महापुरुष का जन्म :
महापुरुष का जन्म पढ़ कर तुम लोग सोच रहे होगे कि गांधीजी के जन्म की यह बात होगी या फिर बाबा साहब अंबेडकर की या फिर सरदार पटेल के जन्म की यह बात हो रही होगी क्योंकि महापुरुष तो वो लोग ही हो गए हैं हमारे देश में...उन लोगों के जाने के बाद सिर्फ पुरुष हुए हैं महापुरुष तो कोई दिखा नहीं हमें आजादी मिलने के बाद यहां कोई भी...लेकिन तुम सब गलत हो...यहां बात ऐसे महापुरुष की हो रही है जो तुम्हारी सबकी तरह ही आम आदमी है लेकिन उसकी सोच समझ सब गांधीजी सरदार पटेल जैसे महापुरुषों से मिलती हैं, इसी के लिए यहां वो खुद यानी कि मैंने आपको महापुरुष मानता हूं...तो अब समझ गए होंगे तुम सब की मैंने खुदको महापुरुष क्यों बोला तो अब बात मेरे जन्म की करते है
रात के १२ बजे होंगे अस्पताल के बाहर एक बुजुर्ग औरत भगवान को माला कर रही थी थोड़ी फिकर चेहरे पर नजर आ रही थी ये देख पता चल रहा था कि वो जरूर मेरी दादी होगी...एक आदमी भी उसकी बगल में बैठा था ऑपरेशन रूम में वो नहीं था फिर भी उसके माथे पर पसीना आ रहा था तब ही समझ गया था ये आदमी मेरे पिताजी ही होंगे...एक दूसरी औरत दिखी थोड़ी दूर बैठी थी घूंघट करा हुआ था थोड़ा सा मेरे बाबा और दादी की लाज रखने के लिए ही होगा शायद लेकिन उसको देख कर लग रहा था जैसे जबरदस्ती नींद से उठा कर उसको अस्पताल ले आया गया हो
ये देख कर ही समझ गया था कि जरूर वो मेरे पिताजी की भाभी यानी कि मेरी चाची /ताईजी होगी...अब बारी आती है ऑपरेशन रूम की जहां एक औरत मानो मौत के मुंह में पड़ी हो दर्द सेस आहे भर रही थी तभी समझ गया था हो ना हो ये मेरी माँ होगी क्योंकि बच्चों के लिए इतना कष्ट तो एक माँ ही ले सकती है बाहर बैठे सभी लोगों की नजर भगवान पर थी मुझे तो वो दर्द बर्दाश्त करती ऑपरेशन रूम में पड़ी हुई औरत में ही उसी दिन खुद का भगवान दिख गया था क्योंकि मुझे इस दुनिया में लाने वाली वो औरत भगवान से कम तो नहीं हो सकती ना (कुछ समय बीत जाने के बाद)
उवा उवा उवा उवा उवा...बच्चे के रोने की आवाज़ सुनी ये क्या ये आवाज़ तो जानी पहचानी लगी मुझे... फिर याद आया ये तो मैं ही था जो अब इस मतलबी बेरहम दुनिया में आ गया था उसी बात का रोना रो रहा था...लेकिन मेरा भगवान यानी कि मां होश में नहीं थी पूरी तरह से फिर भी मेरा रोना सुन कर वो हस रही थी दर्द में भी...मां दुनिया की ऐसी अजूबा है जिसको आज तक कोई समझ नहीं पाया लेकिन मैंने समझ लिया उसी दिन उसकी ममता को...मेरा मन था मैं उसी कमरे में माँ के साथ रहूँ लेकिन मुझे नर्स उठा कर उन लोगों के पास ले गई जो मेरे आने का इंतज़ार कर रहे थे रात भर जाग कर...कर भी क्या सकते थे मां अभी इतनी होश में नहीं थी कि वो मुझे अपने पास ही रख ले...सबसे पहले दादी की गोद में रखा गया मुझे नर्स बोली मुबारक हो बेटा हुआ है...भगवान तेरी महरबानी हुई भगवान तेरी महरबानी हुई दादी ख़ुशी के मारे बोल उठी...मैं सोच रहा था दर्द माँ ने सहा और क्रेडिट भगवान जी आप ले गए ये तो नाइंसाफी है मेरी माँ के साथ...वेसे हमारे समाज में औरतों के साथ शुरू से ही नाइंसाफी तो होती रही है और हो भी रही है शहर में अभी पुरुष और महिलाएं एक समान देखें जाने कि शुरुआत हो गई है लेकिन गांव में अभी भी औरत को सिर्फ खाना पकाना बच्चे बड़े करना यही एक मशीन कि तरहां देखा जाता है...और इसके पीछे भी गांव कि वह महिलाऐं ही है जो पढ़ी लिखी नही है... वो कहते है ना एक औरत ही दूसरी औरत कि दुश्मन होती है गांव में यही देखने को मिलता है आज भी...क्यूंकि वहां शिक्षा का अभाव है लोग पढ़े लिखे कम है
उसके बाद मुझे पिताजी की गोद में दिया गया हम दोनो एक दूसरे को टुकुर टुकुर देख रहे थे...वो बोलते है ना कि बाप कभी अपने बच्चों को प्यार नहीं दिखाता सच ही बोलते है...पिताजी का चेहरा नॉर्मल ही था जैसा हुआ करता है ना ख़ुशी ना उदासी...मैं सोच में पड़ गया ये सिर्फ देखे जा रहे है मुझे दादी के पास ही अच्छा था मैं कम से कम वो बातें तो करा रही थी मुझे...अब मैंने रोना शुरू किया ताकि दादी मुझे ले ले अपने पास लेकिन ये क्या चाची ने उठा लिया मुझे इतना जूठा प्यार दिखा रही थी वो मुझे जैसे की मैं तो उनको जानता ही नहीं था सब जानता हूं मैं...माँ के पेट में था मैं तब से जब भी बोलती थी कुछ उल्टा सीधा ही बोलती थी माँ को ले कर...मन कर रहा था चाची पर सुसु कर दो लेकिन अभी मेरा खुद का पेट खाली था तो कुछ नहीं कर पाया लेकिन चाची मैं बदला लूंगा अपनी माँ की तरफ से...चाची बोल पड़ी अरे मैं तो बटुआ घर पर ही भूल गयी मुँह दिखाई में देने को कुछ नहीं है यहाँ...पिताजी से पैसे ले कर चाची ने मेरे मुँह दिखाने के पैसे दिये...वैसे ये अच्छा तरीका निकला था उन्होंने मेरे ही पिताजी के पैसों से मुझे ही खुश करने का लेकिन चाची मैं सब जानता हूँ आपके बारे में बड़े कंजूस हो जब अपने बच्चों की बारी आती है तब बड़ी चालाक हो जाती हो जब मेरी माँ के बच्चों की बारी आती है तो तब बड़ी मतलब औरत बन जाती हो
आप सोच रहे होंगे अपनी ही चाची के लिए इतने गलत शब्द क्यों...लेकिन माफ़ करना गलत लोगो के लिए अच्छे शब्द बोलू मै अपनी माँ जैसा अच्छा नहीं बन सकता जो है वो ही बोलना पड़ रहा है...क्योंकि मेरे आने से पहले है चाची ने मेरी बुराई करना शुरू कर दिया था तो मै क्या करुँ रिश्ते बचाने के लिए चुप रहना पहले के जमाने में अच्छा था अभी अगर आजकल खुद के साथ गलत करने वालों के लिए कुछ नहीं बोलोगे तो लोगो को लगेगा यह तो बेवकूफ है इसको तो कुछ भी बोल सकते है...बस अपने साथ यही नहीं होने देना है आपको...कि सामने वाला कुछ भी बकवास सुना कर चला जाए आपको...खुद को ऐसे रखो कि जब सामने वाला आपको कुछ बेवजह गलत बात बोले आपके लिए तभी उसको सही जवाब दे दो...रिश्ता चाहे जो भी हो आज के टाइम में सेल्फ रिस्पेक्ट बनी रहनी चाहिए तुम्हारी...कोई भी अनपढ़ इंसान बिना सोचे समझे कुछ भी तुम्हारे बारे में बकवास करे तो उसको उसी समय बता दो कि आप क्या हो लेकिन हा अपनी सोच समझ का इस्तेमाल कर के ऐसे बताओं कि सामने वाले का अपमान भी ना हो और वो समझ जाएं कि आपके बारे में कभी भी उल्टा सीधा बोलने कि वे हिम्मत ना करें
वाह सरला सुना है तुम्हारा बच्चा होने वाला है दो दो बेटियों के बाद आने वाला है बच्चा मैं सोच रही थी इस बार अगर लड़का आ जाए तो कितना अच्छा होगा भाईसाहब का कोई अपना तो होगा इस दुनिया...दादी ये सुन कर बोली क्या बेटा क्या बेटी आज के जमाने में अपना तो वो है जो अपने मां बाप कि बुढ़ापे में सेवा करे अब बहूं तुम अपने भाईयों को ही देख लो 3 बेटे है फिर भी तुम्हारे मां बाप को अकेला रहना पड़ रहा है ना कभी कभी बीमार भी हो जाते है तो तुम जाती हो सेवा करने उन लोगों को तो पता भी नहीं होता कि मां बीमार है...ये सुन कर ताईजी का मुंह उत्तर चुका था लेकिन मैं खुश था
मेरी माँ उदास हो गई थी मन से फिर भी मुस्कुरा कर बोली जी दीदी आप सही बोल रही हैं...मुझे समझ नहीं आया माँ गलत को सही क्यों बोल रही हैं...सरला ये खाओ ये मत खाओ सरला ये खाओ ये मत खाओ बच्चे का रंग काला होगा फिर उसका बियाह आसनी से नहीं हो पायेगा माँ बोलि ठीक है आगे से ध्यान रखूंगी...ओये ताईजी बस कर जाओ मैं पेट में पड़ा पड़ा ही बोल रहा था अगर माँ की जगह मैं होता तो मैं ना सहता ये बकवास बातें
तो इसी तरह दुनिया में आने से पहले ही मेरी बुराई होना शुरू हो गई थी...समझ नहीं आ रहा था ऐसा भी क्या पाप कर दिया था मैंने लेकिन बहुत सोचने के बाद समझा कि पाप मैंने नहीं किया बस रिश्तेदार ही ऐसे है जो मेरे आने से पहले बोल रहे बेटा आ जाए तो कितना अच्छा होगा दो दो बेटियाँ जो है
लेकिन मेरे आने के बाद वो लोग ही मुँह बना रहे थे जैसे मेरी माँ ने किसी जानवर को जन्म दिया हो...रिश्तेदार को देख कर लग रहा था वो मेरे आने से खुश नहीं थे क्योंकि वो शायद सोच रहे थे सरला को इस बार भी बेटी होगी और जिंदगी भर वो लोग मेरी मां को इस बात के लिए ताने मार पाएंगे
लेकिन उनकी सोच कितनी गंदी है ये साफ़ साफ़ नज़र आ रहा था...क्योंकि बेटियाँ भी बेटो से कम तो नहीं है फिर भी आज बहुत से गाँव में बेटा बेटी ये भेदभाव चल रहा है जो मुझे बड़ा दुख देता है इनकी सोच बदलनी चाहिए
अपने भी तब अच्छे लगते हैं जब वो दिल से अपनापन दिखाए ये दिखावा क्यों करते हैं ये बात मुझे तो आज तक समझ नहीं आई
तो ऐसे मेरा इस बेरहम मतलबी दुनिया में स्वागत हो चुका था किसी ने आकर बोला माँ पर गया है किसी ने बोला बाप पर गया है कोई बोला अपनी बहनों जैसा दिखता हूँ
चाची बोली मेरे जेसा दिख रहा है ना थोड़ा थोड़ा सरला देखो तो...और मैं रोने लग गया
मेरी बड़ी बहन बोली देखा चाची रुला दिया ना मेरे भाई को अपने जैसा बोल कर
ये सुन कर मैं मन ही मन में मुस्कुरा रहा था
तो अब मेरी यात्रा शुरू होती है...अब अपने पिताजी मां और बहनों के लिए जीना था मुझे इस मतलबी बेरहम दुनिया में