रावण अब कुबेर से लंका जीतने की योजना बना रहा था। जब सुमाली को अपने पोते की स्थिति का पता चला, तो वे खुद रावण के पास आए और बोले, "रावण, तुम अकेले हो। यक्षराज हसूड भी कुबेर के साथ है।" रावण ने आत्मविश्वास से कहा, "कोई भी हो मेरे सामने, आग लगाऊंगा आग।" रावण, कुंभकर्ण और मैं सेना लेकर लंका की ओर निकल पड़े। रावण ने कहा, "चलो मेरे शेरो, कर दो कमाल।" हमने जोर से हमला करके कुबेर की सेना का खात्मा शुरू कर दिया।
यक्षराज हसूड का सामना कुंभकर्ण से हुआ। कुंभकर्ण ने उसे जोर से मार दिया और जोर से हंसने लगा। उसकी हंसी देखकर कुबेर को गुस्सा आ गया और वह कुंभकर्ण को मारने लगा। तभी रावण के पिता विश्रवा के कहने पर कुबेर ने सोने की लंका अपने भाई रावण को दे दी और कैलाश पर्वत पर अलकापुरी बसाई।
रावण जब विश्व विजय पर निकला तो उसने अलकापुरी पर भी आक्रमण किया। रावण और कुबेर के बीच भयंकर युद्ध हुआ, लेकिन ब्रह्माजी के वरदान के कारण कुबेर रावण से पराजित हो गए। रावण ने बलपूर्वक कुबेर से ब्रह्माजी द्वारा दिया हुआ पुष्पक विमान भी छीन लिया। रावण के पास अब सारी सेना आ चुकी थी और वह लंका का स्वामी बन चुका था।
लंकापति रावण ने शुभ मुहूर्त देखकर मंदोदरी से विवाह किया और वह लंका की पटरानी बनीं। मंदोदरी और रावण के तीन पुत्र हुए – अक्षय कुमार, मेघनाद और अतिकाय। जब रावण और मंदोदरी के पुत्र मेघनाद का जन्म होने वाला था, तब रावण चाहता था कि उसका पुत्र अजेय हो, जिसे कोई भी देवी-देवता हरा न सके, वह दीर्घायु हो, उसकी मृत्यु हजारों वर्षों बाद ही हो। उसका पुत्र परम तेजस्वी, पराक्रमी, कुशल योद्धा और ज्ञानी हो। रावण ज्योतिष का भी जानकार था। इसी वजह से मेघनाद के जन्म के समय उसने ज्योतिष के अनुसार सभी ग्रहों और नक्षत्रों को ऐसी स्थिति में बने रहने का आदेश दिया कि उसके पुत्र में वह सभी गुण आ जाए जो वह चाहता है। रावण का प्रभाव इतना था कि सभी ग्रह-नक्षत्र, देवी-देवता उससे डरते थे। इसी वजह से मेघनाद के जन्म के समय सभी ग्रह वैसी ही राशियों में स्थित हो गए जैसा रावण चाहता था। सिर्फ शनि ने ठीक मेघनाद के जन्म के समय अपनी नजर तिरछी कर ली थी। शनि की तिरछी नजरों के कारण ही मेघनाद अल्पायु हो गया। मेघनाद बहुत पराक्रमी और शक्तिशाली था। रावण के पुत्र ने देवराज इंद्र को भी परास्त कर दिया था। इसी वजह से मेघनाद का एक नाम इंद्रजीत भी पड़ा।
रावणने अब सारे छोटे-मोटे राज्य जीत लिए थे। अब वह बहुत बड़ा सम्राट बन चुका था। दिन बीत रहे थे। इतने में, एक दिन हमारी बहन शूर्पणखा कहीं से भागते हुए आई और रावण को कहने लगी, "भैय्या, अयोध्या नरेश दशरथ के बेटे लक्ष्मण ने मेरी नाक काट दी।" रावण ने उससे पूछा, "पर ये सब कब और कैसे हुआ?" शूर्पणखाने सब बता दिया। उसकी कहानी समझने के बाद रावणको गुस्सा आया और उसने मुझे कहा, "बिभीषण, तुम अभी के अभी मारीच को बुलाओ।" मैंने मारीच को बुलाया, तो रावण ने कहा, "मारीच, तुम कोई भी रूप धारण कर सकते हो ना? तो तुम अभी एक सोनेरी हरिण का रूप धारण करो। रावण के पुत्र अतिकाय ने मारीचको सारा भेद समझाया।
मारीच जहाँ राम, लक्ष्मण और सीता रहते थे वहाँ तुरंत पहुँचा। उसने वन में सोनेरी हरिन का रूप धारण किया और वह राम की नजरों के सामने दौड़ने लगा। इतने में सीता अपनी पर्णकुटी से बाहर आ गई और उस सुंदर मृग को देखकर कहने लगी, "नाथ, देखिये ना उस मृग को, कितना खूबसूरत है! हम अयोध्या वापस लौटते समय उसको भी साथ ले जाएँ क्या?" राम ने कहा, "जरूर! लक्ष्मण, तुम अपनी भाभी माँ की रक्षा करो। मैं अभी जाता हूँ और उस हिरन को पकड़के लाता हूँ।" श्रीराम हिरन को ढूँढ़ने चले।
रामजी के बाण से वह हिरन मर गया, लेकिन उसने एक आवाज निकाली, "लक्ष्मण, मुझे बचाओ!" सीताने वह आवाज सुन ली और उसे लगा कि ये तो श्रीराम की आवाज है। उसने लक्ष्मण से कहा, "नाथ खतरे में हैं, तुम उन्हें बचाने जाओ।" लेकिन लक्ष्मण जाने के लिए तैयार नहीं था। उसने कहा, "क्षमा करो भाभी, मैं आपको यहाँ अकेले छोड़के नहीं जा सकता। भैया ने मुझे यहीं पे आपकी रक्षा करने को कहा है।" फिर, सीता माँ के बहुत कहने पर वह मान गया। लेकिन लक्ष्मण ने जाने से पहले पर्णकुटी के सामने अपने बाण से एक रेखा बनाई और कहा, "भाभी माँ, आप इस रेखा को कभी पार मत कीजिए, चाहे कुछ भी हो जाए।" सीता भाभी मान गई और लक्ष्मण वहाँ से चला गया।
लक्ष्मण के जाने के बाद एक साधु वहाँ पे आ गया और कहने लगा, "देवी, भिक्षाम देहि।" सीता ने कूछ भिक्षा लाई लेकिन वह लक्ष्मण रेखा के अंदर ही रुक गई। रावण लक्ष्मण रेखा के अंदर नहीं जा सकता था, इसलिए उसने सीता को बाहर बुलाया। जैसे ही सीता बाहर आई, रावण ने उसे पकड़ लिया और पुष्पक विमान में बिठा लिया। सीता ने कहा, "अगर मेरे श्रीराम को पता चल गया तो सोचो तुम्हारा क्या होगा?" रावण ने उसकी बात नहीं मानी और उसे ले गया।
इधर राम और लक्ष्मण वापस लौटे तो उन्होंने देखा कि झोपड़ी में सीता नहीं थी। लक्ष्मण ने रावण को पुष्पक विमान से सीता को ले जाते हुए देखा। रावण को रोकने के लिए जटायू ने प्रयास किया, लेकिन रावण ने उसे मार डाला। रावण सीता को लेकर लंका पहुँचा। राम और लक्ष्मण सोच में पड़ गए कि लंका कैसे पहुँचे। उन्हें पता चला कि सुग्रीव उनकी मदद कर सकता है। उन्होंने वानर सम्राट सुग्रीव को संदेश भेजा। सुग्रीव ने हनुमान को भेजा कि वे देखें कि राम कोई मायावी राक्षस तो नहीं। हनुमान ब्राह्मण के वेश में राम के पास पहुँचे। राम ने अपनी समस्या बताई और हनुमान ने उनकी मदद करने का वचन दिया। सुग्रीव ने कहा, "मुझे अपनी पत्नी और राज्य वापस चाहिए।"
राम ने सुग्रीव की मदद की और उसके भाई वाली को हराया। वाली ने मरते-मरते राम को श्राप दिया कि अगले जन्म में उन्हें भी ऐसे ही मरना पड़ेगा। सुग्रीव ने राम को अपनी सेना दी और सब समुद्र पार करके लंका पहुँचे। हनुमान लंका में जाकर सीता माँ से मिले और राम का संदेश दिया।
रावण के दरबार में हनुमान की खबर पहुँचते ही अक्षय कुमार ने कहा, "पिताश्री, मेघनाद ने कई युद्ध लड़े हैं। अब मुझे मौका दीजिए।" इंद्रजीत ने कहा, "तुम युद्ध नहीं कर सकते।" अक्षय कुमार ने हनुमान पर हमला किया, लेकिन हनुमान ने उसे मार दिया। रावण ने इंद्रजीत को भेजा। इंद्रजीत ने हनुमान को पकड़ लिया और उनकी पूंछ में आग लगा दी। हनुमान ने पूरी लंका जला दी और राम के पास वापस लौट आए।
रावण को जब लंका के जलने की खबर मिली, तो वह क्रोध से भर गया। उसने अपनी सेना को तैयार किया और युद्ध की तैयारी शुरू कर दी। उसने अपने सबसे शक्तिशाली योद्धाओं को बुलाया और कहा, "अब समय आ गया है कि हम अपने दुश्मनों को सबक सिखाएं।" इधर राम और उनकी वानर सेना भी युद्ध के लिए तैयार हो रही थी।
राम, लक्ष्मण, हनुमान और वानर सेना ने समुद्र पार करने का निर्णय लिया। नल-नील ने पुल का निर्माण किया और राम की सेना ने लंका की ओर प्रस्थान किया। रावण ने अपने मंत्रियों के साथ मिलकर युद्ध की योजना बनाई। उन्होंने अपने सबसे बड़े योद्धा, मेघनाद, को प्रमुख भूमिका दी।
जब राम की सेना लंका पहुँच गई, तो युद्ध का बिगुल बज गया। रावण ने अपनी सेना को आदेश दिया, "हमारे दुश्मनों को कोई भी जीवित न बचे।" राम ने भी अपनी सेना को निर्देश दिया, "हमारा उद्देश्य सिर्फ सीता माता को सुरक्षित वापस लाना है।"
युद्ध के पहले दिन, वानर सेना ने राक्षसों पर जोरदार हमला किया। हनुमान, अंगद, और जामवंत ने अद्भुत पराक्रम दिखाया। रावण के बेटे मेघनाद ने भीषण युद्ध किया और लक्ष्मण को शक्तिबाण से घायल कर दिया। लक्ष्मण की चोट देखकर राम अत्यंत दुखी हो गए, लेकिन हनुमान ने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण को पुनः जीवित किया।
अगले दिन, युद्ध और भी भयंकर हो गया। अंगद ने रावण के पुत्र अतिकाय को मार गिराया। रावण को यह खबर सुनकर बहुत दुख हुआ, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने अपने सबसे बड़े योद्धाओं, कुम्भकर्ण और मेघनाद, को युद्ध में भेजा। कुम्भकर्ण ने वानर सेना को भारी नुकसान पहुँचाया, लेकिन राम ने उसे पराजित कर दिया।
इसके बाद मेघनाद ने राम और लक्ष्मण पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया, जिससे वे मूर्छित हो गए। हनुमान ने फिर से संजीवनी बूटी लाकर उन्हें बचाया। अब राम ने रावण से सीधे युद्ध का निर्णय लिया।
राम और रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। दोनों ने अपने अद्वितीय पराक्रम का प्रदर्शन किया। रावण ने अपनी मायावी शक्तियों का प्रयोग किया, लेकिन राम ने अपने धैर्य और वीरता से उसे मात दी। अंततः राम ने रावण के दस सिर काट दिए, लेकिन वे फिर से उग आते। विभीषण ने राम को बताया कि रावण की मृत्यु उसके नाभि में अमृत कुंड के कारण नहीं हो रही है।
राम ने तब ब्रह्मास्त्र का उपयोग किया और रावण की नाभि पर निशाना साधा। रावण ने वीरगति प्राप्त की और युद्ध समाप्त हो गया। सीता माता को सुरक्षित वापस लाया गया। राम ने विभीषण को लंका का नया राजा बनाया।
रावण की मृत्यु के बाद, लंका में शांति स्थापित हो गई। राम, सीता और लक्ष्मण अयोध्या वापस लौटे, जहाँ उनका भव्य स्वागत हुआ। राम ने अयोध्या का राजपाट संभाला और रामराज्य की स्थापना की, जिसमें सभी प्रजा सुखी और समृद्ध रही।
इस प्रकार, रावण के अंत के साथ एक नई शुरुआत हुई और राम की महान गाथा का समापन हुआ। लेकिन राम और रावण की कहानी सदियों तक एक उदाहरण बनी रही कि सत्य और धर्म की हमेशा विजय होती है, चाहे कितनी भी कठिनाई क्यों न हो।