Yaara Teri yaari in Hindi Short Stories by Vijay Sanga books and stories PDF | यारा तेरी यारी

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यारा तेरी यारी

मै आज तीन दोस्तों की कहानी सुनाने जा रहा हूं , जो हर कदम पर एक दूसरे का साथ देने के लिए तैयार खड़े रहते थे। उन तीनो की दोस्ती देखकर लोग उन्हे कहते थे की वो तीनो दोस्त नही बल्कि भाई ज्यादा लगते थे।

ये कहानी है विजय सुनील और मंगल की। तीनो दोस्त ऐसे मिल जुलकर रहते थे जैसे वो दोस्त नही बल्कि एक दूसरे के भाई हों। तीनो के परिवार वाले भी उन तीनो को अपने ही बच्चे मानते थे। वो तीनो हमेशा एक दूसरे के परिवार वालो की मदत के लिए भी तैयार रहते थे।

मई का महीना था , गर्मियों का मौसम चल रहा था। विजय सुनील और मंगल एक दिन आम तोड़ने के लिए एक बगीचे मे गए हुए थे। उन्हे अंदाजा भी नहीं था की जिस बगीचे मे वो तीनो आम तोड़ने गए थे उस बगीचे मे कब्रिस्तान बना हुआ था। वो तीनो पहले भी उस बगीचे मे आम तोड़ने के लिए जा चुके थे, लेकिन उस दिन शायद उनकी किस्मत खराब थी..! उन्हे अंदाजा भी नहीं था की उस दिन उनके साथ क्या होने वाला था।

तीनो दोस्त आम तोड़कर घर तो आ गए थे, लेकिन उन्हे एहसास भी नही था की वो अपने साथ कितनी बड़ी मुसीबत घर लेकर आ गए थे। वो तीनो विजय के घर पर आमों का हिस्सा कर रहे थे की तभी अचानक से सुनील को अपनी पीठ पर कुछ भारी भारी sa महसूस होने लगा। सुनील को ऐसा लग रहा था मानो कोई उसके कंधे पर बैठा हो...!

जैसे ही विजय ने सुनील को झुका हुआ देखा, तो उसने मुस्कुराते हुए उससे पूछा, “अबे सुनील...! तू ऐसे कुबड़े की तरह क्यों बैठा हुआ है?”

विजय की बात सुनने के बाद जब मंगल का ध्यान सुनील पर गया, तो उसने ने उसका मजाक उड़ाते हुए कहा, “अबे आम बिन बिन कर तेरी पीठ अकड़ गई क्या..?”

मंगल की बात सुनकर विजय को हंसी आ गई। लेकिन सुनील बहुत दर्द में था। उसकी पीठ पर वजन बढ़ता जा रहा था। “अरे भाई मुझे बहुत अजीब सा लग रहा है। ऐसा महसूस हो रहा है जैसे कोई मेरे कंधे पर बैठा हो...!”

सुनील की बात सुनकर विजय और मंगल को लगा वो मजाक कर रहा है। इसलिए उन दोनो ने सुनील की बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। तभी विजय पीने का पानी लेने के लिए किचन मे जाने लगा। किचन से जब विजय पानी लेकर आ रहा था, तभी उसकी नजर अलमारी के शीशे पर गई। उसने देखा सुनील के कंधे पर एक सफेद कपड़े पहना हुआ एक भयानक सा प्रेत बैठा हुआ था। डर के मारे विजय के हांथ से पानी की बॉटल छूट कर नीचे गिर गई।

विजय घबराते हुए सुनील और मंगल के पास गया और फिर धीरे से मंगल के कान मे कहा, “मंगल...! तू अभी के अभी मेरे साथ चल, मुझे तुझे कुछ दिखाना है।”

मंगल को समझ नही आ रहा था की विजय अचानक से इतना घबराया हुआ सा क्यों लग रहा था..! और वो उसको क्या दिखाना चाहता था? वहीं सुनील आम खाने मे लगा हुआ था ।

विजय मंगल को अपने साथ लेकर अलमारी के पास पहुंच गया। वहां पर जाकर विजय ने मंगल को अलमारी के शीशे मे देखने के लिए कहा। जैसे ही मंगल ने शीशे मे देखा, उसकी तो सिटी पिट्टी ही गुल हो गई थी। वो घबराहट के मारे थरथराते हुए लड़खड़ी आवाज मे विजय से बोला, “अबे ये सुनील के कंधे पर इतना भयानक सा कौन बैठा हुआ है? और ये सिर्फ आईने मे ही नजर क्यों आ रहा है?”

मंगल की बात सुनकर और उसको घबराता हुआ देख कर विजय ने उसको शांत होने के लिए कहा। उस समय घर पर विजय के मम्मी पापा नही थे, वो दोनो काम पर गए हुए थे। अब विजय और मंगल को ही कुछ करना था।

“मंगल एक काम कर , तू यहीं सुनील के पास बैठ, मैं किसी बड़े को बुला कर लाता हूं।” विजय ने मंगल से जैसे ही ये कहा, मंगल हैरानी भरी नजरों से विजय को देखते हुए बोला, “अबे तेरा दिमाग खराब है क्या? इस भूत प्रेत के साथ तू मुझे अकेला रहने के लिए कैसे बोल सकता है? पहले ही मेरी फटी पड़ी है, और तू मुझे यहां अकेला रहने के लिए बोल रहा है...! मै अकेला यहां नही रूकने वाला।”

मंगल की बात सुनने के बाद विजय ने उसको समझाते हुए कहा, “देख भाई...! अगर हमने जल्दी से कुछ नही किया तो सुनील को कुछ भी हो सकता है...! उसके कंधे पर कोई लड़की नहीं बल्कि एक प्रेत चढ़ा हुआ है। वो सुनील के साथ कुच्ची मुच्ची करने के लिए उसके कंधे पर नही चढ़ा हुआ है।”

“अबे साले ऐसे समय पर तुझे कॉमेडी सूझ रही है। एक काम कर तू यहां पर रूक, मैं किसी को बुलाकर लाता हूं।” मंगल ने सुनील को ऐसी हालत मे देखते हुए विजय से कहा। लेकिन उसको अंदाजा नहीं था की उस समय विजय उससे ज्यादा घबराया हुआ था। लेकिन वो अपने दोस्त को ऐसे अकेला नही छोड़ सकता था। उसने मंगल की बात मान ली और वहां रूक गया। मंगल दरवाजे से बाहर निकला और मंदिर की तरफ दौड़ पड़ा।

“अरे भाई...! ये मंगल अचानक कहां चला गया?” सुनील ने विजय से पूछा। उसने मंगल को बाहर जाते हुए देख लिया था।

“अरे यार उसके पेट खराब लग रहा था, इसलिए फ्रेश होने के लिए घर पर गया है।” विजय ने बहाना बनाते हुए सुनील से कहा। विजय की बात सुनकर सुनील को हंसी आ गई। उसने हंसते हुए विजय से कहा, “अबे भाई...! आम खाने से पहले ही इसका पेट खराब हो गया है तो फिर आम खाने के बाद क्या हाल होगा...?”

सुनील की बात सुनकर विजय भी झूठ मूठ का हंस दिया। वो मन ही मन सोच रहा था की मंगल कब वापस लौटेगा...!

थोड़ी देर के बाद मंगल वहीं पास वाले मंदिर के पंडित को अपने साथ लिए वहां पर पहुंच गया। उसने पंडित जी को पहले ही सबकुछ बता दिया था। जैसे ही पंडित जी ने सुनील के कंधे पर बैठे उस प्रेत को देखा, उसकी भी हालत खराब हो गई। वो पंडित घबराहट के मारे बिना कुछ बोले वहां से भाग गया।

कुछ ही देर मे वहां आस पास के लोगों को भी इस बात का पता चल गया। उस पंडित ने वहां के लोगों को इस बारे मे बता दिया था। कुछ ही देर मे विजय के घर के बाहर लोगों की भीड़ जमा हो गई। वहीं विजय सुनील और मंगल के परिवार वालो को भी किसी ने इस बारे मे बता दिया था। वो सभी अपना काम धाम छोड़कर घर पर पहुंच चुके थे।

मंगल के पापा एक अघोरी बाबा को जानते थे, जो उनके गांव के बाहर वाले जंगल मे रहते थे। उन्होंने जब उन अघोरी बाबा की इस बारे में बताया, वो बिना देरी के उनके साथ विजय के घर जाने के लिए चल पड़े।

घर पर पहुंचने के बाद अघोरी बाबा ने सभी लोगों को घर के बाहर रूकने के लिए कहा, और फिर वो अकेले ही घर के अंदर चले गए। घर के अंदर जाकर जैसे ही उनकी नजर सुनील के कंधे पर बैठे उस प्रेत पर पड़ी, उन्होंने गुस्से मे उस प्रेत से कहा, “तू अभी के अभी इस बच्चे को छोड़ दे, नही तो मैं तुझे भस्म कर दूंगा।”

अघोरी बाबा की बात सुनकर वो प्रेत उनपर हंसने लगा। वो सुनील को छोड़ने के लिए तैयार नहीं था। वहीं सुनील को समझ नही आ रहा था की वो अघोरी बाबा वहां पर क्या कर रहे थे और किससे बात कर रहे थे?

विजय और मंगल अभी भी सुनील के पास मे ही बैठे हुए थे। वो दोनो अपने दोस्त को किसी भी हाल मे अकेला नही छोड़ सकते थे। अघोरी बाबा ने उन दोनो को सुनील से दूर जाने के लिए कहा लेकिन उन दोनो ने अघोरी बाबा की बात नही मानी और सुनील के पास ही बैठे रहे।

अघोरी बाबा समझ गए थे की वो दोनो अपने दोस्त को अकेला नही छोड़ना चाहते थे। अब उनके पास और कोई रास्ता नही बचा था , उन्होंने अपने कमंडल से थोड़ा सा पानी अपने हांथ मे निकाला और फिर कुछ मंत्र पढ़ते हुए वो पानी सुनील पर छिड़क दिया। वो पानी सुनील पर पड़ते ही वो प्रेत जलने लगा, और फिर सुनील के कंधे से नीचे उतर गया।

जो प्रेत सिर्फ आईने मे नजर आ रहा था, अब वो सुनील विजय और मंगल की नजरों के सामने जल रहा था। कुछ ही देर मे वो धुवां बनकर गायब हो गया। इसके बाद वो अघोरी बाबा वहां से चले गए।

सुनील ने जब उस प्रेत को देखा, उसने घबराते हुए विजय से कहा, “अबे साले तुम दोनो ने मुझे बताया क्यों नही की मेरे कंधे पर भूत बैठा हुआ था...! साला तभी मैं सोचूं की तुम दोनो अकेले मे जाकर बात क्यों कर रहे थे...?”

सुनील की बात सुनकर विजय ने मुस्कुराते हुए उससे कहा, “तेरा ही आइडिया था ना उस बगीचे मे जाकर आम तोड़ने का..! अब दुबारा कभी जायेगा वहां आम तोड़ने...?”

“अबे वहां जाना तो बहुत दूर की बात है, आज के बाद मैं आम ही नही खाऊंगा।” सुनील ने ये कहा ही था की तभी मंगल एक आम सुनील की तरफ बढ़ते हुए बोला, “अरे वो सब छोड़ और ये ले आम खा ले।”

मंगल के हांथ मे आम देखकर सुनील उससे दूर हट गया। “अबे हटा इसे, इस आम के चक्कर मे भूत कंधे पर चढ़ गया, अगर ये अघोरी बाबा ना आए होते तो पता नही क्या होता..!

“अबे कुछ नही होता, बस तू एक से डबल हो जाता।” मंगल ने हंसते हुए सुनील से कहा। मंगल की बात सुनकर विजय को भी हंसी आ गई।

खुशी मे तो हर कोई साथ देता है, लेकिन दुख और मुसीबत मे जो साथ दे, वही सच्चा साथी होता है। विजय और मंगल ने इस मुसीबत के समय पर सुनील के साथ रहकर ये साबित कर दिया की वो दोनो सुनील के सच्चे दोस्त थे, सच्चे साथी थे।