Unhi Rashto se Gujarate Hue - 15 in Hindi Fiction Stories by Neerja Hemendra books and stories PDF | उन्हीं रास्तों से गुज़रते हुए - भाग 15

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उन्हीं रास्तों से गुज़रते हुए - भाग 15

भाग 15

राजेश्वर धीर-गम्भीर रहता तथा उसकी कही गयी किसी भी बात को आदेश मानकर उसका पालन करने को सदैव तत्पर रहता। कभी भी ऐसा न हुआ कि उसने राजेश्वर से कुछ कहा हो और किसी भी परिस्थिति में राजेश्वर ने वो काम न किया हो। शालिनी जानती है कि राजेश्वर का अपना परिवार है। उसके माता-पिता हैं, पत्नी है....दो छोटे बच्चों का उत्तरदायित्व भी है उस पर। उसके माता-पिता भी उसके पास ही रहते हैं। एक छोटा भाई है जो दूसरे शहर में सरकारी नौकरी पर तैनात है।

भाई का परिवार उसके साथ वहीं रहता है। शालिनी सोचती ऊपर वाला बहुत दयालु है। आज यदि राजेश्वर न होता तो वो कदाचित् अपने अधिकरों की लड़ाई न लड़ पाती। इन्द्रेश के चले जाने के बाद अकेली पड़ गयी शालिनी को राजेश्वर ने ही तो मार्ग दिखाया है। उसे उसके अधिकरों से अवगत् कराया है। राजेश्वर उसके जीवन में देवदूत बनकर आया है। सच ही कहा है कि भगवान जीवन का एक मार्ग बन्द करता है तो दूसरा खोल देता है।

इन्दे्रश के जाने के पश्चात् शालिनी के जीवन से खुशियाँ चली गयी थीं। उसके जीवन में जैसे कुछ भी परिवर्तित होने वाला न था। किन्तु ऋतुयें अपने समय चक्र के अनुसार परिवर्तित हो रही थीं। अभी-अभी जून माह की ग्रीष्म ऋतु आयी थी। तपिश अपनी चरम सीमा पर थी। अब यह ऋतु प्रस्थान कर चुकी है, और आगमन हो चुका है रिमझिम फुहारों वाले मौसम सावन का। काले मेघ आकाश में उमड़़-घुमड़ कर अपनी उपस्थिति से सबके हृदय को हर्षित कर रहे हैं। धरती ने हरी चुनर ओढ़ ली थी। छोटे-से स्थान कुशीनगर की महान भूमि तो अपनी ऊर्जा व दिव्य विचारों के प्रभाव से सदा हरी-भरी व लहलहाती रहती है। इस बारिश में यहाँ की पवित्र भूमि और भी आकर्षक लग रही है।

यहाँ के ताल-तलैया जल से भर गयी थीं। जल भरे तालाबों की सतह पर कमल व कमलिनियाँ बादलों संग अठखेलियाँ करने हेतु मानो सहसा बाहर निकल आयी हों। गुलाबी-श्वेत पंखुडियों के आवरण से तालाब ढँक गये थे। पुरवा के झोकों के साथ मेघ मानों धरती का सौन्दर्य छूने के लिए तेजी से उड़ते चले आ रहे थे। इन्हीं मेघों के साथ चली आ रही थीं इन्दे्रश की स्मृतियाँ भी। आज यदि इन्दे्रश जीवित होता तो देखता कि क्षेत्र की जनता उसे कितना प्रेम करती है। उसे स्मरण करती है।

इन्दे्रश के कारण ही तो लोगों का हुजूम शालिनी की सभाओं में जुटता है। लोग उसे कितनी उत्सुकता के साथ देखते हैं। भीड़ में धक्का मुक्की करते हुए लोग आगे आकर उसे ठीक से देखने का, निहारने का कैसे प्रयत्न करते हैं। विशेषकर महिलाएं......उसने महिलाओं को आपस में बातें करते हुए सुना है, ’कितनी सुन्दर है इन्द्रेश की बहुरिया। देखने में कहीं से भी तीन बच्चों की महतारी नही लगती। इतनी कम उमिर में इस बेचारी पर इतनी बड़ी विपत्ति आ गयी। "

" इन्द्रेश की बहुरिया बिलकुल इन्दे्रश के उलट है। वोट लेने के बाद वो तो पलट कर हम सबन का हाल ना पूछा। उसकी बहुरिया उसके उलट है। बहुत अच्छी है। " किसी अन्य महिला के अस्फुट से स्वर उसके कानों में पड़ जाते।

" वो केतना परेम से हमसे बात करेली। जइसे घर की ही कोई माई -बहिन हो। " ऐसी अनेक बातंे उसके कानों में पड़ती।

उनकी बातें सुनकर शालिनी सोचती, उसके इस सौन्दर्य के क्या मायने हैं? उसे देखने वाला कौन है, जिसके लिए उसे आकर्षक लगना चाहिए। वह जब भी बाहर निकलती है एक सादी-सी साड़ी पहनकर निकल पड़ती है। न कोई बनाव, न कोई ऋंगार। न जाने क्यों उसे अपनी या अपने रंगरूप की प्रशंसा पर उतनी प्रसन्नता न होती जितनी तब हुआ करती थी,

जब वो कुशीनगर के महात्मा बुद्ध इण्टर कॉलेज में पढ़ती थी। तब वो अपने साथ पढ़ने वाली लड़कियों के लिए ईष्र्या व लड़कों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहती थी। सभी उसके सादगी पूर्ण सौन्दर्य व शालीन व्यवहार के प्रशंसक थे। अपनी मेधा के कारण शिक्षकों का स्नेह भी उसे खूब मिला। अब जब इन्दे्रश नही रहा तो वह किसके लिए सजे-सँवरे व आकर्षक लगे। फिर भी लोग उसे सुप्दर या आकर्षक कहते हैं तो उसे प्रसन्नता नही होती बल्कि उसके नेत्र भीग जाते हैं।

उसे स्मरण है जब इण्टामीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण कर लेने के पश्चात् उसने स्नातकोत्तर कॉलेज में प्रवेश ले लिया था तथा गे्रजुएशन की तैयारियों में लग गयी। रिश्तेदारों के द्वारा उसकी चर्चा इन्द्रेश के घर तक पहुँच गयी थी। इन्दे्रश के घर वालों ने आसपास के लोगों से उसके बारे में पता किया था कि वह कैसी लड़की है। उसके मोहल्ले के लोगों ने, सबने उसकी प्रशंसा की थी। साधारण घर की शालिनी को इन्दे्रश के घर के लोगों ने अपने घर की बहू बनाने का निर्णय किया। शालिनी का विवाह इन्दे्रश के साथ तय कर दिया गया।

छोटी जगहों की यही विशेषता होती है कि सभी लोग एक-दूसरे को जानते-पहचानते हैं। सबके बारे में जानकारी रखते हैं। शालिनी के बारें में भी इन्द्रेश के घर वालो ने पता किया था। उन्हें सब कुछ अच्छा लगा। उन्होंने तुरन्त साधरण घर की लड़की शालिनी से इन्द्रेश का विवाह तय हो गया। यही कुछेक विशेषताये हैं छोटे स्थानों की है, जो उन्हें बड़े शहरों की भाग-दौड़, शोरशराबे की ज़िन्दगी से उसे पृथक करती हैं।

शालिनी का विवाह तय कर उसके घर वाले शालिनी के भाग्य पर गर्वित थे कि इतने अमीर व बड़े घर के लोगों ने शालिनी को पसन्द कर लिया है। जिस वर्ष उसका विवाह हुआ, उस वर्ष वो स्नातक द्वितीय वर्ष में थी। विवाह के पश्चात् वो अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती थी। इन्दे्रश के माता-पिता विवाह पश्चात् उसके पढ़ने के विरूद्ध थे। उसने इस बारे में इन्द्रेश की सहायता लेनी चाही। सुनते ही इन्दे्रश भड़क उठा। उसे आज भी इन्दे्रश के वो शब्द याद हैं-

" तुम्हारा दिमाग़ तो नही फिर गया। घर में किस चीज की कमी है जो और पढ़ना चाहती हो। पढ़कर नौकरी करोगी क्या और हमारे खानदान के मुँह पर कालिख पोतोगी? " उसने चिल्लाते हुए कहा था।

सहमकर शालिनी चुप हो गयी थी। इन्दे्रश की बात सच थी। उसके घर में किसी वस्तु की कमी न थी। आत्मसंतुष्टि वस्तु तो नही होती? न वस्तु से प्राप्त होती है। अतः पढ़ने की इच्छा का उसने गला घांेट दिया था, तथा वस्तुओं के साथ जीने लगी थी।

♦ ♦ ♦ ♦

अनिमा आज कार्यालय में मध्यावकाश में मिली। हमेशा हँसती रहने वाली अनिमा आज बेहद उदास दिख रही थी।

" क्या बात है हँसता हुआ सौन्दर्य आज उदास क्यों है? " हल्के-फुल्के मूड में मैंने चुटकी लेते हुए पूछा।

" कुछ नही सब ठीक है। " उसने मुझसे दृष्टि चुराते हुए कहा।

" तो फिर चेहरे की रंगत उड़ी हुई क्यों है? " मैं चुहल के मूड में थी। मैंने देखा अनिमा रूआँसी हो रही थी। कोई गम्भीर समस्या है, यह सोचकर मैं चुप हो गयी।

" बात क्या है, कुछ बताओगी..? मैंने पूछा।

" वो मुझसे संतुष्ट नही है। अलग होना चाहता है मुझसे। " उसने धीरे से कहा।

" कौन...? "

" मेरा पति। " अनिमा ने कहा। मुझे तनिक भी अनुमान नही था कि समस्या इतनी गम्भीर होगी।

" मेरे रंगरूप को लेकर कटाक्ष करता है मुझ पर। मेरे साँवले रंग के कारण मुझे अपमानित करने, हतोत्साहित करने व मुझे दबाने का दिन-रात प्रयास करता है। मैं क्या करूँ मुझे कुछ समझ में नही आ रहा है। " प्रश्नवाचक दृष्टि से मुझे देखते हुए अनिमा ने कहा।

" ये तो कोई बात न हुई। इतनी पढ़ी-लिखी, योग्य व आकर्षक लड़की को पाकर उसका माथा खराब होता जा रहा है। उसे ये क्या होता जा रहा है..? " इससे अधिक मैं कुछ और कहने की स्थिति में स्वंय को नही पा रही थी। आहत थी, विवश थी।

" ये सब बहाने हैं नीरू। मैंने सुना है कि उसका किसी अन्य स्त्री से सम्बन्ध है। इसलिए वो मुझमें कमियां निकालकर मुझसे पीछा छुड़ाना चाहता है। " अनिमा ने सरलता से कहा।

अनिमा की सरलता देखकर मैं सोचने लगी कि क्या कोई ऐसा भी कर सकता है? अनिमा है कि इतनी बड़ी बात इतनी सरलता से सहन कर रही है। इन परिस्थितियों में में मैं अनिमा को समझाऊँ तो क्या और कैसे?

वैवाहिक बन्धन जब ऐसे बेवजह दम तोड़ने लगते हैं तो उन परिस्थितियों में किसी को समझना और समझाना दोनों ही बेमानी लगने लगते हैं। ये दुरूह परिस्थितियाँ जिसके समक्ष आती हैं, बस वो ही उसे समझ सकता है न कि कोई और...? इस समय अनिमा की मानसिक स्थिति इस प्रकार की नही लग रही थी कि उसे कुछ समझाया जा सके।

समझाया भी क्या जा सकता है यही कि तुम अपने पति द्वारा की जा रही प्रताड़ना, अपमान, हिंसा सहन करते हुए उसके साथ रहने का प्रयत्न करो? उसके साथ बनी रहो, अन्यथा पूरा जीवन अकेले कैसे व्यतीत करोगी...? यह समाज तुम्हे रहने नही देगा....वगैरह....वगैरह....। यही सब बातें समझा कर उसे डरपोक, भीरू स्त्री में तब्दील कर दूँ...?

" उससे पूछा नही आखिर वो चाहता क्या है....? " मुझसे रहा न गया और मैने अनिमा से पूछ ही लिया।

" विवाह विच्छेद....! और क्या! " अनिमा ने तल्खी भरे स्वर में कहा।

" विवाह क्या गुड्डे-गुड़ियों का खेल है। जब चाहा तब किया। पत्नी जब युवा थी तो उसके साथ रहे, उसका उपयोग किया.....उपभोग किया। जब उम्र ढलने लगी तब जिस उम्र में भी इच्छा हुई, पुरानी पत्नी से मन भर गया, छोड़ दिया। " मेरी बात सुनकर अनिमा खामोश थी। उसके मन में कुछ चल रहा था। शायद कोई उथल-पुथल, निर्णय-अनिर्णय की स्थिति थी।

लंच का समय समाप्त हो गया था। एक दूसरे से हमने विदा लिया और अपने-अपने केबिन की ओर बढ गए। जाते हुए मैं सोचती रही कि अनिमा के जीवन की और मेरे जीवन की दुरूहताओं में क्या अन्तर है? कुछ भी नही। परिस्थितियाँ भले ही अलग-अलग हों किन्तु समस्यायें एक जैसी ही हैं। दोनों स्थानों पर पुरूष अपने अहंकार और पुरूषत्व की तुष्टि के लिए पत्नी के साथ छल कर रहा है। सदियों पूर्व जब स्त्रियाँ शिक्षित नही होती थीं तब से उनके साथ यही होता आया है।

आज जब कि स्त्रियाँ शिक्षित हो गयी हैं, समाज प्रगति कर रहा है हम आधुनिक हो रहे हैं तब भी उनका शोषण हो रहा है। उन्हें उनका मूलभूत अधिकार जिसे समानता का अधिकार कहा जा रहा है वो नही मिल पा रहा है। मैं समझ नही पा रही हूँ कि स्त्रियों की इस स्थिति में परिवर्तन कैसे होगा? इसके लिए उत्तरदायी कौन है? अनिमा का पति उसके साँवले रंग के बहाने उससे असंतुष्टि जताता है, तो मेरा पति मुझे देखकर, पसन्द कर के, एक तरह से कह सकते हैं कि अपनी इच्छा से प्रेम विवाह करके भी मुझसे असंतुष्टि व बेरूखी प्रदर्शित करता है।

न जाने पुरूष हमसे किस प्रकार की व कितनी गुलामी की अपेक्षा रखते हैं? ऐसा नही कि मैं या अनिमा अपने-अपने पतियों की अपेक्षाओं..... के किसी धरातल पर खरे नही उतरते हैं। हमारी योग्यता से वे अनभिज्ञ नही हैं। हम अपने-अपने पतियों से कहीं अधिक काम करने व लगभग उनके बराबर पैसे कमाने के पश्चात् भी मात्र स्त्री होने के कारण हम उनकी उपेक्षा व तिरस्कार सहन करने के लिए विवश हैं। स्त्री-पुरूष के मध्य विषमता की ये खाई मुझे समझ में नही आ रही थी। इस खाई को भरने के लिए स्त्रियों की तरफ से एकतरफा प्रयास पर्याप्त नही है।

पुरूषों की ओर से प्रयास करने का कोई प्रश्न ही नही उठता। क्यों कि ये पुरूषोचित् अहंकारवश निर्मित खाई है। जिसे भरने के लिए दोनों ओर से प्रयास आवश्यक है। जब तक पुरूषों के मन से स्त्री को कम व स्वंय का श्रेष्ठ समझने की भावना का अन्त नही होगा तब तक दोनों के मध्य अहंकार, तिरस्कार, वैमनस्य की खाई बढती जायेगी। क्यों कि स्त्रियों ने अब स्वंय की योग्यता को प्रत्येक स्थानों पर सिद्ध कर दिया है। वे पुरूषों से किसी भी दृष्टि से पीछे नही हैं।

मुझे लगता है अब वे भी पीछे हटने वाली भी नही हैं। पुरूषों को कदाचित् ही अब अपनी इस भूल का अनुभूति हो जाये। वे स्त्रियों को अपनी सहयोगी मानने लगे न कि दासी। दर्प की इस खाई को भरने के लिए भी प्रयास स्त्रियों को ही करना होगा। इस स्थिति का विरोध करना होगा....अपने अधिकारों का पाने व समानता के लिए उन्हे ही प्रयत्न करना होगा। संघर्ष करना होगा।

दूसरे दिन अनिमा का फोन आया कि वह लंच में मुझसे मिलना चाहती है। मैं उससे मिली। वह व्याकुल इतनी थी कि उसके चेहरे की रंगत उडी़ हुई थी। पूछने पर ज्ञात हुआ कि कल रात को उसके और उसके पति के बीच खूब जोर का झगडा़ हुआ है। उसके पति ने उसे बहुत कुछ कहा। यहाँ तक कि मर्यादा की सीमा लाँघते हुए उसके साथ मार-पीट भी की। चेहरे व गर्दन पर नाखूनों के खरोंच के चिन्ह दिखाते हुए अनिमा रूआंसी हो गयी। उसने विवाह विच्छेद की धमकी भी दी है। अनिमा आपने पति की प्रताड़ना की बातें बताती रही जिसे सुनकर मैं स्तब्ध थी। कितना कुछ अनिमा ने अपने मन में छुपा रखा था,। इतना होने पर भी मुस्कराती रहती थी।

" उसके विवाह विच्छेद की धमकी से मैं डर गयी हूँ नीरू! इस उम्र में कौन औरत विवाह विच्छेद की पीड़ा और अपमान झेलेगी? " अनिमा के नेत्रो से अश्रु छलक आये। मैं कुछ भी कह नही पा रही थी।

" शरीर का आकर्षण चुक जाने के पश्चात् इस उम्र में कोई कहाँ जायेगा....क्या करेगा....? किसी दूसरे पुरूष के बारे में भी तो मैं नही सोच सकती। " अनिमा कहती जा रही थी उसकी पीड़ा व व्याकुलता का अनुमान मैं बखूबी लगा सकती थी। अभी-अभी इसी अवस्था से मैं भी तो गुज़री हूँ।

अनिमा करे तो क्या करे....? उसकी स्थिति जाले फँसी हुई मकड़ी के समान हो रही थी। हाँ.... मकड़ी का जाला जिसे स्त्रियों से ही समाज बुनवाता है तथा उसमें उसे ही ऐसा फँसा देता है। ऐसा फँसा देता है कि बाहर आना कठिन हो जाता है। अनिमा और मेरे मध्य कुछ क्षणों के लिए सन्नाटा पसर गया। मैं अनिमा के चेहरे को पढ़ रही थी तथा सोच रही थी कि अनिमा एक साहसी स्त्री है। वह इस मकड़जाल को तोड़कर अवश्य बाहर निकल आयेगी। खामोश रह कर भी उसका चेहरे के भाव बहुत कुछ कह रहे थे। भावों के वो शब्द चेहरे की पीड़ा के पीछे छिपे आत्मविश्वास के थे।

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