Towards the Light – Reminiscence in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर –संस्मरण

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उजाले की ओर –संस्मरण

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नमस्कार

स्नेही मित्रों

जीवन में सब कुछ बढ़िया चल रहा होता है और हम कभी अचानक ही किसी से नाराज़ हो जाते हैं |कारण कोई भी हो सकता है, हमारे किसी दोस्त ने हमसे कोई बात छिपाई हो, कुछ झूठ बोल हो या फिर हो सकता है गर्मागर्मी में हमारे लिए अपशब्दों का प्रयोग भी किया हो | तब क्या हमारी मित्रता या संबंध उससे छुट जाएगा? यदि छुट जाता है तो दोस्ती ही कैसी? संबंध ही कैसा?

यही तो हुआ पिछले दिनों पावन और मानव के बीच ! खासे बड़े बच्चे, कॉलेज में साथ पढ़ने वाले, बालपन से साथ रहने वाले, एक दूसरे पर अपने से भी अधिक विश्वास रखने वाले अचानक एक-दूसरे के जैसे दुश्मन बन गए | आश्चर्य हुआ, सब लोग उनकी मित्रता कि मिसालें देते थे, उनके प्रेम की सराहना करते थे |उन दोनों के बीच ही नहीं, उनके परिवारों में भी एक-दूसरे के प्रति प्रेम व विश्वास था |

दोनों एक दिन एक की बाइक पर कॉलेज जाते तो दूसरे दिन दूसरे की बाइक पर |बचपन से पास में रहे थे तो स्कूल भी एक ही था, रिक्षा में जाते थे दोनों, नाश्ता साथ करते और सब उनको 'दो हँसों की जोड़ी 'कहकर पुकारते |फिर ऐसा कैसे हुआ कि पावन और मानव के मन में एक-दूसरे के प्रति गलतफ़हमी पैदा होने लगी|

दरअसल, कॉलेज में कुछ लड़कों को इन दोनों की दोस्ती में खटास डालने की शैतानी सूझी | होता है न किसी को दुखी देकर खुशी मिलती है | इससे लोग अपना फ़ायदा भी कर लेते हैं | इनको देखकर कॉलेज के एक ग्रुप ने इनके लिए कुछ न कुछ शरारत करनी शुरू कर दी | जहाँ समय मिलता एक-दूसरे से चुगली करनी शुरू कर देते |

होना तो यह चाहिए था कि ये दोनों बालपन के दोस्त एक-दूसरे से बात करके समझ जाते कि यह और कुछ नहीं था कॉलेज के उन लोगों की शरारत थी जो इनमें फूट डालना चाहते थे जबकि दोनों स्कूल से कॉलेज तक एक-दूसरे को चैलेंज देकर हमेशा पहले;दूसरे नं पर आते रहते |

"दीदी!कल से मैं मानव के साथ कॉलेज नहीं जाऊँगा |"पावन ने अपनी बड़ी बहन से अपने मन की बात साझा की |

रूमी दीदी इन लोगों से पाँचेक साल बड़ी थीं और बचपन से इन दोनों को उन्होंने एक सा ही दुलार दिया था | पावन या तो मानव के घर होता या मानव पावन के घर होता | पढ़ाई के समय भी दोनों साथ पढ़ते और रूमी दीदी उन्हें उकसातीं कि देखते हैं इस बार कौन टॉप करेगा ?दोनों जी-जान से लगे रहते|रूमी दीदी का दोनों को ही इस प्रकार बढ़ावा देना उनका मार्ग प्रशस्त करना था|

बचपन में अगर ये दोनों एक-दूसरे की बात पर चिढ़ते या नाराज़ हो जाते तब भी रूमी दीदी ही थीं उन्हें प्यार, दुलार से मनाने वाली|पता ही नहीं चलता चुटकियों में दोनों की नाराजगी दूर हो जाती और वे फिर पहले जैसी शैतानियाँ करने लगते और पढ़ाई में भी आगे बढ़ते चले जाते |

इस बार बात कुछ गंभीर लग रही थी क्योंकि पावन ने तो अपनी दीदी से अपने मन की बात कह दी थी लेकिन मानव अभी तक रूमी दीदी के पास नहीं आया था |

दीदी को भी चिंता होने लगी, उन्होंने स्वयं जाकर मानव से पूछा कि आखिर बात क्या है?इतने पुराने दोस्त जो भाई से भी बढ़कर हैं, उनमें फूट कैसे पड़ गई ?दीदी पावन को भी अपने साथ ले गईं थीं |उन्होंने दोनों को सामने बैठाकर बात की तो पता चला कि उनके कुछ ऐसे दोस्त बन गए हैं जो दोनों में फूट पड़वाना चाहते हैं |

वे दोनों को अलग-अलग ले जाकर उनसे कहते कि अगर तुम स्टाइल से रहोगे तो कॉलेज में तुम्हारा प्रभाव अधिक रहेगा |वे लड़के दोनों से अलग अलग बात करते थे और उन्हें फुसलाकर सिगरेट पीना सिखला दिया था |उनके बहाने वे उनके पैसे से खुद मज़ा करते |

पहले तो दोनों में से कोई भी कुछ बताने के लिए तैयार नहीं था लेकिन दीदी ने बहुत प्यार से पूछा |वह स्वयं भी तो इसी उम्र में से निकलीं थीं और उनकी मित्रों में भी लड़कियों ने फूट डालने की कोशिश की थी | इसलिए वह जल्दी बात को समझ गईं और उन्होंने अपने दोनों भाइयों से असली बात निकलवाकर उन्हें गलत रास्ते पर जाने से रोक लिया |

दीदी के समझाने से दोनों को समझ में आ गया कि वे उन लड़कों से बेवकूफ़ बन रहे थे |दीदी ने उनसे वायदा लिया कि वे दोनों किसी की गलत बातों में नहीं आएंगे |

जीवन में किसी ऐसे व्यक्ति का होना ज़रूरी होता है जो समय पड़ने पर सही सलाह देकर गलती करने से रोक सके |

आशा है, हम सबके पास ऐसे मित्र हैं |

आपकी मित्र

डॉ. प्रणव भारती