उस दिन अपनी चाल में कामयाब ना होने के बाद धनुष काफी हतोत्साहित हो चुका था, प्रत्यन्चा को घर से निकालने की उसकी कोई भी चाल अब कामयाब नहीं हो पा रही थी,इसलिए वो प्रत्यन्चा से अब और भी ज्यादा चिढ़ने लगा था,जब उसकी नजरों के सामने प्रत्यन्चा पड़ती तो उसकी आँखों में प्रतिशोध की ज्वाला जलने लगती और उसके मन में प्रत्यन्चा के लिए नफरत और भी बढ़ जाती,लेकिन वो मजबूर था,उसका वश चलता तो वो फौरन ही प्रत्यन्चा को घर से निकालकर बाहर करता....
और एक रात वो प्रत्यन्चा के लिए अपने मन में यूँ ही नफरत भरकर घर लौट रहा था,उसका उस रात किसी कैबरे डान्सर को लेकर क्लब के मालिक के साथ झगड़ा हो गया था,कैबरे डान्सर का डान्स खतम होने के बाद जब वो डान्सर अपने मेकअप रुम में गई तो धनुष भी वहाँ चला गया और उस कैबरे डान्सर को धनुष का यूँ अपने मेकअप रुम में आना पसंद नहीं आया,फिर उसने क्लब के मालिक से उसकी शिकायत कर दी,इसके बाद क्लब के मालिक ने अपने गुण्डो को कहकर धनुष को धक्के मारकर क्लब से बाहर निकलवा दिया था,
इसलिए उसने अपनी इस बेइज्जती भुलाने के लिए उस रात बहुत शराब पी,शराब के नशे में वो जब मोटर चलाकर घर वापस आ रहा था तो उसकी मोटर एक पेड़ से जा टकराई और वो मोटर में यूँ ही बेहोश होकर काफी देर तक वहाँ पड़ा रहा,जब उस रास्ते से गुजर रहे लोगों की नज़र उस पर पड़ी तो वे उसे अस्पताल ले गए और उन्होंने पुलिस को भी खबर कर दी....
पुलिस ने मोटर का नम्बर देखकर उसके मालिक के बारें में पता किया तो पता चला कि ये तो भागीरथ दीवान के पोते धनुष दीवान की मोटर है और आधी रात के वक्त भागीरथ दीवान जी के घर के टेलीफोन की घण्टी बजी,घर के नौकर सनातन ने टेलीफोन उठाया ,तब पुलिस ने उससे कहा कि तुम्हारे मालिक कहाँ, उन्हें बुलाओ उनसे कुछ बात करनी है...
फिर सनातन भागा....भागा...भागीरथ जी के कमरे के पास पहुँचा और दरवाजे पर दस्तक देते हुए बोला....
"बड़े मालिक...दरवाजा खोलिए....पुलिस का टेलीफोन आया है"
सनातन के जगाने पर भागीरथ जी जल्दी से जागे और दरवाजा खोलते हुए बोले....
"क्या बात है सनातन?"
"जल्दी से नीचे चलिए,पुलिस का टेलीफोन आया है",सनातन बोला....
सनातन की बात सुनकर भागीरथ जी जल्दी से भागकर नीचे पहुँचे और टेलोफोन उठाकर बोले....
"जी! कहिए क्या बात है'?"
तब टेलोफोन के दूसरी ओर से आवाज़ आई....
"क्या आप भागीरथ दीवान बोल रहे हैं?"
"जी! हम भागीरथ दीवान ही बोल रहे हैं",भागीरथ जी बोले....
"जी! मैं इन्सपेक्टर नारायन त्रिपाठी बोल रहा हूँ,आपके पोते धनुष दीवान का एक्सीडेण्ट हो गया है,आप फौरन सरकारी अस्पताल चले आइए", इन्सपेक्टर त्रिपाठी बोले....
"जी! बस हम अभी पहुँचते हैं",
और भागीरथ जी ने ऐसा कहकर टेलीफोन रख दिया ,फिर खुद ही तेजपाल जी के कमरे की ओर भागते हुए पहुँचे और उनके कमरे के दरवाजों पर दस्तक देते हुए हड़बडाकर बोले....
"तेजा बेटा! जल्दी से दरवाजा खोल"
फिर तेजपाल जी ने अपनी आँखें मसलते हुए दरवाजा खोला और भागीरथ जी से पूछा....
"क्या हुआ बाबूजी! आप इतने परेशान क्यों हैं?"
"बेटा! अभी कुछ देर पहले इन्सपेक्टर साहब का टेलीफोन आया था,वे बोले कि धनुष का एक्सीडेण्ट हो गया है,हम दोनों को उन्होंने फौरन ही सरकारी अस्पताल बुलाया है", भागीरथ जी परेशान होकर बोले....
"एक्सीडेण्ट....धनुष का....चलिए बाबूजी! फौरन चलते हैं"
और ऐसा कहकर तेजपाल जी भागीरथ जी के साथ उन्हीं कपड़ों में भागकर बाहर आएँ फिर मोटर में बैठकर उन्होंने मोटर स्टार्ट की और चले पड़े दोनों सरकारी अस्पताल की ओर,वहाँ पहुँचकर दोनों ने वहाँ मौजूद नर्स से धनुष की हालत के बारें में पूछा तो वो बोली कि धनुष की हालत काफी गम्भीर थी,उसके सिर में बहुत चोट आई है,दाएँ हाथ का पंजा लहूलूहान था और दाईं टाँग में भी चोट आई है,इसके बाद दोनों इन्सपेक्टर साहब के पास पहुँचे और तेजपाल जी ने उनसे पूछा....
"अब कैसा है धनुष?"
"जी! ये तो कहना मुश्किल है,डाक्टर अभी जाँच कर रहे हैं,रिपोर्ट आने में अभी वक्त लग जाऐगा,जब एक्सरे की रिपोर्ट आऐगी तभी ठीक ठीक पता चलेगा कि चोट कहाँ कहाँ आई और कितनी गम्भीर है,तब तक आप रिपोर्ट आने का इन्तजार कीजिए",इन्सपेक्टर नारायन त्रिपाठी बोले...
इसके बाद दोनों बाप बेटे परेशान होकर अस्पताल की बेंच पर जा बैंठे और डाक्टर साहब के बाहर आने का इन्तजार करने लगे,कुछ देर में डाक्टर साहब बाहर निकले,तब तेजपाल जी ने फौरन ही उनके पास जाकर पूछा....
"डाक्टर साहब! अब कैंसा है धनुष?"
तब डाक्टर साहब बोले...
"अभी तो ठीक नहीं है,मैंने जाँच कर ली है,उसके सिर में चोट आई है और शायद दाएँ हाथ के पंजे की एक दो हड्डियाँ टूट गई हैं,दाईं टाँग में भी शायद फ्रैक्चर हो सकता है,मैं ये यकीन के साथ नहीं कह सकता,अभी एक्सरे रिपोर्ट आते ही पुष्टि हो जाऐगी कि चोट कितनी गहरी आई है"
"डाक्टर साहब! घबराने वाली तो और कोई बात नहीं है,वो ठीक तो हो जाऐगा ना!",तेजपाल जी ने डाक्टर साहब से परेशान होकर पूछा...
"जी! आप बेफिक्र रहे,ऐसी कोई भी घबराने वाली बात नहीं है,वो जल्द ही ठीक हो जाएगा",डाक्टर साहब बोले...
"क्या हम उसे अपने अस्पताल ले जा सकते हैं?",तेजपाल जी ने डाक्टर साहब से पूछा....
"जी! मैं भी आपसे यही कहने वाला था,हमारे सरकारी अस्पताल में इतनी सुविधाएँ नहीं है जो आपके अस्पताल में होगीं,सारी रिपोर्ट्स आ जाएँ तो आप अपने अस्पताल से एम्बुलेन्स बुलवाकर उसे अपने अस्पताल में शिफ्ट कर दीजिए,यही अच्छा रहेगा उसके लिए",डाक्टर साहब बोले...
"जी! बहुत अच्छा और बहुत बहुत शुक्रिया आपका",तेजपाल जी ने डाक्टर साहब से कहा....
"शुक्रिया किस बात का दीवान साहब! ये तो मेरा फर्ज है"
और ऐसा कहकर डाक्टर साहब वहाँ से चले गए,फिर जब तेजपाल जी दीवान साहब के बगल में बेंच पर जाकर बैठ गए तो भागीरथ जी ने उनसे पूछा...
"कैसा है वो,कोई घबराने वाली बात तो नहीं है ना!"
"डाक्टर साहब ने तो यही कहा है कि कोई घबराने वाली बात नहीं है,बाक़ी रिपोर्ट्स आने पर पता चलेगा" तेजपाल जी बोले...
"ऐसा कर ! तू घर में टेलीफोन करके विलसिया को सबकुछ बता दे,नहीं तो नाहक सभी परेशान हो उठेगें कि हम दोनों आधी रात को घर से बाहर क्यों आएँ हैं",भागीरथ जी ने तेजपाल जी से कहा....
"हाँ! ठीक है! आप यही बैंठे ,मैं तब तक अस्पताल के टेलीफोन से घर पर टेलीफोन करके आता हूँ"
और ऐसा कहकर तेजपाल जी घर में टेलीफोन करने के लिए चले गए,जब ये खबर घर में पहुँची तो सभी ये खबर सुनकर परेशान हो उठे,अब चाहे धनुष का व्यवहार सभी नौकरों के साथ कैंसा भी हो लेकिन फिर भी वो उस घर का सदस्य था और सबसे बड़ी बात वो घर का इकलौता चिराग था,उस पर से वो घर के मालिक का पोता भी था,इसलिए सबको उसकी चिन्ता होना स्वाभाविक सी बात थी, लेकिन सबसे ज्यादा धनुष की फिक्र विलसिया को हो रही थी,क्योंकि वो तो उसकी नजरों के सामने ही पैदा हुआ था और उसी के सामने जवान भी हुआ था,इसलिए विलसिया को उससे बेटे की तरह प्यार था,जब उसने ये खबर सुनी तो वो धनुष को देखने के लिए तड़प उठी,लेकिन प्रत्यन्चा ने उसे सम्भाला और समझाते हुए उससे कहा...
"काकी! धनुष बाबू को कुछ नहीं हुआ है,वो बिलकुल ठीक है,बस मामूली सी चोटें आई हैं,सुबह होते ही हम दोनों उन्हें देखने के अस्पताल चलेगें"
फिर प्रत्यन्चा के दिलासा देने पर विलसिया मान गई और इसके बाद सभी सुबह होने का इन्तजार करने लगे....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....