Laga Chunari me Daag - 41 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | लागा चुनरी में दाग़--भाग(४१)

Featured Books
Categories
Share

लागा चुनरी में दाग़--भाग(४१)

अब प्रत्यन्चा धनुष को जैसा करने को कहती वो बिना नानुकुर के वैसा ही करता,धनुष में आई तब्दीलियांँ देखकर तेजपाल जी को थोड़ी राहत मिलती,इसी तरह एक रात धनुष को नींद नहीं आ रही थी,उसे बहुत बैचेनी हो रही थी,पता नहीं क्या सोचकर वो बिस्तर से उठा और उठकर अपने कमरे से बाहर आ गया,फिर वो घर के दरवाजे खोलकर आउटहाउस की ओर चल पड़ा......
उसे कमरे से जाते हुए भागीरथ जी ने देख लिया था लेकिन वे उससे बोले कुछ नहीं चुपचाप अपनी आँखें बंद किए बिस्तर पर लेटे रहे,वे भी देखना चाहते थे कि आखिर धनुष करने क्या वाला है,जब धनुष बाहर निकल गया तब वे अपने बिस्तर से उठे और उसके पीछे पीछे चल दिए,धनुष तब तक आउटहाउस के दरवाजे तक पहुँच चुका था,फिर धनुष से आउटहाउस का दरवाजा खोला और वो भीतर चला गया,भागीरथ जी भी आउटहाउस की ओर बढ़ गए और धनुष के भीतर जाते ही वे भी आउट के भीतर चले गए और उन्होंने देखा कि धनुष ने शीशे वाली वो अलमारी खोल ली है जिसमे उसके पीने के लिए तरह तरह के ब्राण्ड की शराब रखीं रहतीं थीं,धनुष ने उसमे से एक बोतल निकाली और शीशे के गिलास में भरने लगा,जब गिलास भर गया तो जैसे ही वो शराब से भरा शीशे का गिलास अपने मुँह तक ले गया तो पता नहीं उसे क्या सूझी और वो गिलास उसने फर्श पर पटकते हुए कहा....
"नहीं....नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकता,प्रत्यन्चा मुझ पर इतना भरोसा करने लगी है,उसे लगता है कि मैं अब कभी शराब को हाथ नहीं लगाऊँगा,लेकिन ये क्या मैं तो उसका भरोसा तोड़ने चला था,अब चाहे जो भी हो जाएँ,मुझे कितनी भी बेचैनी क्यों ना हो,मैं कभी भी शराब को हाथ नहीं लगाऊँगा"
और ये कहकर वो आउटहाउस से बाहर निकल गया,भागीरथ जी उस समय ओट में छुपे थे,धनुष आउटहाउस से निकलते समय उन्हें देख नहीं पाया था,जब धनुष अपने कमरे में पहुँच गया तो भागीरथ जी भी उसके पीछे पीछे कमरे में आ गए,तब धनुष ने उनसे पूछा....
"दादाजी! कहाँ चले गए थे आप",
"अपने कमरे में गये थे हम,हमें लगा कि कहीं हम अपने कमरे का पंखा तो नहीं खुला छोड़ आए थे,इसलिए याद आते ही उसे बंद करने चले गए थे"
"ठीक है! चलिए अब आप सो जाइए",धनुष भागीरथ जी से बोला....
"हाँ! अब तुम भी सो जाओ",भागीरथ जी ने धनुष से कहा....
इसके बाद धनुष बिस्तर पर लेटकर सोने की कोशिश करने लगा,इधर भागीरथ जी भी अपने बिस्तर पर लेट गए और धनुष के बारें सोचकर उनका मन भर आया कि कितना बदल गया है धनुष,शराब की लत ने उसे हम लोगों से दूर सा कर दिया था,लेकिन शायद अब वो बदल रहा है,बैचेनी के कारण वो शराब पीने ही गया था लेकिन शराब से भरा जाम उसने केवल इसलिए तोड़ दिया क्योंकि वो प्रत्यन्चा का भरोसा नहीं तोड़ना चाहता,ये लड़की नहीं देवी है....देवी!,
देवी ही तो है,उसी की वजह से ही तो हमारे बिगड़े हुए पोते में इतना सुधार आ रहा है,जिस लड़के ने इतना समझाने पर भी शराब नहीं छोड़ी,आज उसने शराब छोड़ दी, वो भी प्रत्यन्चा के कहने पर और ये हमारे लिए बड़ी खुशी की बात है,कल ये बात हम प्रत्यन्चा और तेजा से कहेगें,सच में वो दोनों इस बात को सुनकर बहुत खुश होगें और यही सब सोचते सोचते भागीरथ जी को निंद्रा रानी ने घेर लिया....
जब सुबह हुई तो ये बात भागीरथ जी ने चुपके से ये बात तेजपाल जी और प्रत्यन्चा को बताई,उनकी बात सुनकर तेजपाल जी ने भागीरथ जी से पूछा....
"बाबूजी! क्या आप सच कह रहे हैं,ये बात सुनकर मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा है",तेजपाल जी बोले....
"लेकिन ये सच है बेटा! रात को हमने अपनी इन्हीं आँखों से धनुष को शराब से भरा शीशे का गिलास तोड़ते देखा था",भागीरथ जी बोले....
"लेकिन ये ठीक नहीं है दादाजी!",प्रत्यन्चा बोली....
"क्यों बेटी?",भागीरथ जी ने पूछा....
"क्योंकि ऐसे तो उनकी तबियत खराब हो जाऐगी",प्रत्यन्चा बोली...
"वो कैंसे बेटी?"तेजपाल जी ने पूछा....
तब प्रत्यन्चा ने तेजपाल जी के सवाल का जवाब देते हुए कहा....
"मतलब जिसको नशे की लत होती है तो उसे यूँ एक साथ छोड़ना ठीक नहीं है,इससे सेहद पर बुरा असर पड़ सकता है,क्योंकि हमारे गाँव में एक इन्सान के साथ ऐसा हुआ था,उसने धीरे धीरे ना छोड़कर एक साथ शराब छोड़ दी,फिर एक रात उसे इतनी बेचैनी हुई कि उसने कुएँ में कूदकर आत्महत्या कर ली,उसका दिमाग़ उसके काबू में ना रहा था,उसके शरीर में ऐठन हो रही थी,जो उसके बरदाश्त के बाहर थी और उसने ऐसा कदम उठा लिया था",
"ओह....तब तो इस बारें में हमें किसी डाक्टर से बात करनी चाहिए",भागीरथ जी बोले....
"लेकिन डाक्टर से बात करने का भी कोई फायदा नहीं,क्योंकि डाक्टर बोलेगा कि मरीज को लाओ और धनुष बाबू को हम उनके पास नहीं ले जा सकते",प्रत्यन्चा बोली....
"वो भला क्यों,हम उसे डाक्टर के पास क्यों नहीं ले जा सकते",तेजपाल जी ने पूछा....
तब प्रत्यन्चा बोली.....
"वो इसलिए कि ये बात सबके सामने नहीं आनी चाहिए कि धनुष बाबू शराब छोड़ रहे हैं,इससे उन्हें असहज महसूस होगा और कुछ बातें अगर निजी रहें तो ही अच्छा है,शायद वे भी ये बात हम में से किसी से साँझा नहीं करना चाहते,उन्हें अपनी मर्जी के मुताबिक़ ये काम करने दीजिए,हम में से इस काम में किसी की भी दखलान्दाजी अच्छी नहीं रहेगी"
"शायद तुम बिलकुल ठीक कह रही हो",तेजपाल जी बोले....
"लेकिन तुम तो अभी कह रही थी कि उसका एक साथ यूँ शराब छोड़ना उसकी सेहद के लिए ठीक ना रहेगा", भागीरथ जी बोले....
"उसकी चिन्ता आप दोनों बिलकुल ना करें,इस समस्या को कैंसे हल करना है,ये आप मुझ पर छोड़ दीजिए, मैं सब सम्भाल लूँगी",प्रत्यन्चा बोली....
"हमें तुम पर पूरा भरोसा है बेटी!",भागीरथ जी बोले....
और फिर प्रत्यन्चा धनुष की इस समस्या का समाधान ढूढ़ने लगी और उसे समस्या का समाधान मिल भी गया,इस समाधान से धनुष बाबू की सेहद पर असर पर भी नहीं पड़ेगा और उनकी शराब भी छूट जाऐगी......
उसने मन में सोचा आज शाम से ही मैं ये काम शुरु कर देती हूँ,वैसे धनुष बाबू के ऐसा कदम उठाने से मैं बहुत खुश हूँ, दादाजी और चाचाजी के चेहरे की भी खुशी आज देखने लायक थी,आखिरकार धनुष बाबू ने मेरी बात पर अमल कर ही लिया,उन्होंने मेरा भरोसा नहीं तोड़ा,अच्छा इन्सान बनने की ओर ये उनका पहला कदम है,अब धीरे धीरे वे अपनी जिम्मेदारियाँ भी समझने लगेगे और एक दिन चाचाजी का व्यापार भी सम्भाल लेगें.....
ये सब सोच सोचकर प्रत्यन्चा बहुत खुश थी,दिनभर सबका यूँ ही हँसी खुशी दिन बीता और शाम को जब प्रत्यन्चा सबके लिए चाय बनाने जा रही थी तो तब उनके घर अनाथालय की मालकिन अनुसुइया देवी जी आईं....
और उन्होंने भागीरथ से कहा.....
"दीवान साहब! हमारे अनाथालय में कल एक बच्चे का जन्मदिन है,उसे हमारे अनाथालय में आए कल एक साल पूरा हो जाऐगा, इसलिए मैं चाहती हूँ कि आप अपने परिवार के साथ अनाथालय जरूर आएँ,अगर आप वहाँ आऐगें तो मुझे और बच्चों को बहुत खुशी होगी,चूँकि आपने अनाथालय की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली है तो आपके बिना आएँ उस अनाथालय की खुशी अधूरी रहेगी"
"जी! हम कल जरूर वहाँ आऐगे,आप बेफिक्र रहें",भागीरथ जी बोले....
"जी! आपके बेटे तेजपाल जी, उन्हें भी जरूर लाइएगा साथ में",अनुसुइया जी बोलीं....
"हाँ...हाँ...क्यों नहीं,हम सब वहाँ आऐगें",भागीरथ जी बोले....
"जी! फिर कल शाम छः बजे आप सभी जरूर आ जाइएगा",अनुसुइया जी बोलीं....
इसके बाद अनुसुइया जी ने प्रत्यन्चा के हाथों बना चाय नाश्ता किया और वहाँ से चलीं गईं.....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा....