ी नंदिनी जी जो पिछले दिन वैदेही से नहीं मिल पायी थीं आज उसे अपने सामने देखकर भावविह्वल हो उठी थीं।

उनके साथ बैठकर नाश्ता करते हुए वैदेही को इस आश्रम में बिताये गये पुराने दिन याद आ रहे थे जब अक्सर नंदिनी जी उसे और राघव को साथ बैठाकर अपने हाथों से नाश्ता करवाती थीं।

नाश्ता करने के बाद दिव्या जी ने वैदेही से कहा, "बेटा तुम आराम से यहाँ बैठो। जब मंच पर तुम्हारा नाम बुलाया जायेगा तब तुम वहाँ आना।
फिर देखते हैं राघव तुम्हारा नाम सुनकर क्या प्रतिक्रिया देता है।"

"नहीं मौसी, आप प्लीज़ मंच संचालक से कह दीजिये कि वो मेरा नाम न ले। मैं देखना चाहती हूँ राघव मेरा नृत्य देखकर मुझे पहचान पाता है या नहीं।"

वैदेही ने आग्रह करते हुए कहा तो दिव्या जी को उसकी बात माननी ही पड़ी।

थोड़ी देर में तारा, राघव, हर्षित और उनके दूसरे कलिग्स भी आश्रम पहुँच गयें और पांडेय की टीम के साथ मिलकर कार्यक्रम का लेखा-जोखा लेने लगें कि सारी तैयारी ठीक है या नहीं।

कार्यक्रम के स्पॉन्सर्ड एडवरटाइजमेंट की बदौलत इस आश्रम से जुड़े हुए बहुत सारे लोग जो अब बाहर रहते थे, वो सब भी आज के इस कार्यक्रम के लिए विशेष रूप से बनारस आये थे।

इन सब लोगों के आने से आश्रम की शोभा जैसे चौगुनी हो गयी थी।

दिव्या जी भी इन सबसे मिलकर इतनी प्रसन्न थीं कि बरबस ही उनके मुँह से वैदेही गेमिंग वर्ल्ड से जुड़े हर शख्स के लिए आशीर्वाद निकल रहे थे।

जैसे ही कार्यक्रम शुरू होने का समय हुआ सभी लोग अपनी-अपनी कुर्सियों पर बैठ गयें।

आज कार्यक्रम को संचालित करने की जिम्मेदारी वैदेही गेमिंग वर्ल्ड से राहुल ने ली थी, जो अक्सर अपने दफ़्तर की पार्टीज में भी तारा का साथ देते हुए बढ़-चढ़कर होस्ट का काम किया करता था।

राहुल ने सबसे पहले दिव्या जी से मंच पर आने का आग्रह किया।

दिव्या जी ने अभी मंच पर पहुँचकर माइक सँभाला ही था कि तभी यश भागते हुए आकर तारा के साथ वाली खाली कुर्सी पर बैठने के बाद बोला, "सॉरी-सॉरी मुझे आने में देर हो गयी। वैसे अपनी वैदेही कहाँ है?"

तारा ने घबराकर अपने दूसरी तरफ बैठे हुए राघव की तरफ देखा और फिर उसने राहत की साँस ली कि दिव्या जी के स्वागत भाषण को तल्लीनता से सुन रहा राघव यश की बात नहीं सुन पाया था।

तारा ने धीमे स्वर में यश को समझाते हुए कहा कि अभी वो चुपचाप कार्यक्रम पर ध्यान दे तो यश ने भी हामी भरते हुए दिव्या जी के शब्दों पर अपना ध्यान केंद्रित कर लिया।
क्रमश: