Toronto (Canada) Travelogue - 6 in Hindi Travel stories by Manoj kumar shukla books and stories PDF | टोरंटो (कनाडा) यात्रा संस्मरण - 6

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टोरंटो (कनाडा) यात्रा संस्मरण - 6

यात्रा संस्मरण की प्रेरणा

जब मैं यहाँ आने की तैयारी कर रहा था, तब टेलीविजन के किसी कार्यक्रम में एक दिन हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने अपने उद्बोधन में कहा था कि आप जब विदेश जाते हैं, तो अपने यात्रा संस्मरणों को अवश्य लिखें। इससे एक देश दूसरे देश के बारे में अधिक से अधिक पढ़कर जानने समझने की कोशिश करता है इससे आपस में एक दूसरे से नजदीकियाँ बढ़तीं हैं। विश्वबंधुत्व की भावना बढ़ती है। लोगों के द्वारा लिखे अपने संस्मरण भावनात्मक रूप से एक दूसरे के दिलों को स्पर्श करेंगे। इससे हमारे देश में और समाज में भी बदलाव आयेगा। तभी से मैंने निश्चय किया कि मैं कुछ संस्मरण अवश्य लिखूँगा। एक साहित्यकार के नाते हमारा भी फर्ज बनता है कि हम यहाँ की अच्छी बातों को अपने देश के जन मानस तक कैसे पहुँचायें ताकि हम भी उस तरक्की के रास्ते में पहुँच सकें जिसमें आज ये खड़े हैं। इस तरह का मन में विचार आया और लिखने बैठ गया।

विदेश यात्रा जो हमेशा अपने किसी काम के सिलसिले में आते जाते रहते हैं। उनके लिए एक सामान्य बात हो सकती है, पर मुझ जैसे और कितने करोड़ों लोग होगें जिनको यह अवसर जीवन में शायद कभी कभार नसीब होता है। यह उन सभी लोगों के लिए है जो इसमें से कुछ हासिल कर सकें। कुछ चिन्तन कर सकें, कुछ रचनात्मक कदम उठा कर देश के नव निर्माण में अपना भी योगदान दे सकें। मैं भी अपने साहित्यकी धर्म का निर्वाहन करके अपना एक छोटा सा फर्ज निभाने की कोशिश कर रहा हूँ। अपनी लेखनी से यहाँ की अच्छी बातें लिखकर अपने समाज तक पहुँचाने का प्रयास कर रहा हूँ , इस आशा से कि शायद कुछ परिवर्तन आ सके।

यह भी एक संयोग है, जब आज मैं अपने संस्मरण को लिखने कम्प्यूटर में बैठा, तो 19 जून 2015 की तारीख थी। जो कि हमारी शादी की 41 वीं साल गिरह होती है। यहाँ आने के कौतूहल और खुशी में हम लोग भूल गये थे, जिसे जबलपुर से बड़े बेटे मनीष के फोन पर बधाई देने पर याद आया। यहाँ छोटे बेटे गौरव को भी पता लग चुका था। वह चुपचाप शाम को एक बड़ा केक लेकर आया और बहू बेटे ने हमारी शादी की साल गिरह को केक काट कर मनवाया। खैर मैं बात कर रहा था, अपने संस्मरणों के लेखन के बारे में, सचमुच मुझे पहले तो यह दुरूह कार्य लग ही रहा था। किन्तु जब पिता जी के जीवन संस्मरण डायरी की याद आई तो मेरे मन में एक संकल्प उभरा कि लिखना तो चालू किया जाए सफलता या असफलता तो भविष्य की बात है। यह भी एक संयोग था कि हमारे पिताजी श्री रामनाथ शुक्ल‘ श्रीनाथ’ ने अपनी डायरी ‘यादों के झरोखों से ’ में उन्होंने अपने सीलोन गाँव से शहर जबलपुर और जीवन के विभिन्न पड़ावों, देश के परिवर्तनों को रेखांकित किया तो मैं भी क्यों न अपने जबलपुर शहर से विदेश यात्रा को लिखूं। खैर......

मैंने यहाँ के बारे में जानने के लिये खोजबीन चालू की और गूगल से जानने की कोशिश की, जो आपको बताना चाहता हूँ कि कनाडा उत्तरी अमेरिका का एक देश है, जिसमें दस प्रान्त और तीन केन्द्र शासित प्रदेश हैं। यह महाद्वीप के उत्तरी भाग में स्थित है, जो अटलांटिक से प्रशान्त महासागर तक और उत्तर में आर्कटिक महासागर तक फैला हुआ है। इसका कुल क्षेत्रफल 99.8 लाख वर्ग किलोमीटर है और कनाडा कुल क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व का दूसरा और भूमि क्षेत्रफल की दृष्टि से चैथा सबसे बड़ा देश है। इसकी संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ अन्तर्राष्ट्रीय सीमा विश्व की सबसे बड़ी भू-सीमा है।

कनाडा शब्द की व्युत्पत्ति

शब्द कनाडा सेंट लॉरेंस इरोक्वॉयाई शब्द कनाटा से बना हुआ है जिसका अर्थ गाँव अथवा बसावट होता है। सन् 1535 में वर्तमान क्यूबेक नगर क्षेत्र के स्टैडकोना गाँव की खोज जाक कार्तिए, ने की थी। कार्तिए ने बाद में डोंनकना (स्टैडकोना के मुखिया) से सम्बंधित पूर्ण क्षेत्र को कनाडा शब्द से उल्लिखित किया, इसके बाद सन् 1545 से यूरोपीय पुस्तकों और मानचित्रों में इस क्षेत्र को कनाडा नाम से उल्लिखित किया जाने गया।

इस क्षेत्र में सर्वप्रथम लोग साइबेरिया से आए थे, जो बेरिंग की खाड़ी को पार करके यहाँ पहुँचे थे और इनके कुछ समय बाद एशिया से अन्तिम इनूइट (एस्किमो) यहाँ आए थे। यहाँ आने वाले सर्वप्रथम यूरोपीय फ्रांसीसी थे। अठारहवीं सदी में फ्रांस और इंग्लैण्ड के मध्य चल रहा विवाद यहाँ इस क्षेत्र के उपनिवेशों तक आ पहुँचा और अंग्रेजों और फ्रांसीसीयों के बीच घमासान युद्ध छिड़ गया और अंत में अंग्रेजों की विजय हुई। 1763 की पैरिस संधि के बाद न्यू फ्रांस या वर्तमान कनाडा एक ब्रिटिश का उपनिवेश बन गया। इसके कुछ वर्षों बाद, ब्रिटेन ने औपचारिक रूप से फ्रांसीसी नागरिक कानून को मान्यता प्रदान की और कनाडा की फ्रांसीसी भाषी जनसंख्या की धार्मिक और भाषाई स्वतन्त्रता भी स्वीकार की।

१९८२ में, कनाडियाई संविधान में बहुत बड़े सुधार किए गए ब्रिटिश उत्तर अमेरिकी अधिनियम १८६७ और इसमें हुए बहुत से संशोधन के पश्चात् १९८२ में, संविधान अधिनियम बना और इस तरह कनाडा का संविधान बना। हाल के वर्षों में क्यूबेक (कनाडा का फ्रांसीसी भाषी बहुल प्रान्त) के लोगों ने राष्ट्रीय एकीकरण के मुद्दे पर बहुत कुछ बोला है। १९८० और १९९५ में हुए जनमत संग्रहों में इस प्रान्त के लोगों ने प्रान्त की सम्प्रभुता पर मत दिया और अधिकांश मतदान क्यूबैक के कनाडा में बने रहने के पक्ष में ही हुआ है

वर्ष १९०३ में भारतीयों का पहला दल कनाडा के वैंकुअर शहर में बसने के उद्देश्य से आया था। इसमें कुल दस सिख थे। ये लोग पंजाब से आये थे। इनमें कुछ खेतिहर थे और कुछ सेना से अवकाश प्राप्त सैनिक थे। इन लोगों की शिक्षा नहीं के बराबर थी। ये लोग हाँगकांग से होते हुए प्रशांत महासागर से होकर आये थे। यद्यपि ये लोग सिख धर्म के थे, परंतु इन्हें भारत का हिंदू ही कहा जाता था। उस समय यह शब्द बहुत प्रचलित था, भारत से आये किसी भी व्यक्ति को भारत का हिंदू ही कहते थे। अब ऐसा नहीं हैं। आजकल लोग गुजराती, मद्रासी, सिख या मुसलमान कहकर पुकारते हैं। यह परिवर्तन इसलिए हुआ है कि भारतीयों की संख्या अब बहुत ज्यादा हो गई है और यहाँ के लोगों को उनके बारे में जानकारी भी अच्छी हो गई है।

इसके बाद वर्ष १९०४ में देवीचंद्र नाम के एक ब्राह्मण जो पंजाब के रहनेवाले थे, अपनी पत्नी के साथ अमेरिका होते हुए कनाडा के वैंकुअर शहर पहुँचे थे। कनाडा का पश्चिमी तट जहाँ वैंकुअर शहर है वहाँ ठंड कम पड़ती है, क्योंकि जापान से गरम पानी की एक धारा प्रशांत महासागर से होकर यहाँ आती है, जो इस भाग को गरम रखती है। श्री देवीचंद्र ने एक यात्री सेवा का व्यवसाय करके दो साल के अंदर ४३२ भारतीयों को कनाडा बुला लिया था। इतने कम समय में इतने ज्यादा भारतीय चेहरे गोरों की नजरों में खटकने लगे थे। सरकार ने श्री देवी चंद्र को गिरफ्तार कर लिया। क्योंकि ये धनी व्यक्ति थे, इसलिए इन्होंने अपनी जमानत करवा ली। वर्ष १९०७ के जुलाई महीने में इन्हें कनाडा छोड़कर भारत जाना पड़ा। उस समय की सरकार चाहती थी कि कनाडा गोरे लोगों का ही देश बना रहे। भारतीय मूल के अप्रवासी जो प्रारंभ में कनाडा आये थे, वे अधिकतर साक्षर नहीं थे। इसलिए ये लोग लकड़ी की मिलों में, सड़क बनाने के काम में या रेलवे लाइन बिछाने के काम में नौकरी करते थे। इनका एक मात्र उद्देश्य कुछ पैसे बचाकर हिंदुस्तान अपने घर भेजना था।