Ardhangini - 9 in Hindi Love Stories by रितेश एम. भटनागर... शब्दकार books and stories PDF | अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 9

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 9

मैत्री की दूसरी शादी को लेकर सब खुश थे सिवाय मैत्री के और मैत्री के खुश ना होने की वजह साफ थी और वो ये थी कि मैत्री को लग रहा था कि अब फिर से वही सब होगा!! वही ताने तुश्की, वही सास के नखरे, वही हर समय की उलझन लेकिन परिस्थितियां जिस तरह की बन गयी थीं उन परिस्थितियों मे मैत्री के विरोध के लिये कोई जगह नही थी, मैत्री की मनस्थिति बस यही कह रही थी कि शादी के लिये "हां" बोलने के बाद खुशियो की जो धारा उसके परिवार मे बह चुकी है वो भी उसी धारा के बहाव मे बह चले, यही सोच कर मैत्री बस सबकी खुशी मे ही खुश रहने की कोशिश किये जा रही थी लेकिन उसके साथ पूर्व मे जो कुछ भी हुआ उसकी उलझन उसे खुश रहने नही दे रही थी..!!

मैत्री की दूसरी शादी की खुशखबरी परिवार मे सबको मिलने के बाद उधर हॉस्पिटल मे राजेश ने अपने ताऊ जी जगदीश प्रसाद से कहा- ताऊ जी इस बार मैत्री की शादी की जिम्मेदारी मै लेता हुं और इस बार कोई जल्दबाजी नही होगी, मै ढूंढुंगा अपनी बहन के लिये एक ऐसा परिवार जो उसको उतना ही प्यार दे जितना हम सब इससे करते हैं...!!

राजेश का आत्मविश्वास देख के जगदीश प्रसाद और सरोज समेत सभी लोगो ने राजेश की बात पर हामी भर दी, इसके बाद राजेश ने कहा- अच्छा अब मै घर जा रहा हूं अब सुनील रुक जायेगा यहां, मै थोड़ा सा आराम कर लूं घर जाकर फिर मुझे अपने एक क्लाइंट दोस्त से मंथली विजिट पर मिलने के लिये कानपुर जाना है...

इसके बाद मैत्री की तरफ देखकर राजेश ने कहा- मैत्री घर चल..!! तू भी ठीक से नही सोयी है रात भर इसलिये घर चलके आराम करले फिर दोपहर मे लंच ले कर हॉस्पिटल आ जाना...

इसके बाद मैत्री और राजेश घर चले गये, असल मे राजेश एक बिल्डिंग मैटीरियल मे इस्तेमाल होने वाले पाइप बनाने वाली कंपनी मे एरिया मैनेजर के पद पर कार्यरत था, उसके अंडर मे लखनऊ और लखनऊ के आसपास के करीब पांच मुख्य जिले आते थे जिसमे से कानपुर भी एक था, इधर राजेश ने अपने छोटे भाई को भी बिल्डिंग मैटीरियल और हार्डवेयर की दुकान खुलवा दी थी जिसमे उसकी भी हिस्सेदारी थी, तो राजेश जॉब के साथ साथ सुनील के साथ मिलकर बिजनेस भी करता था, वैसे तो बिजनेस की सारी जिम्मेदारी सुनील पर ही थी पर उसे बाहर से राजेश का भी सपोर्ट रहता था, राजेश डायरेक्ट बिज़नेस में इन्वॉल्व नहीं हो सकता था क्योकि जॉब के साथ साथ बिजनेस करने की बात अगर उसके ऑफिस में किसी को पता चल जाती तो उसकी जॉब भी जा सकती थी और चूंकि वो एरिया मैनेजर था तो उसे महीने मे एक बार कंपनी के डिस्ट्रीब्यूटरों और रिटेलरो से मिलने जाना होता था और आज राजेश को कानपुर की विजिट पर जाना था कानपुर के डिस्ट्रीब्यूटरों और रिटेलरो से मिलने, जिनमे से एक था "जतिन!!".... जतिन का कानपुर मे बिल्डिंग मैटीरियल और हार्डवेयर का ही बिज़नेस था..

घर जाने के बाद थोड़ी देर आराम करके राजेश कानपुर के लिये निकल गया, राजेश और जतिन एक दूसरे को तब से जानते थे जब से दस साल पहले जतिन ने अपना बिजनेस शुरू किया था, उस समय जतिन की बहुत छोटी सी दुकान हुआ करती थी चूंकि उस समय जतिन के पास बिजनेस मे इन्वेस्ट करने का जादा पैसा नही था तो उसने बहुत छोटे स्तर पर अपना बिजनेस शुरू किया था, उस समय जतिन का व्यवहार और बिजनेस के प्रति संजीदगी देखकर राजेश ने अपने रिस्क पर कंपनी से कहकर जतिन को उधारी पर काफी माल दिलवा दिया था और जतिन ने भी ईमानदारी से बहुत मेहनत करके सिर्फ दो महीने मे सारा उधार उतार दिया था बस तभी से जतिन और राजेश बहुत अच्छे दोस्त बन गये थे..!!

कानपुर पंहुचने के बाद जब राजेश और जतिन की मुलाकात हुयी तो जतिन ने राजेश को देखकर कहा- और भई राजेश क्या हालचाल हैं, बड़े थके थके से लग रहे हो क्या हुआ तबियत तो ठीक है...??

राजेश ने भी हाथ मिलाते हुये जतिन से कहा- हांं जतिन भाई तबियत तो ठीक है बस रात भर हॉस्पिटल मे रहा तो ठीक से सो नही पाया और फिर कानपुर आना जरूरी था तो बिना ठीक से आराम किये मै यहां चला आया...

हॉस्पिटल की बात सुनकर जतिन चौंक गया और चौंकते हुये राजेश से बोला- हॉस्पिटल!! अरे क्यो क्या हुआ? सब ठीक तो है ना कोई सीरियस बात तो नही...

राजेश ने कहा- अरे नही नही अब कोई सीरियस बात नहीं है अभी सब ठीक है असल मे मेरे ताऊ जी को पैरालिसिस का अटैक पड़ गया था, बस भगवान की क्रपा रही कि समय से पता चल गया और हम उन्हे तुरंत हॉस्पिटल ले कर चले गये और सही समय पर ही उन्हे इलाज भी मिल गया तो बस ये समझो कि पैरालिसिस छू कर निकल गया लेकिन अब ठीक हैं ताऊ जी...

राजेश की बात सुनकर जतिन ने अफसोस जताते हुये कहा- ओहो... चलो कोई बात नही तुम्हारे ताऊ जी अब ठीक हैं यही सबसे अच्छी बात है, तो यार राजेश तुम आये क्यो कानपुर आज रहने देते...

राजेश ने कहा- मंथली क्लोजिंग होने वाली है ना और तुम तो जानते ही हो कि अगर सेल्स रिपोर्ट सबमिट नही की तो दिक्कत हो जायेगी और तुम्हे तो पता ही है कि सेल्स मे टारगेट का कितना प्रेशर रहता है...!!

जतिन ने कहा- हां ये तो है अच्छा रुको तुम्हे बढ़िया सी चाय पिलवाता हूं तुम्हारी सारी थकान उतर जायेगी...

इसके बाद जतिन ने अपनी दुकान मे काम करने वाले एक लड़के को बुलाया और उससे स्पेशल कड़क चाय और खाने के लिये समोसे मंगा लिये और राजेश को लेकर दुकान के ऊपर वाले फ्लोर मे बने अपने ऑफिस मे चला गया...

इधर जतिन के बिजनेस की अगर बात करें तो जतिन एक मध्यम वर्गीय परिवार का बेटा था, उसके पिता विजय सक्सेना एक प्राइवेट कंपनी मे जॉब करते थे, जिंदगी भर उन्होने मेहनत की लेकिन अपने लिये कुछ नही कर पाये पर अपने दोनो बच्चो जतिन और अपनी बेटी ज्योति को उच्च शिक्षा उन्होने जरूर दी, जतिन ने ग्रेजुएशन करते करते छोटे मोटे सेल्स के काम करने शुरू कर दिये थे ताकि वो अपनी फीस खुद भर सके और अपने पापा का बोझ कम कर सके, बहुत छोटी उम्र मे ही जतिन की मेहनत करने की आदत और अच्छे व्यवहार की वजह से उसे सकारात्मक रूप से कई लोग जानने लगे थे.. जतिन की बातो मे, हाव भाव मे और आचरण मे उसके परिवार के संस्कार साफ दिखाई देते थे इसीलिये जिस जगह भी वो पार्ट टाइम जॉब कर लेता था उस जगह के मालिक जतिन के मुरीद हो जाते थे, ग्रेजुएशन के तुरंत बाद जतिन ने एक सीमेंट बनाने वाली बड़ी नामी कंपनी मे बहुत कम सेलरी मे जॉब ज्वाइन कर ली थी, उस जॉब मे सेलरी जरूर कम थी लेकिन इंसेंटिव बहुत अच्छे थे और जतिन ने जी तोड़ मेहनत करके खूब इंसेंटिव कमाये भी थे, कोई बुरी आदत नही थी तो जतिन का कोई खर्चा भी नही था इसलिये घर के खर्च हटाने के बाद जतिन काफी अच्छी सेविंग कर लिया करता था चूंकि बचपन से ही उसकी समाजसेवा वाली प्रव्रत्ति थी तो दो तीन संस्थाओ से भी जतिन जुड़ गया था, जतिन समझदार इंसान था वो जानता था कि जिस सामाजिक और पारिवारिक उद्देश्य को लेकर वो चल रहा है उनकी जरूरते नौकरी करके पूरा करना बहुत मुश्किल है और वैसे भी सामाजिक कार्यो मे लिप्त रहने के लिये उसे समय की जरूरत थी जो वो नौकरी मे उसे मिल नही पा रहा था दूसरी तरफ अपनी इकलौती और दुलारी बहन की शादी भी धूमधाम से करनी थी इसलिये जतिन ने एक निर्णय लिया कि अब वो नौकरी के बजाय बिजनेस करने के लिये प्लानिंग करेगा इसी के चलते उसने एक दिन अपने बॉस से इस विषय पर बात करते हुये कहा- सर... मेरा मन बिजनेस करने का होता है अगर आप मेरी थोड़ी सी हेल्प कर दें तो मेरा खुद का काम शुरू हो जायेगा...

चूंकि जतिन मेहनती और चंचल स्वभाव का एक बहुत ही प्लीजेंट पर्सनैलिटी वाला इंसान था तो उससे सब खुश रहते थे, वो अपने काम मे जादा इंवॉल्व रहता था बाकि की ऑफीशियल पॉलिटिक्स मे उसका बिल्कुल ध्यान नही था इसलिये जतिन की बात सुनकर उसके बॉस ने उससे कहा- जतिन तुम्हारा आइडिया तो अच्छा है और बिजनेस करना कोई बुरी बात नही है पर तुम्हे तो पता है कि सीमेंट की एजेंसी लेने मे काफी खर्च आता है, कम से कम पांच लाख!! उसके अलावा गोडाउन का खर्चा, कंपनी बनाने का और उसके रजिस्ट्रेशन का खर्चा, सारा सेटअप बिठाने मे कम से कम आठ से दस लाख तक का खर्च आता है, मेरे पास इतने पैसे तो हैं नही हां थोड़ी बहुत जो मदद कर सकता हूं वो मै कर दूंगा पर क्या तुम इतना खर्च उठा पाओगे...?

जतिन की बिजनेस की बात को सुनकर उसके बॉस को लगा कि जतिन शायद पैसो की बात करने आया है, अपने बॉस की ये बात सुनकर जतिन समझ गया कि बॉस कुछ गलत सोच रहे हैं तो उन्हे टोकते हुये जतिन ने कहा- अरे नही नही सर मै पैसे नही मांग रहा असल मे मैने कुछ सेविंग्स की हैं, जादा तो नही करीब डेढ़ लाख तक हैं मेरे पास सब मिला कर, आप अगर कर सकते हैं तो बस इतना कर दीजिये कि मुझे इतने पैसो मे थोड़ा माल दिलवा दीजिये, बिलिंग का थोड़ा प्रॉब्लम रहेगा कि वो किसके नाम पर और कैसे रहेगी क्योकि डेढ़ लाख मे कंपनी तो मै अभी नही बनवा पाउंगा ना गोडाउन का खर्च उठा पाउंगा, आप प्लीज अगर हो सके तो मेरी इतनी मदद कर दीजिये...

जतिन के इस तरह बिजनेस के लिये रिक्वेस्ट करने पर उसके बॉस का दिल जैसे पसीज सा गया और जतिन की बातो का जवाब देते हुये वो बोले- हां ये मै करवा दूंगा, बिलिंग किसी और के नाम से हो जायेगी और माल तुम्हे मिल जायेगा लेकिन इतनी सारी सीमेंट की बोरियां तुम रखोगे कहां...?

अपने बॉस की ये सकारात्मक बात सुनकर जतिन बहुत खुश हुआ और खुश होते हुये बोला- सर वो मै रख लूंगा और सारी बेच भी दूंगा, आप बस मुझे डेढ़ लाख तक का माल दिलवा दीजिये....

"लेकिन जतिन एक दिक्कत और भी है... और वो ये कि बिजनेस मे इंवॉल्व होने के बाद तुम्हे अच्छी खासी चलती हुयी जॉब छोड़नी पड़ेगी" जतिन के बॉस ने कहा...

पहले अपने बॉस की बात सुनकर एकदम से खुश हुआ जतिन जॉब छोड़ने की बात सुनकर जैसे घबरा सा गया और बहुत उदास से लहजे मे अपने बॉस से बोला- सर मै दोनो कर लूंगा ना....!!

उसके बॉस ने कहा- मै जानता हूं जतिन तुम काबिल हो, मेहनती हो इसीलिये तो मैं तुम्हारा साथ दे रहा हूं लेकिन बेटा मै भी कंपनी का एक ऐंपलॉई ही हूं, मै भी नियमो से बंधा हुआ हूं और तुम्हे तो पता ही है कि हमारे ऑफिस मे कितनी पॉलिटिक्स है, जरा सी भी किसी को भनक लग गयी कि तुम जॉब के साथ बिजनेस भी कर रहे हो तो तुम्हारे साथ साथ मेरी जॉब पर भी तलवार लटक जायेगी फिर मै क्या करूंगा... मेरा भी तो परिवार है ना..!!

अपने बॉस की बात सुनकर जतिन ने कहा- अरे नही नही सर मेरी वजह से आपकी जॉब पर आंच आये ऐसा काम मुझे नही करना...

उसके बॉस ने कहा- नही जतिन तुम अपने लक्ष्य से क्यो भटक रहे हो, तुम कुछ गलत नही सोच रहे हो पर दो नावों पर पैर रखना तुम्हारे लिये भी ठीक नही है और जल्दबाजी मत करो कोई भी निर्णय लेने से पहले दो दिन, तीन दिन, चार दिन अच्छे से सोच लो फिर कोई निर्णय लेना...!!

"ठीक है सर.... मै सोच के बताता हूं" जतिन ने कहा और इतना कहकर उतरा हुआ चेहरा लेकर वो अपने बॉस के केबिन से बाहर आ गया....

क्रमशः