भाग 1 – दोस्ती
इस कहानी की शुरूवात झारखंड के खुटी जिले के छोटे से गांव पिटोरा टोली से होती है। इस गांव के लगभग सभी लोग खेती बाड़ी करते थे। इन्ही लोगों में एक है सिद्धार्थ यादव और दूसरा है संजय कुमार। दोनो ही बचपन से बहुत अच्छे दोस्त हैं, और वो दोनो भी खेती बाड़ी करते थे। खेती बाड़ी के साथ साथ सिद्धार्थ की एक किराने की दुकान भी है। संजय और सिद्धार्थ दोनो ही शादीशुदा थे। दोनो दोस्तों की शादी एक ही मंडप पर हुई थी। असल मे वो दोनो दोस्त कम और भाई की तरह ज्यादा थे। उनके परिवार के बीच मे भी बहुत अच्छा रिश्ता था इसलिए दोनो दोस्तों की शादी एक ही मंडप पर रखी गई। संजय की पत्नी का नाम अरूणा और सिद्धार्थ की पत्नी का नाम गीता था , दोनो दोस्तों की शादी हुए एक साल हो बीत चुका था। दोनो के घर मे जल्द ही बच्चे की किलकारियां सुनने को मिलने वाली थी।
एक दिन संजय और सिद्धार्थ अपने खेतों में काम कर रहे होते हैं की तभी दोनो को खबर मिलती है की दोनो के घर पर बच्चे का जन्म होने वाला है, किसी भी वक्त खुशखबरी मिल सकती है। ये सुनकर दोनो अपना काम धाम छोड़कर घर पहुंचते हैं। घर पहुंचकर संजय और सिद्धार्थ अपने अपने घरों के बाहर इधर उधर चक्कर लगाने लगते हैं। जो हाल संजय का था वही हाल सिद्धार्थ का भी था। कुछ ही देर के बाद सिद्धार्थ के घर का दरवाजा खुला, घर के अंदर से दाई मां बाहर आई और सिद्धार्थ की तरफ देखते हुए बोली–“बधाई हो, तुम बाप बन चुके हो, घर में लक्ष्मी आई है।” सिद्धार्थ ने जैसे ही ये खुशखबरी सुनी, उसने अपनी जेब में हाथ डाला और कुछ पैसे निकालकर दाई मां को दे दिए। दाई मां ने उसे आशीर्वाद दिया और वहां से चली गई।
वहीं दूसरी तरफ उसी समय संजय को भी खबर मिल चुकी थी की उसके वहां लड़का हुआ है। इत्तेफाक की बात तो ये थी की दोनो दोस्तों के घर पर एक ही समय पर दोनो बच्चों का जन्म हुआ। दोनो परिवारों के लिए ये खुशी का पल था।
कुछ ही दिनों बाद सिद्धार्थ और संजय के परिवार वालों ने मिलकर दोनो बच्चो का नामकरण किया। संजय के बचे का नाम . उर्फ गौतम रखा गया और सिद्धार्थ की बेटी का नाम भूमि रखा गया।
संजय और सिद्धार्थ दोनो दोस्तों ने मिलकर इस खुशी के पल पर गांव वालो को खाने की दावत दी। बहुत से लोग दावत पर आये। संजय की पत्नी और सिद्धार्थ की पत्नी, दोनो बच्चो को गोदी मे लेकर आंगन मे बैठे हुए थे।
लोग आते जा रहें थे और उन दोनो को और बच्चो को आशीर्वाद दे कर जा रहे थे। संजय और सिद्धार्थ लोगों को को खाना खिलाने मे लगे हुए थे। सब लोगो ने खाना खाया और उन दोनो को बधाई दी। सभी लोग खाना खाकर अपने अपने घर को रवाना हो गए। अब संजय और सिद्धार्थ एक दूसरे को देखकर मुस्कुराने लगे। “यार संजय कार्यक्रम तो अच्छे से हो गया, लोगो ने बच्चो को आशीर्वाद भी दे दिया। यार मैं आज बहुत खुश हूं।” सिद्धार्थ ने खुशी व्यक्त करते हुए संजय से कहा। “तुमने सही कहा सिद्धार्थ भाई। आज हम दोनो के लिए बहुत खुशी का दिन है। चलो भाभी और अरूणा के पास चलते हैं।” कहते हुए दोनो गीता और अरूणा के पास आ गए। उन्होंने देखा दोनो बच्चे पालने मे सो रहें हैं। दोनो अरूणा और गीता के पास बैठ गए और चारो बाते करने लगे।
देखते ही देखते समय बीत गया। अब बच्चे थोड़े बड़े हो चुके थे। अब उन दोनो का स्कूल मे दाखिला करवा दिया गया था। दोनो बच्चों का दाखिला एक ही स्कूल मे नर्सरी मे हुआ। गौतम और भूमि दोनो मिलकर खूब मस्ती करते। एक तरफ जहां गौतम सीधा साधा था, तो वहीं दूसरी तरफ भूमि बहुत नटखट थी। वो हमेशा मस्ती करती रहती और अपनी मस्ती मे गौतम को भी शामिल कर लेती। दोनो मिलकर खूब मस्ती करते।
ऐसे ही समय बीतता गया और दोनो बच्चे कक्षा नवी मे पहुंच गए। अब दोनो बच्चे बड़े हो चुके थे। दोनो कभी कभी साथ मे मस्ती करते तो कभी लड़ पड़ते। अब उन दोनो की दोस्ती पहले जैसी नही रह गई थी। भूमि अब गौतम से बहुत कम ही बात करती।
दोनो ही पढ़ने में बहुत तेज थे, दोनो मे हमें अव्वल आने की होड़ लगी रहती। कभी गौतम अव्वल आता तो कभी भूमि। दोनो के बीच पढ़ाई को लेकर हमेशा कॉम्पिटिशन होता। यही वजह थी की अब दोनो में पहले जैसी दोस्ती नही रही। दोनो एक दूसरे को प्रतित्वंधी की तरह देखते थे।
एक दिन गौतम क्लास मे बैठकर कुछ पढ़ रहा था, की तभी एक कागज का हवाई जहाज उसके सर पर आकर लगा। तभी आगे की बेंच से आवाज आई.. “ओए गौतम... मेरा हवाई जहाज वापस दे।” भूमि ने गौतम को घूरते हुए कहा। गौतम ने उसकी तरफ कुछ समय तक देखा और फिर हवाई जहाज को भूमि की तरफ उड़ा दिया।
गौतम को देखकर तो कोई भी बोल सकता था की वो पढ़ाई मे तेज है। पर भूमि को देखकर किसी को यकीन नही होता था की इतनी नटखट और मस्तीखोर बच्ची भी पढ़ाई मे इतनी तेज हो सकती है।
एक दिन स्कूल की छूटी के बाद गौतम पैदल अपने घर जा रहा था। उसी के पीछे भूमि भी साइकिल से आ रही थी। भूमि ने जैसे ही देखा की गौतम आगे चल रहा है, तो उसके दिमाग मे शरारत करने की सूझी। उसने साइकिल की स्पीड बढ़ाई और सीधा गौतम को ठोक दिया। जैसे ही गौतम को टक्कर लगी वो गिर गया, उसके घुटनो पर चोट लग गई और खून आने लगा। “ओए अंधे... रोड के साइड मे चल, अगर बीच मे चलेगा तो चोट तो लगेगी ना।” भूमि ने गौतम की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहा, और फिर आगे चली गई। गौतम उठा और लंगड़ाते हुए धीरे धीरे अपने घर की तरफ चल पड़ा। घर पहुंचकर वो आंगन मे बैठ गया। जब उसकी माँ ने देखा की गौतम के घुटनो पर चोट लगी देखी तो डगमगाती आवाज मे पूछा–“बेटा गौतम ये चोट कैसे लगी तुझे?” ‘मां, वो मेरा ध्यान नहीं था और मेरा पैर पत्थर से टकरा गया और मैं गिर गया।’ गौतम ने अपनी मां से कहा और घर के अंदर चला गया।
गौतम की मां रूई और पट्टी लेने के लिए गीता की दुकान पर चली गई। “अरे गीता दीदी... रूई और पट्टी दे दो।” अरूणा ने गीता से कहा। “रूई और पट्टी! क्या हुआ अरूणा बहन सब ठीक तो है ना?” गीता ने अरूणा को रूई और पट्टी देते हुए पूछा। “अरे गीता दीदी क्या बताऊं, वो गौतम स्कूल से आते समय कहीं गिर गया, उसके घुटनों पर चोट लग गई, इसलिए रूई और पट्टी लेने आई थी।” ‘ये सब वहां बैठी भूमि भी सुन रही थी। “चाची... गौतम को ज्यादा चोट लगी है क्या?” भूमि ने गौतम की मां की तरफ देखते हुए पूछा। “हां बेटा उसके दोनो घुटनों पर चोट लगी है, पता नही ये लड़का कहां देखकर चल रहा था।” गौतम को मां ने भूमि से कहा और रूई और पट्टी लेकर घर की तरफ रवाना हो गई। भूमि को गौतम का सुनकर बुरा लग रहा था।
गौतम की मां ने घर पहुंचकर गौतम के घुटनों के जख्म को साफ किया और घुटनों पर दावा लगाकर पट्टी बांध दी। “चल अब मुंह हाथ धो ले, मैं खाना निकाल देती हूं।” गौतम की मां ने गौतम से कहा और खाना निकालने लगी। गौतम ने खाना खाया और एक लकड़ी हाथ मे लेकर कहीं जाने लगा। “गौतम कहां जा रहा है तू?” गौतम की मां ने गुस्से से गौतम की तरफ देखते हुए पूछा। “मां मै पापा के पास जा रहा हूं।” गौतम ने मुस्कुराते हुए कहा।
अरे ये लड़का कब बड़ा होगा! इसको चोट लगी है फिर भी इसको खेत पर जाना है। "अरे मां, तुमने पट्टी कर दी है ना, अब मैं ठीक हूं।” कहता हुआ गौतम खेत जाने के लिए निकल गया।
“अरे सुन तो, अरे ये लड़का कितना जिद्दी हो गया है, कुछ सुनता ही नहीं है।” अरूणा ने कहा और घर के अंदर चली गई।
उधर दूसरी तरफ , भूमि उदास सा चेहरा बनाकर बैठी हुई थी। “अरे भूमि, तुझे क्या हुआ है! तू क्यों मुंह लटकाकर बैठी हुई है?” भूमि की मां ने उसका उदास चेहरा देखकर पूछा। “वो मां क्या है ना की.. गौतम को मेरी वजह से चोट लगी है। मैने उसे रास्ते में साइकिल से ठोक दिया था।” भूमि ने नजरे चुराते हुए अपनी मां से कहा।
“हे भगवान, ये लड़की भी ना, पता नही इसको कब अकल आएगी। तू मेरे साथ गौतम के घर चल और गौतम से माफी मांग।” भूमि की मां ने कहा।
“जी मां, चलती हूं।” भूमि ने नजर झुकाते हुए कहा और दोनो मां–बेटी गौतम के घर जाने के लिए रवाना हो गए। “अरूणा बहन...गौतम..., कोई घर पर है क्या?” भूमि की मां ने आवाज देते हुए पूछा।
“अरे गीता बहन आप यहां! अभी तो मैं आपकी दुकान पर आई थी।” अरूणा ने गीता की तरफ देखते हुए पूछा। “गौतम है क्या घर पर?” गीता ने पूछा। “अरे वो कहां एक जगह टिकता है, चोट लगी है फिर भी अपने पापा के पास खेत पर चला गया।” अरूणा ने गीता की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहा।
“अरे ये मस्ती खोर है ना, इसकी वजह से आई हूं। स्कूल से आते समय इसने साइकिल से गौतम को ठोक दिया था, तभी उसको चोट लगी है, अभी मुझे इसने बताया।” गीता ने भूमि की तरफ घूरते हुए अरूणा को बताया। “पर उसने तो मुझे कहा था की पत्थर से टक्कर लगने से वो गिर गया था, इसलिए उसको चोट लगी।” अरूणा ने हैरानी भरे भाव से गीता की ओर देखते हुए कहा। “अरे क्या करूं मै इस लड़की का, एक तरफ गौतम है, जिसको इसने साइकिल से ठोक दिया पर उसने तुम्हे सच नहीं बताया। और एक तरफ ये है, जिसने गौतम टक्कर मार कर चोट पहुंचाई और चुपचाप है। मैं इसकी तरफ से माफी मांगती हूं।” गीता ने अरूणा की ओर उदासी भरे भाव से देखते हुए कहा। “अरे गीता बहन कैसी बात कर रही हो, बच्चो को तो मस्ती करने मे चोट लगती ही है, आपको माफी मांगने की जरूरत नही।” अरूणा ने गीता की तरफ देखते हुए कहा। “चलो भूमि, चाची को सॉरी बोलो।” गीता ने भूमि से कहा। भूमि ने अरूणा की तरफ देखते हुए–“सॉरी चाची।” “अरे बेटा कोई बात नही।” अरूणा ने भूमि से कहा।
शाम को जब गौतम अपने पापा के साथ घर वापस आया तो अरूणा ने गौतम की तरफ घूरते हुए पूछा–“क्यों रे शैतान, तूने मुझसे झूठ क्यों बोला?” ‘मां... मैने तुमसे कब झूठ बोला! गौतम ने नजर चुराते हुए अरूणा से कहा। “अच्छा... तो तूने मुझे कोई झूठ नही बोला...! ‘तो भूमि ऐसा क्यों बोल रही थी की उसने तुझे साइकिल से टक्कर मारी थी, तभी तुझे चोट लगी है।” अरूणा ने गौतम की तरफ शक भरी नजरों से देखते हुए पूछा।
गौतम ने जब ये सुना तो नजरे नीचे करते हुए कहने लगा... “अब मां मै क्या बोलूं !” “चल चल रहने दे, जा मुंह हाथ धो ले, और आप भी मूंह हाथ धो लीजिए, मैं खाना लगाती हूं।” अरूणा ने बेटे गौतम और अपने पति संजय की तरफ देखते हुए कहा। “अरूणा ये तुम दोनो के बीच क्या बात चल रही थी, और ये गौतम को चोट कैसे लगी ? मैने इससे पूछा तो मुझे तो इसने कुछ नही बताया। तुम कुछ जानती हो क्या?” संजय ने अरूणा की तरफ देखते हुए पूछा। “मैं आपको बाद में सब बताती हूं, अभी आप पहले मूंह हाथ धोकर आइये और खाना खा लीजिए।” अरूणा ने संजय से कहा।
अगली सुबह गौतम पैदल अपनी स्कूल की तरफ चला जा रहा था की तभी उसके पीछे से साइकिल की घंटी की आवाज आई। जब उसने पीछे मुड़कर देखा तो भूमि साइकिल से उसकी तरफ आ रही थी। भूमि ने उसके पास आकर साइकिल रोक दी। “ओए गौतम... तू ये बता, कल तूने चाची को बताया क्यों नही की मैने तुझे साइकिल से ठोक दिया था...!” भूमि ने तीखी नजरों से गौतम की तरफ देखते हुए पूछा।
“मेरी मर्जी, मैं बताऊं या ना बताऊं तुझे इससे क्या?” गौतम ने भूमि से कहा। “हां..हां ज्यादा इतरा मत, मैं तो बस ऐसे ही पूछ रही थी।” इतना कहकर भूमि ने गौतम की तरफ घूरते हुए देखा और साइकिल चलाती हुई स्कूल की तरफ निकल गई। “नकचड़ी कहीं की।” कहता हुआ गौतम भी स्कूल की तरफ चल पड़ा।