Laga Chunari me Daag - 48 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | लागा चुनरी में दाग़--भाग(४८)

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(४८)

डाक्टर सतीश और उनकी माँ नाश्ता ही कर रहे थे कि तभी डाक्टर सतीश ने धनुष से कहा....
"धनुष जी! आपके माथे की चोट तो अब बिलकुल से ठीक हो चुकी है और आपकी हथेली में प्लास्टर लगे अब करीब करीब पन्द्रह-बीस दिनों से ज्यादा हो चुका है,तो ऐसा कीजिए कल आप अस्पताल आ जाइए, आपकी हथेली का एक्सरे उतरवाकर देख लेते हैं कि हथेली की हड्डियों की स्थिति कहाँ तक पहुँची है,अगर सब सामान्य रहा तो फिर परसों आपकी हथेली का प्लास्टर कटवा देते हैं"
"जी! बहुत अच्छा! मैं भी यही चाहता हूँ कि मेरी हथेली का प्लास्टर जल्द से जल्द कट जाएँ",धनुष बोला....
"तो फिर कल समय निकालकर अब अस्पताल आ जाइएँ,मैं कल ही सारी जाँच करके आपको बताता हूँ", डाक्टर सतीश ने धनुष से कहा...
"जी! ठीक है,मैं कल आ जाऊँगा",धनुष ने कहा...
फिर सबके बीच यूँ ही बातें होतीं रहीं,नाश्ता करने के बाद डाक्टर सतीश और उनकी माँ अपने घर चले गए,फिर दूसरे दिन धनुष अस्पताल पहुँचा,उसकी सभी जाँचें होने के बाद शाम तक सारी रिपोर्ट्स आ गईं,जो कि सामान्य थीं और अब उसकी हथेली की चोट भी बिलकुल से ठीक हो चुकी थी,इसलिए डाक्टर सतीश ने उससे कहा कि.....
" अगर आपकी मर्जी हो तो मैं अभी आपकी हथेली का प्लास्टर कटवा देता हूँ,वरना आप कल आ जाइएगा"
"डाक्टर साहब! अब आप मुझे इस मुसीबत से छुटकारा दिला ही दीजिएगा,मैं कल तक इन्तजार नहीं कर पाऊँगा",धनुष ने डाक्टर सतीश से कहा....
"ठीक है तो आप मेरे साथ चलिए,मैं हेल्पर से कहकर अभी आपकी हथेली का प्लास्टर कटवाएँ देता हूँ" डाक्टर सतीश बोले...
"जी! ठीक है!", और ऐसा कहकर धनुष डाक्टर सतीश के साथ अपनी हथेली का प्लास्टर कटवाने चल पड़ा,कुछ ही देर में धनुष की हथेली का प्लास्टर कट गया , फिर वो डाक्टर सतीश को धन्यवाद देकर अस्पताल के बाहर आया और ड्राइवर रामानुज से बोला...
"ड्राइवर! मोटर बाजार की ओर ले चलो"
"क्यों छोटे बाबू! अभी आप घर नहीं जाऐगें क्या?" रामानुज ने पूछा...
"नहीं! मुझे बाज़ार में कुछ काम है,इसके बाद घर जाऊँगा",धनुष ने कहा....
धनुष की बात सुनकर ड्राइवर रामानुज ने बाज़ार की तरफ मोटर मोड़ तो ली,लेकिन उसके मन में ये डर बैठ गया कि शायद छोटे बाबू शराब की दुकान से शराब खरीदने जा रहे हैं,लेकिन ऐसा नहीं था, बाजार पहुँचकर धनुष ने रामानुज से एक साड़ी की दुकान के आगे मोटर रोकने को कहा,रामानुज ने जब देखा कि ये तो साड़ी की दुकान है, तब उसकी साँस में साँस आई,इसके बाद धनुष मोटर से उतरकर दुकान के भीतर पहुँचा और दो साड़ियाँ खरीदकर वो वापस लौटा,इसके बाद वो एक सुनार की दुकान पर गया,वहाँ उसने अपने दादा भागीरथ जी के लिए सोने की पाँकेट घड़ी खरीदी और अपने पापा तेजपाल जी के लिए चाँदी का पेन खरीदा,इसके बाद उसने ड्राइवर और घर के सभी नौकरों के लिए कुछ ना कुछ उपहार खरीदे,ये सब खरीदकर वो घर पहुँचा.....
उसके हाथ का कटा हुआ प्लास्टर देखकर सब खुश थे,फिर उसने एक एक करके सभी नौकरों को उनके उपहार देने शुरू कर दिए,धनुष के हाथों पहली बार उपहार पाकर सब खुश थे,भागीरथ जी को उसने सोने की पाँकेट घड़ी देते हुए कहा....
"आपकी घड़ी चोरी हो गई थी ना,तो ये रही आपके लिए नई घड़ी",
"लेकिन एक बात समझ नहीं आई हमें,तू आखिर हम सबको उपहार किस खुशी में बाँट रहा है",भागीरथ जी ने पूछा...
"सब बताता हूँ,पहले आप लोग अपने अपने उपहार लेते जाइए",धनुष बोला...
इसके बाद उसने अपने पापा तेजपाल जी को पेन देते हुए कहा....
"और ये आपके लिए,अब से आप अपने किसी भी व्यापारिक काग़ज़ात में इसी पेन से हस्ताक्षर कीजिएगा"
बेटे को सुधरता हुआ देखकर तेजपाल जी की आँखें भर आईं और उन्होंने उसे अपने गले से लगा लिया, इसके बाद धनुष ने विलसिया काकी को सूती साड़ी दी और अन्त में उसने प्रत्यन्चा के हाथ में साड़ी देते हुए कहा....
"ये साड़ी तुम्हारे लिए,क्योंकि तुमने मेरी इन सबसे ज्यादा सेवा की है,इसलिए कल शाम को तुम और मैं किसी अच्छे से रेस्तराँ में खाना खाने चलेगें"
"ओह...मतलब जो हम सबने तेरी सेवा की ये उसी के उपहार हैं",भागीरथ जी बोले....
"जी! हाँ! मैं आप सबका शुक्रिया अदा करना चाहता था और मुझ नासमझ को यही सूझा",धनुष ने कहा...
"बेटा! तेरे भीतर इतना बदलाव लाकर ही तूने हम सबका शुक्रिया अदा कर दिया,बस तू अब ऐसे ही रहना", तेजपाल जी धनुष से बोले....
और फिर धनुष ने अपने दादाजी और पापा के पैर छुए,फिर उन दोनों ने उसे अपने सीने से लगा लिया, इसके बाद भागीरथ जी प्रत्यन्चा से बोले....
"बेटी! खाना तो तूने बना ही लिया है,लेकिन ऐसा कर हम सबका मुँह मीठा करने के लिए थोड़ा सा हलवा और बना ले"
"अरे! दादाजी! हलवा बनाने की कोई जरूरत नहीं है,मैं अपने साथ मिठाई भी लाया था,मोटर में रखी है,रामानुज से बोलकर मँगवा लीजिए",धनुष ने सबसे कहा....
धनुष के व्यवहार को देखकर सब खुश थे और धनुष की हथेली का प्लास्टर कट जाने की भी सबको बहुत खुशी थी ,इसलिए उस रात घर में जश्न मनाया,काफी देर तक सब जागते रहे,दूसरे दिन सुबह सब खुशी खुशी जागे,प्रत्यन्चा भी धनुष के इस बदलाव के लेकर खुश थी,आखिर उसकी मेहनत रंग जो ले आई थी....
शाम होने को थी,उस समय सब चाय पी रहे थे,तब धनुष प्रत्यन्चा से बोला...
"जाओ! जाकर तैयार हो जाओ,याद है ना कि कल मैंने क्या कहा था,हमें आज रेस्तराँ में खाना खाने चलना है"
"हाँ! मुझे याद है,इसलिए तो आज दादाजी के साथ जाकर दादी जी के कपड़ो में उस साड़ी के मैंचिंग का ब्लाउज ढूढ़ रही थी,बड़ी मुश्किल से मिला,बिलकुल तो मैच नहीं करता,लेकिन चल जाऐगा",प्रत्यन्चा बोली...
"जाओ! फिर जाकर तैयार हो जाओ",धनुष ने प्रत्यन्चा से कहा....
धनुष के कहने पर प्रत्यन्चा तैयार होने चली गई, तभी तेजपाल जी भी दफ्तर से घर आ पहुँचे,फिर वे अपने कमरे में ना गए और चाय पीने रुक वहीं गए,इसके बाद प्रत्यन्चा साड़ी पहनकर नीचे आई,हल्के गुलाबी रंग की पारदर्शी साड़ी में प्रत्यन्चा बहुत खूबसूरत लग रही थी,आज बालों की चोटी ना बनाकर उसने जूड़ा बनाया था, सब प्रत्यन्चा को गौर से देखे जा रहे थे,तभी तेजपाल जी उससे बोले....
"बेटी! अभी कुछ कमी है",
"क्या कमी है चाचाजी!",प्रत्यन्चा ने पूछा....
"बताता हूँ! जरा ! मेरे साथ चलो",तेजपाल जी बोले....
फिर तेजपाल जी प्रत्यन्चा को उस कमरे में ले गए,जहाँ धनुष की माँ का सामान रखा था,इसके बाद तेजपाल जी ने धनुष की माँ की बेशकीमती साड़ियों और गहनों की अलमारी खोलकर कुछ गहने निकाले और प्रत्यन्चा से बोले....
"बेटी! ये सब धनुष की माँ का है,ये सोने की चेन,झुमके और कंगन तुम पहन लो,तुम पर बहुत जँचेगें"
"नहीं! चाचाजी! ये सब मैं कैंसे ले सकती हूँ,ये सब बहुत कीमती है",प्रत्यन्चा बोली...
"बेटी! मेरा मन रखने के लिए पहन लो,धनुष में इतना सुधार आ गया है,वो सब तुम्हारी वजह से ही है,अगर तुम ये सब पहन लोगी तो मुझे ऐसा लगेगा कि धनुष की माँ का आशीर्वाद भी उसे मिल गया है",तेजपाल जी बोले...
"लेकिन चाचाजी! मैं ये सब नहीं ले सकती",प्रत्यन्चा बोली....
तब तक भागीरथ जी भी वहाँ आ पहुँचे और प्रत्यन्चा बोले....
"पहन ले बेटी! हमारे बेटे का मन रखने के लिए ही पहन ले",
"जी! ठीक है!",
और फिर ऐसा कहकर प्रत्यन्चा ने वो गहने पहन लिए और बन ठनकर जब वो बाहर आई तो धनुष की आँखें खुली की खुली रह गईं, वो उसे एक टक देखता ही रह गया,इसके बाद धनुष भी तैयार हो गया और फिर दोनों मोटर में बैठकर रेस्तराँ के लिए चल पड़े....

क्रमशः....
सरोज वर्मा...