Yaado ki Asarfiya - 5 in Hindi Biography by Urvi Vaghela books and stories PDF | यादों की अशर्फियाँ - 5. पीरियड्स से पढ़ाई तक-1

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यादों की अशर्फियाँ - 5. पीरियड्स से पढ़ाई तक-1

पीरियड्स से पढ़ाई तक-1

स्कूल की प्रार्थना में वो भक्ति कहा? स्कूल की प्रार्थना में सिर्फ आंखे बंद होती है लेकिन मन कहीं और भटकता है। जब आपको कोई ऐसा काम करना हो जिससे डर लगता हो तो मन विचलित ही रहता है। हमारी भी एसी ही हालत थी। प्रार्थना के बाद हमे गीत गाना था। सुनने में तो काफी आसान लगता है पर जब हमारी टांगे धीरेन सर के पास खड़ी होती है तो ऐसी कांपती है मानो भूकंप आया हो और दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है।

    हर बार तो हमारी क्लास की गायिका को हम भेज देते थे गाना गाने के लिए या तो हम सिर्फ पीछे खड़े रह जाते। मगर इस बार वह नहीं थी और मुसीबत यह थी की मुझे जाना था। गाने से मेरा दूर दूर तक कोई नाता नहीं था। अब करे तो क्या करे। मेने लता जी की आवाज की मशहूर गीत चुना “हे ईश्वर या अल्लाह..मेरी पुकार सुन ले” सच में हमारी हालत ऐसी ही थी। हम सब इस गाने की तैयारी ट्यूशन में भी करते थे पर इसी टेंशन के माहोल में ध्रुवी ही थी जो गंभीर नही थी बल्कि मस्ती करती थी

   “ध्रुवी अगर तुमने वहा ऐसा किया तो सच कहूं मेरी हसीं नही रुकेंगी”  मेने हस कर कहा।

  “पर मुझे कहा गाना आता है, में सिर्फ आपके साथ खड़े रहने ही आउंगी और वहां में शांत खड़ी रहूंगी।”

  “तुम और शांत?” और हम सब भी उसके साथ हस पड़े।

 इस पूरे गाने के मिशन की लीडर में थी न चाहते हुए भी क्योंकी यह मैने ढूंढा था। यह गीत पहली बार प्रार्थना में गाया जाने वाला था और वो भी मेरी लीडरशिप के नीचे।

 हमारे हाथ में माईक थमा दिया गया। हमने फिर शुरू किया गाना। हम पेज में लिख कर गए थे लेकिन वही हमारी हसी की मुसीबत का कारण बना था। हम सब देख कर गा रहे थे तभी ध्रुवीने बहुत धीरे से मगर कुछ ऐसा गाया की मेरी हसीं रुक नही पाई।

    उसमे एक लाईन थी ‘ बारूद के धुएं में तू ही बोल जाए कहा’ उसकी जगह ध्रुवी शायद मेरे हस्ताक्षर पढ़ नही पाई और वह बोल गई, “बारूद के धुएं में घुस जा” जिसकी वजह मेंने सबके सामने हस दिया।          

 पहली बार ऐसा हुआ की धीरेन सर ने डांटा हो तब भी चहेरे पर सबके मुस्कान ही थी।

  गाने को क्रिशा ने संभाल लिया और वह उसका सबसे अच्छा काम था। में पीछे चली गई। सब तो बाद में हस हस के पागल हो गए जब मैने वजह बताई पर ध्रुवी यह दोष अपने पर लेकर अपसेट थी।

मेने उसे समझाया की तुम्हारे कारण कुछ नही हुआ मेरी सुनने में गलती हो गई और अगर सबको बुरा लगता तो कोई ऐसे थोड़ी ना खुल कर हसता? फिर भी ध्रुवी ने कभी भी प्रार्थना में गीत न गाने की प्रतिज्ञा ली। पर वह दिन बहुत यादगार था मेरे लिए क्योंकि मुझे बुरा नहीं लगा था

* * *

निशांत सर का पीरियड था। मतलब ज्ञान के साथ गम्मत, विज्ञान का। अगर सर निशांत सर हो तो विज्ञान के लेक्चर की हर सुबह गुड मॉर्निंग हो जाए। एक बार मेना टीचर आए अपनी अटेंडेंस लेने। तब सर बात कर रहे थे की भारत देश में युवाओं की संख्या अधिकतम है

“तो मेरे जैसे लोगो की संख्या किस देश में ज्यादा है?”

“जापान में सबसे ज्यादा वृद्ध है।”

मेना टीचर की शक्ल देखने लायक थी फिर निशांत सर समझ गए की उनसे भूल नहीं गुनाह हो गया है मेना टीचर को वृद्ध कह कर।

 पता नही फिर मेना टीचर ने क्या हाल किया होगा बेचारे सर का।

हमारा तो मनोरंजन हो गया था। सर के पीरियड में पढ़ाई में कभी अंबानी आ जाते तो कभी शेक्सपीयर तो कभी दुनिया के अजीबो करीब किस्से। इसी लिए सबकी आंखें उनका इंतजार करती और कान उनकी बातों का। उनके आने के बाद हम इंतजार करते की कब सर कहे ‘एक बात कहूं’ और फिर अकेले ही मुस्कुरा देते। बाद में उनकी बात सुनकर हम भी ठहाके लगा लेते जिस पर उसने बात कहे पहले हस लिया था।

एक बार सर आए और बोर्ड की पास में रखा चोक रखने के डेस्क में से चोक निकाला और बड़ी ही धीरज से चोक को देखा जैसे कोई आर्ट को देख रहे हो फिर पूछा, “ यह कारीगरी किसने की?”

 तब मुझे याद आया की पीरियड में टाइम पास करने के लिया धुलू ने जिस चोक पर अपनी कारीगरी की थी वह सर के हाथ में है। और इतना भी कम था की मेने सर को ध्रुवी की और इशारा भी कर दिया। फिर सर निशांत सर थे इसी लिए धूलू के हुन्नर का सम्मान हुआ।

ध्रुवी तो सिर्फ जानी मानी मस्तीखोर यूं तो में और माही भी कम नहीं , छुपे रुस्तम थे हम।

  “सर, कहा जाता है की नारियल में तीन आखें होती है वह कहा होती है?” मेने जिज्ञासा वश पूछा पर सर ने केसा जवाब दिया

“नारियल में” भला ये भी कोई जवाब हुआ।

 “सर वह तो हमे भी पता है की नारियल की आखें नारियल में ही होंगी न, आपने देखी है कभी? ” माही कुछ ऐसे बोली की सर भी डर गए और में भी। सॉफ्ट माही  हार्ड हो गई यार!

“ना” कहकर सर चले गए मानो डर जाए हो।

हम मॉनिटर की ड्यूटी निभाते थे और कहो की लाभ उठाते थे तो कुछ गलत नहीं। मॉनिटर होना कभी शाप लगता तो कभी वरदान से कम न था। वरदान इस बात का की हम झांक सकते थे दरवाज़े में से को कोन से टीचर आने वाले है। इसी वरदान का लाभ उठाते समय मैने 'लंबे' सर यानी गौरव सर तो आते देखा। वह इतने लंबे थे की वह दरवाज़े से झुक कर जाना पड़ता था। में जब उसे देखा था तो वह अभी ही स्टाफ रूम से निकले थे पर जैसे ही में रीति तो बताने जाती की वह तो हमारे सामने हाजर। मुझे लगता की उसके लंबे पेरो के कारण वह चलते फिर भी दौड़ते हो ऐसा लगता है।

  वह गुजराती लेते थे। मगर हम पढ़ते कम थे वैसे भी गुजराती तो हमारे खून में था। मुझे याद है की 8th में इसी सर के लेक्चर में हमने खेल खेल में पेन की पेन से शादी करवाई थी और सर तो पता भी नही चला। सर को कोई सीरियसली नही लेता था।

  एक बार उनके एक प्रश्न को बॉयज ने बहुत महत्व दे दिया और मज़ेदार किस्सा बुन गया। सर ने पूछा जो पढ़ने में आता था मगर जवाब मिला जो दिमाग में आता था।

 “ ऐसा कोन-सा वस्त्र है जो कन्या शादी में पहनती है?”

  “सर, घाघरा” ऐसा उत्तर केवल निखिल से ही अपेक्षित था जो हमेशा अपने अंदाज़ से सबको हंसाने के लिए ही आता था पढ़ने नही।

 “सर, ऐसा जो सिर्फ शादी में कन्या पहनती है वह तो मंगलसूत्र” हर्षद ने कहा जो निखिल का ही दोस्त था।

 और सब जोर जोर से हंसने लगे सर भी जो सर ने कहा वह तो और मज़ेदार था,

“मंगलसूत्र वस्त्र  है?”

  ऐसे ही सर जैसे भी पढ़ाए हम हमारा मजा ढूंढ लेते है।

   फिर लेक्चर आता था हिंदी का यानी सबसे खतरनाक, हमारी सब्र की परीक्षा का लेक्चर, पता नही हमने उस लेक्चर में कुछ सीखा या नहीं किंतु चुप चाप स्टेच्यू की तरह मेडिटेशन में कैसे बैठना वह जरूर सिख लिया था।

  एक बार टीचर हमे प्रश्न के उत्तर दूसरी बुक में से लिखवा रहे थे। अगर हम कहे की वह ज्यादा स्पीड में बोल रहे है तो डांटेंगे अगर कहा की हम पीछे रह गए तब भी डांटते थे यदि हम कुछ न कहे और पास वाले स्टूडेंट की नोट्स में से देख कर चुप चाप लिखे तब भी डांटते और यदि न लिखे तो जेसे आसमान गिर पड़ा मानो। माही की तो यह आदत थी कोई भी लेक्चर क्यों न हो, चाहे बोर्ड पर लिख कर दे या बोलकर लिखाए वह हमेशा दूसरे की नोट्स से ही लिखती ऐसा नहीं था की वह लिखने में स्लो थी या फिर उसे बोर्ड में दिखाई नही देता था अगर मॉनिटर के हक़ से मेने उसका नाम लिखा तो तुरंत विरोध करती है। में उसे ‘आधी अंधी’ ही कहती थी। मेना टीचर के पीरियड में वह लिखती तो थी दूसरे की नोट्स से पर सावधानी से।

  मेना टीचर हिंदी का नहीं सामाजिक विज्ञान का लिखा रहे थे वैसे वह कुछ भी पढ़ाते नही या कहो की सब कुछ ऐसे पढ़ाते है पता ही नहीं चलता की हम कुछ नहीं समझ पाए या वह। इसी तरह लिखाते समय उनसे पेज गलत पलट गया क्योंकि एक पेज में दो विभाग थे और दूसरे विभाग पर जाने से पहले ही पेज पलट दिया। मुझे प्रश्न का उत्तर मालूम था तो में समझ गई कि कुछ तो गड़बड़ है और बाद में मुझे गड़बड़ समझ आ गई। मेने बहुत हिम्मत जुटा कर कह दिया पर वह माने तो न।

  “मुझ से कभी गलती नहीं हो सकती। तुम मुझे समझाओगे?”

 मेने बहुत मुश्किल से समझाया पर फिर तो मुझे डांट पड़ने लगी तब एक सच्ची मित्र की तरह ध्रुवी मेरी बात तो ज़ोर डाल कर कहा और रीति, क्रिशा और बाकी दोस्तो ने मेरी बात का समर्थन किया तब जाके वह माने। हमारे क्लास में ध्रुवी ही थी जो उससे नहीं डरती थी। मेना टीचर का लेक्चर सिर्फ इसी इंतज़ार में बीतता की तब जया मासी घंट बजाए और हम इस जेल से छूटे। सच कहूं तो वह घंट छूटी के घंट से भी ज्यादा शुकून देने वाला था।

 वह घंट मेरे लिया ज्यादा शुकून वाला था क्योंकि वह घंट के बाद मेरे फेवरीट टीचर दीपिका मेम का पीरियड होता था। वह मेम शायद मेरे ही नहीं सभी स्टूडेंट के फेवरीट थे क्योंकि वह हमारी तारीफ करना भी जानते थे और डांटना भी। निखिल को सब टीचर बदमाश कहते बार दीपिका मेम ही थे जो उसे भी अच्छे स्टूडेंट की भाती देखते थे इसी लिए निखिल या कोई भी स्टूडेंट मेम को नापसंद नही करते थे। मेरे लिए वह एक आदर्श शिक्षक थे जो किसी को समझाने के लिए मारना या डांटना नही पर उसे समझना ज्यादा बेहतर मानते थे। मेरे मन में उसके लिए को सम्मान है उसे अगर लिखने लगूं तो एक अलग बुक हो जाएगी।

 हमारे क्लास में एक लड़का था वंश। वह मानसिक रूप से अस्थिर था इसी लिए सभी टीचर्स और स्टूडेंट खास करके लड़के उसे इग्नोर करते। टीचर्स उससे कभी जरूरी ना हो तो कोई बात पर जोर नही डालते थे और उसे काम की ही बात करते थे। स्टूडेंट्स ज्यादातर लड़के उसकी मज़ाक उड़ाते थे या परेशान करते रहते थे। वह चश्मा पहनता था तो कभी उसका चश्मा लेकर तो कभी उसका नाश्ता बॉक्स छीनकर। पर एक मात्र मेम ही थे जिसको उनके लिए सहानुभूति थी और वह प्रकट भी करते थे। वंश को उसका लेक्चर मेरी तरह बहुत अच्छा लगता था।

   एक बार हर्षद को वीकली टेस्ट में चोरी करने की कोशिश करते हुए मेम ने देख लिया तब मेम ने उसे कुछ नहीं कहा पर लेक्चर में मेम ने उसे कहा तो हर्षद के उत्तर से मेम जेसे पागल हो गए

    “मेम , में अकेला नहीं था यह वंश भी देख देख कर लिख रहा था”

    “तुम उनसे कंपैरिजन कर रहे हो? वह तुम्हारे जैसा  है?”

    “ तो क्या हुआ?”

    “ तुम में और उसमे फर्क है।”

    “ आपने उसे कुछ भी नही कहा सिर्फ इस लिए की वह कुछ पढ़ता नहीं”

    “ एक तो चोरी करने की कोशिश करते हो और वंश जैसे बच्चे को बीच में लाते हो और मुझ से आर्ग्युमेंट कर रहे हो”

मेम को बहुत गुस्सा आया। हमने कभी उसके रौद्र स्वरूप को नहीं देखा था। मेम ने दो-चार थप्पड़ ज़ोर से लगा दी। फिर भी हर्षद ने वंश को भी दोषी बताकर मेम को और गुस्सा दिला दिया बाद जो थप्पड़ की बारिश हुई की में गिन ही नही पाई ना ही हर्षद को बोलने का मोका मिला।

  मेरे हृदय में जो मेम का स्थान था वह अब नहीं रहा था। उस दिन सब इतने हैरान थे की कई दिनों तक किसीने उफ तक नहीं किया। और पता नहीं हर्षद को कैसा लगा होगा?

   पर मेम को खुद को बहुत बुरा लगा था। यही तो खासियत है अच्छे और सच्चे टीचर की जिनसे स्टूडेंट सिखकर अच्छे और सच्चे बनते है। मेम ने आ कर हर्षद से माफ़ी मांगी वह भी एक दो बार नही बार बार। जब जब उसे पश्चाताप होता वह माफ़ी मांगते और टीचर होते हुए भी की उसे इतना ज्यादा नहीं मारना चाहिए था। हर्षद ने भी मेम को माफ नही किया क्योंकि उसका मानना था की मेम से कोई गलती नहीं हुई। उसने एक तो चोरी करने की कोशिश की और ऊपर से वंश को दोषी बताया। मेम के कारण वह अपनी गलती को समझ पाया।

    रिसेस में तो हम खूब ज्यादा मस्ती करते थे अगर बारिश होती तो भाग कर ऊपर की लॉबी में चले जाते और नाश्ता लेने केन्टीन में छाता लेकर जाते। और अगर बारिश न हो साथ में धीरे धीरे चलकर जाते क्योंकि रीति थी ना। वह दौड़कर बीच में से घुस कर हमारे लिए मतलब सब के लिए नाश्ता खरीद लेती और कभी कभी तो हम अपनी बातों में, मस्ती में इतने खोए होते की नाश्ता के पैकेट्स पकड़ने के लिए भी नही खड़े होते और जब हम सब नाश्ता पकड़ते तो में अपने हिस्से का माही को जबरजस्ती थमा देती थी एक बार तो उसने विरोध कर पैकेट्स को नीचे रखकर चली आई। फिर क्या उसे ही लेने जाना पड़ा। नाश्ता में माही घर के रोस्टेड चने लेकर आती थी। क्योंकि सब को पैकेट्स ही अच्छे लगते तो माही के चने हररोज बच ही जाते और हर रोज़ अंजनी का एक ही डायलॉग था

“सब के नाश्ते खतम हो जाते है लेकिन माही के चने नही होते”

और फिर यही बचे हुए चने क्लास में खाएं जाते। स्कूल के दिनों मे क्लास में खाना भी एक रोमांचक यादें बन जाती है सही है ना? रिसेस में हाथ धोते समय एक दूसरे को पानी छिड़कना और मेरा तो फिक्स था हाथ धोकर माही की यूनिफॉर्म की कोटी में पोछना। माही के कपड़ो पर मेरा ज्यादा हक़ था। उसका शर्ट मेरी पेन के दागों से भर जाता और एक बार उसका यूनिफॉर्म वाशिंग मशीन में डालने के बाद ब्लैक में से डार्क ग्रीन जैसा हो गया बोलिए।

  जितने मज़ा रिसेस से पहले किए उतने ही रिसेस के बाद भी पर वह इसके अगले भाग में यानी रिसेस के बाद मिलेंगे।