होली का शुभ दिन आ चुका था। तारा ने पूरी टीम के साथ मिलकर वैदेही गेमिंग वर्ल्ड के परिसर में ही शानदार पार्टी का आयोजन किया था।
जहाँ एक तरफ तरह-तरह की पिचकारियों के साथ रंगों के बड़े-बड़े टब रखे हुए थे, तो वहीं पास में गुलाल की थालियां भी सजी हुई थीं, और दूसरी तरफ खाने-पीने के अनेकों स्टॉल्स लगे हुए थे जहाँ होली के पारंपरिक व्यंजन मालपुए, दहीबड़े, विभिन्न तरह की गुझिया वगैरह के साथ स्पेशल ठंडाई का भी इंतज़ाम था।
तारा अपने माँ-पापा और भैया-भाभी के साथ सबसे पहले यहाँ पहुँचकर सभी आगंतुकों के स्वागत में लगी हुई थी।
कुछ देर के बाद जैसे ही राघव भी वहाँ आया तारा के भैया-भाभी अविनाश और अंजलि आगे बढ़कर उसका स्वागत करने पहुँचे।
"आइये राघव जी, हम कब से आपकी ही राह देख रहे थे।" अविनाश ने हाथ जोड़ते हुए कहा तो राघव अचकचाकर बोला, "भैया, क्या आपने भांग वाली ठंडाई पी ली है?"
"नहीं तो। आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? अविनाश के चेहरे पर असमंजस के भाव देखकर राघव ने कहा, "तो फिर आप मुझसे इस तरह क्यों बात कर रहे हैं? राघव जी, आप, आइये...।"
"ओहो राघव बाबू, अब तो आप इस सबकी आदत डाल लीजिये क्योंकि तारा ने हमें सब कुछ बता दिया है।"
अंजली ने मुस्कुराते हुए कहा तो राघव ने हैरत से पूछा, "क्या बता दिया है उसने भाभी?"
"यही कि तुम हम सबसे कुछ ज़रूरी बात करना चाहते हो।" तारा के पापा माथुर जी ने वहाँ आते हुए कहा तो राघव ने उन्हें प्रणाम करते हुए तारा के विषय में पूछा।
"वो उधर सबके साथ होली खेल रही है, मैं अभी उसे बुलाती हूँ बेटा।" तारा की माँ मिसेज माथुर ने कहा तो राघव मन ही मन सोचने लगा कि वो जो बात करने आया है अब उसकी शुरुआत कहाँ से करे।
अपनी माँ के बुलाने पर तारा आकर राघव के पास खड़ी ही हुई थी कि अविनाश ने राघव से कहा, "आप अकेले क्यों आये हैं? नंदिनी चाची कहाँ है?"
"हाँ, उनके बिना बातचीत आगे कैसे बढ़ेगी?" मिसेज माथुर ने भी कहा तो अब राघव समझ गया कि हमेशा उसे 'तुम' और 'तू' कहने वाला अविनाश आज अचानक उसे इतनी इज़्ज़त क्यों दे रहा है।
राघव को अब हँसी आने लगी थी लेकिन बमुश्किल स्वयं को संयत करते हुए उसने कहा, "आप लोगों को शायद गलतफ़हमी हो गयी है। मुझे आप सबसे तारा के विषय में बात करनी है लेकिन इस बात में मैं सिर्फ एक सूत्रधार हूँ और कुछ भी नहीं।"
"क्या मतलब? तुम हमसे अपने और तारा के विवाह के विषय में ही बात करने वाले थे न।" माथुर जी ने माथे पर बल डालते हुए कहा तो राघव बोला, "बात तारा के विवाह के विषय में ही है चाचाजी लेकिन मेरे साथ नहीं, यश के साथ।"
"यश? ये कौन है?" तारा का पूरा परिवार लगभग एक साथ ही बोल पड़ा तो राघव ने कहा, "यश सीबीआई ऑफिसर है जिससे तारा की मुलाकात बैंगलोर में हुई थी और ये दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हैं।
तारा स्वयं ये बात आप सबसे कहने में हिचक रही थी इसलिए मैं उसकी तरफ से आप सबसे बात करने आया हूँ।"
"लेकिन हमें तो हमेशा से यही लगता था कि तुम और तारा एक-दूसरे से प्रेम...।" मिसेज माथुर ने कुछ हिचकिचाते हुए कहा तो तारा को समझ में ही नहीं आया कि उसे अपने परिवार की इस बात पर क्या प्रतिक्रिया देनी चाहिए।
उसने बेबस नज़रों से राघव की तरफ देखा तो राघव ने आँखों ही आँखों में उसे शांत रहने के लिए समझाते हुए कहा, "मैं और तारा एक-दूसरे से प्रेम करते हैं लेकिन सिर्फ दोस्तों वाला। हम दोनों के ही मन में अपने रिश्ते के लिए दोस्ती से आगे बढ़कर कभी कोई ख़्याल आया ही नहीं।"
"अच्छा! ऐसा भी होता है क्या?" अंजली की आवाज़ में आश्चर्य का पुट महसूस करते हुए राघव ने आगे कहा, "द्रौपदी और श्रीकृष्ण के बीच भी तो सखाओं वाला पवित्र संबंध था न भाभी, फिर दो आम इंसानों के बीच ऐसा संबंध क्यों नहीं हो सकता है?"
"अच्छा हाँ, ये भी सही है लेकिन राघव बेटा ये यश कैसा लड़का है और उसका परिवार?" माथुर जी के पूछने पर राघव बोला, "चाचाजी, मैं अपनी तरफ से पूरी तसल्ली करने के बाद ही आप सबसे उसके विषय में बात करने आया हूँ।
जैसा की मैंने आपको बताया कि यश सीबीआई ऑफिसर है, उसके परिवार में उसके माँ-पापा और एक बड़ी बहन है जिनका विवाह हो चुका है।
उसकी बड़ी बहन भी दिल्ली पुलिस में है।"
"परिवार तो अच्छा ही मालूम होता है। फिर हम इनसे कब मिल सकते हैं?" मिसेज माथुर ने पूछा तो राघव ने घड़ी की तरफ देखते हुए कहा, "मैंने यश को भी आज सपरिवार यहाँ बुलाया है। वो बस आता ही होगा।"
"ठीक है, तब तक आप, मेरा मतलब तुम ये गुझिया तो खाओ। तुम्हारे ही दफ़्तर की तरफ से हैं।" अविनाश ने हँसते हुए कहा तो एक गुझिया उठाते हुए राघव बोला, "थैंक गॉड भैया, आप अपने चिरपरिचित लहजे में वापस आ गये वर्ना आपके मुँह से ये आप-आप सुनकर मुझे तो चक्कर आने लगे थे।"
राघव की इस बात पर सब लोगों के समवेत ठहाके के बीच ही मंजीत ने आकर कहा कि बाहर कोई यश मेहता राघव के विषय में पूछ रहा है।
"मैं बस अभी उन लोगों को लेकर आया।" राघव प्रवेश द्वार की तरफ बढ़ते हुए बोला तो ख़ामोशी से हाँ में सिर हिलाते हुए तारा अपनी भाभी के पीछे आकर खड़ी हो गयी।
राघव के साथ जब यश के माँ-पापा, बहन और बहनोई अंदर आये तब अंजली ने तारा को सामने करते हुए उसे सबके पैर छूने का संकेत किया।
अपने भावी सास-ससुर, ननद और नंदोई को प्रणाम करने के बाद तारा ने एक नज़र यश को देखा और फिर पीछे जाकर खड़ी हो गयी।
उसे यूँ शर्माते और झिझकते हुए देखकर राघव का एक बार फिर ठठाकर हँसने का मन हो रहा था।
इस हँसी को एकांत के लिए सँभालकर रखते हुए उसने यश और उसके परिवार का परिचय तारा के परिवार से करवाया।
तारा के परिवार को भी यश भा गया था और यश के परिवार का भी यही कहना था कि अपने बेटे की ख़ुशी में ही उनकी भी ख़ुशी है।
जब सभी बड़े तसल्ली से बात करने के लिए एक किनारे रखे हुए कुर्सी और मेज़ की तरफ बढ़ गये तब राघव और उसकी टीम के साथ होली खेलने का बहाना बनाते हुए यश राघव को साथ लेकर वहाँ से थोड़ी दूर चला गया और धीरे से उसने तारा की भी वहीं आने का संकेत किया।
तारा जब राघव और यश के पास पहुँची तब राघव ने उससे कहा, "अब तो मैंने तेरे मन की मुराद पूरी कर दी तारा। चल अब मैं चलता हूँ।"
तारा इस समय इतनी ज़्यादा ख़ुश थी कि उसे होली के विषय में दी हुई राघव की हिदायत का ज़रा भी ध्यान नहीं रहा।
अपने उत्साह और उमंग में उसने गुलाल से भरा हुआ अपना हाथ राघव के चेहरे की तरफ बढ़ाया ही था कि राघव यकायक गुस्से में भरकर उसके हाथ को झटकते हुए तेज़ कदमों से वहाँ से चला गया।
"ये राघव को क्या हुआ?" यश के पूछने पर तारा ने कहा, "कुछ नहीं, उसे ज़रा रंगों से एलर्जी है।"
"पर मुझे नहीं है।" यश ने शरारत से कहा तो तारा ने पास ही रखी हुई एक पिचकारी उठाकर पहले तो यश को रंगों की बौछार में भीगा दिया और फिर गुलाल की पूरी प्लेट भी उसने यश के सिर पर उड़ेल दी।
यश ने भी हिसाब बराबर करते हुए तारा को जमकर रंगों में डुबाया और फिर एक-दूसरे के साथ खिलखिलाते हुए वो ठंडाई का लुत्फ़ उठाने लगे।
अभी उनकी ठंडाई खत्म ही हुई थी कि मंजीत घबराया हुआ सा तारा के पास आकर बोला, "मैम एक गड़बड़ हो गयी है।"
"कैसी गड़बड़?" तारा ने घबराते हुए पूछा तो मंजीत ने कहा, "हर्षित सर ने गलती से राघव सर को नॉर्मल वाली ठंडाई की जगह भांग वाली ठंडाई पिला दी।"
"हे प्रभु, राघव को तो किसी भी नशे की लत ही नहीं है। उसकी तो तबियत खराब हो जायेगी।
तुमने देखा वो कहाँ गया है?" तारा ने परेशान होते हुए कहा तो मंजीत बोला, "सर ऊपर अपने केबिन में गये हैं। उन्होंने मुझसे कहा था कि वो कुछ देर अकेले रहना चाहते हैं और कोई भी उन्हें डिस्टर्ब न करे।"
"अच्छा ठीक है, तुम जाओ और अपने परिवार के साथ एंजॉय करो। मैं सब सँभाल लूँगी।"
तारा के आश्वस्त करने के बाद जब मंजीत वहाँ से चला गया तब तारा ने यश को अपने साथ ऊपर राघव के केबिन में चलने के लिए कहा।
क्रमश: