Lout aao Amara - 8 in Hindi Thriller by शिखा श्रीवास्तव books and stories PDF | लौट आओ अमारा - भाग 8

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लौट आओ अमारा - भाग 8

इंस्पेक्टर रंजीत कुलगुरु की चेतावनी अनुसार जंगल की सीमा पर ही रुक गए थे।

रात का घुप्प अँधेरा, रह-रहकर आती हुई जंगली जानवरों की भयानक आवाज़ें भी आज पायल और संजीव को डराकर उनके कदम रोकने में नाकाम साबित हो रही थीं।

पायल ने कुलगुरु की दी हुई माचिस की तीली बैग से निकाली।
बाहर आते ही वो तीली अपने आप जल उठी। पायल और संजीव ने देखा उसकी लौ एक जगह स्थिर थी और उससे पानी की बूँदें रिसकर मानों ज़मीन पर कोई रास्ता बना रही थी।

संजीव और पायल समझ गए कि तीली उन्हें रास्ता दिखा रही थी।

तीली से रिसती हुई पानी की बूँदों के पीछे-पीछे एक-दूसरे का हाथ थामे पायल और संजीव जंगल में आगे बढ़ते गए।

इंसानों की आहट पाकर कई जंगली जानवर अपनी मांद से निकल आए थे लेकिन पायल और संजीव ने देखा कि वो उनके हाथ की तीली पर एक नज़र डालकर वापस लौट रहे थे।

अब पायल और संजीव का रहा-सहा डर भी खत्म हो चुका था और उनकी हिम्मत बढ़ गई थी।

आख़िरकार चलते-चलते घने जंगल के एक छोर पर उन्हें वो गुफा मिल ही गई जिसमें उनकी अमारा थी।

पायल और संजीव ने जब देखा कि अब तीली से पानी की बूँदें नहीं टपक रही हैं तब वो कुलगुरु का इशारा समझ गए कि वो सही जगह पर आ चुके हैं।

गुफा के प्रवेश-द्वार पर भारी पत्थर देखकर पायल और संजीव के होश उड़ गए।

पायल ने हिम्मत करके जैसे ही पत्थर के ऊपर अपना हाथ रखा, अंदर साधना में बैठे हुए शैतान के माथे की नस फड़क उठी।

"असंभव...।" शैतान अपनी पूरी ताकत लगाकर चीखा।

ये चीख इतनी विभत्स थी कि पायल के हाथ से तीली छूटकर ज़मीन पर जा गिरी और तत्काल बुझ गई।

पायल ने किसी तरह साथ लाए हुए टॉर्च की मदद से तीली उठा तो ली लेकिन अब ये तीली चौबीस घण्टे के बाद ही जल सकती थी।

इस अँधेरे जंगल में जहाँ एक छोटी सी तीली अब तक उन्हें भरपूर रोशनी दे रही थी वहीं उनकी शक्तिशाली टॉर्च अब अपनी क्षमता खोती जा रही थी।

गुफा का पत्थर अब धीरे-धीरे अपनी जगह से सरकने लगा था और पायल के साथ-साथ संजीव के पाँव मानों अपनी जगह पर जमते जा रहे थे।

उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि अब वो करें तो क्या करें।

"हे ईश्वर, अब तू ही हमें रास्ता दिखा।" पायल और संजीव ने कातर स्वर में अपने ईश्वर को पुकारा।

अचानक उन्हें लगा जैसे कोई उनके कान में फुसफुसा रहा है "तुम्हारे दाईं तरफ सात पेड़ छोड़कर एक छोटा सा मंदिर है। तेज़ी से उस मंदिर की सीमा में प्रवेश कर जाओ।"

पायल और संजीव ने इस निर्देश का अनुसरण किया और मन्दिर की दिशा में भागे।

अभी उन्होंने मन्दिर की सीमा में प्रवेश किया ही था कि शैतान गुफा से बाहर आ गया।

पायल और संजीव को बस उसकी जलती हुई लाल आँखें नज़र आ रही थीं।

शैतान ने चीखते हुए कहा "दुष्ट इंसानों तुम यहाँ तक आ तो गये हो लेकिन वापस नहीं जा पाओगे। कल पहले मैं इस लड़की की बलि दूँगा और फिर तुम्हारी।"

शैतान के वापस मुड़ते ही वो आवाज़ जो दरअसल अमारा की असली माँ की थी एक बार फिर पायल के कानों में आई, लेकिन उसने महसूस किया कि वो आवाज़ इस बार उससे नहीं किसी और से बात कर रही थी।

"गुड्डो के बाबूजी, मैंने तो बस सोचा कोशिश करके देख लेती हूँ शायद इन लोगों को मेरी आवाज़ सुनाई दे, हालांकि हम इतने अशक्त हैं कि मुझे इस पर भरोसा नहीं था, लेकिन लगता है उन्होंने मेरी आवाज सुन ली थी।"

"हाँ गुड्डो की अम्मा मुझे भी ऐसा महसूस हो रहा है जैसे मुझमें कुछ ताकत आ गई है। लेकिन ये हुआ कैसे?"

"जरा आसमान की तरफ देखिये। लगता है ठीक आधी रात के वक्त शैतान की साधना भंग होने से ऐसा हुआ है।"

"फिर तो ये शुभ संकेत है। हम चारों मिलकर अपनी बेटी को बचा लेंगे।"

"आप लोग कौन हैं? नज़र क्यों नहीं आ रहे हैं?" पायल ने डरते-डरते धीमी आवाज़ में पूछा।

गुड्डो की अम्मा ने पहले की भांति फुसफुसाकर पायल और संजीव को अपनी सारी कहानी सुना दी।

सब कुछ जानकर पायल और संजीव की आँखों से आँसू बह चले।
इन आँसुओं के साथ उनकी आँखों में था एक दृढ़ संकल्प अमारा को यहाँ से सही-सलामत लेकर जाने का संकल्प।

सुबह का सूरज निकलते ही शैतान एक बार फिर गुफा से निकला और जब दोनों प्रेतों को अहसास हुआ कि वो सो चुका है तब सुरंग के रास्ते से वो पायल और संजीव को लेकर अमारा के पास गुफा के अंदर पहुँचे।

अपने मम्मा-पापा को अपनी नज़रों के सामने देखकर अमारा खुशी से रो पड़ी।

पायल और संजीव ने अमारा के बंधन खोलने की कोशिश की लेकिन वो उसे स्पर्श कर पाने में नाकाम रहे।

प्रेतों ने संजीव और पायल के हाथ में रक्षा-सूत्र देखकर कहा कि अगर इसकी मदद से वो शैतान की यज्ञवेदी को नष्ट कर दें तो शायद अमारा मुक्त हो जाए।

पायल और संजीव को भी उनकी बात उचित लगी।

वो दोनों जैसे ही यज्ञवेदी की तरफ बढ़े उनके पैरों में मानों बिजली का तेज झटका लगा और वो ज़मीन पर गिर पड़े।

जब तक वो दोनों संभलते तब तक गुफा के प्रवेश द्वार पर हलचल होने लगी थी।

देखते ही देखते वहाँ रखा हुआ भारी-भरकम पत्थर सरककर एक तरफ हो गया और शैतान ने गुफा में प्रवेश किया।

संजीव और पायल ने देखा कि उसके आते ही दोनों प्रेत धीरे-धीरे गुफा की दीवारों में समाकर गायब हो गए।

शैतान ने क्रोध से जलती हुई नज़रों से उन दोनों की तरफ देखा और दहाड़ते हुए बोला "तुम दोनों यहाँ कैसे पहुँचे?"

पायल और संजीव उस शैतान की विशालकाय काया के सामने स्वयं को चींटी की तरह महसूस कर रहे थे।

उनके शब्द मानों उनके होंठो पर जम से गये थे।

शैतान ने अपने हाथ जैसे ही उनकी तरफ बढ़ाये उसे ऐसा लगा जैसे उसके हाथ तेज़ अग्नि में झुलस रहे हैं।

उसे दर्द से चीखते हुए पाकर संजीव और पायल ने महसूस किया कि उनकी कलाई के रक्षा-सूत्र से कोई ऊर्जा निकल रही थी जिसकी वजह से शैतान उनके पास नहीं आ पा रहा था।
क्रमशः