Love and Tragedy - 8 in Hindi Love Stories by Urooj Khan books and stories PDF | लव एंड ट्रेजडी - 8

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लव एंड ट्रेजडी - 8







हिमानी हाथ में चाय की ट्रे पकडे भव्या के साथ बाहर आयी और नमस्ते करा सब को

"लो आ गयी मेरी बहु अपने हाथो की बनी चाय लेकर" वहा बैठी सुरेन्द्र की माँ कविता ने कहा

"खुश देखो कितना हो रही है जैसे खुद का बेटा कोई शहजादा हो" भव्या ने मुँह बिसकाते हुए कहा

हिमानी ने उसकी तरफ गुस्से से देखा और मुँह पर ऊँगली रखने को कहा।

भव्या ने भी उसकी तरफ देखा और गर्दन मोड़ ली गुस्से से।

हिमानी सब को चाय देती है और अपनी होने वाली सास के पास आकर बैठ जाती है।

बहुत ही संस्कारी बच्ची है आपकी मेरा घर तो खुशियों से भर जाएगा जब इसके कदम हमारे घर पड़ेंगे वैसे कब आ जाए हम आपके घर अपनी बेटी को लेने। कविता जी ने चाय पीते हुए कहा

'भाभी जी आपकी ही अमानत है जब चाहे ले जाए हमें कोई आपत्ति नहीं हिमानी के पिता ने कहा




"मैं रसोई से होकर आती हूँ हिमानी ने बहाना बनाते हुए कहा और वहा से भागी चली आयी भव्या का हाथ पकड़ कर ।

सुरेन्द्र कुर्सी पर बैठा उसे देख रहा था।

शर्मा गयी बिटिया रानी, यही तो खास बात होती है संस्कारी घरो की लड़कियों में वरना तो बहन जी आप यकीन नही मानेंगी की ज़माना इतना बदल गया है की लड़कियां खुद अपने बॉय फरेंडो को अपने माँ बाप से शादी के लिए मिलवाने लाती है।

"अम्मा बॉय फ्रेंड होता है बॉय फरेंड नही" सुरेन्द्र ने कहा अपनी माँ को टोकते हुए

हाँ, जो भी नाम होता हैं उसका, तो इस कद्र ज़माना खराब हो चुका है इसलिए अच्छे लड़के और अच्छी लड़कियां तो ढूंढने से भी नही मिलते और अगर मिल भी जाते है तो दहेज़ की जै लम्बी लिस्ट थमा देते है लड़की वालो के हाथ में कि बेचारे लड़की वाले उस दहेज़ को इकठ्ठा करते करते ज़मीन में धस जाते है लेकिन लिस्ट खत्म नही होने का नाम लेती है। कविता जी ने कहा

दहेज़ का नाम सुनकर हिमानी और उसके घर वाले अपने कान खड़े करते है उनके चेहरे की हसीं कही गायब सी हो गयी




"अरे अरे आप लोग यूं इस तरह दहेज का नाम सुनकर घबराइए नहीं, मेरे सुरेन्द्र ने तो साफ इंकार कर दिया है दहेज़ लेने से, और ना ही हमें कोई चाहत है दहेज़ की ईश्वर की किर्पा से सब कुछ है हमारे पास, आप अपनी बेटी दे रहे है मेरे बेटे को ये क्या कम है" कविता जी ने चेहरे पर एक मुस्कान लाते हुए कहा

"ये तो आपका बड़प्पन है भाभी जो बहु को ही दहेज़ समझ कर मुझ गरीब की देहलीज से उसे अपने घर ले जा रही है, जरूर मेने पिछले जन्म मोती दान किए होंगे जो मेरी बेटी को आप जैसा ससुराल मिलने जा रहा है" हिमानी के पिता ने कहा

"इतनी सुन्दर बहु जो मिल रही है अपने उस बेटे के लिए, जिसे कोई पूरे केदारनाथ में भी अपनी लड़की ना दे कोई, उसका सौदा दहेज़ की चंद चीज़ो के पीछे कर रही है " भव्या ने कहा मुँह बिगाड़ते हुए अपनी बहन से

"भव्या तू फिर शुरू हो गयी, सुरेन्द्र मेरे नसीब में लिखा है भगवान जी ने " हिमानी ने कहा

"भगवान ने नही आपने उसे अपने नसीब में लिखा है आपके नसीब में तो कोई और होगा लेकिन आपको ना जाने उस सुरेन्द्र में क्या नज़र आता है की उससे शादी करने के लिए राज़ी हो गयी एक बार भी मना नहीं किया माँ पिताजी से" भव्या ने कहा




"क्या कहती कि मुझे सुरेन्द्र अच्छा नही लगता, मैं किसी राजकुमार से शादी करूंगी क्यूंकि सुरेन्द्र की खूबसूरती मेरे आगे फीकी पडती है, तोड़ देती माँ पिताजी का मान जो उनका हम दोनों पर है। कह देती की जाए और जाकर मेरे लिए कोई राजकुमार ढूंढ कर लाये जो मुझे अपने साथ घोड़ी पर बैठा कर ले जाए और पीछे ढेर सारा दहेज़ बांध कर जिसे इकठ्ठा करने में पिताजी की कमर झुक जाती। नही मुझसे ये सब नही होता माँ पिताजी ने जो भी फैसला मेरे लिए लिया है वो एक दम सही है मुझे ईश्वर और फिर अपने माता पिता दोनों पर भरोसा है दोनों ही कभी मेरे साथ कुछ अन्याय नही करेंगे जो भी होगा मेरे भले के लिए होगा और तू भी ज्यादा सोचना बंद करदे जो मेरे नसीब में होगा वो मुझे मिलकर रहेगा भाग्य से कौन जीता है आज तक जो मैं जीतूंगी। जा अब बाहर जाकर बैठ नही तो माँ नाराज़ हो जाएगी की मेहमानों को छोड़ कर दोनों बहने ना जाने अंदर क्या कर रही है।" हिमानी ने कहा

" जा रही हूँ वैसे भी कोई इतने खास मेहमान नही है जिनके साथ बाहर बैठा जाए अपने बचपन से देख रही हूँ इन सब के चेहरे अब तो कैनवास पर भी उतार सकती हूँ इन सब के चेहरे " भव्या ने कहा और हसने लग



हिमानी इस तरह की बाते सुन हसने लगी और बोली " पागल मेहमान भगवान समान होता है ऐसे नहीं बोलते है बढ़ो के बारे में जा अब बाहर जा मुझे अकेला छोड़ दे मैं सारा काम कर लूंगी"

"ठीक है मेरी माँ, जा रही हूँ लेकिन एक बार अपने दिल से पूछना ज़रूर क्या सुरेन्द्र को देख कर तुम्हारे दिल में कुछ होता है उसके लिए या नही तुम्हे खुद सारे सवालों के जवाब मिल जाएगे" भव्या ने कहा और रसोई घर से बाहर आ गयी

झल्ली कही की आज कल रोमांटिक ड्रामे और फिल्मे देख रही है जब ही तो देखो केसी प्यार मोहब्बत की बाते कर रही है और कही इसे खुद तो किसी से प्यार नही हो गया। अरे नही ऐसा नही हो सकता मैं भी क्या सोचने लग जाती हूँ। हिमानी ने अपने आप से कहा

और ना जाने किस के ख्यालो में खो सी गयी बाहर खिड़की से वो पहाड़ो और उसकी शाम के नज़ारे देखने लगी। उसके रेशमी बाल उड़ उड़ कर उसके चेहरे पर आ रहे थे और वो बार बार उन्हें अपने हाथ से हटा रही थी बाहर का वातावरण बेहद खामोश सा था वो उस ख़ामोशी में कही खो सी गयी उसे याद नही रहा की कोई बाहर भी बैठा है और बाहर उसकी शादी की बात चल रही है।

11:44 D

हिमानी खिड़की के पास बैठी एक टक बाहर देख रही थी। भव्या ना चाहते हुए भी बाहर बैठी थी।

"हाँ तो भाईसाहब हम लोग कब आ जाए आपके घर बारात लेकर कब तक का इरादा है आपका अपनी बेटी की शादी का " कविता जी ने हिमानी के पिता से पूछा

हिमानी के पिता ने पास बैठी अपनी पत्नि की तरफ देखा और बोले" जब आप चाहे उसे अपने घर ले जा सकते है हमारी तरफ से इज़ाज़त है बस इतना समय मिल जाए की बारात का स्वागत अच्छे से कर सकूँ"

"तू चिंता मत कर मेरे दोस्त हरी किशन किसी भी चीज़ की तू हमें अपनी बेटी दे रहा है यही बहुत है हमारे लिए" सुरेन्द्र के पिता ने कहा

"नही नही उनके भी कुछ अरमान होंगे अपनी बेटी की शादी को लेकर, उनके घर की भी पहली शादी होगी भले ही दहेज़ ना दे रहे हो लेकिन फिर भी बहुत सारे ऐसे काम होते है जो करना जरूरी होते है जैसे बारतियों की आव भगत, उनके स्वागत की तैयारी करना उन सब के लिए भी समय की ज़रूरत होती है 'कविता जी ने बातो बातो में फिर से दहेज़ की बात कह डाली जिसे सुन हरि किशन जी के घर वाले फिर थोड़ा उदास हो कर एक दूसरे की तरफ देखने लगे ।



"तो फिर ठीक है हमने आपको मानसून के बाद तक का समय दिया। जैसे ही मानसून सत्र खत्म होगा अच्छा सा मुहूर्त देख कर हम इन दोनों की शादी कर देंगे अभी मानसून आने में 3 महीने बाकी है और पहाड़ो पर मानसून की आमद कुछ अच्छी नही होती और पंडित जी आप का भी तो सहालक चल उठेगा सेलानी आने लगेंगे केदारनाथ धाम के दर्शन के लिए आप भी पूजा पाठ में व्यस्त रहेंगे सही कहा ना पंडित जी मेने मानसून के बाद ही हम इन दोनों को शादी के बंधन में बांध देंगे जब तक आपको भी कुछ तैयारी करने का भरपूर समय मिल जाएगा और अगर ईश्वर की किर्पा रही और ढेर सारे सेलानी आये इस बार दर्शन को तो आप थोड़ा बहुत पैसा भी जोड़ लेंगे अपनी बेटी की शादी के लिए " कविता जी ने कहा

"मानसून के बाद, नही पता इस बार मानसून कौन सी तबाही लेकर आये हम लोगो के लिए लेकिन कोई बात नही शादी तो करना ही है ईश्वर ने चाहा तो सब अच्छा रहेगा और मेरी बेटी इज़्ज़त से अपने घर की हो जाएगी मुझे मंजूर है और मुझे ज्यादा समय भी मिल जाएगा अपनी बेटी की शादी की थोड़ी बहुत तैयारी करने का बाकी एक बार मैं इन सब से राय मशवरा कर लूँगा उसके बाद आप लोगो को बता कर तारीख़ ले लूँगा " हरी किशन जी ने कहा


"चलो इस बात पर मुंह मीठा किया जाए, भव्या अंदर से मिठाई तो लाना जरा प्लेट में डाल कर भव्या की माँ ने कहा

भव्या अंदर आ गयी उसने देखा की हिमानी खिड़की के पास किसी गहरी सोच का शिकार हुए बैठी थी।

उसने पीछे से आकर उसके कान में कहा" मुबारक हो बहुत बहुत

हिमानी चौक कर बोली" मुबारक बाद लेकिन किस चीज की"

"तुम्हारी शादी की और किस चीज की बाहर तुम्हारी शादी तय हो गयी और तुम यहाँ खिड़की के पास गुमसुम बैठी हो इसलिए तो सब का मुँह मीठा कराने के लिए मिठाई लेने आयी हूँ रसोई से" भव्या ने पूछा

"अच्छा, लेकिन कब की मुझे तो कुछ पता ही नही चला " हिमानी ने पूछा

"तुम्हे कुछ खबर ही कहा है कि तुम्हारे साथ क्या हो रहा है तुम तो उस सीदी साधी गाय की तरह हो रही हो जिसे पता ही नही की वो किस खूंटे से बंधने जा रही है" भव्या ने कहा



"ज्यादा बकवास बाते मत कर और साफ साफ बता की कब की रखी गयी तारीख़" हिमानी ने कहा

"मानसून के दिनों के बाद की तारीख़ रखी जाएगी अभी तारीख़ तय नही हुयी है पिताजी हम सब से पूछ कर तारीख़ रखेंगे" भव्या ने कहा

हिमानी को थोड़ा झटका सा लगा और वो बोली " जा तू जाकर मिठाई देकर आ बाहर सब तेरा इंतज़ार कर रहे होंगे"

"क्या हुआ दीदी तुमने कुछ जवाब नही दिया, सब ठीक तो है " भव्या ने पूछा

"हाँ सब ठीक है तू जा जाकर मिठाई देकर आ बाद को बात करेंगे " हिमानी ने कहा

"ठीक है दीदी" भव्या ने कहा और मिठाई लेकर चली गयी

"ये लीजिये समधन जी मुँह मीठा कीजिये बाकी बाते होती रहेंगी" हरी किशन जी ने मिठाई की प्लेट देते हुए कहा।

थोड़ी देर बाद वो लोग बोले" अच्छा पंडित जी अब हमे इज़ाज़त दीजिये हम चलते है, आप आइये क हमारी तरफ "




"जी जरूर समय मिलता है तो ज़रूर आएंगे। अब तो शादी की तैयारी करने में ही समय निकल जाएगा और कुछ दिन बाद सेलानी आना भी शुरू हो जाएंगे मंदिर के कपाट खुलते ही। हिमानी भी सेलनियों को गाइड करने में व्यस्त हो जाएगी" वैशाली जी ने कहा

ये सुन सुरेन्द्र की माँ को थोड़ा बुरा लगा हिमानी के

काम करने की बात सुन कर लेकिन वो बिना कुछ कहे

वहा से चली गयी।

रास्ते में सुरेन्द्र ने अपनी माँ से कहा " माँ आपको इस तरह बार बार दहेज़ का ज़िक्र नही छेड़ना चाहिए था पंडित जी के सामने देखा नही कितना उदास हो जा रहे थे दहेज़ का नाम सुनकर "

"तुझे अभी से बड़ी फ़िक्र होने लगी अपने ससुराल

वालो की " कविता जी ने कहा

"वैसे लल्ला सही कह रहा है, तुम्हे बार बार इस तरह दहेज़ और बारात के सवागत का ज़िक्र नही करना चाहिए था हरि किशन से" सुरेन्द्र के पिता ने कहा

" आप दोनों रहने भी दीजिये, बहुत दौलत छिपाये बैठे होंगे आपके दोस्त देखने पर ऐसा लगता है की मानो बहुत गरीब है लेकिन ऐसा है नही, खुद भी हज़ारो की दक्षिड़ा लेते होंगे और बेटी भी तो कमा कर लाती है सेलनियों को पहाड़ो पर घुमा कर ।




एक बात सुनले सुरेन्द्र शादी के बाद हिमानी को अपना ये काम छोड़ना पड़ेगा मैं नही चाहती कि शादी के बाद वो ये काम करे उसे अपना घर संभालना होगा। तू मेरा इकलौता बेटा है उसके पल्लू से मत बंध जाना कही उसकी खूबसूरती के आगे भीगी बिल्ली बना रहे अगर वो दिन को रात बोले तो तू भी जन मुरीदो की तरह अपनी पत्नी के साथ दिन को रात बोलने लगे, अपना दबदबा बनाये रखना उस पर अपनी मर्दानगी कम मत होने देना उसके सामने कही तू भी और लड़को की तरह ज़ोरू का गुलाम बन कर उसके आगे पीछे फिरता रहे। तेरी ख्वाहिश है हिमानी को अपनी दुल्हन बनाने की वरना तो मैं तेरे लिए एक से एक अच्छी लड़की का रिश्ता लाती और तो और तेरा घर भी दहेज़ से भर देती" कविता जी ने कहा

सुरेन्द्र और उसके पिता एक दूसरे को देखने लगे और बिना कुछ कहे अपनी के साथ अपने घर आ गए।

हिमानी और उसकी बहन ने मेहमानों के जाने के बाद सारे काम खत्म किए और रसोई में जाकर रात के खाने की तैयारी करने लगी। वैशाली जी और हरि किशन जी बाहर बरामदे में बैठे मौसम का आनंद ले रहे थे।



" बेटियां कितनी जल्दी बड़ी हो जाती है कल तक इस आँगन में खेलती थी और अब देखो उनके इस आँगन को छोड़ने के दिन आ गए" हरि किशन जी अपनी पत्नि से कहा

"सही कहा आपने पंडित जी, हमारे आंगन की चिडियो का अब घोंसला छोड़ कर उड़ने का समय आ गया अब वो जाकर किसी और का घोंसला आबाद करेंगी वक़्त कितनी तेजी से गुज़र गया पता ही नही चला कल तक जिस बेटी को अपने सीने से लगा कर रखा अब उसी कलेजे के टुकड़े को किसी और को देने का समय आ गया कितनी अजीब रीत है ना ये पंडित जी पालो पोसो पढ़ाओ लिखाओ उन्हें अपने पेरो पर खड़ा करो और फिर किसी अनजान के हाथ में उसका हाथ देकर उसे अपने ही घर से विदा करके उसका कन्यादान करदो " वैशाली जी ने नम आँखों से कहा

"हाँ ये तो रीत है और सब ही को निभाना पडती है तुमने भी निभाई थी और अब हमारी बेटियां निभाएंगी तुम फ़िक्र मत करो सुरेन्द्र अच्छा लड़का है और कविता भाभी भी उसका अच्छे से ख्याल रखेंगी उसे कभी कोई परेशानी नही होगी तुम ईश्वर पर भरोसा रखो " पंडित जी ने कहा




"ईश्वर पर तो भरोसा है हर दम लेकिन इंसानों का कोई भरोसा नही कब उस भरोसे को तोड़ डाले। आज कविता भाभी कुछ बदली बदली लग रही थी बार बार दहेज़ की बात कर रही थी। कही वो हमारी बेटी को शादी के बाद दहेज़ के लिए परेशान ना करे बस मुझे यही चिंता सताती है पहले तो सब मना ही करते है दहेज़ लेने से लेकिन बाद में बेटियों को तंग करते है उन्हें बात बात में दहेज़ का ताना दे ही देते है जिस के बाद ज़िन्दगी बड़ी मुश्किल सी लगने लगती है " वैशाली जी ने कहा

"भाग्यवान तुम परेशान मत हो हमसे जितना हो सकेगा हम उतना अपनी बेटी को देकर इस देहलीज से रुक्सत करेंगे तुम प्रार्थना करो की इस बार खूब सारे श्रद्धालु आये और हिफाज़त से अपने घरों को चले जाए और हमारी भी अच्छी कमाई हो जाए बाकी सब प्रभु की मर्ज़ी होगा वही जो वो चाहेंगे " हरी किशन जी ने समझाते हुए कहा

तभी वहा भव्या आती है भागती हुयी कुछ कहने ।

आखिर क्या कहना था भव्या को जानने के लिए पढ़ते रहिये