Kuchh to he Tere Mere Darmiyaan - 4 in Hindi Love Stories by Sakera tunvar books and stories PDF | कुछ तो है तेरे मेरे दरमियान। - 4

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कुछ तो है तेरे मेरे दरमियान। - 4

एक लंबा सफर तय करने के बाद सभी दिल्ली एयरपोर्ट पर पहुंच चुके थे।

सभी एक दिन दिल्ली में आराम करने के बाद दुसरे दिन डिवाइडेड स्टेट्स के लिए निकलने वाले थे।

आयत को हिन्दुस्तान की जमीं पर बहुत ही सूकून महसूस हो रहा था।वो आंखें बंद करके उन फिजाओं को अपने आप में समा देना चाहती थी।

काव्या उसके कंधे पर हल्के से मारकर,तो कैसा लगा अपने देश में पहली बार आकर??

आयत हल्के से आंखें खोलकर, बहुत सूकून महसूस हो रहा है जैसे की २३ सालों से जिंदगी में कुछ अधुरा सा था।
अंजलि:आई विश की एक बार तुम अपने परिवार से मिल पाती।

दिया:अरे... तुम सब क्या बातें लेकर बैठ ग‌ए,अब जल्दी चलो हमें होटल पहुंचना है,
और वो आयत को अपने साथ खिंचकर आगे ले ग‌ई।

थोड़ी देर में सभी अनंत ने बुक की हुई होटल में पहुंच चुके थे।

सभी फ्रेश होने के बाद डिनर करने के लिए एक टेबल की इर्द गिर्द बैठ ग‌ए....

अनंत:आयत, दिया तुम दोनों से कुछ बात करनी थी...।
आयत : हां,कहो?

अनंत: एक्चुअली तुम सब जानते ही हो आई एम फ्रोम पुणे और कुछ दिन बाद मेरी कजिन की शादी भी है,तो अगर तुम दोनों को ठीक लगे तो में और माइकल महाराष्ट्र चले जाते हैं और तुम दोनों युपी यानी के यही से काम स्टार्ट कर दो।

दिया : हां,तो कोई बात नहीं हम यह कर लेंगे है ना आयत ?

आयत: हां, बिल्कुल।

अनंत : थेंक्यु, गाइस तो फिर आप लोगों को जैसे ठीक लगे उस तरह से मेनेज कर लेना।

दिया : वो तो ठीक है... लेकिन हम यहां तो मेनेज कर लेंगे लेकिन फिर आगे...?

प्रियांक : यहां पर तुम दोनों को ज्यादा समय नहीं लगेगा इसलिए इसके बाद तुम दोनों युपी के केपिटल लखनऊ से स्टार्ट करना....

मनन प्रियांक की बात बिच में काटकर,और सबसे अच्छी बात लखनऊ में मेरे अंकल के एक बहुत अच्छे दोस्त का घर है,तो तुम दोनों का वहां रहने का भी मेनेज हो जाएगा...और लखनऊ से बहुत सी हिस्टोरिकल प्लेसिस कुछ घंटों की दुरी पर ही है तो रिसर्च में भी आसानी हो जाएगी।

सब मनन की बात से सहमत हो जाते हैं।
मनन वहां से खड़े होते हुए,आप लोग कंटीन्यू करो,में अंकल से बात करके आता हू।

वहीं दूसरी और लखनऊ मे...

सब डाइनिंग टेबल पर बैठ कर खाना खा रहे थे,आज हर रोज से दो चहेरे अलग दिखाई दे रहे थे।

यह दो लोग और कोई नहीं बल्कि नाहीद बैगम और उनकी बेटी मन्हा थें।

(शारीक साहब के शबीना के साथ निकाह कर लेने के बाद समशेर साहब ने अपने किसी करीबी रिश्तेदार के यहां नाहीद का निकाह करवा दिया था।)

वो अक्सर अपनी बहन नगमा बेगम और मामु जान से मिलने आ जाया करते थे।वो चाहती थी कि भले ही वो उस घर की बहु ना बन पाई लेकिन वो अपनी बेटी मन्हा को इस घर की बड़ी बहू बनाकर ही रहेंगी।
और वो आज पक्के इरादे के साथ आई थी,के वो आज अपनी बाजी से मन्हा और कबीर के बारे में जरूर बात करेंगी।

मन्हा अयान और अयना से सिर्फ चार महीने बड़ी थी।वह एक बेहद सुलझी हुई और साफ दिल की लड़की थी।

कमरे मे...,

नगमा बेगम : नाहीद क्या कह रही हो तुम? तुम कबीर के लिए बी जान के इरादे से अच्छी तरह से वाकिफ हो...!!

नाहीद : आपा आप भी जानती है मेरे साथ जो हुआ उस औरत की वजह से और आप को क्या लगता है जो इन्सान आज तक लौटा नहीं वो अपनी बेटी ब्याह ने के लिए वह वापस आएगा।

(कुछ साल पहले शाहीद के एक दोस्त की मुलाकात मीटिंग के सिलसिले में शारीक साहब से न्युयोर्क में हुई थी, बात बात में उन्होंने आयत का जिक्र किया था, फिर क्या था उन्होंने यह बात आकर शाहीद साहब को बताई तब यह जानकर बी जान के साथ साथ समशेर साहब के कठोर चेहरे के पीछे भी उन्होंने एक खुशी महसूस की थी।
एक दिन बातों बातों में बी जान ने कहा कि,अगर उन्हें मौका मिला तो वह उनके शारीक की बेटी का निकाह कबीर से करवा देगी,जिसे मजबूरन बेटी की मोहब्ब्त में शारीक घर लौट आएं....इस बात को शायद उस वक्त किसी ने इतनी तवज्जो नहीं दी थी, लेकिन वहां मौजूद हर शख्स के दिल में यह बात बैठ सी गई थी। समशेर साहब की आंखों में भी अपने बेटे के लिए तड़प देखी जा सकती थी,और बी जान तो उनकी मां थीं,एक मां अपने बच्चे को एक पल के लिए भी दुर न करें, लेकिन यहां तो सत्ताइस सालों से एक मां अपने बेटे के इंतजार में बैठी थी।बेशक नगमा को अपनी भांजी का ख्याल था, लेकिन जो सत्ताइस सालों से हर शख्स के आंखों में उन्होंने जो तड़प देखी है वो एक फैसले से दुर हो सकती है तो वो बेशक उस फेसले को आजमाना चाहेगी।)

नगमा : नाहीद,यह तय करने वाले हम कोई नहीं है,उपर वाला मालिक है। जैसे अल्लाह ताला ने चाहा वैसा होगा।

ऐसे ही दोनों बहनों के बातों का सिलसिला चलता रहा।

वहीं दूसरी ओर कबीर अपने कमरे की बाल्कनी में चांद को निहार रहा था ,और आज अपने कमरे में आते वक्त अपनी अम्मी और खाला जान के बिच हुई बात और बी जान की इच्छा के बारे में सोच रहा था।

कबीर : बड़ी अजीब बात है जिसको कभी देखा नहीं,यहां तक की उसका नाम भी नहीं पता.... उससे निकाह.... लेकिन इतना कहकर थोड़ी देर चुप रहने के बाद, अगर मेरे परीवार की खोई खुशियां ऐसे वापस मिल सकती है तो मुझे वो भी मंजूर हैं।

वहीं दूसरी और मनन ने अपने अंकल से बात करके आयत और दीया के रहने के लिए भी बात कर ली थी।

दुसरे दिन सभी अपनी अपनी जगह निकल चुके थे,अब वहां पर दिया और आयत ही बचे थे।

आयत ने अपने अम्मी अब्बू से फोन के जरिए बात की लेकिन वो अपने बदल चुके स्टेट्स के बारे में वो बताना भुल ग‌ई।

आयत और दिया ने तीन दिन तक दिल्ली में रहकर वहां के हिस्टोरिकल प्लेसिस के बारे में रिसर्च की।

जैसे की...,लाल किला, कुतुब मीनार , हुमायूं का मकबरा जैसे बहुत सी जगह पर जाकर वहां के लोगों से बात की और सारी जानकारी इकट्ठी की।

और आज दोनों फाइनली लखनऊ के लिए निकलने वाली थीं। जहां पर शायद आयत का इंतजार उसकी तकदीर कर रही थी।

दोनों ने होटल से सामान लेने के बाद,
एक केब बुक करने के बाद दोनों रेलवे स्टेशन की ओर चल‌ दिए, दोनों ने प्लेन से ना जाकर ट्रेन से जाने का आयत की फरमाइश पर डिसाइड किया।

दोनों फाइनली अब ट्रेन में बैठ चुके थे।
आयत और दिया बैठकर दिल्ली में जो रिसर्च किया उसके बारे में डिस्कशन कर रही थी।
उन्हें लखनऊ पहुंचने में अभी कम से कम छह घंटे लगने वाले थे।

आयत : अरे...यार में अम्मी अब्बू को बताना ही भुल ग‌इ हमारे स्टेट्स चेंजेंस के बारे में....।

दिया: कोई बात नहीं अब जब बात हो तब बता देना।
आयत : ठीक है, दिया तुम्हें पता है मुझे ना आज न जाने क्यू बेहद खुशी महसूस हो रही है।

दिया:ऐसा इसलिए क्योंकि तुम अपने देश में हो।
आयत :हां एसा हो सकता है,सच कहूं तो अम्मी सच कहती थी अपने देश की बात ही कुछ और है।

दिया : मुझे तो सबसे खुशी इस बात की हो रही है की हम दोनों साथ में हैं, तुम्हारे साथ तो में एवे ही पुरी दुनिया गुम सकती हुं।
उसकी बातें सुनकर आयत मुस्कुराने लगती है।

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आगे आयत की जिंदगी क्या मोड़ लेती है,यह जानने के लिए पढ़ते रहिए, कुछ तो है तेरे मेरे दरमियान