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औकात
श्याम की एक्टिवा लगातार माधुरी के ऑटो का पीछा कर रहीं हैं और वह भी इस बात से बेखबर है कि कोई उसके पीछा आ रहा हैI अब उसने ऑटो एक गली के बाहर रोकी और ऑटोवाले को पैसे देकर गली के अंदर जाने लगीI तभी श्याम ने उसे आवाज़ दी, ‘माधुरी!’ वह श्याम को देखकर हैरान हो गईI “श्याम तुम?”
“हाँ मैं?”
तुमने क्या सोचा कि तुम बचकर निकल जाऊँगीI अच्छा, बेवकूफ बनाया तुमने, पैसे मुझसे लिए और मज़े उस मनीष को दिएI
तमीज़ से बात करो, पहले वो मेरा बॉयफ्रेंड था, मगर अब मेरा पति हैI
अच्छा !!! फिर तुम्हारे उस पति को बताओ कि तुमने मेरे साथ क्या किया हैI
क्या किया है? वह ज़ोर से चिल्लाईI
उसे भी तो पता चले कि तुम मुझसे पैसे लेकर, मुझे क्या सपने दिखाती रहींI अब वह उसकी गली के अंदर जाने लगा तो उसने उसे पीछे धक्का दिया, “बस बहुत हो गयाI तुम कौन सा दूध के धुले होंI मैं पूरी दुनिया को बताओ कि तुम क्या हो!!!” यह सुनकर श्याम सकपका गयाI “क्या मतलब ???”
मतलब यह है कि तुम्हारे बस की कुछ भी नहीं हैI अगर मैंने पैसे लिए थें, अपनी ज़रूरत के लिए तो तुमने भी पैसे दिए थें, अपनी ज़रूरत पूरी के लिए, क्योंकि तुम्हें अपनी आग बुझाने के लिए बैसाखी चाहिएI तुम चाहते थें कि पैसे देकर तुम मुझसे वो सब करवा लोंगे, तुम चाहते थें, मैं तुम्हारे ऊपर सवार हो जाओ और तुम्हें चरम सुख का आनंद देती रहूँI” अब श्याम को काँटो तो खून नहींI “मिस्टर श्याम !!!” सच तो यह है कि तुममें किसी औरत को ख़ुश करने की ताकत ही नहीं है, तुम मर्द के भेष में एक नामर्द होI” यह सुनकर उसे लगा कि ज़मीन हिल रही हैI “इसलिए मैं तुम्हें फ़िलहाल बहुत आराम से समझा रही हूँ कि मेरे मामले से दूर रहो वरना अगर मैंने तुम्हारे मैटर में टाँग अड़ाई तो तुम कहीं के नहीं रहोंगे, समझेI” वह उसे गुस्से से घूरते हुए चली गयीI
उसके जाने के बाद, श्याम का सिर घूमने लगा, वह एक कोना देखकर, वही सड़क के किनारे रखे पत्थर पर बैठ गयाI अब उसमे इतनी हिम्मत नहीं बची कि वह एक्टिवा चलाकर घर जा सकेंI
रात के दस बज रहें हैं, तभी वहाँ से गायत्री विकास की गाड़ी में गुज़री और उसे ऐसे बैठा देखकर, उसने जल्दी से गाड़ी रुकवा दीI “विकास मैं यही रुक जाती हूँI” हमारी गली के बाहर सीवर का काम चल रहा हैI” “पक्का ???” “हाँ, कोई परेशानी नहीं हैI” अब वह वहीं उतर गई और उसके गाड़ी आगे बढ़ाते ही श्याम के पास जाने लगीI “ श्याम !!! तुम यहाँ क्या कर रहें हो? उसने गायत्री को अपने सामने देखा तो आँख में उभर आए आँसू को जल्दी से साफ़ किया I अब गायत्री उसी पत्थर पर उसके साथ बैठ गईI फिर श्याम की तरफ देखते हुए बोली,
तुम परेशान हो?
क्यों मर्द को कोई परेशानी नहीं हो सकतीI
क्या हुआ ?? अम्मा से लड़ाई हुई?
यह कोई नई बात नहीं हैI उसने उससे नज़रें चुरा लींI
श्याम हम दोस्त है, तुम मुझे कुछ भी बता सकते होI
“क्या, तुम मुझे कुछ भी बता सकती हो???” उसने गायत्री की आँखों में झाँकाI अब गायत्री ने मुँह फेर लियाI” चलो, घर चलोI “ उसने उठते हुए कहाI “तुम जाओ, मैं आ जाऊँगाI” “मैं अकेली जाओ??” तभी बबलू अपनी स्कूटर लेकर आ गयाI “तू यहाँ बैठा है, अम्मा ने मुझे बार बार फ़ोन करके परेशान कर रखा हैI” “मैं भी इसे यही कह रही हूँ कि घर चलेI अब बबलू ने श्याम के चेहरे पर दुःखी हावभाव देखें तो उसने गायत्री से कहा, “तुम इसकी एक्टिवा लेकर घर चली जाओ और अम्मा को कहना यह मेरे साथ हैI”
गायत्री ने एक्टिवा स्टार्ट की और वहाँ से रवाना हो गईI बबलू उसके पास बैठते हुए बोला, “गायत्री चली गई, अब बता क्या बात है?”
उसने माधुरी वाली बात बताई तो वह गुस्से में बोला, “रुक! मैं ज़रा इसको, इसकी औकात दिखाकर आता हूँI” वह अब गली के अंदर जाने लगाI