भाग 12
“तो इसका मतलब नीलम यहाँ से सीधा सलेक्ट पैलेस मॉल गई थी।” विक्रम जीप में बैठते हुए बोला।
कविता किसी और ख्याल में खोई हुई थी। उसने विक्रम की बात का कोई जवाब नहीं दिया।
“कहाँ खो गईं आप मैडम?”
कविता, विक्रम की आवाज़ सुन अपनी सोच से बाहर आई और एक लम्बी सांस भरते हुए बोली,
“विक्रम, मैंने कहा था ना कि नीलम एक अच्छे कैरेक्टर की औरत है। देखा ना, वो कितनी मेहनत कर रही थी अपने बच्चों के लिए। ऐसी औरत अपने बच्चों को छोड़कर कहीं क्यों जाएगी?”
“मैं सहमत हूँ तुम्हारी बात से कविता। मैंने तो बस एक अनुमान रखा था। अब हम पुलिसवालों का तो काम ही अनुमान के हिसाब से चलता है। वरना केस कैसे सॉल्व करेंगे। चलो मॉल चलकर पूछते हैं, शायद कुछ पता चल जाए।” विक्रम ने जीप मॉल की तरफ मोड़ते हुए कहा।
मॉल पहुँचकर उन्होंने वहाँ के हर छोटे-बड़े रेस्टोरेंट में नीलम की तस्वीर दिखाई। आखिरकार उन्हें सफलता मिल ही गई। डाइन इन नामक रेस्तरां में।
“जी सर, ये नीलम जी हैं। ये टपरवेयर का काम करती हैं। अक्सर हमारे रेस्टोरेंट में जब किटी पार्टी होती हैं तो ये आती हैं। अपना टपरवेयर का सामान बेचने।” रेस्तरां के मैनेजर मुकेश ने कहा।
“तो क्या नीलम उन महिलाओं को पहले से जानती होती है जिनकी पार्टी यहाँ चल रही होती है?” कविता ने पूछा।
“नहीं सर, अमुमन तो नहीं…हाँ कुछ एक आद बार ऐसा ज़रूर हुआ है कि जो महिलाएं आती हैं उनमें से कुछ किसी और किटी पार्टी में भी शामिल होती हैं। तो उन्हें नीलम जी पहले से जानती होती हैं। पर…सर हुआ क्या?”
“कुछ खास नहीं। आप ये बताइए कि 16. जुलाई को आपके यहाँ किटी पार्टी थी क्या?” विक्रम ने पूछा।
“जी सर, पार्टी थी। और ताज्जुब की बात है कि उस दिन नीलम जी आईं हीं नहीं।” मेनेजर मुकेश के चेहरे पर गुस्सा साफ दिखाई दे रहा था।
“अच्छा! तो आपको उनके ना आने से नुकसान हुआ है क्या?” कविता ने उसके चेहरे के भाव पढ़ते हुए कहा।
मुकेश झेंप सा गया। वह हकलाती ज़ुबान से बोला, “नहीं मैडम, हमें…क्या फायदा होगा इससे। वो तो मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि उस दिन वो सारा ग्रुप नीलम जी का इंतज़ार कर रहा था। और…वो आईं नहीं।”
“उस ग्रुप को पता था कि नीलम आने वाली है?” विक्रम ने पूछा।
“वो सर…मैंने ही बताया था उन्हें।” मेनेजर मुकेश ने कहा।
विक्रम और कविता उस रेस्तरां से बाहर निकल आए। तभी पीछे से उन्हें एक आवाज़ आई,
“सर, एक मिनट।”
उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो उसी रेस्तरां का वेटर खड़ा था। वो उनके पास आया और बोला, “सर, मेनेजर मुकेश झूठ बोल रहा है। वो नीलम दीदी से कमिशन लेता था। तभी वो उन्हें यहाँ टपरवेयर का स्टॉल लगाने देता था। दो हफ्ते पहले मेनेजर का दीदी से झगड़ा हुआ था। वो दीदी से ज़्यादा कमिशन मांग रहा था। दीदी के मना करने पर उसने दीदी को धमकी दी थी कि वो उनका ये धंधा बंद करवा देगा।”
“क्या नाम है तुम्हारा?” विक्रम ने पूछा।
“जी मेरा नाम संतोष है।”
“देख भाई संतोष, अगर तू झूठ बोल रहा है तो बेटा ऐसा डंडा करूँगा कि बोलने लायक नहीं रहेगा।”
“अरे! सर, मैं झूठ क्यों बोलूँगा? ये बात होटल के सभी वेटर जानते हैं पर कोई नहीं बोलेगा।”
“तो तुम हमें क्यों बता रहे हो?” कविता ने पूछा।
“मैडम जी, नीलम दीदी बहुत भली औरत थीं। उन्हीं की मदद से मेरी पत्नी एक अस्पताल में सफाई कर्मचारी के रूप में लग पाई है। आज आप लोग को यहाँ देखा तो ऐसा लगा कि कुछ गड़बड़ है। इसलिए बताया आपको।” संतोष बोला।
“कौन से अस्पताल में नौकरी लगवाई नीलम ने तुम्हारी पत्नी की?” कविता ने पूछा।
“मैडम जी, वो यूसुफ सराए में है ना वो नर्सिंग होम, बच्चे पैदा होते हैं वहाँ, मेफे…मेफे…करके कुछ अंग्रेजी नाम है। उसकी डॉक्टरनी बड़ी मशहूर है, चंद्रा…ऐसा नाम है उनका” संतोष याद करते हुए बोला।
“मेफेयर नर्सिंग होम, डॉक्टर पुष्पा चंद्रा?” कविता बोली।
“हाँ, हाँ मैडम यही नाम है। यहीं काम करती है मेरी घरवाली।”
“अच्छा ये बताओ संतोष, ये तुम्हारा मेनेजर कैसा आदमी है? मतलब, नीलम के साथ कोई बदतमीजी तो नहीं की कभी इसने?” विक्रम ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा।
“सर, वैसे वो बहुत लालची है पर ऐसा नहीं है। पर…ऊपर वाले फ्लोर पर एक पंजाबी ढाबा करके एक बड़ा होटल है, दीदी वहाँ भी जाया करती थीं। वहाँ के मेनेजर ने दीदी से बदतमीजी की थी। सुना है दीदी ने उसको सारे कस्टमर लोगों के सामने बहुत ज़ोर से तमाचा मारा था।” संतोष ने बताया।
“शुक्रिया संतोष। तुम्हारी ज़रूरत पड़ी तो तुम्हें थाने आना पड़ेगा।” विक्रम ने कहा।
“ज़रूर सर, कानून का साथ देना हर नागरिक का फर्ज है।” संतोष बोला।
“तो क्या कहते हो, ऊपर वाले को भी चैक कर लिया जाए?” कविता बोली।
“बिल्कुल। देखें उसका क्या कहना है।” विक्रम ने कहा। और वो दोनों मॉल के दूसरे फ्लोर के रेस्तरां के लिए चल पड़े।
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पंजाबी ढाबा रेस्तरां
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“यहाँ का मेनेजर कहाँ है?” विक्रम ने अपना आई. डी. कार्ड दिखाते हुए कहा।
“जी आप बैठिए वो दस मिनट में आ जाएँगे। नीचे गये हैं।” रिसेप्शनिस्ट ने उन्हें बताया।
विक्रम और कविता वहाँ बैठ मेनेजर का इंतज़ार करने लगे।
“रेस्तरां काफी अच्छा है। बढ़िया डेकोरेशन है।” कविता इधर-उधर देखते हुए बोली।
“तुम्हारे जन्मदिन की पार्टी यहीं कर लें।” विक्रम ने धीरे से उससे पूछा।
“पहले खाना खा कर देखेंगे एक दिन। अच्छा लगा तभी करेंगे।” कविता मुस्कुराते हुए बोली।
तभी रेस्तरां का मेनेजर विपुल वहाँ आया।
“कहिए सर, मैडम, हाऊ कैन आई हेल्प यू। आई एम विपुल। मेनेजर ऑफ पंजाबी ढाबा।”
विक्रम ने अपनी जेब से नीलम की तस्वीर निकालते हुए पूछा, “इन्हें जानते हैं आप?”
विपुल ने तस्वीर हाथ में ले गौर से देखते हुए कहा,
“ये…याद नहीं आ रहा, कहीं तो देखा है।”
“ओह! याददाश्त बहुत ख़राब है आपकी। हम कुछ मदद करें।” विक्रम ने अपनी कमीज़ की बांहें ऊपर चढ़ाते हुए कहा।
विपुल लड़खड़ाती ज़ुबान में बोला, “हाँ, सर याद आया। ये..ये नीलम हैं। हमारे यहाँ आती थीं, अपनी टपरवेयर की सप्लाई लेकर।”
“गुड, तो आपके कैबिन में चलकर बात करें मिस्टर विपुल।” विक्रम ने रौब से उठते हुए कहा।
विपुल ने अपने माथे का पसीना पोंछ और उन्हें शराफत से अपने कैबिन में ले गया।
क्रमशः
आस्था सिंघल