Bhagirathji in Hindi Mythological Stories by Renu books and stories PDF | भगीरथजी

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भगीरथजी

इक्ष्वाकुवंशीय सम्राट् दिलीप के पुत्र ही भगीरथ नाम से विख्यात हुए। उनके पूर्वपुरुषों ने कपिल की क्रोधाग्नि से भस्मीभूत सगर पुत्रों का उद्धार करने के लिये गंगाजी को लाने की बड़ी चेष्टा की और तपस्या करते करते प्राण त्याग दिये, परन्तु कृतकार्य न हुए। अब महाराज भगीरथ राज्यसिंहासन पर आरूढ़ हुए। ये बड़े प्रतापशाली राजा थे। ये देवताओं की सहायता करने के लिये स्वर्ग में जाते और इन्द्र के साथ उनके सिंहासन पर बैठकर सोमरस पान करते। इनकी प्रजा सब प्रकार से सुखी थी। इनकी उदारता, प्रजावत्सलता और न्यायशीलता की प्रख्याति घर-घर में थी। इनके मन में यदि कोई चिन्ता थी तो यही कि अब तक भूतल पर गंगा जी नहीं आयीं और मेरे पूर्वजों का उद्धार नहीं हुआ। एक दिन उन्होंने राज्यभार मन्त्रियों को सौंप दिया और स्वयं तपस्या करने के लिये निकल पड़े। गोकर्ण नामक स्थान पर जाकर इन्होंने घोर तपस्या की। ब्रह्मा ने सन्तुष्ट होकर इनसे वर माँगने को कहा। तब भगीरथ ने कहा—‘प्रभो! कोई ऐसा उपाय करें, जिससे हमारे पितरों को दो अंजलि गंगाजल मिल जाय और गंगाजी आकर उनकी राख को सींच दें, तब उनके उद्धार में कोई शंका नहीं रह जायगी।’ ब्रह्माजी ने कहा—‘हिमालय की ज्येष्ठ कन्या गंगा शीघ्र पृथ्वी पर अवतीर्ण होंगी। अतः उनका वेग धारण करने के लिये महादेव की आराधना करो। तब तुम्हारी मनोकामना पूर्ण हो सकेगी। तत्पश्चात् पैर के एक अँगूठे पर खड़े रहकर उन्होंने एक वर्ष तक शिव की आराधना की। भगवान् शंकर उन पर प्रसन्न हुए और उन्होंने गंगाधारण की बात स्वीकार की। उस समय गंगा प्रबल वेग से शिव के सिर पर गिरने लगीं। वे मन में ऐसा सोच रही थीं कि अपने प्रबल वेग में बहाकर शंकर को भी रसातल ले जाऊँ। महादेव उनके मन की बात जानकर बड़े कुपित हुए और अपने जटाजाल में उन्हें छिपा लिया। गंगा जी चेष्टा करके भी बाहर न निकल सकीं। भगीरथ ने शंकर की बड़ी प्रार्थना की, तब कहीं उन्होंने गंगा को निकालकर विन्दुसरोवर की ओर छोड़ दिया। इसीसे गंगा की सात धाराएँ हो गयीं। उनमें से एक ने ही भगीरथ का अनुगमन किया। भगीरथ दिव्य रथ पर चढ़कर गंगा के आगे-आगे चलते हुए वर्तमान गंगासागर के पास पहुँचे, जहाँ कपिल की तीव्र दृष्टि से उनके पूर्वपुरुष भस्म हुए थे। यों तो मार्ग में कई विघ्न पड़े, परंतु वे भगवान्‌ की कृपा से सबसे बचते गये। वहाँ जाकर गंगा ने उनके चाचाओं की भस्मराशि को अपनी धारा से प्लावित कर दिया, जिससे उन सबोंने सद्गति प्राप्त की।

श्रीमद्भागवत में गंगाजी के अवतीर्ण होने के पूर्व उनके और राजा भगीरथ के बीच में जो बातचीत हुई, उसका बड़ा सुन्दर वर्णन आता है। गंगा जी ने भगीरथ से कहा कि 'भूतल के प्राणी जब मेरे अन्दर स्नान करके अपने पापों को धोयेंगे तो उनके वे पाप मेरे अन्दर प्रवेश कर जायँगे, उनसे मेरा छुटकारा कैसे होगा?’ राजा भगीरथ ने गंगाजी के प्रश्न का जो उत्तर दिया, उससे साधुओं की अगाध महिमा प्रकट होती है। भगीरथ ने कहा—‘जिनकी विषयवासना निर्मूल हो गयी है और जो शान्त, ब्रह्मनिष्ठ एवं संसार को पावन करने वाले हैं, ऐसे महापुरुष जब तुम्हारे अन्दर स्नान करेंगे तो उनके अंग-स्पर्श से तुम्हारे अन्दर प्रविष्ट हुए सारे पातक धुल जायँगे, क्योंकि सारे पातकों का नाश करने वाले श्रीहरि उनके हृदय में सदा विराजमान रहते हैं।’ जगत् को पावन करने वाली श्री गंगा जी भी जिनके स्पर्श से पवित्र होती हैं, उन सन्तों की महिमा का कहाँ तक वर्णन किया जाय !

देवीभागवत में वर्णन है कि गंगा को लाने के लिये भगीरथ ने श्रीकृष्ण की आराधना की थी और बृहन्नारदीय के अनुसार भृगु मुनि के उपदेश से हिमालय पर जाकर इन्होंने भगवान् नारायण की आराधना की और उन्हीं के प्रसाद एवं वरदान से गंगाजी भूतलपर अवतीर्ण हुईं। चाहे जो हो—कल्पभेद से सभी ठीक है—महाराज भगीरथ ने हम भूतलवासियों को एक ऐसी अमूल्य निधि दान की, जिससे हम जब तक सृष्टि रहेगी, उनके ऋणी रहेंगे और उनके यश:संगीत का गायन करते रहेंगे। उन्होंने अपने पितरों के बहाने हम सबका उद्धार कर दिया। हमारे हाथ में परम कल्याण का गुप्त मन्त्र दे दिया। इससे बढ़कर हमारा और कौन-सा उपकार हो सकता है? विभिन्न पुराणों में इनके विभिन्न पुत्रों का वर्णन आता है और इनकी पितृभक्ति, गुरुभक्ति एवं भगवद्भक्ति का बड़ा सुन्दर वर्णन मिलता है। पुराणों द्वारा उनका अनुशीलन किया जा सकता है।