nakal ya akal - 12 in Hindi Fiction Stories by Swati books and stories PDF | नक़ल या अक्ल - 12

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नक़ल या अक्ल - 12

12

रिश्वत

 

दोनों को अपने चेहरे की तरफ ताकते हुए देखकर,  बाबू अपनी कुरसी से उठें और बोले,  “चलो  लड़कों  बाहर चलते  हैं”I  अब वह उनके साथ बाहर आ गए,

 

बस से आये हो ?

 

नहीं सर, स्कूटर से !!

 

अच्छा  फिर जाओ और कोने में  एक पान की दुकान है, वहाँ से मेरे लिए बढ़िया सा पान ले आओ,  तब तक मैं  निहाल के भाई से कुछ गुफ्तगू कर लूँ,  अब नंदन  ने स्कूटर उठाया और चल पड़ा,

 

देखो !! बेटा किशोर, मैं अंदर भी बता सकता था,  मगर अंदर कैमरे लगें हैंI

 

सर बताए,  मेरे भाई के भविष्य का सवाल हैI 

 

सरकारी  नौकरी और वो भी पुलिस में  लग जाए तो भविष्य तो अपने आप सँवर जायेगाI  इतने में  नंदन  पान लेकर आ गया,  बाबू ने उससे पान लिया और उसकी स्कूटर पर बैठता हुआ बोला,  “हर चीज़ की कीमत होती है,  हम भी इतनी गर्मी में दो पैसे काम लेंगे तो कौन सी आफत आ जाएगीI” 

 

“सर!! आपको सैलरी भी तो मिलती हैI”  यह सुनकर बाबू चिढ़ गया,  “दफ़ा हो जाओ,  यहाँ सेI”  तभी उसे  किशोर ने स्कूटर पर दोबारा  बिठाते हुए कहा,  “सर यह तो नादान है,  मैं समझदार हूँI  आप मुझे कहेंI”  किशोर ने  नंदन को घूरा जिससे वो समझ गया कि  उसे अपना मुँह  बंद रखना हैI 

 

अब बाबू ने मुस्कुराते हुए बोलना शुरू किया,

 

बड़े  साहब  के कंप्यूटर चलाने के दो हज़ार,  एडमिट कार्ड के दो हज़ार और कैमरे से फुटेज  डिलीट करने के एक हज़ार यांनी कुल मिलाकर पाँच  हज़ार रुपए देकर अपने भाई का भविष्य बचा लोI  उसने अपना चश्मा  ठीक कियाI 

 

सर, यह पैसे कुछ ज़्यादा नहीं हैI  किशोर ने विनम्र होकर कहाI

 

मेरे साथ एक मैडम  और है उनको भी देने पड़ेगे,  कैमरे की फुटेज वही हटाती है और इसकी भी गारंटी नहीं कि बड़े बाबू सोमवार को आएंगे, आगे तुम्हारी मर्जीI

 

अब वे दोनों एक दूसरे का मुँह देखने लगे,  उसने जेब में हाथ मारा तो सिर्फ तीन हज़ार निकले फिर उसने नंदन को कहा तो उसने अपनी ज़ेब  से दो हजार निकालकर उसे दिएI  अब कुल पाँच  हज़ार रुपए  उसे पकड़ाते हुए कहा,  “सर हमारा काम कर दोI”  उसने भी नोट जल्दी से अपनी जेब में लिए और उन्हें  अपने साथ बड़े बाबू के कमरे में ले गयाI

 

राजवीर न दिनेश से पूछा,  भाई ज़रा खुलकर बताएं कि क्या हो सकता हैI  अब दिनेश की आवाज़ धीमी हो गईI  उसने चाय  को एकतरफ किया और बोला,  “देखो ! मैंने  तो कोचिंग ली थी, क्योंकि  मेरे बाप के पास इतने पैसे नहीं थे कि पेपर खरीद सको I

 

क्या! इसका मतलब पेपर बिक रहा था ? रघु  हैरान हैI

 

भाई यह हिंदुस्तान है,  यहाँ कुछ भी हो सकता है, यहाँ तक कि सपने भी ख़रीदे जा सकते हैंI

 

यह सुनकर,  राजवीर कुछ सोचकर बोला,  “क्या सिर्फ कोचिंग करने से पेपर क्लियर हो जायेगा?”

 

हाँ,  हो सकता है और वैसे भी पेपर खरीदने का टाइम, अब निकल गयाI  इसकी सेटिंग तो कई महीने पहले करनी  होती हैI

 

कितने महीने पहले?

 

कम से कम एक महीना पहलेI

 

और पैसे?

 

लाखो में खर्च होते हैंI  कुछ स्टूडेंट्स इतना पैसा चढ़ाते है कि उनका गलत पेपर भी ठीक हो जाता हैI  उसकी आवाज और धीमी हो गईI 

 

 

एडमिट कार्ड लेने के बाद,  नंदन और किशोर वापिस अपने गॉंव की ओर निकल गएI   भाई !! आपने उसे पैसे क्यों दिए,  एडमिट कार्ड देना उनकी ड्यूटी हैI 

 

अगर  तू एडमिट नहीं खोता तो यह करने की नौबत नहीं आती और यही दुनिया है , हर जगह  पैसे का ही बोलबाला हैI किशोर ने मुँह बनाते हुए जवाब दियाI  

 

राजवीर और रघु दिनेश से मिलकर बाइक पर गॉंव की तरफ जा रहें हैं,

 

यार !! क्या सोच रहा है?

 

“यही कि इस दफा अगर यह पेपर निकल गया तो ठीक,  वरना कोई तिकड़म लगानी पड़ेगीI”  अब चलते चलते अचानक उसकी बाइक रुक गई तो उसने उसे चेक किया तो देखा कि इंजन से लगी कोई तार टूट गई  है,  “कितनी बार कहा है बापू को, कि नई बाइक दिलवा दो,  मगर पैसे खर्च करते हुए उनकी जान  निकलती हैI”  उसने गुस्से में बाइक पर लात मारते हुए कहाI  फिर अपने बड़े भाई सुधीर को कहा कि वह किसी नौकर के हाथों ट्रेक्टर यहाँ भेज देंI  अब एक खाने के ठेले को देखकर राजवीर रघु से बोला,

 

छोले कुलचे खायेगा?

 

हम्म!! राजवीर ने ठेले वाले को दो प्लेट छोले कुलचे देने के लिए कहा, “अब दोनों एक कोने में लगे पेड़ के नीचे बैठ गएI  अब जब ट्रेक्टर आएगा,  तभी चलेंगेI  राजवीर ने अंगड़ाई लेते हुए कहा I

 

एक हमसे पढ़ा नहीं जा रहा और वो नन्हें टूटी टाँग लेकर भी दिन रात पढ़ने में लगा हैI

 

राज!! आगर उसका पेपर क्लियर हो गया तो वह गॉंव का पहला लौंडा होगा जो इंस्पेक्टर लगेगा और सोच उसकी पूरे गॉंव में  कैसी साख हो जाएगीI

 

 वही तो पहले ही गॉंव स्कूल और कॉलेज सब जगह वही लाडला  बना फिरता है I उसने चिढ़ते हुए कहाI

 

घर पहुँचकर किशोर ने नंदन को दो हज़ार रुपए और पकड़ायें,  “रहने दे,  नन्हें का एडमिट कार्ड भी तो मेरी वजह से गुम हुआ हैI”  “ भाई, यह पैसे किस बात के? नन्हें ने हैरानी से पूछाI  यह कीमत है,  तेरे एडमिट कार्ड कीI” “ क्या मतलब?” उसने किशोर की तरफ देखाI फिर उसने उसे सारी बात बताई तो वह  सिर पकड़कर बोला,  “एक ईमानदार पुलिस अफसर की शुरुआत ही भ्रष्ट तरीके से हो रही हैI” “भाई !! जब पुलिस में जायेगा न तब इस ईमानदारी के जलवे देखेंगे I वैसे भी तेरी वजह से पहले ही बहुत देर हो गई  हैI”  अब उसने पैसे नंदन के हाथ में  थमाए और खेतों की ओर निकल गयाI

 

ठेले वाला उन्हें कुलचे छोले पकड़ाकर चला गया I रघु खाते हुए बोला,

 

वैसे इस बार नन्हें पेपर तो नहीं दे सकेंगाI

 

उस दिन, कह तो रहा था कि जायेगा,  उसने कुलचा मुँह में डालते हुए कहाI  अब खाने के बाद, राजवीर कुलचे के नीचे का कागज़ फेंकने लगा तो अचानक रुक गयाI

 

राज !! मैं एक प्लेट और खाऊँगा तू खायेगा?  उसने राजवीर को उस कागज़ को घूरते हुए देखा तो पूंछा, “खायेगा क्या, कहाँ देख रहा है?”   “रघु! यह देख, उसने उसे भी वह कागज़ दिखाया तो उसकी आँखे  भी फटी  की फटी रह गई I