Laga Chunari me Daag - 42 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | लागा चुनरघ में दाग़,--भाग(४२)

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लागा चुनरघ में दाग़,--भाग(४२)

अनुसुइया जी के जाने के बाद प्रत्यन्चा भागीरथ जी से बोली....
"कल बहुत मज़ा आने वाला है दादाजी! इतने सारे बच्चे,खूब हल्ला गुल्ला मचेगा",
"हाँ! बेटी!",सच कहा तूने,लगता है तुझे हल्ला गुल्ला बहुत पसंद है",भागीरथ जी बोले...
"हाँ! मुझे लोगों से मिलना जुलना बहुत पसंद है",प्रत्यन्चा बोली...
तब उन दोनों की बात सुनकर धनुष बोला....
"मैं नहीं जाऊँगा वहाँ"
"लेकिन क्यों?",प्रत्यन्चा ने पूछा...
"मैं क्या करूँगा,बच्चों के बीच जाकर",धनुष बोला....
"अरे! चलिएगा! बहुत मज़ा आऐगा आपको बच्चों की शरारतें देखकर",प्रत्यन्चा बोली....
"तुम्हें देखकर तो ऐसा मालूम होता है कि जैसे तुम्हारा ही जन्मदिन हो",धनुष बोला....
"ऐसा ही कुछ समझ लीजिए",
और फिर ऐसा कहकर प्रत्यन्चा वहाँ से रसोई में चली गई,करीब शाम सात बजे के लगभग वो धनुष से बोली...
"आप जरा मेरे साथ आउटहाउस तक चलेगें"
"लेकिन क्यों?",धनुष ने पूछा...
"कुछ काम था",प्रत्यन्चा बोली...
"हाँ! चलो,मैं चलता हूँ तुम्हारे साथ",
ऐसा कहकर धनुष प्रत्यन्चा के साथ आउटहाउस की ओर चल पड़ा,फिर प्रत्यन्चा ने आउटहाउस का दरवाजा खोला और अन्दर चली गई,उसके पीछे पीछे धनुष भी भीतर चला गया,वहाँ जाकर धनुष ने देखा कि एक टेबल पर आलू के कुछ कटलेट्स और कुछ रोस्टेड ड्राई फ्रूट्स रखें हैं,वो सब देखकर धनुष ने प्रत्यन्चा से कहा....
"ये सब क्या है,प्रत्यन्चा!"
"आप यहाँ बैठकर इन्हें खाइए,मैं अब जाती हूँ यहाँ से",प्रत्यन्चा बोली...
"तुम कहीं ये तो नहीं चाहती कि मैं यहाँ अकेले बैठकर शराब पिऊँ",धनुष ने पूछा....
"हाँ! मैं यही चाहती हूँ,क्योंकि ना पीने से आपको बेचैनी और घबराहट होती है,इसलिए थोड़ी बहुत पीने में कोई हर्ज नहीं",प्रत्यन्चा बोली....
"तुम्हारा दिमाग़ खराब हो गया है क्या?,मैं शराब छोड़ने की कोशिश कर रहा हूँ और तुम हो कि मुझे इसे पीने के लिए कह रही हो,पता है कितनी कोशिश कर रहा हूँ मैं इससे दूर रहने की और तुम मुझे दोबारा फिर से उसकी तरफ धकेल रही हो"
और ऐसा कहकर धनुष ने गुस्से से टेबल पर सजाई हुईं खानें की चीजें फेंक दीं ,फिर वो आउट हाउस से बाहर आ गया,तब प्रत्यन्चा ने मन में सोचा कि शायद ऐसा करके उससे कोई बहुत बड़ी गलती हो गईं, धनुष बाबू तो वजाय पीने के गुस्सा होकर चले गए....
धनुष हाँल में पहुँचा तो वहाँ डाक्टर सतीश आएँ हुए थे,धनुष के माथे की पट्टी बदलने और उसका रुटीन चेकअप करने,जब उन्होंने धनुष का गुस्से से तमतमाया हुआ चेहरा देखा तो उससे पूछा....
"क्या हुआ धनुष जी! आप ठीक तो हैं ना!"
"जी! मैं ठीक हूँ",धनुष बोला....
"लेकिन आपको देखकर तो ऐसा नहीं लग रहा है",डाक्टर सतीश ने कहा....
"नहीं लग रहा है तो ना लगने दीजिए,आप जो काम करने आएँ है तो वो कीजिए,मुझसे ज्यादा सवालात करने की आपको कोई जरूरत नहीं है",धनुष गुस्से से बोला...
"जी! तो फिर बैठिए सोफे पर,मैं आपके माथे की पट्टी बदल देता हूँ",डाक्टर सतीश ने धनुष से कहा....
और फिर डाक्टर सतीश ने धनुष के माथे की पट्टी बदली और वहाँ से जाने लगे तो धनुष उनसे बोला...
"माँफ कीजिए! डाक्टर साहब! मैंने आप से बदसलूकी की,मेरा मूड थोड़ा खराब था उस वक्त",
"मैं समझ सकता हूँ और ये भी जानता हूँ कि आपका फिर से प्रत्यन्चा जी से झगड़ा हुआ होगा,इसलिए आपका मूड खराब है"डाक्टर सतीश बोले....
"जी! यही बात है",धनुष बोला....
"वैसे प्रत्यन्चा जी दिख नहीं रहीं हैं,कहाँ हैं वो?",डाक्टर सतीश ने पूछा...
"मुझे क्या मालूम? मैं क्या हर घड़ी उस पर नजर रखता फिरता हूँ,होगी कहीं जहन्नुम में"धनुष गुस्से से बोला....
तभी प्रत्यन्चा हाँल में आकर डाक्टर सतीश से बोली....
"हाँ! डाक्टर बाबू! मैं अभी अभी जहन्नुम से ही आ रही हूँ,बहुत ही अच्छी जगह है मेरा तो वहाँ मन ही लग गया था"
तब डाक्टर सतीश ने प्रत्यन्चा से मुस्कुराकर पूछा....
"ओह...लगता है तभी आपको यहाँ आने में इतनी देर हो गई",
"जी! हाँ! यही बात है,बताइए क्या लाऊँ आपके लिए चाय या शरबत",प्रत्यन्चा ने डाक्टर सतीश से पूछा....
"जी! यहाँ का गरम माहौल देखकर तो ऐसा लगता है कि शरबत पीने में ही भलाई है",डाक्टर सतीश बोले...
"जी! ठीक है तो मैं आपके लिए शरबत लाती हूँ"
और ऐसा कहकर प्रत्यन्चा डाक्टर सतीश के लिए शरबत लेने चली गईं,फिर शरबत पीकर डाक्टर सतीश अपने घर को रवाना हो गए,इधर धनुष ने प्रत्यन्चा से बोलचाल बंद कर दी,आज उसने सबके साथ बैठकर खाना भी नहीं खाया,आज उसने विलसिया से अपने कमरे में ही खाना मँगवा लिया था,विलसिया से उसने रोटी के भीतर ही सब्जी भरवाकर रोल जैसा बनवा लिया,जिसे खाना खाने में आसानी हो जाएँ,फिर खाना खाकर वो अपने कमरे में आराम करने लगा.....
दूसरे दिन सुबह भी उसने नाश्ता अपने कमरे में ही किया और दोपहर का खाना भी उसने अपने कमरे में ही खाया,फिर शाम को सब अनाथालय में जाने के लिए तैयार हो गए,धनुष तो वहाँ नहीं जाना चाहता था लेकिन भागीरथ जी कहने पर वो भी वहाँ जाने के लिए तैयार हो गया,तेजपाल जी की कोई जरूरी मीटिंग थी, इसलिए वे मीटिंग में चले गए थे और वे अनाथालय नहीं जा पाएँ,सब वहाँ पहुँचे तो देखा कि डाक्टर सतीश और उनकी माँ शीलवती वहाँ पहले से ही मौजूद हैं,फिर खाने पीने और चाय नाश्ते के इन्तजाम में प्रत्यन्चा आया का हाथ बँटाने लगी,वो सबको चाय नाश्ता परोसने लगी लेकिन उसने धनुष को चाय नाश्ता देने के लिए आया से कह दिया क्योंकि उसे लग रहा था कि धनुष बाबू उससे पहले से ही गुस्सा हैं कहीं ऐसा करने पर वे उससे और भी ज्यादा गुस्सा ना हो जाएँ,इसलिए उसने ऐसा किया,लेकिन धनुष प्रत्यन्चा के ऐसे व्यवहार को देखकर और भी गुस्सा हो गया....
प्रत्यन्चा,भागीरथ जी के साथ साथ डाक्टर सतीश और उनकी माँ का भी बराबर ख्याल रख रही थी,ये बात धनुष को अखर रही थी,लेकिन वो प्रत्यन्चा से नाराज़ था इसलिए उससे कुछ नहीं बोला और प्रत्यन्चा धनुष को चिढ़ाने के लिए ऐसा कर रही थी,खाने पीने के बाद पार्टी खतम हुई और सब घर को चल पड़े...
रास्ते में धनुष और प्रत्यन्चा के बीच कोई भी बातचीत नहीं हो रही थी,इसलिए भागीरथ जी समझ गए थे कि इन दोनों के बीच फिर से कोई झगड़ा हुआ है,सब घर पहुँचे और फिर कपड़े बदलकर वे अपने अपने कमरे में आकर लेट गए,लेकिन धनुष को नींद नहीं आ रही थी.....
इसके बाद धनुष अपने बिस्तर से उठा और बाहर जाने लगा,उसी समय प्रत्यन्चा रसोईघर में जग में पानी भरने आई थी,उसने धनुष को बाहर जाते हुए देखा तो वो पानी से भरा हुआ जग रसोईघर में छोड़कर उसके पीछे पीछे हो ली,फिर उसने देखा कि धनुष मंदिर की सीढ़ियों पर जा बैठा है,तो प्रत्यन्चा भी उसके पास चली गई,जब धनुष ने प्रत्यन्चा को देखा तो उससे बोला....
"तुम यहाँ क्यों आई हो?"
"ऐसे ही आपके पीछे पीछे आ गई",प्रत्यन्चा बोली...
"तुम मेरा पीछा क्यों नहीं छोड़ देती",धनुष बोला....
"मैं तो आपसे कल रात के लिए माँफी माँगने आई थी",प्रत्यन्चा ने धनुष से कहा....
"पहले ये बताओ कि तुमने ऐसा सोच भी कैंसे लिया कि मैं दोबारा शराब को हाथ लगा सकता हूँ",धनुष ने प्रत्यन्चा से पूछा....
"जी! आपकी बेचैनी और घबराहट को देखते हुए मेरे दिमाग़ में ऐसी बात आई",प्रत्यन्चा बोली...
"ऐसी ही बातों में बहुत दिमाग़ चलता है तुम्हारा",धनुष बोला....
"अब माँफ भी कर दीजिए ना!,आज के बाद ऐसा कभी नहीं होगा",प्रत्यन्चा ने विनती की....
"ठीक है! जाओ माँफ किया",धनुष अपना मुँह दूसरी ओर घुमाते हुए बोला....
माँफी मिलते ही प्रत्यन्चा मुस्कुरा पड़ी और बोली....
"अब मुझे ठीक से नींद आऐगी,नहीं तो सारी रात यही सोचने में निकल जाती कि आप मेरी बात का बुरा मान गए",
"बुरा तो लगा था मुझे",धनुष बोला....
"मुझे मालूम नहीं था कि आप मेरी बात को इतना दिल पर ले लेगें",प्रत्यन्चा बोली...
"लेकिन कोई बात नहीं,वो भी तो तुमने मेरे भले के लिए ही किया था",धनुष बोला...
"जी! यही बात थी",प्रत्यन्चा बोली....
"मैं जानता हूँ",धनुष बोला...
"ठीक है! अब तो माँफी भी मिल गई ,इसलिए मैं अब सोने जा रही हूँ",प्रत्यन्चा बोली....
"कहाँ जा रही हो,कुछ देर बैठों ना मेरे पास,बातें करते हैं",धनुष बोला....
फिर प्रत्यन्चा धनुष की गुजारिश को टाल ना सकी और मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर उससे बातें करने लगी....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....