Toronto (Canada) Travelogue - 5 in Hindi Travel stories by Manoj kumar shukla books and stories PDF | टोरंटो (कनाडा) यात्रा संस्मरण - 5

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टोरंटो (कनाडा) यात्रा संस्मरण - 5

कचरे का प्रबंधन

बहुमंजिला इमारतों से निकलने वाले कचरे को ठिकाने लगाने के लिए बड़ी अच्छी व्यवस्था कर रखी है। हर बहुमंजिला इमारत के हर फ्लोर में कचरे के लिए एक छोटा बाथरूम टाईप कमरा बनाया गया है। इसे कचरा केबिन कहते हैं। इसमें दरवाजे लगे रहते हैं। यह होल पाईप सीधे नीचे की मंजिल में जहाँ कचरा कंटेनर रखा होता है, तक जाता है। इस तरह कचरा पाईप के जरिए नीचे की मंजिल में रखे स्टील के बड़े कंटेनर तक जुड़ा रहता है, इसमें प्रत्येक मंजिल के लोग घरों का कचरा छोटे पोलिथिन में भर भर कर डालते रहते हैं। उसमें सभी मंजिलों से डाला जाने वाला कचरा एक जगह इकट्ठा हो जाता है। कंटेनर भर जाने के बादे कंटेनर को बदल दिया जाता है।

ये कंटेनर दो रंग के होते हैं। नीले रंग के कंटेनर में रिसाइकिलिंग के लिए पेपर पुट्ठे आदि एवं लाल के कंटेनर में अन्य कचरा डालने के लिए होता है। दर्जनों कंटेनर हर कचरा बहुमंजिला इमारतों के ओपन यार्ड में रखे होते हैं। तीन चार इमारतों के बीच एक चारों ओर दीवार से घिरा हुआ एक ओपन यार्ड होता है। जो दिनभर एक कर्मचारी ट्राली खींचने वाले पैट्रोल वाहन के जरिए भरे हुये कंटेनरों को ला लाकर ओपन यार्ड में उनको इकट्ठा करता रहता है। दूसरे दिन सुबह दस ग्यारह के बीच एक बड़ा ट्रक आता है और वह ट्रक में लगे अपने सिस्टम के माध्यम से कंटेनर को उठाकर अपने ट्रक में भर कर ले जाता है।

एक कर्मचारी के माध्यम से दो तीन हजार परिवारों का कचरा आसानी से ठिकाने लग जाता है। इसलिए यहाँ सड़कें कालोनियाँ पूरी तरह साफ सुथरी नजर आती हैं। लोगों की जागरूकता, कम से कम कर्मचारी के द्वारा और सीसीटीवी के माध्यम से सभी काम सुव्यवस्थित होता रहता है। इस तरह इस क्षेत्र में सैकड़ों बहु मंजिला इमारतें हैं। हर जगह यही व्यवस्था काम करती है। उनमें रहने वालों की संख्या भी लाखों में होती है। लोगों में संस्कार, जागरूकता और दंड विधान का भय कचरा को अव्यवस्थित नहीं होने देता। मैंने देखा कि एक छोटा बच्चा जो कि अबोध ही था, वह खा रहे आईसक्रीम के रैपर को अपने हाथों से डस्टबीन में ही डालता है।जहाँ बचपन से ही ऐसे संस्कार डाल दिए जाते हैं तब भला कचरा कैसे फैल सकता है।

मेरा मकान दूसरे मंजिल पर था। सुबह शाम बालकनी में खड़़े होकर यह नजारा रोज देखने में आता। लाल रंग के कंटेनर में संग्रहीत कचरा को उठाने वाला ट्रक रोज आता है और उसे खाली कर चला जाता है। रिसाइकिलिंग वाले नीले रंग के कंटेनर में स्वतः नीचे आकर लोग सामान वगैरह डाल जाते थे। कुछ खोजी व्यक्ति पैदल या साइकिल में आते और उस कंटेनर में एक लकड़ी की छड़ी के माध्यम से खोजबीन करते दिखते और अपनी मन चाही वस्तु झोली में डालकर चल देते।


इनको देखकर मुझे अपने देश के गरीब तबके के उन कचरे बीनने वालों की याद आ जाती। कई नौनिहालों के पीठ में लदे बोरे जिनमें पनी,प्लास्टिक बाटल, लोहा लंगड़ आदि बीनते रहते। ये कभी कभी संग्रह करते हुए आपस में ही लड़ पड़ते हैं। पर यहाँ वहाँ में काफी अंतर था। वहाँ बहुत ही गरीब तबके के लोग प्लास्टिक ही बटोरते नजर आते हैं। पर यहाँ पर साबूत टेबिल फैन आदि इलेक्ट्रानिक्स आइटम यार्ड में पड़े रहते हैं या कंटेनर में पड़े रहते हैं। लोग साईकल या मेटाडोर में आते हैं और उनको उठाकर चलते बनते हैं।

कुछ लोग यह सब नहीं उठाते केवल उसके प्लग समेत वायर काट कर ले जाते हैं। इलेक्ट्रानिक्स आइटम को तोड़ कर उसका या तो कापर वायर या चिप्स निकाल कर झोले के हवाले करते हैं। कितना ऐसा समान है जो पड़ा रहता है उसमें उनकी रुचि कम ही रहती है। कभी-कभी कार में भी लोग आते और अपनी डिक्की में सामान रखकर ले जाते। इन सामानों को उठाने के लिए माल वाहक जीपें भी अक्सर चक्कर लगाती रहतीं हैं। लोहे के सामानों को बुरी तरह से तोड़ मरोड़ कर ले जाते।

लकड़ी के नए पुराने सामान पलंग, सोफे कुर्सीयाँ आदि फर्नीचर भी होते थे। जिन्हें ये लोग हाथ भी नहीं लगातेे नहीं उठाते, इसे कचरा समझते होंगे।

इस क्षेत्र में अधिकांश किराएदार के रूप में बाहरी लोग ही रहते हैं। किराएदार अपने लिए लग्जरी पलंग-सोफे, मोटे-मोटे फोम के कद्दे, वुडन आलमारी तरह-तरह के फर्नीचर खरीद कर उपयोग करते हैं और जब खाली करके जाने लगते हैं तो उसे यूं ही छोड़कर चले जाते है। तब रेंटल आफिस वाला नए किराएदार को मकान दिखाता है। अगर उसको वह रखना होता है, तो रख लेता है अन्यथा उसे निकाल कर ओपन यार्ड में डाल दिया जाता है। मैं प्रतिदिन देखता हूँ कि नया फर्नीचर यार्ड में पड़ा रहता है। जिसको आवश्यकता होती है, वह उठा ले जाता है। नहीं तो एक विशेष प्रकार का ट्रक आता है, वह राक्षस की भांति अपने अंदर फर्नीचर गद्दे आदि को एक मिनिट में चबा डालता है। फिर दूसरे क्षेत्र में जाकर इस तरह छोड़े फैंके अनावश्यक सामानों को ठिकाने लगाता रहता है। उसका यह क्रम चलता रहता है। कभी कभी तो ऐसा सामान देखने में आता हैं जिनकी पेंकिग तक भी नहीं खुली दिखती।

एक दिन मैंने देखा कि सामने ओपन यार्ड में एक महिला कार से उतरी, कार में उसके साथ एक बड़ा कुत्ता बैठा था। वह महिला जींस पहने थी। पिंक कलर की शार्टकट कमीज के साथ ही काला रंग का गागल पहिने थी। बाल सफाचट थे। ऊँची हील की सेंडिल के साथ बड़ी स्मार्ट दिख रही थी। उसने अपनी कार से एक प्लास्टिक की फोल्डिंग नसैनी निकाली और कंटेनर में लगा कर अंदर तलाशना शुरू कर दिया। थोड़ी ही देर में उसने उस कचरे के ढेर से अनेक सामान तलाश डाले। अपने कार की डिग्गी खोली और उसमें सभी सामानों को अच्छी तरह से जमाया। तेज धूप से वह झुलस रही थी, गला सूख रहा था। कार से डिस्टिल वाटर निकाली, कुछ घूंट पीकर अपने गले को तर किया फिर शेष पानी अपने सिर पर डाला, जिससे उसे कुछ ठंडक मिली। फिर मेरी इमारत के सामने आकर रखे कंटेनर से अपने मतलब का सामान तलाशा और उसे कार में जमाया और चल दी।

अमीर गरीब सभी देशों में होते हैं। यह विश्व की समस्या है। यहाँ भी मैंने कई वृद्ध एवं युवकों को कचरे से अपने उपयोग का सामान बीनते हुए देखा है। यह सामान उनके लिए उपयोगी या उनकी बेरोजगारी को दूर करने के लिए भी हो सकता है, मुझे तो मालूम नहीं। किन्तु मैं इतना अवश्य जानता हूँ कि इस संपन्न राष्ट्र में अधिकांश सम्पन्न है। हमारे भारत देश और यहाँ तो जमीन आसमान का अंतर है। हमारे देश में कचरा बीनने वालों की इतनी दयनीय चिन्तनीय स्थिति है कि कुछ कहा ही नहीं जा सकता है। हमारे यहाँ तो मध्यमवर्ग बड़ी मुश्किल से अपनी आय से कुछ सुख सुविधाओं को जुटापाता है। जो उसके जीवन भर ही नहीं उसकी दूसरी पीढ़ियों के भी काम आ जाता है। कचरा के रूप में बाहर सामान फैंकने का सवाल ही नहीं उठता। तब हमारे यहाँ का कचरा कचरा ही होता है। उस कचरे से जो कचरा बीनने वाले उठा कर ले जाते हैं। उससे उनकी किस्मत नहीं बदलती जैसे तैसे बड़ी मुश्किल से एक जून खाने की ही व्यवस्था हो पाती होगी।

यहाँ पर भी मैंने शाॅप या माल के बाहर बैठकर लोगों से मदद की याचना करते हुए देखा है। रास्ते में कभी एक दो दिखे जो सड़क किनारे मग या डब्बा रख कर बैठे रहते हैं। पर लोगों के पीछे नहीं लगते, कुछ दयावान स्वतः मदद कर दिया करते हैं। कुछ कलाकार विशेष वेशभूषा धरकर, या कुछ करतब दिखाकर अपने रोजगार की तलाश करते नजर आते हैं। कुछ संगीत के वाद्य बजाकर, चित्रकारी, स्टेचू मुद्रा में खड़े होकर, डांस आदि के माध्यम से लोगों का ध्यान आकृष्ट करके अपने जीवन के संसाधनों को जुटाते दिखे। पर यहाँ सम्पन्नता है इसमें कोई दो मत नहीं। यहाँ की मुद्रा एक डालर बराबर भारत के 55-60 रुपये के बराबर है। हालाकि यहाँ के हिसाब से खर्च भी होते होंगे।


1 जुलाई को कनाडा डे


यहाँ पर भी पाश्चात्य देशों का प्रभाव अधिक पड़ा है। मैं इसीलिए यह कह रहा हूँ कि मैंने डेन्टास में 1 जुलाई को कनाडा डे पर उनके परंम्परागत डान्स की एक झलक देखी है जिसमें सिर से लेकर पाँव तक वस्त्र से ढके हुये और नर नारी दोनों मिलकर युगल बंदी करके डान्स करते दिखे। स्टेज में सिर पर कैप, बंद गले के कपड़े, पैरों में जूते मोजे पहने पारंपरिक पहनावे को देखा। समूहों में संगीत के लय के साथ पैरों को पटकते हुए डान्स देखा। तो दूसरी ओर भीड़ में पाश्चात्य डान्स के नाम से नशे में डूबी मात्र जाॅंघिया पहने हुए एक महिला को भी थिरकते हुए देखा। पर स्टेज पर जो चल रहा था वही सत्य है। कभी कभी सड़कों को ब्लाक करके मेले की शक्ल में भी लोगों का जमावड़ा देखा। खाने पीने की दुकानों के साथ फुटबाल के खेल या मनोरंजन के अन्य आयोजन देखने को मिले। पैसा जब जेब में होता है तो होटलिंग मस्ती भी ज्यादा सूझती है। स्ट्रांगकाफी, बीयर, जिन वगैरह पीने का यहाँ के लोगों में ज्यादा शौक है। शायद ठंडा मौसम होना एक वजह हो सकती है। हरियाली और रंग बिरंगे फूलों के सभी दीवाने नजर आए। विभिन्न पौधों की नरसरी दुकानें जगह जगह देखने को मिलीं। फूलों की छटा तो देखते ही बनती है।

यहाँ हर क्षेत्र में आपको लाईब्रेरी मिल जायेगी। जहाँ पुस्तकों के भंडार के अलावा कम्प्यूटर में ई बुकों को भी पढ़ सकते हैं। हमारे फ्लैट के पास ही एक बड़ी लाईब्रेरी थी। यह दो मंजिला भवन इतना विशाल था कि उसके अंदर ही बड़े-बड़े हॉलों में बैडमिंटन, टेबिल टेनिस, बालीबाल के छोटे मोटे आयोजन के साथ ही अन्य कार्यक्रम भी मैं अक्सर देखा करता था।

कम्युनिटी सेंटर द्वारा आयोजित कार्यक्रम में एक बार मैं योगा के लिए गया था। कम्युनिटी सेंटर सरकार के अनुदान से चलने वाला एक प्रायोजित कार्यक्रम है। हर क्षेत्र में इनकी शाखाएँ हैं। इसमें कुछ क्षेत्रीय पदाधिकारियों का मनोनयन होता है। सरकार द्वारा भेजे गए अपनी कला में महारत लोग इन कम्युनिटी सेंटर में जाकर अपनी सेवाएँ निः शुल्क दिया करते हैं। क्षेत्रीय कम्युनिटी पदाधिकारी गण सभी को सूचना देकर एकत्रित करते हैं और उन्हें लाभान्वित करवाते हैं। सीनियर सिटीजन एवं सभी को माह में एक बार बस से पर्यटन टूर पर ले जाते हैं, नास्ता भोजन की व्यवस्था भी करते हैं। वहाँ आपस में छोटे मोटे कार्यक्रम करके उनका मनोरंजन भी करते हैं। दो बार इनके साथ मैं भी सपत्नीक गया, बड़ा आनंद आया। क्षेत्रीय कम्युनिटी पदाधिकारियों के बीच संस्थागत आपस में प्रतिस्पर्धा हो, उसके लिए वर्ष में एक बार मूल्यांकन करके उनको पारितोषिक से नवाजा जाता है। एक पत्रिका निकलती है जिसमें उनकी फोटो सहित उनकी उपलब्धियों का बखान भी किया जाता है। इस तरह निरंतर अच्छे काम करने पर उनकी पदोन्नति भी होती रहती है।

पढ़ने और खेलने की अभिरुचि भी लोगों में ज्यादा नजर आयी। यह व्यवस्था हर वार्ड में नगर निगम की ओर से होती है। छोटे मोटे पार्क तो आपको हर जगह मिल जाएँगे। बड़े बड़े पार्क ऐसे हैं कि आप एक दिन में पूरा घूम ही नहीं सकते। एक हाई पार्क तो मीलों के एरिया में फैला है। पाँच छै डिब्बों वाली सड़क पर चलने वाली मोटर-गाड़ी भी उसे पूरा नहीं घुमा पाती। मैन रोड से गुजरते हुये आप उसे बस निहार ही सकते हैं। मीलों लम्बे फैले पार्क की बराबर घास कटाई और उसको सुंदर रखने का प्रयास निरंतर होते रहते हैं।बड़े बड़े माल हैं जहाँ सभी प्रकार के सामान मिलते हैं। बाॅलमार्ट जैसे कई मार्ट हैं। जिसमें खाने पीने के सामान से लेकर इलेक्ट्रानिक्स, कपड़े, किराना सहित अनकों आयटम एक ही छत के नीचे मिल जाते हैं।