Fagun ke Mausam - 13 in Hindi Fiction Stories by शिखा श्रीवास्तव books and stories PDF | फागुन के मौसम - भाग 13

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फागुन के मौसम - भाग 13

जब मंच संचालक ने वैदेही से पूछा कि क्या राघव इस समय यहाँ उपस्थित है तब वैदेही ने 'न' में सिर हिला दिया।

"उम्मीद है अगले वर्ष के 'मैगियो म्यूजिकल फियोरेंटीनो' में हम मिस्टर राघव से भी मिल सकेंगे और आपके नृत्य के साथ-साथ उनकी बाँसुरी की धुन भी यहाँ इस मंच पर गूँजेगी।"

संचालक की इस बात पर वैदेही ने धीमे स्वर में जैसे स्वयं से ही कहा, "ईश्वर करे ऐसा ही हो।"

वैदेही जो अपनी माँ शारदा जी के साथ पिछले पाँच वर्षों से फ्लोरेंस की ही स्थायी निवासी बन चुकी थी, कार्यक्रम की समाप्ति के पश्चात जब अपने घर जाने के लिए बाहर आयी तब कार में बैठते हुए शारदा जी ने उससे कहा, "वैदेही बेटा, तुम उस राघव को भूल क्यों नहीं जाती? तुम कब ये स्वीकार करके अपने जीवन में आगे बढ़ोगी कि अब हम अपने बीते हुए कल की तरफ वापस नहीं लौट सकते हैं, कभी नहीं।"

"राघव मेरा बीता हुआ कल नहीं है माँ। ऐसा उसी दिन होगा जिस दिन मेरी साँसें थम जायेंगी।
मुझे तो समझ में ही नहीं आता कि आख़िर आप अपने देश वापस क्यों नहीं जाना चाहती हैं? मेरा दम घुटता है इस विदेशी धरती पर। मुझे अपने लोगों के बीच वापस जाना है माँ प्लीज़।"

"नहीं, हम कभी भारत वापस नहीं जायेंगे। और अब आगे इस विषय पर मैं कुछ सुनना नहीं चाहती हूँ।
वैसे अब तुम वयस्क हो चुकी हो, अपने जीवन की मालकिन बन चुकी हो, इसलिए अगर तुम अपनी इस माँ की कृतघ्न बेटी बनकर मुझसे सारे रिश्ते तोड़कर जाना चाहो तो जा सकती हो। मैं तुम्हें नहीं रोकूँगी।"

शारदा जी के ये कठोर वचन सुनकर वैदेही की आँखों में आँसू आ गये।
उसे इस बात का भली-भाँति अहसास था कि उसकी सगी माँ की मृत्यु के बाद शारदा जी ने आज तक उसे हृदय से लगाकर रखा है।
उसकी परवरिश में, उसे लाड़-प्यार देने में उन्होंने कभी कोई कमी नहीं की।
उसकी पढ़ाई-लिखाई, उसके शौक सब उन्होंने उसकी इच्छा से ही करवाये और आज अगर वो नृत्यांगना बनकर कला जगत में चमकते हुए सितारे के रूप में उभर रही है तो ये भी वैदेही की अपनी इच्छा ही थी, न की शारदा जी का उस पर थोपा हुआ निर्णय।

बस एक भारत वापस जाने के नाम से ही पता नहीं क्यों शारदा जी इतनी कठोर हो जाती थीं कि उन्हें वैदेही की पीड़ा नज़र नहीं आती थी।
********

होली की छुट्टी समाप्त होने के बाद सब लोग वापस अपने काम पर लग चुके थे।

अपराजिता निकेतन की वर्षगाँठ का जश्न पूरा होने तक राघव और तारा ने वैदेही गेमिंग वर्ल्ड के अगले प्रोजेक्ट का काम रोक दिया था ताकि वो इस जश्न को यादगार बनाने में दिव्या जी की पूरी सहायता कर सकें।

हर्षित जब इवेंट मैनेज़र पांडेय को लेकर दिव्या जी से मिलने उनके दफ़्तर पहुँचा तब तारा भी उनके साथ ही थी।

दिव्या जी, नंदिनी जी और आश्रम की कुछ अन्य महिलाओं ने पांडेय को अपने आइडियाज़ बतायें कि वो कहाँ पर जश्न के लिए मंच लगाना चाहते हैं, सजावट से लेकर किस तरह के कार्यक्रम करवाना चाहते हैं।
साथ ही दावत के मेन्यू की भी एक पूरी तैयार लिस्ट उन्होंने पांडेय को तत्काल सौंप दी और उससे आग्रह किया कि वो जल्दी से जल्दी अपना काम शुरू कर दे क्योंकि अब वर्षगाँठ आने में ज़्यादा दिन नहीं बचे थे।

सारी बातों को अच्छी तरह समझने के बाद पांडेय ने हर्षित से कहा कि वो शाम तक उसे मंच सज्जा वगैरह की कुछ तस्वीरें भेज देगा जिसके आधार पर हर्षित आश्रम के इस ख़ास अवसर की एडवरटाइजमेंट बना सकता है।

हामी भरते हुए हर्षित ने जब तारा से पूछा कि वो भी उसके साथ अपने दफ़्तर चलेगी क्या तब तारा ने उससे कहा कि उसे कुछ काम है, इसलिए वो थोड़ी देर में आ जायेगी।

हर्षित और पांडेय के जाने के बाद जब नंदिनी जी और दूसरी महिलाएं भी अपने-अपने काम में व्यस्त हो गयीं तब दिव्या जी को अकेला पाकर तारा ने सहसा उनसे कहा, "मौसी, क्या आप जानती हैं वैदेही कहाँ है?"

"वैदेही?" दिव्या जी ने चौंकते हुए कहा तो तारा बोली, "हाँ मौसी, हमारे राघव की वैदेही।"

"तुम्हें उसके विषय में कैसे पता चला तारा?"

"राघव भांग के नशे में बस उसे ही याद कर रहा था मौसी। प्लीज़ मुझे बताइये वो कहाँ है?"

तारा की व्यग्रता देखकर दिव्या जी ने कहा, "दस वर्ष पूर्व तक वैदेही अपनी नयी माँ शारदा जी के साथ सिडनी में रह रही थी लेकिन फिर वो दोनों वहाँ से कहीं और चली गयीं।
चूँकि तब तक वैदेही अठारह वर्ष की हो चुकी थी इसलिए अब शारदा जी मुझे उसकी सारी जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं थीं।
फिर अपने-अपने जीवन की व्यस्तता में हमारा कोई संपर्क नहीं हो सका और दो वर्ष पूर्व यहाँ के नृत्य संस्थान की उनकी एक परिचित से मुझे पता चला कि अब शारदा जी सिडनी में नहीं रहती हैं और उनका नया पता या फ़ोन नंबर किसी के भी पास नहीं है।"

"अच्छा क्या शारदा आंटी के परिवार में भी यहाँ कोई नहीं है जिससे हमें उनके विषय में कुछ पता चल सके?"

"नहीं बेटा, वैदेही को गोद लेने से तीन वर्ष पूर्व ही वो अपने पति से तलाक ले चुकी थीं और इस कारण से उनके मायके वालों ने भी उनसे हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ लिया था कि कहीं अब वो मायके में हक जमाकर वहीं रहने न चली आयें।
बस नृत्य संस्थान में ही सहकर्मियों के रूप में उनके कुछ परिचित थे।"

दिव्या जी की सारी बातें सुनने के बाद अब तारा के चेहरे पर उदासी और निराशा के बादल घिर आये थे।

सहसा यश के सुझाव को याद करते हुए उसने दिव्या जी से कहा, "मौसी हम आश्रम के वर्षगाँठ की एडवरटाइजेंट को सोशल मीडिया पर स्पॉन्सर्ड करवा रहे हैं ताकि वो ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँच सके।
अगर ईश्वर ने चाहा तो ये एडवरटाइजमेंट वैदेही तक भी ज़रूर पहुँचेगा।
और अगर इसे देखने के बाद उसने आपसे संपर्क किया तो आप बिना देर किये मुझे बताइयेगा। ठीक है न?"

"बिल्कुल बेटा। मैं ईश्वर से प्रार्थना करूँगी कि वो मेरे राघव को उसके जीवन की हर ख़ुशी दें।" दिव्या जी ने नम आँखों से कहा तो तारा उन्हें प्रणाम करके अपने दफ़्तर के लिए निकल गयी।

दफ़्तर पहुँचकर जब तारा ने राघव के केबिन के दरवाजे पर नॉक किया तब प्रतिउत्तर में अंदर से राघव की कोई आवाज़ उसे सुनायी नहीं पड़ी।

तारा ने अब धीरे से दरवाजा खोला तो उसने देखा अपनी कुर्सी पर सिर टिकाये हुए राघव आँखें बंद करके किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था।

"बॉस, मुझे आपसे कुछ बात करनी थी।" तारा की आवाज़ सुनकर राघव ने चौंकते हुए आँखें खोलीं और कुछ पल बस मौन सा वो तारा की तरफ देखता रहा जैसे तारा के शब्द उसके कानों से टकराकर शून्य में खो गये हों।

जब राघव की चेतना वापस लौटी तब उसने हड़बड़ाते हुए कहा, "तुम कुछ कह रही थी तारा?"

"मुझे आपसे कुछ बात करनी है।"

"किस विषय में?"

"यही कि अभी तक हमने मार्केट में जो चार गेम्स लॉन्च किये हैं अब अगर हम उनका एक कॉम्बो पैक रिलीज करें तो कैसा रहेगा?"

"ये तो अच्छा आइडिया है। तुम इस पर काम शुरू कर दो।"

"अच्छा, आपने हमारे अगले प्रोजेक्ट के विषय में कुछ सोचा है कि उसका मुख्य थीम क्या होगा?"

"इतिहास। हम किसी ऐतिहासिक जगह में घूमने के आधार पर अपने अगले गेम की रूपरेखा बनायेंगे।"

"अरे वाह, ये तो बहुत ही अच्छा आइडिया है। वैसे इसके लिए कोई ख़ास जगह है आपके दिमाग में?"

"अभी तक तो नहीं। हम सब मिलकर सोच लेंगे।"

"अच्छा ठीक है। तो फ़िलहाल मैं अपने केबिन में जाकर कॉम्बो पैक वाला काम शुरू करती हूँ।"

"ठीक है।" इतना कहकर राघव ने वापस अपनी आँखें बंद कर लीं।

अपने केबिन में जाते हुए तारा राघव की हालत के विषय में सोचकर बहुत परेशान हो गयी थी।

उसने पहले कभी राघव के चेहरे पर इतना तनाव नहीं देखा था जितना अभी कुछ सेकंड पहले उसने महसूस किया था जब उसकी आवाज़ सुनकर राघव चौंक पड़ा था।

राघव तब भी कभी उसे इतना डिस्टर्ब नहीं लगता था जब अपनी पढ़ाई पूरी करने के उद्देश्य से पैसे कमाने के लिए वो दिन-रात बिना थके मेहनत करता था।

"क्या वो मेरे और यश के रिश्ते के कारण तनाव में है कि हम अपनी निजी ज़िन्दगी में सेटल होने जा रहे हैं लेकिन वो वैदेही के बिना अकेला है, और न जाने कब तक अकेला ही रहेगा?

मेरे ख़्याल से मुझे उससे साफ-साफ बात करनी चाहिए लेकिन अभी नहीं दफ़्तर के बाद।"

अपने आप से बातें करते हुए तारा ने किसी तरह अपने बेचैन मन को शांत किया और फिर वो गंभीरता से अपने काम में लग गयी।
क्रमश: