Kuchh to he Tere Mere Darmiyaan - 2 in Hindi Love Stories by Sakera tunvar books and stories PDF | कुछ तो है तेरे मेरे दरमियान। - 2

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कुछ तो है तेरे मेरे दरमियान। - 2

लोस एंजेलिस की एक बड़ी सी युनिवर्सिटी में एक क्लास पुरी तरह से स्टुडेंट से भरा हुआ था,हां लेकिन उस स्टूडेंट्स में से ज्यादातर गोरे दिख रहे थे लेकिन हां उसमें क‌ई भारतीय भी थे।

यह हिस्टरी का क्लास चल रहा था और आयत सिद्दीकी उस क्लास के बीचों बीच की सीट पर बैठकर अपनी क्लास का लुफ्त उठा रही थी।

आज की हिस्टरी की क्लास में इंडियन कल्चर के बारे में पढ़ाया जा रहा था।
आयत मास्टर्स कर रही है...उसने अपना ग्रेजुएशन हिस्टरी सब्जेक्ट के साथ ही कंम्पलिट किया...आयत अपनी अम्मी की तरह एक होनहार स्टूडेंट थी,वो हर बार टोप करती थी।टेन्थ में टोप करने के बाद सबको यही लगा था की आयत साइंस में दिलचस्पी दिखाएगी... लेकिन आयत ने आर्ट्स स्ट्रीम चुनी ।

आयत की एक और एक लड़की बैठी हुई थी जो देखने से इंडियन लग रही थी और दूसरी और एक लड़का बैठा हुआ था,जो फोरेनर लग रहा था...उस लड़की का नाम दिया था जो एक इंडियन थी,और वो अपने परिवार के साथ यही सेटल्ड थी, वहीं दुसरी ओर बैठा लड़का माईकल था और वो यही का रहने वाला था।

थोड़ी देर में क्लास खत्म होने के बाद तीनों केन्टिन में बैठे थे।
दीया कोफी का सीप लेते हुए:यार...आज की क्लास मुझे बहुत बोरिंग लगीं... सिरदर्द हो गया।

माइकल:या यु आर राइट...मेरी भी सर दर्द हो गई...(माइकल आयत और दीया का बचपन का दोस्त था वो इतने साल उनके साथ रहकर थोड़ी बहुत हिन्दी बोल दिया करता था।)

आयत : नहीं....यार आज का क्लास सबसे बेहतर था... क्योंकि हमें आज हमारे इंडियन कल्चर के बारे में कुछ और चीज़े जानने को मिली।

और दिया तुम्हें तो पता भी है की तुम इंडिया में पंजाब से हो तो तुम्हें उसके कल्चर के बारे में सब पता है लेकिन मुझे तो मेरे अम्मी अब्बू ने कभी बताया ही नहीं की हम इंडिया में कहा से है...।

"क्योंकि उन्हें पता है की अगर तुम्हें पता चल गया की तुम्हारा घर कहां है तो तुम एक दफा तो अपने दादा जान से अपने सवालों के जवाब लेने पहुंच जाओगी, लेकिन अंकल, आंटी भले ही बरसों से अपने परिवार से दूर हो लेकिन आज भी वो अपने बड़ों की इज्जत करते हैं और वो नहीं चाहते की तुम उनसे कोई भी सवाल करो"दिया ने आयत को समझाते हुए कहा।

आयत उदासी से; में जानती हूं यह सब...

वहीं दुसरी ओर हिन्दुस्तान के स्वर्ण शहर नवाबों की नगरी लखनऊ में एक बड़ी सी हवेली में सत्ताइस सालों में बहुत कुछ बदला था,बेशक लोग वही थे... हां कुछ लोग इस परीवार में बढ़े जरुर थे।

उस हवेली के बड़े से होल में एक लड़का एक लड़की के पीछे भाग रहा था...

वह लड़की एक औरत के पीछे जाकर अम्मी... अयान हमें परेशान कर रहे हैं...

अयान: अम्मी पुछीए अयना से इन्होंने मेरे प्रोजेक्ट पर पानी गिरा दिया...।

अयना; अम्मी हमने जानकर कुछ नहीं किया... ग़लती से वहां रखा पानी का जग गिर गया।

इतना कहकर अयना वहां से भागने को हुई लेकिन अयान ने आगे बढ़कर उन्हें पकड़ लिया।

"क्या कर रहे हो अयना-अयान , बच्चों के जैसे लड रहे हो पुरे घर में आप दोनों पुरे बाइस के हो गए लेकिन बचपना खत्म ही नहीं हो रहा आप दोनों का।और दादा जान ने आपको ऐसे देख लिया तो यकीन माने वो बेहद नाराज़ होंगे आपसे"उनकी अम्मी ने कहा।

अयान अपना मुंह सिकोड़ कर ; अम्मी आप यह बताइए के दादा जान खुश कब होते हैं...?

ऐसा नहीं कहते अयान वो हम सबसे बेहद मोहब्बत करते हैं, लेकिन माजी में जो हुआ वो नहीं चाहते की वह नरमी से पेश आए और वहीं सब फिर से दोहराएं।

अयना: अम्मी, माजी में जो भी हुआ उससे हम सब अनजान नहीं है...कहीं दफा हमने अब्बू से,बी जान से उसका जिक्र सुना है... लेकिन मुझे नहीं लगता की शारीक चाचु ने इतनी बड़ी कोई ग़लती की थी।

अयान ; और फिर इतनी बड़ी भी क्या नाराजगी एक दफा मिल तो सकते हैं ना...।

"चलो अब यह बातें यही खत्म करो,और अपना बिगड़ा हुआ प्रोजेक्ट खत्म करो"नगमा बेगम ने उनकी बातें बिच में ही काटकर कहा।

उनकी बातें सुनकर ही अयान को फिर से अपना प्रोजेक्ट याद आ गया,उसने अयना के बाल खिंचते हुए... अयना तुम्हें में नहीं छोडुगा।

अयना ; हां....आपने मेरे बाल खिंचे में भाई जान से आपकी शिकायत लगाउंगी।

अयना और अयान नगमा बेगम और शाहीद साहब के जुड़वां बच्चे थे।अयान अयना से सात मिनट बड़ा था।

उनके अलावा उनके सबसे बड़े बेटे थे कबीर अहमद सिद्दीकी...जो तकरीबन पच्चीस साल के थें।वह बड़े ही सख्त किस्म के इंसान थे।उनके लिए उनके दादा जान की बात पत्थर के लकीर के जैसी थी। कबीर की शख्सियत ही ऐसी थी की एक दफा कोई उन्हें देख ले वो उनका दिवाना हो जाएं। कबीर लखनऊ की नामचीन युनिवर्सिटी में प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत थे।

अयान के मुताबिक कबीर के लेक्चर में लड़कीयों से पुरा क्लास भरा होता था,क्योंकी उन सबका उस सब्जेक्ट में कोई इंटरेस्ट नहीं था,उस सब्जेक्ट पढ़ाने वाले प्रोफेसर में इंटरेस्ट था।

शाम के वक्त कबीर अपनी बी जान रजीया बेगम के गोद में सिर रखकर लेटे हुए थे,और बी जान अपने बेटे शारीक मियां और शाहीद के बचपन के बारे में बात कर रहे थे।
शाहीद का जिक्र करते ही उनकी आंखें हल्की नम हो जाती हैं।

उन्हें मायुस देखकर कबीर,बी जान क्यों आप उनके पीछे मायुस हो रही है जिन्हें आपकी कोई फ़िक्र ही नहीं है और अगर फिक्र होती तो एक बार मुड़कर तो जरूर देखते।

अयना कमरे में आते हुए,भाई जान आपकी एक हेल्प चाहिए।

कबीर: हां, बोलिए मेरी जान।
अयान:भाई आपकी इस जान की पक्का मेरे हाथों जान जानी तय है।

अयना रोनी सी सूरत बनाकर कबीर को सारी बात बतातीं है।

कबीर खड़े होते हुए दोनों को अपने साथ बहार की ओर ले जाते हुए,चले कोई बात नहीं में हेल्प करता हूं आपकी।(कबीर बहार वालों के लिए जितना सख्त था उतनी ही अपने घरवालों से मोहब्बत भी करता था।)

कबीर पहले उनका बिगड़ा हुआ प्रोजेक्ट देखता है फिर अयान की ओर देखकर,यह इतना भी बेहतर नहीं था।
अयना यह सुनकर,हे ना भाईजान मुझे भी बिल्कुल ऐसा ही लगा था इसलिए....(अयान को घूरते देखकर उसकी बात मुंह में ही रह जाती है )

दोनों के नोंकझोंक के बिच ही कबीर उन्हें प्रोजेक्ट के बारे में समझाता है और दोनों प्रोजेक्ट बनाने में लग जाते हैं।

उनकी जिंदगी इतने सालों से बस ऐसे ही बीत रही थी, लेकिन अब खुदा ने उनकी जिंदगी में एक और मोड़ लिख दिया था।

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अब जानने के लिए पढ़ते रहिए की इनकी जिंदगी कौन सा मोड़ लेने वाली है।