Lout aao Amara - 6 in Hindi Thriller by शिखा श्रीवास्तव books and stories PDF | लौट आओ अमारा - भाग 6

Featured Books
Categories
Share

लौट आओ अमारा - भाग 6

जब वो दोनों पुलिस स्टेशन में इंस्पेक्टर रंजीत से मिले तो इंस्पेक्टर रंजीत ने अफसोस भरे स्वर में कहा "मेरी पूरी टीम ने बहुत कोशिश की लेकिन हम आपकी बेटी का पता नहीं लगा सके।"

संजीव ने इंस्पेक्टर रंजीत को अमारा के अतीत से जुड़ी हुई और कुलगुरु की कही हुई सारी बातें जब बताईं तब इंस्पेक्टर रंजीत भी सकते में आ गए।
उनकी बातों पर अविश्वास करने की कोई वजह नहीं थी क्योंकि चलती गाड़ी से अमारा को गायब होते देखने वाले बहुत से चश्मदीद थे।

इसलिए उन्होंने आगे कोई सवाल किए बिना पायल और संजीव को लिखित आदेश दे दिया कि वो जंगल में जा सकते हैं, साथ ही कहा कि वो भी उनके साथ जाकर जंगल की सीमा के बाहर उनकी प्रतीक्षा करेंगे।
इस वक्त यही उनका फ़र्ज़ है।

पायल और संजीव ने हामी भरी और एक बार फिर जंगल की तरफ बढ़ चले।

गुफा में कैद अमारा की बेहोशी जब इस बार टूटी तो उसने अपने आस-पास रोशनी को महसूस किया।

धीरे-धीरे आँखें खोलते हुए अमारा ने देखा ये रोशनी वहीं गुफा में बने हुए एक यज्ञकुंड से आ रही थी।

एक विशालकाय काला व्यक्ति जिसके घने लंबे बाल चारों ओर बिखरे हुए थे, अपनी लाल आँखों से अग्नि को घूरते हुए कर्कश आवाज़ में कोई मंत्र पढ़ते हुए अग्नि में रक्त की आहुति दे रहा था।

उसके आस-पास खोपड़ियों का ढ़ेर पड़ा हुआ था। उन खोपड़ियों को देखकर लग रहा था जैसे वो छोटे-छोटे बच्चों की खोपड़ियां थीं।

इस भयानक दृश्य को देखकर अमारा के मुँह से चीख निकल गई।

अमारा के चीखने की आवाज़ कानों में पड़ते ही वो आदमी गुस्से में चिल्लाया "चुप रह लड़की, हमारी साधना में बाधा मत डाल।"

लेकिन फिर अगले ही पल अट्टाहास करते हुए उसने कहा "चल बोल ले जितना बोलना है क्योंकि ठीक एक दिन के बाद अमावस्या की रात में तेरी ज़ुबान तो हमेशा के लिए बन्द होने वाली है।

आह आख़िरकार दस वर्षों के इंतज़ार के बाद वो शुभ घड़ी आ ही गई जब मैं आखिरी बलि देकर अपने देवता को प्रसन्न करूँगा और बदले में वो मुझे इस दुनिया का मालिक बना देंगे, सबसे शक्तिशाली, मौत भी जिसकी गुलाम होगी वो मैं होऊँगा सिर्फ मैं।"

ये सारी बातें सुनकर अमारा की चीख भी मानों उसके गले में अटककर रह गई।

कुछ देर के बाद अपनी साधना पूरी करता हुआ वो आदमी उठा और यज्ञवेदी की अग्नि बुझाता हुआ बोला "अब कुछ देर विश्राम करना चाहिए। लड़की अगर तुझे भूख लगे तो यहीं पड़े हुए मांस के टुकड़े खा लेना और प्यास लगे तो खून पी लेना।
जैसे ही खाने-पीने की इच्छा तेरे मन में जागेगी तेरे बंधन कुछ देर के लिए खुल जाएंगे और फिर अपने आप बंध जाएंगे।

यहाँ से भागने की तो सोचना भी मत क्योंकि इस बार ये असंभव है।"

अपनी बात खत्म करके वो आदमी गुफा से बाहर चला गया और अमारा एक बार फिर अंधेरे में घिर गई।

"खून पीना... मांस खाना..." इन वाक्यों ने उसके नन्हे से दिल को और भी दहशत से भर दिया था।

लेकिन भूख तो उसे लग आई थी। जैसे ही उसके दिल में खाने-पीने की इच्छा जगी उसने देखा सचमुच उसके हाथ-पैर बंधन से आज़ाद हो चुके थे।

अब तक उसकी आँखें अँधेरे में थोड़ा-बहुत देखने की अभ्यस्त हो चली थीं।

उसने आस-पास देखने की कोशिश की कि शायद कोई फल ही गिरा हुआ मिल जाए जिसे वो खा सके लेकिन उसे ऐसा कुछ भी नहीं मिला।

गुफा के दरवाजे को उसने एक बड़े पत्थर से बंद पाया। वो समझ चुकी थी कि अब उसका अंत निश्चित है।

हताश होकर वो दीवार के सहारे बैठी ही थी कि उसने देखा उसके सामने दो चमकीली परछाइयाँ लहरा रही थीं।

उसने ध्यान से देखा तो वो परछाइयाँ उसे किसी महिला और पुरुष की तरह नज़र आईं।

उन परछाइयों ने उसे हाथ बढ़ाकर छूना चाहा लेकिन उनके हाथ अमारा के आर-पार चले गए।

इस दृश्य को देखकर जहाँ एक तरफ अमारा की चीख निकल गई वहीं उन परछाइयों से रोने की आवाज़ें आने लगी।

अमारा ने किसी तरह डरते-डरते उन दोनों से पूछा "आप कौन हैं और इस तरह रो क्यों रहे हैं?"

सहसा उनमें से एक परछाई बोली "मैं तुम्हारी अम्मा हूँ गुड्डो और ये तुम्हारे बाबूजी।"

"क्या? अम्मा? बाबूजी? गुड्डो? ये आप लोग क्या बोल रहे हैं? मेरे पापा तो ट्रेन में छूट गए और मम्मा तो घर पर ही थी। और मेरा नाम भी अमारा है, गुड्डो नहीं।" अमारा का जवाब सुनकर परछाई मुस्कुराते हुए बोली "अमारा... कितना सुंदर नाम रखा है गुड्डो का उन्होंने। हमारी गुड्डो को ज़िंदा रखा उन्होंने। देखिये इसके कपड़े। मतलब वो लोग इसका बहुत खयाल रखते हैं। क्यों गुड्डो क्या तुम्हारे मम्मा-पापा तुमसे बहुत प्यार करते हैं?"

"हाँ क्यों नहीं करेंगे। मैं उनकी एकलौती बेटी हूँ। लेकिन पता नहीं इस वक्त वो कहाँ हैं? मम्मा तो मर ही जाएगी मेरे बिना।" इतना कहकर अमारा एक बार फिर रो पड़ी।

"अच्छा गुड्डो तुम रो मत। देखो जब ये शैतान सोने चला जाता है तब कुछ देर के लिए हमारी बेहोशी टूटती है वरना हम मरने के बाद भी ज्यादातर बेहोश और अशक्त ही रहते हैं। इसलिए अभी हम तुम्हारी थोड़ी सी मदद कर सकते हैं।
हम तुम्हें गुफा के सुरंग से बाहर जंगल तक ले जा सकते हैं जहाँ तुम्हें खाने के लिए फल मिल जाएंगे और कुएं से पानी भी।" दूसरी परछाई ने कहा तो अमारा को थोड़ी सी हिम्मत मिली।

अमारा जहाँ बैठी हुई थी उसके पास ही उन परछाइयों ने अपनी ऊँगली से इशारा किया तो वहाँ की मिट्टी धीरे-धीरे हटती चली गई और अमारा को वहाँ एक रास्ता नज़र आने लगा।

उन परछाइयों के पीछे वो तेज़ी से गुफा से निकली और फल खाकर-पानी पीकर वापस गुफा में आ गई।

अब जब उसकी भूख-प्यास शांत हो चुकी थी तब उसने महसूस किया कि उसके हाथ-पैर एक बार फिर बंध चुके थे।

घबराई हुई अमारा ने उन परछाइयों की तरफ देखते हुए उनसे पूछा "क्या आप बता सकते हैं कि मेरे साथ ये सब क्यों हो रहा है? मैं यहाँ कैसे आ गई? मेरे मम्मा-पापा कहाँ हैं? वो गंदा आदमी कौन है जिसने मुझे यहाँ इस तरह बाँधकर रखा है?"
क्रमशः