Kukdukoo - 2 in Hindi Drama by Vijay Sanga books and stories PDF | कुकड़ुकू - भाग 2

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कुकड़ुकू - भाग 2

कुछ ही दिनों में स्कूल में गैदरिंग होने वाली थी। गौतम दौड़ने मे तेज था, वो हर साल दौड़ की प्रतियोगिता मे अव्वल आता था। इस साल भी उसने पूरी तैयारी कर रखी थी। दूसरी तरफ भूमि ने पोएट्री कॉम्पिटिशन मे भाग लिया था। जहां गौतम दौड़ने मे तेज था, वहीं भूमि पोएट्री मे माहिर थी।

जल्द ही गैदरिंग वाला दिन आ गया। बहुत से बच्चों ने अलग अलग खेलों मे भाग लिया था। गैदरिंग मे बच्चो के खेलों को देखने के लिए बच्चो के घर वालो को भी बुलाया गया था। गौतम और भूमि के मम्मी पापा भी आए हुए थे। सबसे पहले दौड़ की प्रतियोगिता शुरू होने वाली थी। जो भी बच्चो ने दौड़ मे भाग लिया था वो सब स्टार्टिंग लाइन पर खड़े हो गए। गौतम भी स्टार्टिंग लाइन पर खड़ा हो गया।

उधर गौतम के मम्मी पापा उसका होंसला बढ़ाने मे लगे हुए थे , तभी उन्होंने देखा की भूमि के मम्मी पापा भी उनके पास आ रहें हैं। “अरे देखो गीता बहन और सिद्धार्थ भैया भी आयें हैं।” अरूणा ने गीता और सिद्धार्थ को अपनी तरफ आता देख संजय से कहा। गीता और सिद्धार्थ, अरूणा और संजय के पास आकर बैठ गए । “अरे गीता बहन सिर्फ आप दोनो आएं हैं, भूमि कहां है?” अरूणा ने गीता से पूछा। “अरे उसने पोएट्री कॉम्पिटिशन मे भाग लिया है, उसमे अभी समय है, वो अपनी तैयारी में लगी हुई है तो हमने सोचा तब तक दूसरे खेल देख लें, तो देखा की आप दोनो भी यहीं बैठे हो, तो सीधा यहीं आ गए। गौतम कहां है, कहीं दिख नहीं रहा !” “गीता बहन वो देखिए वहां खड़ा है।” अरूणा ने मैदान की तरफ इशारा करते हुए गीता से कहा।

गौतम ने दौड़ में भाग लिया है क्या?” गीता ने अरूणा से पूछा।

“हां गीता बहन, वो हर साल दौड़ की प्रतियोगिता मे भाग लेता है, और जीतकर भी आता है। उसने इस रेस के लिए बहुत तैयारी की है। अरूणा ने कहा और मैदान की तरफ गौतम को देखने लगी।

गीता–“हमारी भूमि ने भी हर साल की तरह पोएट्री कॉम्पिटिशन मे भाग लिया है, और वो भी हर साल जीतकर आती है। अभी उसकी प्रतियोगिता शुरू होने मे समय है, इसलिए हमने सोचा की क्यों ना दूसरे खेलों को भी देख लिया जाये।” गीता ने अरूणा से कहा और मुस्कुराने लगी। ‘उधर दौड़ की प्रतियोगिता शुरू होने वाली थी।

रेफरी सीटी लेकर लाइन के पास आकर खड़ा हो गया। फिर रेफरी ने सब बच्चों को तैयार रहने को कहा। सभी बच्चे दौड़ के लिए तैयार थे, तभी रेफरी ने सीटी बजाई और दौड़ शुरू हो गई। चार सौ मीटर के दौड़ मे मैदान का एक पूरा चक्कर लगाना था। सौ मीटर की दूरी जैसे ही पूरी हुई की गौतम का जूता निकल गया। गौतम थोड़ा लड़खड़ाया और फिर अपने दूसरे पैर का जूता भी निकाल दिया और नंगे पैर दौड़ पड़ा।

गौतम ने देखा की बहुत से बच्चे उससे आगे निकल चुके हैं। उसने पूरी ताकते दौड़ लगाई और देखते ही देखते वो सबको पीछे छोड़ते हुए आगे निकल गया और फिर फिनिशिंग लाइन पार कर ली। जो लोग ये देख रहे थे, उन्हे तो यकीन ही नहीं हो रहा था की गौतम रेस जीत गया। इतना पीछे होने के बावजूद भी उसने दौड़ जीत ली।

अरूणा, संजय, सिद्धार्थ और गीता का भी हाल बाकी लोगो की तरह हो गया था। उनको भी यकीन नही हो रहा था की गौतम ने दौड़ जीत ली है। सब लोग खड़े होकर तालियां बजाने लगे। गौतम दौड़ के बाद भागता हुआ अपने मम्मी–पापा के पास गया और उनके गले लग गया। उसने देखा की भूमि के मम्मी पापा भी वहीं खड़े हैं। उसने उनकी तरफ देखा और उनके पैर छू लिए। “अरे गौतम, तूने तो सबको चौंका कर रख दिया, हमे तो लगा तू नही जीत पाएगा, पर तूने हिम्मत नही हारी और आखिर जीत ही गया, हमे ये देखकर बहुत खुशी हुई।” गीता ने मुस्कुराते हुए गौतम से कहा।

“चलो चलो भूमि का पोएट्री कॉम्पिटिशन शुरू होने वाला है, चलो चलकर देखते हैं।” गौतम ने कहा और सब पोएट्री कॉम्पिटिशन देखने के लिए निकल गए। कुछ ही देर में वो सब पोएट्री कॉम्पिटिशन पर पहुंच गए। पोएट्री कॉम्पिटिशन एक बड़े से हॉल मे हो रहा था। गौतम और बाकी सब जाकर कुर्सियों पर बैठ गए। जब भूमि ने उन्हें देखा तो उनकी तरफ देखकर मुस्कुराते हुए हाथ हिलाने लगी। गीता और बाकी सबने भी भूमि को देखकर हाथ हिला दिया और मुस्कुराने लगे। पोएट्री कॉम्पिटिशन शुरू हो गया। भूमि बड़े ध्यान से पोएट्रीबनाने मे लगी हुई थी। कुछ ही देर मे कॉम्पिटिशन खत्म हो गया।

“आजकी इस पोएट्री कॉम्पिटिशन की विजेता है भूमि यादव।” वहां की टीचर ने अनाउंसमेंट करते हुए कहा। ये सुनते ही भूमि और उसके मम्मी पापा खुशी से उछल पड़े और भूमि को गले लगा लिया। ये सबके लिए बहुत खुशी का दिन था। “अरे तू ! क्या हुआ तेरी रेस का, हारा या जीता?” भूमि ने मुस्कुराते हुए गौतम से पूछा। “अरे मैं भी जीत गया हूं, तुझे क्या लगा था मैं हार जाऊंगा।” गौतम ने भूमि से कहा।

“अरे...अरे... बस करो तुम दोनो, कभी भी लड़ना शुरू कर देते हैं।” गीता ने दोनो को डांटते हुए कहा और सभी घर के लिए रवाना हो गए। कुछ ही देर में सब लोग घर के पास पहुंच गए। “चलो भाई साहब, मिलते हैं फिर, आज का खेत का थोड़ा सा भी काम नहीं हो पाया, अब मैं खेत के लिए निकलता हूं।” कहते हुए संजय खेत मे जाने के लिए निकल गया।

“ठीक है अरूणा बहन हम भी चलते हैं, इनको भी खेत पर जाना है।” ये कहते हुए गीता और सिद्धार्थ, भूमि के साथ अपने घर के लिए रवाना हो गए।

घर पहुंच कर अरूणा ने गौतम की तरफ देखते हुए पूछा, “तो बेटा बता आज खाने मे तेरे लिए क्या बनाऊ?” “मां आज मैं चिकन करी खाना चाहता हूं, तुम एक बार पापा से भी पूछ लो, वो लायेंगे या नही!” गौतम ने अपनी मां से कहा। “अरे तू इसकी चिंता मत कर, तू घर पर ही रहना, मैं बाजार जाकर आती हूं। आज हम चिकन करी ही खायेंगे।” अरूणा ने गौतम की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहा और झोला लेकर बाजार जाने के लिए रवाना हो गई।

गौतम ने हाथ मूह धोया और खाना खाने लगा। आज के रेस ने उसे थका कर रख दिया था। उसने खाना खाया और सीधा पलंग पर लेट गया। गौतम इतना थका हुआ था की पलंग पर लेटते ही उसे नींद आ गई। कुछ देर के बाद दरवाजा खटखटाने की आवाज सुनकर गौतम को नींद खुल गई , वो पलंग से उठा और दरवाजा खोला तो देखा की मां बाजार से खरीदी करके आ चुकी है। उसने गौतम को झोला देते हुए कहा–“ले ये झोला पकड़ और इसमें से मुर्गा निकलकर एक तरफ बांध दे। शाम को तेरे पापा आयेंगे तब वो इसे काटेंगे।” अरूणा ने गौतम से कहा और झोला से सब्जियां निकालकर जमाने लगी। गौतम ने मां को देखा और मुस्कुराते हुए झोले में से मुर्गा निकाला और एक कोने में बांड दिया।

शाम को संजय जब खेतों से घर वापस आया तो उसने देखा की गौतम घर के आंगन में मुंह लटकाकर बैठा हुआ है। “गौतम बेटा... ऐसे मुंह लटकाकर क्यों बैठा है?” संजय ने गौतम के सामने बैठकर उसका चेहरा ऊपर की तरफ करते हुए पूछा।

गौतम–“पापा आप कितनी देर से घर आ रहे हो! मैं कबसे आपके घर आने का इंतजार कर रहा हूं।” ये कहकर गौतम उदास चेहरे के साथ घर के अंदर चला गया। इतने मे अरूणा घर से बाहर आई और संजय को देखते हुए बोली–“आ गए आप ! जाइए मुंह हाथ धो लीजिए।” इतने में संजय ने अरूणा से पूछा–“अरे अरूणा... ये तो बताओ... हमारा गौतम आज ऐसे मुंह लटकाकर क्यों बैठा है?” अरे आप घर देर से आए ना, इसलिए गुस्सा है। आज मैं बाजार गई थी तो मुर्गा लेकर आई, वो कबसे इंतजार कर रहा था की आप घर आयेंगे और मुर्गा पकाएंगे, पर आप देर से आए, इसलिए थोड़ा गुस्सा है।” अरूणा ने संजय को जब ये बताया तो संजय मुस्कुराने लगा और कहा–“अरे अरूणा चलो–चलो जल्दी करो, आज हमारे बाबू का खास दिन है, तो आज हमे उसे कुछ खास बनाकर खिलाना चाहिए।” संजय ने गौतम की तरफ देखा और मुर्गा पकाने के लिए तैयार करने लगा। ये देखकर गौतम खुश हो गया और आंगन में खेलने लगा।