दुनिया कठपुतली का मेला हैं l
जिन्दा रहने के लिए झमेला हैं ll
करोड़ों इंसानों की भीड़ में l
यहां हर आदमी अकेला हैं ll
सब ने लुका छुपी का खेल l
एकदूसरे के साथ खेला हैं ll
हसी खुशी से जिये जाओ l
जीवन ईश्वर का डेला हैं ll
ना जाने कब खत्म हो जाए l
तन साँस लेने का थेला हैं ll
मन की डोर खींचकर रखो l
नसनस में प्यार का रेला हैं ll
नचाने वाला ऊपर बैठा है l
जीभर के जीने की बेला हैं ll
१६-५-२०२४
शांत मन निर्मल व् पवित्र होता हैं l
नव जीवन की आश को बोता हैं ll
जिज्ञासा से अनोखा परिणाम l
जब प्राकृति की गोद में सोता हैं ll
हसी सफ़लता की पहली सीढ़ी l
वो सुहाने ख्वाबों को संजोता हैं ll
ठंडे दिमाग से सांत्वना मिलती l
जिम्मेदारीयों का बोझ ढोता हैं ll
आसमान की ऊँचाइयाँ छूने को l
बार बार कोशिश कर पिरोता हैं ll
१७-५-२०२४
समय की चाल कोई नहीं समझ पाया हैं l
ये कृष्णा की रचाई हुई अद्भुत माया हैं ll
बहकती और चहकती जिंन्दगी बहलाने l
महकी फ़िज़ाओं ने सुरमई राग गाया हैं ll
अपनी मर्जी से कहां जी सकता है कोई l
क्या माँगा था? क्या सामाने लाया हैं?
क़ायनात में कोई हमेशा जिवित न रहेगा l
न मोह रख तन का मिट्टी की काया हैं ll
अनजानी सफर को निकल तो पड़े हैं l
आज समय का हसी सितम भाया हैं ll
घड़ी की सूई टिक टिक करती सारा दिन l
हर लम्हा सिर पर घिरा रहता साया हैं ll
१८-५-२०२४
शराब पीने का मज़ा तो लेने दो l
सुहानी यादों का लुफ्त लेने दो ll
वैसे तो सब की कीमत होती है l
जो मिल रहा वो मुफ़्त लेने दो ll
नजरों से पीला रहे हैं बेखौफ तो l
दुनिया से छुपाके तृप्त लेने दो ll
छुपते छुपाते आ रहीं हैं सखी l
छत पर जाकर जुप्त लेने दो ll
उजालों की और आगे बढ़ो l
सारे अँधेरे को लुप्त लेने दो ll
कहीं एकांत में जाकर माधुर l
मिलन का मजा गुप्त लेने दो ll
१९-५-२०२४
जलती धरती की तड़प तो पूछो l
अबोल जीव की तरस तो पूछो ll
धरती में पर्यावरण दिवस मना रहे l
उपग्रह की हो रही गरज़ तो पूछो ll
उपजाऊ भूमि को बंजर करके l
धरा की पीड़ा की सफर तो पूछो ll
सुखा पड़ा सूरज की अग्नि से l
तेज तपिश की ठंडक तो पूछो ll
ईश्वर की सृष्टि को रुला रहे हैं l
ज़मीं बचाने की कसक तो पूछो ll
अंतरिक्ष में घर बनाना चाहते l
सफ़लता का ज़हर तो पूछो ll
२०-५-२०२४
कितना बदल गया इंसान l
किससे रखे अब पहचान ll
वक्त की न कोई कदर उसे l
ख़ुद ही विधाता ये अभिमान l
मन में उसके क्या चल रहा l
भला क्या कोई पाया है जान?
सब अपनी गरज़ के दिवाने l
आज बात इतनी लो मान ll
रुपीया पैसे ही उसका धरम l
जीते जा रहे झूठी ही शान ll
दिन रात दुनिया करे खुशामद l
दिलों दिमाग में यह अरमान ll
अपनों को ठुकराके सोचता l
धन दौलत से होती है आन ll
जाके महफ़िलों में सदा ही l
गाता अपना ही गुण गान ll
२१-५-२०२४
बदलते भारत की तस्वीर
बदल गया है भारत बदल रहा है दौर l
इंसानियत मर गई बदल गये हैं लोग ll
देखो चारो ओर फेला है अँधियारा घना l
जलते अंगारों पर जल रहा है पूरा देश ll
आज का दौर है कुछ एसा हर इन्सान l
मतलब के लिए पल में बदलते हैं वेश ll
सत्य को छोड़ जूठ का साथ देता वो l
अपनो ही अपने पर लगाते है केस ll
प्रेम के नाम पर धोखा देते हैं यारों l
लोभ लालच में बस पैसे की है भूख l
चाँद और मंगल पे है घर बसाना चाहे l
ख़ुद के आशियाने को लगाता ठेस l
यहाँ हर कोई दिन रात भाग रहा है l
न जाने कौन सी लगाई गई है रेस ll
२२-५-२०२४
किसकी आहट सुनी के दिल धड़क रहा हैं l
दौड़ के गले से लिपट ने को मचल रहा हैं ll
जुदाई में हर एक पल युग सा लगता है l
प्यार भरी बातें करने को तड़प रहा हैं ll
साँस जी को आ रही है अब तो जानेजा l
बस एक लम्हा देखने को तरस रहा हैं ll
ज़ाम पर जाम छलक रहे सुराही से देख l
महफिल में संग दोस्तों के बहक रहा हैं ll
सहरा में पानी की बूंद देख चमके वैसे ही l
जा निसार का नाम सुनके बहल रहा हैं ll
नहीं सही जाती अब तो ये दूरियां सुनो l
दिल की बेताबी बढ़ जाने से गरज़ रहा हैं ll
बेइंतिहा दिवाना पगला आवारा आज तो l
व्हाट्सप्प में टिक होते ही चमक रहा हैं ll
जहा जहा देखता हूं तू ही तू दिखता है कि l
उनके आने की आहट से भी पनप रहा हैं ll
कुछ लम्हा आएंगे ये सोचकर नादानी में l
सुहानी प्यार भरी यादों से महक रहा हैं ll
२३-५-२०२४
गाँव की मिट्टी की खुशबु खिंच लाई हैं l
अब जाके दिल ने राहत की साँस पाई हैं ll
हर तरफ़ हरियाली देख खो जाते हैं l
खेतों में सोने की फसलें लहराई हैं ll
ज़िंन्दगी हसतें मुस्कुराते पालती पलती l
सरसों धानी चुनरियाँ ओढ़ के आई हैं ll
परदेश में बासी खाते थे ख़ुद के घर में l
माँ के हाथ से पकी हुई रोटी खाई हैं ll
माँ के आँचल की छांव हैं ममता से भरी l
मुहब्बत से गाँव की गली गली सजाई हैं ll
२४-५-२४
कोरा काग़ज़ हैं तो कोरा ही रहने दो l
उसे भी अकेलेपन का दर्द सहने दो ll
कई बार अल्फाजों की जगह पर l
दिल के जज्बात मुहँ से कहने दो ll
यादें बीते वक्त की लिख क्या करोगे?
आज खयालों का कारवाँ बहने दो ll
उसके उजलेपन की गरिमा रहने दो l
आन की सफेद चादर ही पहनें दो ll
किसने क्या किया हिसाब क्यूँ लिखे?
जुदाई के आंसूंओ का बोझ ढहने दो ll
काग़ज़ पर लिख कर पशेमा ना हो l
दिल ही दिल में वेदना को लहने दो ll
२५-५-२४
मचलते हुए जज़्बात पढ़ सको तो पढ़ लो l
निगाहों में छिपी बात पढ़ सको तो पढ़ लो ll
मुहब्बत के नशे में डूबी हुईं बहकी महकी l
भीगती भिगोती रात पढ़ सको तो पढ़ लो ll
हर लम्हा नया रूप ओ नया अंदाज़ दिखाती l
जिंन्दगी के मामलात पढ़ सको तो पढ़ लो ll
आरज़ू और जुस्तजू बनी है जीने की चाह l
अदाकार की क़ायनात पढ़ सको तो पढ़ लो ll
सब कुछ ब्यान कर देती है बेरूखी जानेजा l
सितमगरो के जुल्मात पढ़ सको तो पढ़ लो l l
२६-५-२०२४
मौसम की पहली बारिश ने दिवाना बना दिया हैं l
निगोड़े दिल ए नादां को और भी बेताब किया हैं ll
दिन गुज़रते जाते हैं एक के बाद एक इंतजार में l
सखी तौफिक की डोर से चाक जिगर को सिया हैं ll
आज चांद रात सितारों की मौजूदगी में ख्यालों में l
छत पे हुस्न की जुल्फों की खुशबु का जाम पिया हैं ll
भीगी मिट्टी की खुशबु से साँसें बहलने लगी हैं l
तपिश में राहत की साँस लेके अब चैन लिया हैं ll
प्रतीक्षारत आँखों का शुक्रगुज़ार हूँ जो साथ दे रही l
जीतना भी जीया है बस यादों के सहारे जिया हैं ll
२७-५-२०२४
जिन्दगी अरमानों की आँधी में फंस कर रह गई हैं l
आधी से ज्यादा जरुरतों पूरी करनने में बह गई हैं ll
कभी खुशी कभी गम यहीं है जिन्दगी की रफ़्तार l
खुशियों भरे पल मिले तो हँस कर जी लो कह गई हैं ll
वक़्त की चक्की में पिसे जा रहे हैं सारे जज़्बात l
फ़ना हो रहीं हैं ख्वाइशें की वो भी सह गई हैं ll
सरफरोश इरादे हेरा परेशान नज़र आ रहे हैं आज l
लब्जों से बंधे रिश्तों के साथ कहने को तह गई हैं ll
अच्छा लगता है बदलाव की आँधी में बहना तो l
खुद पे यकीन कर खुद बदलाव में पह गई हैं ll
२८-५-२०२४
खुशियों के बादल छाने लगे हैं l
मन मयूर नाचने गाने लगे हैं ll
पंखी आकाश छोड़ भागे और l
गम के साये दूर जाने लगे हैं ll
बारिश की बौछार होने लगी l
अब चैन की साँस पाने लगे हैं ll
गरजे सावन के घन घिर घिर,
बूँदों की लड़ियां लाने लगे हैं ll
प्यासी धरती आश लगाए l
टिप टिप साज तराने लगे हैं ll
२९-५-२०२४
बिजली की तरह गरज़ कर खो मत जाना l
दर्दे जुदाई की चिनगारियाँ बो मत जाना ll
किरदार दौनों का एक ही जैसा है तो l
कड़ाके और बौछार से ढो मत जाना ll
इससे मिलती झुलती सनम की हँसी l
चमक से तड़प कर ख़ुद सो मत जाना ll
फिझाओंमे सरसरी आवाज़ ले आती हैं l
गुलशन में उजाले को देख रो मत जाना ll
रहमत है ये ख़ुदा की जो बारिश लाएगी l
डर के मारे नौ दो ग्यारह हो मत जाना ll
३०-५-२०२४
दिल में यादों की बरसात आई हुईं हैं l
साथ अपने हसीन लम्हें लाई हुईं हैं ll
बरसो मेघ औ जल बरसाओ चहुओर l
माटी ने पानी की बौछार पाई हुईं हैं ll
नाटक न कर गरजने बरसने का l
बड़ी आश में फ़सल लगाई हुईं हैं ll
छम छम छमाछम बादल गरजता है l
खेतों में सारस ने रागिनी गाई हुईं हैं ll
दबे पाँव कोमल कदमों के जरिए आकर l
मन आकाश में मेघघनुष रचाई हुईं हैं ll
सर्दियों में बरसात की झड़ियों ने l
बिन मौसम में दीवाली मनाई हुईं हैं ll
३१-५-२०२४