Swayamvadhu - 3 in Hindi Fiction Stories by Sayant books and stories PDF | स्वयंवधू - 3

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स्वयंवधू - 3

'समीर बिजलानी और मान्या बिजलानी के बेटे, वृषा बिजलानी अब एकमात्र प्रतिभाशाली उत्तराधिकारी हैं, जो इस कॉर्पोरेट जगत में कदम रखने के दिन से ही अपनी प्रतिभा दिखा रहे हैं और पहले से ही शीर्ष पर हैं। वह एक महान व्यवसायी हैं और वर्तमान में बिजलानी को भारत और दुनिया भर में अग्रणी ब्रांड बनाने के लिए दुनिया भर में काम कर रहे हैं।'
और भी बहुत सी बातें लिखी गईं थी लेकिन वह वृषा जी के बारे में नहीं थी।
'समीर बिजलानी ने कैसे इस ब्रांड को सफल बनाने के लिए अपनी सारी जवानी लगा दी और अभी भी काम कर रहे हैं और समाज में उनका बहुत प्रभाव है। वह कल्याण, दान और राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। उन्होंने जरूरतमंद लोगों की मदद की, चाहे कोई भी आपदा हो, वह सबसे पहले आगे आने वाले व्यक्ति थे। वह...'
और भी बहुत सी बातें कही गईं थी और बाकि बाते वही तलवे चांटने वाली बात थी।
मैंने अपना चश्मा साफ किया और इसे अच्छी तरह से पढ़ा और इसके हर विवरण को याद करने की कोशिश की और आखिरकार मैंने वृषा बिजलानी की तस्वीर देखी। मैंने थोड़ा और नीचे स्क्रॉल किया और वहाँ उसकी तस्वीर थी।
(क्या उसने यह सब रचा है?)
(मुझे यह सब दिखाने का क्या मतलब?)
मैंने आधे घंटे तक लेटे फ़ोन स्क्रॉल कर रही थी। तभी...?
"...!", अचानक मेरा हाथ फिसला और फोन पलट गया लेकिन मैं उसे सुरक्षित निकालने में कामयाब रही पर इस अभ्यास में मुझे लगा कि मैंने गलती से उनकी गैलरी खोल दी- और पाया कि मैंने उनके बचपन खोल दी, उनकी बहती नाक वाली तस्वीर खुली।
(उनकी दादी या नानी की हो सकती है? वाह! बहुत प्यारा है।)
फिर कुछ और स्क्रॉल के बाद मुझे लगा कि मैंने किसी परिचित को देखा...
(क्या वह 'दी' थी?)
तभी वह अचानक कहीं से आया और मेरे हाथ से छीन लिया और मैं पकड़े जाने के डर से वहीं जमी गई थी।
"तुम कब आये?", मैं उसका ध्यान दूसरी तरफ खींचना चाहती थी। मैंने दरवाज़े या उसके प्रवेश करने की आवाज़ भी नहीं सुनी।
भगवान का शुक्र था कि उसका चश्मा स्क्रीन का प्रतिबिंब दिखा रहा था।
(यह मामला करीबी था! मुझे लगता है कि उसने इसे नहीं देखा होगा? इसमें वृषाली और उसके परिवार की बहुत सारी तस्वीरें हैं लेकिन यह मुख्य रूप से उसकी दी की तस्वीर है।)
"हाह!",
(अगर उसने देख लिया होता तो मुझे क्या कहा जाता? पीछा करने वाला या विकृत? किसे परवाह है।)
(इतना करीब...) वृषा मेरे कुछ ज़्यादा ही करीब था।
वह जम गई थी, "वृषाली, क्या तुम्हें नहीं लगता कि किसी के फोन में घुसपैठ करना एक बुरी आदत है? खासकर जब उसने तुम्हें इजाजत नहीं दी हो?...",
वह अभी भी जमी हुई थी लेकिन जवाब दिया, "यह मेरा इरादा नहीं था, वो...बस...गलती से फिसल गया।" वो सिर झुकाकर, "...मुझे क्षमा करें।",
"बस है। बस है! सिर झुकाकर तुम एक कुत्ते बच्चे जैसी दिख रही हो।", मैंने उसे चिढ़ाया, यह जानने के लिए कि वह मुझसे भिड़ेगी या नहीं। मैंने सोचा कि वह रोने या शिकायत करने वाली होगी, लेकिन वह बस मुझे देखती रही।
"तुम क्या घूर रही हो?", मैं घबरा गया,
उसकी आँखें मुझ पर टिकी थीं, तब मुझे याद आया। मैं खून के धब्बे मिटाना भूल गया।
"मिस्टर वृषा?",
वह अचानक गंभीर हो गई, "हाँ?",
"तुम्हारे हाथ से खून बह रहा है! तुम्हारे हाथ से खून बह रहा है!", उसना घबराकर कहा,
"यह ठीक नहीं है। क्या आपके पास फर्स्ट एड्स बॉक्स है?", वो इज़्ज़त देकर काट भी रही थी, "सुनाई नहीं देता?! फर्स्ट! एड्स! बॉक्स!?",
"नाइट स्टैंड का दूसरा दराज।",
मेरी शर्ट पहले से ही फटी हुई थी इसलिए बाह के हिस्से से मैंने उसे फाड़ दिया। उसने दवाइयाँ लगाईं और उसे अच्छी तरह से लपेटा?
उसकी पट्टी बाँधने की क्षमता इतनी अच्छी नहीं थी, लेकिन उसके छोटे हाथों को देखते हुए यह ठीक था।
(उसके हाथ से दोगुने में पट्टी बाँधना मुश्किल होगा।)
"दर्द हो रहा है क्या?", उसने चिंतित होकर पूछा,
"क्या तुम ठीक हो?",
वह मेरे सामने खड़ी हो गई।
"कुछ कहना है?", मैंने पूछा,
पहले तो वह हिचकिचाई फिर कहा,
"वो... मतलब ये मिस्टर बिजलानी मुझे नहीं पता कि आप जैसा अरबपति को मेरे जैसे आम आदमी से क्या चाहिए जिसके पास अभी तक नौकरी भी नहीं है?",
(एक द्वीपवासी होने के नाते मेरे लिए इस सबका कोई मतलब नहीं बनता। हमारे रास्ते कभी गलती से भी मिल नहीं सकते। इन सबके पीछे का कारण क्या है?)
“तुम्हारी नौकरी?", (वह अत्यधिक अंतर्मुखी है, इसलिए उसके लिए नौकरी ढूंढना कठिन होगा।)
वह हकलाते हुए बोली, "कि...मैंने अंततः डिग्री प्राप्त करने में कामयाबी हासिल कर ली...लेकिन अपने स्वभाव के कारण नौकरी के लिए आवेदन करने में हिचकिचा रही थी। तो दी...मेरी बड़ी बहन ने मेरे लिए आस्था आयुर्वेदिक भंडार में साक्षात्कार का समय तय कर दिया।",
(आस्था आयुर्वेदिक भंडार?) "फिर?",
"फिर क्या, आज मेरा साक्षात्कार था।", वह अभी भी डरी हुई थी, लेकिन उसका मुँह कड़वा था,
मैं एक क्षण के लिए रुका, "अपने आप को परिभाषित करो।",
"माफ करना?", वह पीली पड़ गई,
"अपने आप को परिभाषित करो। तुम्हारी क्षमता, तुम्हारी शिक्षा, तुम्हारी प्रतिभा, सब। अभी!", मैंने फिर दोहराया,
"वो...",
वृषाली ने असमंजस में मुस्कारा कहना शुरू किया, "मैं एक औसत से नीचे का छात्रा थी जो परीक्षा में हमेशा साठ प्रतिशत अंक प्राप्त करती है। मेरे शिक्षक मुझे कक्षा में नहीं देखते थे, मेरा पास ऐसा कोई भी नहीं है जिसे मैं मित्र कह सकूँ। (मेरी माँ ही मेरी एकमात्र मित्र हैं।) मैं हमेशा एकाकी जीवन जीती आई हूँ। मुझे अकेले रहना पसंद है और मैं हर काम में गड़बड़ कर देती हूँ। मुझसे सामान टूटना आम बात है। इतना ही।",
"तुम्हारे भाई-बहन?",
"उनका अपना जीवन है। कौन अटकी हुई घड़ी पर हर समय, समय देखता है? यह घड़ी सालों पहले जहाँ अटकना था अटक गई उसका और कुछ नहीं हो सकता।",
मैं बस चुपचाप बैठा रहा, उसकी हर एक शब्द और मुस्कान, उसके दर्द को छिपाए रखे थे।
"तुमने अपनी डिग्री कहाँ तक पूरी की?",
"बारवही के बाद, बी.कॉम फिर सी.एम.ए.।",
"तो अपना परिचय उस हिसाब से दो।",
उसने गहरी साँस ली, "नमस्ते, मैं सी.एम.ए. वृषाली राय हूँ...",
'धप!'
"?", मैंने उसे देखा,
"?", उसने मुझे देखा।
हम दोनों ने एक दूसरे को अचंभे से देखा।
हर शब्द पर वो धीरे-धीरे एक कदम पीछे हटती गई और दीवार से जा टकरा गई।
"तुम अपना परिचय भी नहीं दे सकती? तुम तेईस साल की हो और अभी भी अपना परिचय नहीं दे सकती!", (इस बच्ची का क्या होगा?)
वह बस मुझे देखती रही,
"हाह! तुमसे मिलकर खुशी हुई। मैं सी.ए, सी.एम.ए, सी.एस वृषा बिजलानी हूँ। जैसा कि तुम पहले ही पढ़ चुकी होगी, मैं बिजलनी फूड्ज़ का उत्तराधिकारी हूँ। इतना डर कर तुम जी नहीं पाओगी। तुम स्वतंत्र हो। स्वतंत्रतापूर्वक तुम घूम सकती हो और जो चाहो माँग सकती हो। हिचकिचाना मत।",
वह शांत खड़ी रही।
"वृषाली, क्या तुम नाइट स्टैंड के ऊपर रखे फाइलों को ला सकती हो?"
वह फाइले उठा रही थी कि उससे बगल में रखी अंगूठी की डिब्बी गिर गई।
वह अपने बारे में सही थी।
अंगूठी बक्से से बाहर गिरकर वृषाली के पैरों तक लुढ़क गई। वह उसे उठाने के लिए झुकी, "रुको! मत उठाना!", मैंने चिल्लाकर रोकना चाहा लेकिन देर हो चुकी थी और उसने इसे उठा लिया। इससे मुझे और उसे दोनों को बिजली जैसा झटका महसूस हुआ। (मुझे इसके काम करने कि इस शैली से नफरत है!!)
वह फिर उठाने गयी, "रुको! इसे मत छुओ!",
वह घबरा गई और माफ़ी माँगने लगी, "मुझे क्षमा करना। मुझे माफ करना! मेरा ऐसा करने का इरादा नहीं था। मुझे क्षमा करे।",
मैंने उसके होठों पर उंगली रखकर उसे चुप कराया, "श्श्श, यह कोई बड़ी बात नहीं है।",
"मुझे माफ कीजिए।", वह अब भी माफी माँग रही थी।
मैं हार मान चुका था।
मैंने बिखरी हुई फाइलें लीं और कहा, "इसे पढ़ने के लिए कुछ समय निकालो। यदि तुम चाहो तो इस स्टडी का उपयोग कर सकती हो। फिलहाल, तुम रात के खाने में क्या चाहते हो? हम कुछ मँगा सकते है।",
उसने नज़रे झुकाकर कहा, "कुछ भी चलेगा।",
"अरे बच्चा, तुम क्या चाहती हो वो मैंने वो पूछा। अपनी इच्छा बताओ। अपनी बात रखो और तुम ये मत भूलो कि तुम्हारा परिवार अब भी मेरे हाथों में है। डरपोक बनना बँद करो!", मैंने धमकी दी।
(क्या ये इस आदमी नयी चाल है?) "पुलाव...", उसने धीरे से कहा,
(कम से कम यह उसने मुँह तो खोला। बुद्धू बच्चा।)
हमने छह बजे उसके इच्छानुसार जल्दी खाना खाया। अब वह स्टडी में मेरे साथ बैठती थी और जो कुछ मैं उसे उपलब्ध कराता था उसे पढ़ती थी तथा जब भी उसे कोई समस्या होती थी तो वह मुझसे पूछती थी। पढ़ाई के दौरान ही वह बातुनी थी।
उसे समुद्र का दृश्य देखना बहुत पसंद था पर उसे अपने कमरे, रसोईघर, स्टडी और कुछ अन्य स्थाने जहाँ से बाहर का कोई संपर्क ना हो और जो हमारे नज़रो के सामने हो उन्हें छोड़कर उसे कहीं भी जाने की अनुमति नहीं थी। यह उसकी अपनी सुरक्षा के लिए था। मेरी कुर्सी के पीछे समुद्र के दृश्य वाली खिड़की थी इसलिए मैंने उसे अपनी कुर्सी पर काम करने की अनुमति दी थी।
"तुमने अपने जीवन में किसी को स्वीकार करना शुरू कर दिया, वृषा।", दाईमाँ ने फिर से शुरू दिया,
"ऐसा कुछ नहीं है दाईमाँ। वह मेरे लिए सिर्फ एक मोहरा है।",
"ओह सच में? कर्म बेहतर बोलते हैं। अपनी नियति का प्रयोग करने से तुम्हें अच्छे परिणाम मिलेंगे। उसके साथ अच्छा व्यवहार करो।",
वह चली गई।
(उसके साथ अच्छा व्यवहार करना...हाँ?)
मैंने तो बस उसे अगवा कर उसे मिटाना चाहता था, लेकिन चीजें कुछ और ही निकलीं। मैं किसी निर्दोष परिवार को बदनाम और पीड़ित नहीं देख सकता। मैं जानता था कि वे अपने बुजुर्गों के कारण कैसे कष्ट झेल रहे थे, लेकिन यह केवल एक संक्षिप्त बात थी जो मैं जानता था और मैं जानता हूँ अंदर की बदसूरती कैसी और कितनी हो सकती हैं। हालाँकि मुझे पता था कि वे चीजों को संभालने में सक्षम थे, लेकिन मैंने हस्तक्षेप किया। मैं खुद को उन्हें इस तरह छोड़ने के लिए तैयार नहीं कर सका।
जिस दिन मैं वहाँ गया, मैंने उसकी माँ को अपमानित होते देखा, "चरित्रहीन माँ की बेटियाँ भी चरित्रहीन निकली। एक ने एक विवाहित व्यक्ति की गृहस्थी बर्बाद की और दूसरी को अपने आशिक के साथ मिलकर अपने ही अपहरण की साजिश रची।",
वहाँ एक और महिला थी जो वृषाली की माँ से थोड़ी बड़ी लग रही थी, "कौन जानता है यह किसकी योजना थी?",
वहाँ आस-पास कोई पुरुष नहीं थे। वहाँ जाने से पहले मैंने उसके पिता की दुकान पर जा सब सुनिश्चित किया। यह बहुत सामान्य था लेकिन घर असली नरक था। वह वृषाली से अधिक शांत, अधिक दृढ़ और अधिक आत्मविश्वासी थी। उन्होंने बस इतना कहा, "वो तो मैं ही होऊँगी। आखिर यही सीखा है मैंने- तुमलोगो से!", वह बहुत क्रूर थी, यह उन पर बम की तरह था।
वे सब एक पल के लिए चौंक गए, फिर उन्होंने फिर से अपमान करना शुरू कर दिया, "हाँ? यह वही कह रहा है जिसने मेरे मासूम भाई को बहकाया और अब इस बड़े ज़मीन और तीन मंजिला इमारत में रह रही हो।", तभी उसने मुझे देखा और ताने मारते हुए कहा, "ओह! आपका दामाद आ रहा है, भा-भी! लेकिन वह मोटी कहाँ है? ओह! यह मत कहना की चोरी के दो दिन बाद तुम्हें अहसास हुआ कि तुमने गलत लड़की को ठगा है तो क्या अब तुम यहाँ उस मोटी को लौटाने आए हो? लेकिन माफ़ करना, यहाँ वापसी की नीति नहीं है।",
उसकी माँ वहीं हैरान खड़ी रही। मैंने विनम्रता से मना कर दिया, "अरे नहीं! मैं कोई मूर्ख नहीं हूँ जो कोई कीमती चीज फेंक दूँ। मेरे पास देने के लिए एक अद्भुत सौदा है, सुनना चाहेंगे?", वह तो बस एक जोंक थी जो केवल दूसरों पर जोंक लगाकर ही जीवित रह सकती थी।
वह तुरंत सहमत हो गईं और दस मिनट के भीतर सभी को इकट्ठा कर लिया। वहाँ उसके दादा, दादी, उसके पिता, उसकी माँ, भाई और वह महिला, उसकी बुआ थी, सभी लोग एकत्रित हुए। जिस समय वे इकट्ठे हुए थे, उसकी माँ बहुत शांत थी और किसी बात से डरी हुई थी। उस दिन उसका भाई भी बहुत चुप था। पूरा परिवार मेरे सामने था।
"आप किस बारे में बातचीत करना चाहतें है?", उसके दादाजी ने पूछा,
"मेरे साथ अजनबी जैसा व्यवहार मत करिए। अपने बेटे को बुला सकते है?",
उसने बड़े आराम हे कहा, "देखो, वह वही है। जिसकी बच्ची तुम्हारे कब्ज़े में है।", कहे भी क्यों ना? उसकी ज़िंदगी इसी द्वारा रचित थी।
मेरे सहायक ने कागज़ मेज़ पर फेंकेते हुए कहा, "विवेक राय, सूर्यकांत राय के बेटे ने नागराजन राय के नाम पर करोड़ो का लोन लिया था।",
"यह क्या है?", उन्होंने पूछा,
"पहला भुगतान वो बच्ची थी और अब दूसरा भुगतान की पारी। यह पूरी ज़मीन इस घर के साथ। घर को तुरंत खाली किया जाए।", मैंने ऐलान किया,
वह मुस्कुराया और बोला, "मुझे लगता है आपने गलत नाम कहा है। यह नागराजन राय है ना कि विवेक राय! हस्ताक्षर और फोटो में यह दिख रहे हैं, वह नहीं।",
"कोई गलती नहीं है। माफिया गलती नहीं करते। आप कुत्ते की दिखाकर बोल दोगो कि ये भेड़ है, मान लोगे? उस एग्रीमेंट के अनुसार जो मेरा है, मैं वो ले रहा हूँ। तुम्हारा घर, तुम्हारी दुकान, तुम्हारी ज़मीन सब कुछ। इसे शाम तक खाली कर दो।",
उसकी बुआ का डैली सोप शुरू हो गये , "तो इसीलिए तुमने उसका अपहरण किया?",
पारिवारिक नाटक शुरू हो गया, जिसमें वृषाली के पिता और माता को लालची और गैरज़िम्मेदार होने के लिए कोसा गया। उन्होंने उन्हें भुगतान के लिए उत्तरदायी ठहराया और तत्काल उनसे अपना रिश्ता तोड़ लिया।
"तो, उन्हें अस्वीकार किया जा रहा है। यह है आपके ऋणी जो करना है कर लीजिए।", उनके दादा ने उन्हें सामने प्रस्तुत कर दिया,
उसकी माँ, अपने पति का हालचाल पर तिरछी नज़र रख रही थी और वह हर किसी से अधिक हैरान थे।
"वाह! गिरगिट आपकी तुलना में बहुत धीमा है। तुम, युवा पीढ़ी!", विरासत राय को अंकित कर कहा,
"अपने दादा-दादी और अपनी चाची की सारी चीज़ों को सम्मानपूर्वक बाहर फेंक दो।", उसने मुझे उलझन भरी नज़र से देखा, "याद रखो तुम्हारी बहन अभी भी मेरे कब्ज़े में है।", वह मेरे आदमियों को घर के अंदर ले गया जबकि वे मुझ पर चिल्ला रहे थे, मेरे आदमियों ने उन्हें बंदूक दिखाई और वे चुप रहे।
"दादाजी, कागज़ात?", उन्होंने अनिच्छा से मुझे कागज़ात सौंपे, "अब मामला सुलझ गया।",
उस बुआ के डैली सोप और तेज़ हो गया। वह रोने लगीं और बाहर भीड़ इकठ्ठा कर पुलिस को बुलाने के लिए गिड़गिड़ाने लगीं। वह असली ड्रामा क्वीन थी। जब सब भीड़ इकट्ठी हो गई थी, सब वृषाली और उसके परिवार के बारे में बात करना शुरू कर दिया था। तब मैंने अपने आदमी को भेजा,
"मिस्टर विवेक राय, मिस्टर सूर्यकांत राय के बेटे ने अपने छोटे भाई के नाम का उपयोग करके अपनी संपत्ति को जुआ में खो दिया है। और उसने अपने भाई की बच्चों को दांव पर लगाया। अगर किसी को कुछ कहना है तो आपका स्वागत है।", वे सभी डरपोकों की तरह बिखर गये।
तब तक सब कुछ ख़त्म हो चुका था।
बुआ जी ने पैर पटककर कहा, "हम क्यों, वह नहीं!?",
"बुद्धिमान लोग जान जायेंगे।",
"एक बूढ़े आदमी के साथ ऐसा करते हुए, क्या तुम्हें शर्म नहीं आती?", उसने बुढ़ापे का कार्ड खेलने की कोशिश की,
"शर्म किसे आनी चाहिए वो आप देख ले।",
वह आदमी सत्तर साल के बीमार आदमी कहलाने के लिए कुछ ज़्यादा सक्रिय था।
इसे संभालना काफी आसान था। मैं उन्हें घर का उपयोग जारी रखने के लिए राजी करने में कामयाब रहा। मैंने यह भी सुनिश्चित किया कि उनके पड़ोसियों को उनकी कहानी पता चले, उस गाँव के बुजुर्गों श्रीमान स्वामी, श्रीमान श्याम, श्रीमान चेतन ने मेरी मदद की और इस बच्चे के लिए मुझे नहीं पता कि क्या करना चाहिए? कल समझौते के बाद मैं उसके पिता की दुकान पर गया। वह पहले की तरह ही था, ग्राहकों से भरा हुआ। मैंने उसके बारे में सारी जानकारी ली और उसके प्रमाण पत्र ले लिये। इससे पहले उन्होंने उसे मुक्त कराने के लिए अपनी हर संभव कोशिश की थी। मैं उनकी निस्वार्थता से अभिभूत हो गया। मैंने अपने जीवन में ऐसे माता-पिता नहीं देखे जो अपने सभी बच्चों को रत्नों की तरह संजोकर रखते हों-
खट-खट,
अपने विचारों के बीच में मैंने दरवाजे पर दस्तक सुनी, "आ जाओ।",
वृषाली अंदर आई।
"दाईमाँ?", मैंने पूछा,
"उसने कहा कि वह थक गयी है।", उसने दूध का गिलास मेज़ पर रख दिया।
"क्या तुमने दस्तावेज़ पढ़े हैं?", उसने फ़ाइल ली और बहुत धीमी आवाज़ में कहा, "क्षमा करें, लेकिन मैं इसे ठीक से समझ नहीं पा रही हूँ। मुझे मार्गदर्शन चाहिए।",
जैसा कि उसकी माँ ने कहा था, वह वास्तव में एक नाजुक बच्ची थी , "ठीक है। कल से मैं तुम्हें व्यापार का हर पहलू सिखाऊँगा।",
अगले दिन से हमने प्रशिक्षण शुरू कर दिया था।
आमतौर पर छात्र को अपने शिक्षक का इंतजार करना चाहिए, पर यहाँ तो शिक्षक को ही अपने छात्रा का इंतजार करना पड़ रहा था। वह सारे काम में व्यस्त रहती थी। हमारे पास सहायकों की एक सेना थी, लेकिन दाईमाँ केवल उसी पर निर्भर थी। ऐसा नहीं था कि वह उसकी परीक्षा ले रही थी, बल्कि ऐसा था कि वह सारी ज़िम्मेदारियाँ उसे सौंप रही थी।

पिछले दो दिनों से वह अधिक सुस्त हो गई थी और ऐसा लग रहा था जैसे उसे दर्द हो। हमेशा की तरह पूछने पर उसने साफ इंकार कर दिया।