तेजपाल जी मंदिर पहुँचे फिर उस दिन उन्होंने भगवान की विधिवत पूजा की और भगवान का आभार प्रकट किया कि उनके बेटे धनुष को कोई गम्भीर चोट नहीं आई,इसके बाद दोनों मंदिर से लौटे तो तेजपाल जी ने प्रत्यन्चा से कहा....
"बेटी! जल्दी से नाश्ता बना लो,फिर मुझे अस्पताल भी जाना है"
"जी! चाचाजी!"
और ऐसा कहकर प्रत्यन्चा नाश्ता बनाने में जुट गई,नाश्ता करने के बाद तेजपाल जी भागीरथ जी से बोले...
"बाबूजी! आप घर पर आराम कीजिए,आप रातभर से सोएं नहीं है आप यही रहिए,मैं अस्पताल होकर आता हूँ"
"तू अकेला क्यों जा रहा है,प्रत्यन्चा को साथ लेता जाता",भागीरथ जी बोले....
"अरे! नहीं बाबूजी! उसने अभी नाश्ता भी नहीं किया है,उसे रहने दीजिए,अगर मुझे किसी की जरूरत होगी तो मैं मोटर भेजकर बुलवा लूँगा",तेजपाल जी बोले...
"अच्छा! ठीक है! तो जा",भागीरथ जी बोले...
इसके बाद तेजपाल जी अस्पताल पहुँचे तो डाक्टर सतीश राय ने उनसे कहा कि.....
" वे दो चार दिन बाद धनुष को घर ले जा सकते हैं,क्योंकि उनकी टाँग में ज्यादा चोट नहीं आई है इसलिए वो आसानी से चल फिर सकते हैं,लेकिन हथेली का प्लास्टर खुलने में शायद डेढ़ महीने लग सकते हैं और रही उनके सिर की चोट तो मैं उसकी पट्टी करने हर शाम आपके घर आ जाया करूँगा,समय पर दवाएँ लेते रहेगें तो सिर के घाव भी जल्दी भर जाऐगें"
डाक्टर सतीश राय की बात सुनकर तेजपाल जी को बहुत तसल्ली मिली और वे उनसे बोले....
"आपकी बात सुनकर दिल को बहुत तसल्ली मिली डाक्टर साहब!,नहीं तो मैं नाहक ही परेशान हो रहा था कि जाने अब कितने दिन धनुष को अस्पताल में बिताने पड़ेगें"
"जी! अब आप अपनी सारी परेशानियों को अलविदा कह दीजिए और मुस्कुराते हुए दो चार दिन के बाद धनुष जी को घर ले जाइएँ"
और ऐसा कहकर डाक्टर सतीश राय चले गए,इसके बाद तेजपाल जी धनुष से मिलने पहुँचे,थोड़ी देर उसके पास बैठे और उसका हाल चाल पूछा,अब धनुष ठीक था,वो बिस्तर से स्वयं उठ सकता था,कमरे में धीरे धीरे छड़ी के सहारे टहल भी सकता था,धनुष की हालत देखकर अब तेजपाल जी की सारी चिन्ताएँ दूर हो चुकीं थीं,इसके बाद दूसरे डाक्टर साहब ने उनसे कहा कि धनुष का ख्याल रखने के लिए नर्स है ना,अब उन्हें अस्पताल में रहने की जरूरत है,वे घर जा सकते हैं,जब तेजपाल जी घर आने लगे तो धनुष ने उनसे कहा....
"पापा! कुछ अच्छा सा खाने को मन कर रहा है,मुझे अस्पताल का मरीजों वाला खाना पसंद नहीं आया"
तो फिर तेजपाल जी ने इस बारें में डाक्टर साहब से पूछा तो वे बोले कि....
"आप घर से कुछ भी अच्छा सा बनवा लाइएँ,बस मिर्च मसाले ज्यादा नहीं होने चाहिए"
इसके बाद तेजपाल जी घर आ गए और उन्होंने प्रत्यन्चा से कहा कि शाम के वक्त जब मैं धनुष से मिलने जाऊँगा तो कुछ अच्छा सा बना देना उस के लिए,उसे अस्पताल का फीका खाना पसंद नहीं आया, फिर प्रत्यन्चा ने हाँ के जवाब में सिर हिला दिया और शाम को प्रत्यन्चा धनुष के लिए गरमागरम मूँग दाल के चीले बनाकर तेजपाल जी को डब्बा थमाते हुए बोली....
"लीजिए! चाचाजी! धनुष बाबू को खिला दीजिएगा"
"तू भी मेरे साथ अस्पताल चल ना! आज रात का खाना विलसिया बना लेगी"
"मैं वहाँ ना जाऊँगी चाचाजी! धनुष बाबू को मेरा अस्पताल आना अच्छा नहीं लगेगा",प्रत्यन्चा तेजपाल जी से बोली...
"अरे! बेटी! वो तो नालायक और तू उस नालायक की बातों में क्यों आ रही है,मैं कह रहा हूँ ना तुझे अपने साथ चलने के लिए तो मेरे साथ चल,तुझे उस नालायक से क्या मतलब है"
"जी! तो फिर चलिए", प्रत्यन्चा ने अपना दुपट्टा सम्भालते हुए कहा....
इसके बाद प्रत्यन्चा तेजपाल जी के साथ मोटर में अस्पताल के लिए रवाना हो गई,दोनों अस्पताल पहुँचे तो तेजपाल जी प्रत्यन्चा से बोले....
"वो कमरा नंबर एक सौ तीस में है,तू वहाँ पहुँच ,मैं जरा डाक्टर से मिलकर आता हूँ,धनुष की एक्सरे रिपोर्ट बाबूजी ने घर मँगवाई थी,वही लेने जा रहा हूँ"
फिर तेजपाल जी के जाते ही प्रत्यन्चा कमरा नंबर एक सौ तीस में पहुँची,कमरे का दरवाजा खुला था तो वो भीतर चली गई और वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि वहाँ नर्स मौजूद नहीं है,एक वार्ड ब्वाय वहीं धनुष के बिस्तर के पास खड़ा है और धनुष अपने बिस्तर पर लेटकर मज़े से सिगरेट फूँक रहा है और जैसे ही उसने प्रत्यन्चा को देखा तो जल्दी से सिगरेट बुझाते हुए बोला....
"तुम्हें जरा भी तमीज नहीं है,किसी के कमरे में जाते हैं तो दरवाजे पर दस्तक देकर भीतर घुसते हैं"
तब प्रत्यन्चा भी गुस्से से बोल पड़ी....
"और आपको है क्या जरा सी भी तमीज़ जो आप ऐसी हालत में सिगरेट फूँक रहे हैं,फिर ये आपका घर नहीं अस्पताल है....अस्पताल,यहाँ लोग मरीजों को देखने के लिए आते हैं,इसलिए दरवाजे पर दस्तक देने की जरूरत नहीं है,मरीज यहाँ अपना इलाज करवाने के लिए आते हैं,ना कि आपकी तरह सिगरेट फूँकने,घर में बाप दादा आपकी तबियत को लेकर परेशान हैं और आप यहाँ बेफिक्र होकर सिगरेट फूँक रहे हैं,शरम नहीं आती आपको ऐसा करते हुए,इतना बड़ा हादसा हो गया आपके साथ,ईश्वर की कृपा से आप सही सलामत हैं,तो आप भगवान का शुक्रिया इस तरह अदा कर रहे हैं,कुछ भी नहीं सोचा आपने और आपको सिगरेट किसने लाकर दी मुझे बताइएँ ,मैं अब उसे नौकरी से निकलवाकर ही दम लूँगी"
प्रत्यन्चा की बात सुनकर वहाँ खड़ा वार्ड ब्वाय परेशान होकर बोला....
"नहीं! मेमसाब! मैंने कुछ नहीं किया,इन साहब ने मुझसे सिगरेट लाने को कहा तो मैंने इन्हें सिगरेट लाकर दे दी,बोले कि ये अस्पताल इनका है और डाक्टर साहब से कहकर ये मेरी तनख्वाह बढ़वा देगें"
तब प्रत्यन्चा गुस्से से बोली....
"अच्छा! तो ये अस्पताल इनका है,इनकी औकात देखकर कहाँ से लगता है कि ये अस्पताल इनका है,ये सब इनके दादाजी का है और जो ये घड़ी घड़ी अपनी दौलत का दम भरते रहते हैं ना तो इनसे पूछो कि आज तक इन्होंने कभी एक रुपइया भी कमाया है,बस ये बड़ी बड़ी बातें ही कर सकते हैं,इसके सिवाय ये कुछ भी नहीं कर सकते"
और इतने में तेजपाल जी वहाँ आ पहुँचे और उन्होंने प्रत्यन्चा से पूछा कि यहाँ क्या हो रहा है,तब प्रत्यन्चा उनसे बोली....
"चाचाजी! आप और दादाजी इनकी चिन्ता में आधे हुए जा रहे हैं और जब मैं यहाँ आई तो ये मज़े से यहाँ बिस्तर पर लेटकर सिगरेट फूँक रहे थे और यही सब देखकर मुझे इन पर गुस्सा आ गया"
प्रत्यन्चा की बात सुनकर तेजपाल जी गुस्से में आकर धनुष से बोले...
"तुझे मैं कितना भी समझाऊँ लेकिन तू अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आता,अब क्या मेरी जान लेकर ही दम लेगा तू,कभी तो कुछ अच्छा कर लिया,ऐसा कुछ कर लिया कर जिससे मुझे खुशी मिले,लेकिन नहीं तूने तो जैसे ये ठान कर रखा है कि मैं नहीं सुधरूँगा,हालत देखी है अपनी ठीक से चल नहीं सकता,उठ बैठ नहीं सकता और तू ऐसी हालत में सिगरेट फूँक रहा था,शरम कर ले थोड़ी....शरम"
"पापा! प्रत्यन्चा झूठ बोल रही है",धनुष बोला....
"वो झूठ नहीं बोल रही है,कमरे से आ रही सिगरेट जलने की बूँ तेरी इस हरकत का बयान दे रही है,चल प्रत्यन्चा....चल अभी इस वक्त चल यहाँ से,अब मैं इससे मिलने कभी नहीं आऊँगा,इसने मेरा जीना दुश्वार कर रखा है,ये कभी भी सुधरने वाला नहीं"
और ऐसा कहकर तेजपाल जी बाहर चले गए,फिर जब प्रत्यन्चा भी बाहर जाने लगी तो धनुष उससे बोला...
"पड़ गया चैन,मिल गई तुम्हारे कलेजे को ठण्डक,जब से तुम आई हो ना तो तुमने मेरी जिन्दगी में चरस बो रखी है"
"ये लीजिए,आपके लिए बड़े प्यार से बनाकर लाई थी,जब आपका गुस्सा ठण्डा हो जाए तो खा लीजिएगा"
और ऐसा कहकर प्रत्यन्चा मूँग दाल के चीलों का डब्बा वहीं छोड़कर बाहर चली गई,फिर तेजपाल जी के साथ मोटर में बैठकर घर आ गई,घर आकर तेजपाल जी का गुस्सा सातवें आसमान पर था,उनका गुस्सा देखकर भागीरथ जी ने उनसे पूछा....
"क्या हुआ,तू इतना बौखलाया हुआ सा क्यों है?"
"बस बाबूजी!आज तो हद ही हो गई" तेजपाल जी बोले....
तब प्रत्यन्चा ने सारी बात भागीरथ जी को बता दी और फिर प्रत्यन्चा की बात सुनकर भागीरथ जी भी परेशान हो उठे....
क्रमशः....
सरोज वर्मा...