Lout aao Amara - 9 in Hindi Thriller by शिखा श्रीवास्तव books and stories PDF | लौट आओ अमारा - भाग 9

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लौट आओ अमारा - भाग 9

ना वो शैतान की यज्ञवेदी और अमारा को स्पर्श कर सकते थे और ना शैतान उन्हें।
सारी स्थिति स्पष्ट होने के बाद वो दोनों समझ गए कि अब इन्हीं परिस्थितियों में उन्हें अपनी अमारा को बचाना है।

कुलगुरु की सलाह भूलकर पायल ने सहसा फिर एक भूल कर दी।
उसे लगा कि अगर वो अपनी कलाई से रक्षा-सूत्र खोलकर अमारा पर फेंक देगी तब वो जरूर शैतान के चंगुल से मुक्त हो जाएगी।

ये ख्याल आते ही उसने तेज़ी से रक्षा-सूत्र खोला और अमारा की तरफ फेंका लेकिन रक्षा-सूत्र अमारा को स्पर्श नहीं कर पाया।

पायल का इशारा समझकर अमारा ने रक्षा-सूत्र तक पहुँचने की कोशिश की लेकिन उसने पाया कि वो गुफा की दीवारों से पूरी तरह चिपकी हुई थी।

इस दृश्य को देखकर शैतान ने एक जोरदार अट्टाहास लगाया।

जब उसकी हँसी थमी तब पायल ने स्वयं को भी बंधन में पाया।

संजीव ने बेबस नज़रों से पायल और अमारा की तरफ देखा और तेज़ी से ज़मीन पर गिरे हुए रक्षा-सूत्र को उठाने के लिए झुका लेकिन उसने देखा रक्षा-सूत्र ज़मीन के अंदर समा चुका था।

"अब कोई फायदा नहीं मूर्ख इंसानों। मैंने कहा ना यहाँ से कोई बचकर नहीं जाएगा।
अब पहले माँ-बेटी इस दुनिया से जाएंगी फिर मैं आखिरी इंसान को भी इस दुनिया से विदा करने का रास्ता ढूँढ ही लूँगा। तब तक दफा हो जाओ मेरी गुफा से।" शैतान के इतना कहते ही संजीव ने पाया कि वो गुफा के बाहर खड़ा था।

अंदर चीखती हुई आवाज़ में शैतान ने कहा "चलो आज मैं तुम सब पर एक अहसान करता हूँ की अपनी मौत का रास्ता तुम्हें स्वयं बता देता हूँ क्योंकि अब इस रास्ते पर चलने वाला कोई नहीं बचा है।"

बाहर संजीव के कानों तक भी शैतान की आवाज़ स्पष्ट रूप से आ रही थी, इसलिये वो ध्यान से उसकी बातें सुनने लगा।

शैतान ने कहा "मुझे सिर्फ वो बच्चा मार सकता है जिसे मैंने बलि देने के लिए कैद किया हो, लेकिन ये सिर्फ तब हो सकता है जब उसके हाथ में कोई पवित्र हथियार हो और वो हथियार उसके हाथ में उसकी माँ ने दिया हो।

अब इस लड़की को जन्म देने वाली तो प्रेत बन चुकी है और वो पवित्र हथियार स्पर्श भी नहीं कर सकती। और अगर पालने वाली को भी माँ मान लें तो वो भी अब मेरी कैद में है।

तो अब मेरी मौत के सारे रास्ते बंद।"

इतना कहकर शैतान एक बार फिर हँसा।

उसकी बात सुनकर संजीव भी अब निराश हो चुका था। ईश्वर और कुलगुरु का ध्यान करते हुए वो एक बार फिर मन्दिर की सीमा की तरफ बढ़ गया।

वहाँ पेड़ की कोटर में उसे कुलगुरु की दी हुई तीली मिल गई जिसे पायल ने वहाँ इसलिए छिपाकर रख दिया था ताकि वो दोबारा ना गिरकर खो जाए।

उस तीली को देखकर संजीव के दिल में एक आस सी जगी, मानों वो तीली उससे कह रही हो कि कुछ ही घँटों में मैं दोबारा जल उठूँगी बस तुम अपने अंदर उम्मीद की रोशनी बुझने मत देना।

संजीव ने ईश्वर के समक्ष हाथ जोड़े और तीली को देखता हुआ वहीं बैठ गया।

धीरे-धीरे सुबह दोपहर में बदली और दोपहर शाम में, शाम से अब रात हो चली थी और एक बार फिर शैतान के यज्ञवेदी की अग्नि प्रज्ज्वलित हो चुकी थी।

आज इस अग्नि से कुछ ज्यादा ही प्रचंड ज्वालाएं निकल रही थी जिन्हें देखकर शैतान के चेहरे की चमक बढ़ गई थी।

संजीव की नज़र एकटक कुलगुरु की तीली पर टिकी हुई थी।

कुछ ही क्षणों में जैसे ही तीली को बुझे हुए चौबीस घण्टे पूरे हुए तीली एक बार फिर प्रज्ज्वलित हो उठी।

जैसे ही तीली की रोशनी संजीव के चारों ओर फैली उसके कानों में एक आवाज़ आई "पता है पापा कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है जैसे आप मेरी मम्मा हैं और मम्मा पापा है।"

"क्या मतलब? मैं कुछ समझा नहीं?" अमारा की बात सुनकर संजीव हैरान सा उसकी तरफ़ देख रहा था।

"अरे मतलब की मेरे सारे दोस्त अपने पापा से डरते हैं और मम्मा के पीछे छुपते हैं लेकिन मैं मम्मा से डरती हूँ और आपके पीछे छुपती हूँ, आपके साथ मस्ती करती हूँ और मम्मा को देखकर किताब खोल लेती हूँ। तो हुए ना आप पापा से ज्यादा मेरी मम्मा और मम्मा हो गई मम्मा से ज्यादा पापा।"

अमारा की इस बात पर उसके साथ-साथ संजीव भी खिलखिला उठा था।

उस बीते हुए पल को याद करते हुए सहसा संजीव को शैतान की कही हुई बात याद आई कि अमारा को पवित्र हथियार सिर्फ उसकी माँ दे सकती है।

"हे ईश्वर अगर मैं अपनी बेटी तक पवित्र हथियार ले जा सकता हूँ तो मुझे रास्ता दिखाओ। रास्ता दिखाओ।" संजीव अपनी पूरी ऊर्जा लगाकर चीखा।

उसने तीली को अपने हाथ में उठाया और तभी उसका ध्यान तीली से टपकती हुई पानी की बूँदों पर पड़ा जो मंदिर परिसर के अंदर की तरफ जाने का इशारा कर रहा था।

बूँदों के पीछे चलते हुए संजीव एक जगह आकर रुका। वहाँ एक पत्थर ज़मीन में धँसा हुआ था।

एक हाथ में तीली को संभाले हुए दूसरे हाथ से संजीव ने अपनी पूरी ताकत लगाकर उस पत्थर को ज़मीन से खींचा।

पत्थर हटते ही संजीव की नज़र वहाँ गड़े हुए त्रिशूल पर पड़ी।

संजीव ने उस त्रिशूल को खींचकर निकाला और तीली की तरफ़ देखते हुए कहा "अब मुझे गुफा तक जाने का रास्ता दिखाओ।"

तीली से एक बार फिर पानी की बूँदें टपकने लगीं।

इन बूँदों के पीछे-पीछे चलता हुआ संजीव गुफा के अंदर जाने वाले सुरंग के मुहाने तक पहुँच चुका था।

वो सोच ही रहा था कि सुरंग के अंदर कैसे पहुँचे की तीली से टपकती हुई बूँदों ने वहाँ की मिट्टी को बहाना शुरू कर दिया और देखते ही देखते संजीव के सामने रास्ता खुल गया।

जैसे ही संजीव त्रिशूल लेकर गुफा के अंदर पहुँचा यज्ञवेदी पर बैठे हुए शैतान का मंत्रोच्चारण बन्द हो गया।

वो उठकर संजीव की तरफ झपटना चाहता था लेकिन पूजास्थल से उठना उसके लिए भारी अपशगुन हो सकता था, इसलिए उसने वहीं से संजीव पर अपनी शक्ति का प्रहार किया लेकिन उसकी शक्तियाँ रास्ता भटककर गुफा की दीवारों में समा गईं।

अगले ही क्षण गुफा की दीवारों से अमारा के माता-पिता के प्रेत प्रकट हुए।
क्रमशः