Jindagi ke rang hazar -- 11 in Hindi Anything by Kishanlal Sharma books and stories PDF | जिंदगी के रंग हजार - 11

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जिंदगी के रंग हजार - 11

"मैने तो बाबू से बोल दिया है।तू चाहे जो ले लेना लेकिन मेरा सेटलमेंट सही से कर देना"
मेरे एक मित्र है।जो अभी कुछ महीने पहले केंट स्टेशन से गार्ड से रिटायर हुए हैं।रेल सेवा स रिटायर होने पर कर्मचारी का अपना फंड जो जमा होता है।वो तो मिलता ही है।उसके अलावा छुट्टियों का पैसे,ग्रेच्युटी,पेंशन बिक्री,इन्सुरेंस आदि का पैसा भी मिलता है।अब नियम तो ये है।सेवा निवर्ती के दिन सब पैसा मिल जाना चाहिए और मिलता भी है।लेकिन
बाबू चाहे तो आपको आर्थिक हानि पहुंचा सकता है।भले ही इससे उसका कोई फायदा न हो।और इसी लिए लोग बाबू को पैसे देते हैं।
कहने का मतलब है भरस्टाचार फिर भी चल रहा है
बेक डोर एंट्री और नौकरी में धांधली
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आपको कलकत्ता हाईकोर्ट का फैसला याद होगा।केवल एक को छोड़कर बाकी सब की नौकरी से छुट्टी कर दी साथ ही कोर्ट ने निकाले गए सभी टीचरों से उन्हें दिये गए पैसे वापस लेने का भी आदेश दिया है।
मामला टीचर भर्ती का है।योग लोगो को न लेकर उन लोगो को भर्ती कर लिया गया।जिन्होंने15-15 लाख रु की रिश्वत दी थी।मंत्री पार्थ चटर्जी और उनकी चहेती के घर से करोड़ो रु बरामद किए गए थे।यह कोई नई बात नही है।हरियाणा यू पी आदि के बारे में भी पहले मशहूर था कि नॉट लेकर नौकरी दी जाती है।और आखिर में जेल हुई एक मंत्री कओ।
पहली एन डी ए की सरकार अटलजी प्रधानमंत्री औऱ नीतीश रेल मंत्री थे।तब रेलवे के जॉन और मंडलो का पुंर्घटन हुआ।नये जॉन और मंडल अस्तित्व में आये।इनमें से एक ताजनगरी का भी था।इस मंडल का गठन इलाहाबाद,कोटा,झांसी,जयपुर और इज्जतनगर के कुछ हिस्से लेकर हुआ।इस छोटे से मंडल का औचित्य समझ मे नही आया।यहाँ जो भी अफसर आये
वैसे रेलवे मे बदनाम वाणिज्य है लेकिन दूसरे विभागों में ज्यादा लूटमार है।
एक दिल एक साथी मिल गया।वह बोला,"नया अधिकारी तो और भी भृष्ट आया है।उसे हर ऑफिस से महीना चाहिए
वाणिज्य में पार्सल और गुड्स में कमाई होती है।दोनों जगह व्यापारी पैसा डेटके है।लेकिन बूकीनव
में ऐसी कोई इनकम नही थी। पहले टिकट रु और पेसो में होते थे।जैसे 5 रु 20 पैसे अक्सर खुले पेसो की कमी रहती थी तो कुछ रु बच जाते थे और चाय पानी का खर्च निकल जाता था।बाद में रिजर्वेशन की शुरआत हुई और लोग सीट पाने के लिए अधिक राशि देने लगे।फिर कम्प्यूटर का जमाना आया।हर ट्रेन में रिजर्वेशन के डिब्बे होने लगे और दलाल भी पनपे।आप अगर काउंटर पर जाए तो जरूरी नही है कन्फर्म टिकट मिल जाये लेकिन दलाल आपको कन्फर्म टिकट लाकर दे देगा।अब आप खुद समझ जाएं।
बुकिंग में पहले सुपरवाइज़र नजर रखते थे कि कोई बुकिंग बाबू यात्री से ज्यादा पैसे न ले।सतर्कता व अन्य विभाग भी समय समय पर चेक करते रहते थे।समय बदला और सुपरवाइज़र खुद बाबू से पैसे लेने लगे।और यह दायरा बढ़ा और अन्य स्टाफ भी जैसे इंस्पेक्टर आदि शामिल होने लगे।
और समय बदला वाणिज्य के अधिकारी भी इसमें शामिल हो गए।सभी नही।न सब अधिकारी भृष्ट है न ही सब इंसेक्टर औऱ बुकिंग बाबू।कुछ लोग है जिनकी वजह से पूरा विभाग बदनाम होता है।

सतर्कता वाले भी आजकल कारवाई करते है और पैसे लेकर रफा दफा कर देते है
उपाय क्या है।ज्यादा से ज्यादा ऑनलाइन करना और निजी भागीदारी