एक दिन अचानक प्रतीक के चचेरे भाई विमल का फ़ोन आया।
विमल ने प्रतीक को बताते हुए कहा, "प्रतीक यार तुम्हारी भाभी की बुआ के लड़के को अपने किसी काम से तुम्हारे शहर इटारसी आना है। वह केवल 15 साल का है कहाँ अकेला होटल में रहेगा ... मैं चाहता हूँ कि वह तुम्हारे घर पर ही ठहर जाए। सिर्फ़ दो ही दिन की बात है, तुम्हें कोई परेशानी तो नहीं ...?"
"अरे कैसी बात कर रहे हो भैया आप?"
"तो भेज दूँ उसे?"
"क्यों नहीं विमल भैया ... यह भी कोई पूछने की बात है। भेज दो उसे, हम उसका ध्यान रखेंगे। कुछ मदद की ज़रूरत होगी तो वह भी ज़रूर कर देंगे।"
"थैंक यू प्रतीक चलो मेरा तनाव ख़त्म हुआ। कल से तुम्हारी भाभी पीछे पड़ी थी कि प्रतीक भैया से बात करो ना।"
"भाभी से कहना, यह कौन-सी बड़ी बात है। एक दूसरे की मदद नहीं की तो फिर रिश्तेदारी किस काम की?"
"हाँ तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो। तो फिर कल रमन आ जाएगा। वह दोपहर को यहाँ से निकलेगा और शाम तक वहाँ पहुँच जाएगा। मैंने उसे घर का पता दे दिया है, वह सीधा घर ही आ जाएगा।"
"ठीक है भैया।"
"दूसरे दिन नमिता ने शाम के खाने की तैयारी शुरू कर दी और प्रतीक ने उसके लिए बिस्तर वगैरह तैयार करके रख दिया। अब उन्हें शाम का इंतज़ार था, जब वह आएगा।"
इसी बीच राज और नीता का फ़ोन आया।
राज ने अपनी मम्मी नमिता से कहा, "मम्मा दादी की बहुत याद आ रही है, उनसे बात करवाओ ना।"
"हाँ अभी देती हूँ," तब तक नीता ने राज के हाथ से फ़ोन छीनते हुए कहा, "मम्मा हम दोनों कल आ रहे हैं दो-तीन दिनों के लिए। मुझे भी दादी की बहुत याद आ रही है। वह ठीक तो हैं ना?"
"हाँ-हाँ ठीक हैं, सांस लेने में बीच-बीच में थोड़ी दिक्कत होती है। अब बेटा उम्र भी तो है ना, कहते हुए नमिता कावेरी अम्मा के पास आ गई।"
फ़ोन देते हुए उसने कहा, "अम्मा आपके पोते और पोती को आपकी बहुत याद आ रही है, लो बात करो।"
"हैलो नीता, कैसे हो तुम दोनों?"
"दादी हम तो एकदम ठीक हैं, आप कैसी हो दादी?" राज ने पूछा।
"अरे मुझे क्या हुआ, अभी इतनी जल्दी मैं जाने वाली नहीं हूँ। शतक भी तो पूरा करना है मुझे। तुम दोनों की यह इच्छा मैं ज़रूर पूरी करूंगी।"
"वेरी गुड दादी हम दोनों कल आ रहे हैं आपसे मिलने।"
"आ जाओ, आ जाओ मेरा भी बड़ा मन कर रहा है तुम दोनों को देखने का, बातें करने का। तीन महीने हो गए हैं तुमसे मिले हुए।"
"हाँ दादी बस आज की रात का इंतज़ार कर लो। कल सुबह हम सब साथ-साथ होंगे।"
"ठीक है बच्चों मैं सुबह का इंतज़ार करूंगी।"
धीरे-धीरे रमन के आने का समय हो गया। कुछ ही देर में घर के सामने एक टैक्सी आकर रुकी। रमन एक छोटे से ब्रीफकेस को अपने हाथ में लिए आ रहा था। तभी प्रतीक ने दरवाज़ा खोला और उसके पास पहुँच कर पूछा, "तुम रमन हो ना?"
"हाँ अंकल।"
"आओ बेटा, घर ढूँढने में ज़्यादा परेशानी तो नहीं हुई?"
"नहीं-नहीं अंकल, घर आराम से मिल गया।"
तब तक वह दोनों घर में आ गए। नमिता ने भी उसके आते ही कहा, "आओ बेटा और पानी का गिलास भरकर उसे दिया।"
तब तक रमन की नज़र सोफे पर पड़ी कावेरी अम्मा पर पड़ गई। उसने तुरंत उनके पास जाकर उनके पैर छुए।
कावेरी अम्मा ने आशीर्वाद देते हुए कहा, "जिस काम के लिए आए हो, भगवान उसमें तुम्हें सफलता दे। बड़े अच्छे संस्कार पिरोए हैं तुम्हारी माँ ने वरना आजकल के बच्चे कहाँ पैर छूना जानते हैं, मानो सब कुछ भूल गए हैं। मिलते वक़्त हाय हैलो के सिवाय कहाँ कुछ और कहते हैं।"
कुछ देर सबने रमन के साथ बैठकर बात की फिर अपने-अपने काम में लग गए।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः