akal ya nakl - 10 in Hindi Fiction Stories by Swati books and stories PDF | नक़ल या अक्ल - 10

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नक़ल या अक्ल - 10

10

जुगाड़

 

“यह तो अच्छा नहीं हुआ, “  नन्हें ने अब परेशान होते हुए कहाI  रिमझिम,  सोना और सोमेश को भी उसके लिए चिंता होने लगीI  “एडमिट कार्ड के बिना तो वो एंट्री ही नहीं देंगे I”  नन्हें के मुँह से यह सुनकर नंदन को अपनी करनी का पछतावा होने लगा,  वो अब भी सोच रहा है कि वो इतना लापरवाह कैसे हो सकता हैI” “यार! मुझे नहीं लगता कि एडमिट बस में गिरा है, “ “आप कहना क्या चाहते हो?” सोमेश ने पूछा I “पता नहीं,  मगर कहीं तो कुछ न कुछ गड़बड़ हैI”  अब रिमझिम ने सोचते हुए कहा,  “कहीं ऐसा तो नहीं है कि एडमिट कार्ड किसी ने चुरा लिया होI”   “एडमिट कार्ड भला कौन चुरायेगा?”  सोना ने उसके चेहरे की तरफ देखते हुए कहाI “ कोई भी चुरा सकता हैI”  अब सोमेश  भी बोल पड़ाI 

“नंदन! हम उस बस के ड्राइवर का घर जानते है,  तू सोमेश के साथ जा और पता कर और अगर वहाँ भी न मिले  तो दोबारा उनकी वेबसाइट पर ट्राय कर,  प्रिंट ऑउट तो देना है,  दोबारा ले लेंगेI” “ मैं न कहता था कि नन्हें का दिमाग.....”  “लोमड़ी से  भी तेज़  चलता है,” सब एकसाथ बोलकर हँसने लगे तो नंदन  झेंप  गयाI

 

रात को किशोर को इतना चहकता हुआ देखकर,  नन्हें ने उसे  छेड़ते हुए कहा, “ भाई,  लगता है कि  राधा संग संगम  होने वाला हैI”  “ हाँ नन्हें मेरा ससुरा भी मान गयाI”  उसने ख़ुशी से ज़वाब दिया I  अब अम्मा ने उन्हे खाना खाने के लिए आवाज़ दींI 

 

राजवीर  खाना खत्म करने के बाद, टीवी देख रहा है,  तभी उसके बापू ने आकर पूछा, “ पेपर की तैयारी कैसी चल रही है?”  मुझे तू पास चाहिएI”  गिरधारी चौधरी ने उसे घूरते  हुए कहा  तो वह बोल  पड़ा,  “बापू  लगा  तो हुआ  हूँI” “  दिख रहा है, कितन लगा हुआ है?”  उन्होंने टी.वी. की तरफ  ईशारा किया तो उसने टी.वी. बंद कर दिया और किताबें उठाकर अपने कमरे में चला गयाI 

 

उसकी भाभी मधु उसके लिए दूध का गिलास रखकर चली गईI  वह  किताबों में नज़रें गढ़ाए बैठा है, मगर उसका ध्यान तो कहीं और ही हैI   ‘क्या सारी दुनिया  पढ़कर  ही पुलिस की नौकरी कर रही हैI क्या सभी मेहनत करकर पास हो जाते हैंI  भारत में जुगाड़ नाम की भी कोई चीज़ है,  जिसके सहारे  भी लोगों  का जीवन चल रहा है I’   तभी उसे दिनेश का  ख्याल आया,  वह पिछलेसाल हेड कांस्टेबल बन गया था,  अब उसकी पोस्टिंग  ग़ाज़ियाबाद के मंडुआ शहर  में  हो गई है,  मुझे उससे बात करनी ही पड़ेगी,  एक बार उससे बात तो करके देखता हूँ, आख़िर  कैसे उसने यह पेपर एक ही बारी में  निकाल लिया था’I  यही सब सोचते सोचते वह सो गया I

 

सुबह नंदन सोमेश को लेकर  ड्राइवर के घर गया  तो उसने उन्हें कहा, “ उसे तो कुछ नहीं पता,  हाँ अगर वो चाहे तो बस चेक कर लेंI”  दोनों ने अच्छे से बस चेक की और नतीजन उन्हें वहाँ कुछ नहीं मिला, “ हो न हो  एडमिट कार्ड चोरी हो गया हैI “ सोमेश  ने सोचते हुए कहाI  “पता नहीं, मगर कुछ तो हुआ हैI “  वह अब बस में लगी सीट पर बैठकर कुछ सोचते हुए अपना सिर धुनने लगाI  “भाई !! सोचने से कुछ नहीं होगा,  कैफ़े चलते हैं, किसी तरह वेबसाइट से एडमिट कार्ड निकालने की कोशिश करते हैंI”  यह सुनकर नंदन उसके साथ चलने को तैयार हो गयाI 

 

रिमझिम के माता पिता बचपन में ही गुज़र गए हैंI  बापू को साँस की बीमारी थीं और अम्मा उनके जाने के गम का सदमा बर्दाश्त नहीं कर सकी और स्वर्ग सिधार गईI  उसकी नाना नानी ने ही उसे पाला हैI  नाना की गॉंव में लकड़ी की दुकान है और दो मामा है जो शहर में  ही बस गए हैंI  कभी होली-दिवाली आकर घर में रौनक लगा जाते हैंI  उसके नाना नानी को रिमझिम से बड़ी उम्मीदे है कि यह लड़की बैंक की  नौकरी करेगी और एक दिन बड़ी अफसर बनेगी और वह भी अपने नाना नानी को मायूस नहीं करना चाहतीI  आज उसका मामा राकेश दिल्ली से आया हुआ है और नाना नानी के साथ  बंद कमरे में गुफ्तगू कर रहा  हैI  रिमझिम दरवाजे के पास  गई और उनकी बातें सुनने की कोशिश करने लगी,

 

बापू वो कुएँ वाली ज़मीन बेचकर पैसे दे दो,  मेरे सिर पर कर्जा हैI

 

बिल्कुल नहीं,  अपना कर्ज़ा ख़ुद देखो,  वो मैंने अपनी रिमझिम के ब्याह के लिए संभालकर रखी हुई हैI  उन्होंने साफ़ मना कर दियाI

 

वो तो नौकरी करकर अपने लिए पैसा जोड़ लेगी,  आप हमारे बारे में सोचोI 

 

वो मेरी नातिन नहीं बेटी हैI वो ज़मीन तो उसको ही मिलेगीI  वैसे भी उसकी माँ को हमने दहेज़ में कुछ नहीं दिया था, देखा नहीं ससुराल वालों ने कैसे उसका जीना मुश्किल  कर रखा थाI अब रिमझिम ने यह सुना तो उसके कान खड़े हो गएI

 

बापू! मैं सब समझता हूँ,  मगर तब की बात और थी और अब तो जमाना बदल गया है,  अब तो लोग पढ़ी  लिखी  लड़की ही माँगते हैंI

 

ताकि इससे उनकी जेब भरती रहें और उनका बोझ  कम  हो जायेI  बेटा !! ज़माना भी अपने हिसाब से बदला है,  मैं रिमझिम को  दूसरों के लिए नहीं,  उसके लिए पढ़ा  रहा हूँ, कल को हम न रहें  तो वह आत्मनिर्भर होकर अपना जीवन यापन  कर सकेंI

 

अम्मा! तुम समझाओ न बापू कोI 

 

अम्मा ने भी ना में सिर हिला दिया और राकेश मुँह बनाता हुआ उठ खड़ा हुआ,  जैसे ही वो बाहर निकलने लगा  रिमझिम उसके सामने आ गई तो उसने उसे देखकर  धृणा से मुँह फेर लियाI  रिमझिम मामा के हाव भाव  देखकर सोचने लगी कि ‘क्या पैसा रिश्ते से बढ़कर हो गया हैंI’  वह नाना के पास जाकर बोली, “नानू दे दो,  मामा को ज़मीनI”  “नहीं बेटा, इसकी  भूख तो कभी शांत नहीं होगी, कल को यह घर भी ले  लेगा फिर जो तेरी माँ के साथ हुआ,” “क्या हुआ माँ के साथ,”  अब नानी ने अपने पति  शांतामल को चुप रहने का ईशारा किया तो वह बात बदलते हुए बोले,  “ बेटा मेरे लिए खाना लगा दें,” यह सुनकर वह वहाँ से चली गईI  “आप भी न,  क्यों बच्ची का दिमाग खराब करते हैं,  जो हुआ सो हुआI” नानी ने मुंह बनाते हुए जवाब दियाI   

 

अगली सुबह निहाल के घर आकर नन्दन ने बताया,  “भाई! एडमिट कार्ड कहीं नहीं हैI “

 

वेबसाइट पर भी नहीं मिला?

 

कल का पूरा दिन कैफ़े में गुज़ार दिया,

 

पर क्यों ?

 

पहले तो इंटरनेट ही नहीं चल  रहा था  फिर जब चला  तो वेबसाइट  ओपन नहीं हुई और जब ओपन हुई उसमे तेरा नाम डालकर देखा तो एडमिट कार्ड दिखा ही नहीं और फिर वेबसाइट अंडर कंस्ट्रक्शन  चली गईI  नन्हें कुछ और ही जुगाड़ लगाना पड़ेगाI”  “यही लग रहा रहा हैI” नन्हें गंभीर होते हुए बोलाI 

 

वही दूसरी ओर राजवीर दिनेश से मिलने जा रहा  है,  वह भी कोई जुगाड़ लगाने के बारे में सोच रहा हैI