Laga Chunari me Daag - 20 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | लागा चुनरी में दाग़-भाग(२०)

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लागा चुनरी में दाग़-भाग(२०)

प्रत्यन्चा जब भागकर अपने कमरे में चली गई तो वो नवयुवक गुस्से में बुदबुदाते हुए बोला...
"दादा जी ने नौकरों को बहुत सिर पर चढ़ा रखा है,इज्ज़त ही नहीं करते किसी की,मुझे थप्पड़ मारती है,अब तो मैं हर रोज यहीं खाना खाने आया करूँगा,देखता हूँ कब तक भाव खाती है,इसकी सारी अकड़ तो मैं निकालूँगा,मुझे अकड़ दिखाती है",
तभी भागीरथ जी घर लौट आएँ और उन्होंने उस नवयुवक को बुदबुदाते हुए सुन लिया तो वे उससे बोले...
"बर्खुरदार! किस की अकड़ निकालना चाहते हो,",
"किसी की नहीं दादाजी! मैं तो बस ऐसे ही बड़बड़ा रहा था",वो नवयुवक बोला....
"भई! आज सूरज कहाँ से निकला है,कहीं सूरज ने अपने उगने की दिशा तो नहीं बदल दी,जो आज तुम यहाँ पधारे हो,आउटहाउस से निकाल दिया क्या किसी ने तुम्हें",भागीरथ जी ने पूछा...
"ना! दादाजी! किसी की हिम्मत है जो मुझे आउट हाउस से बाहर निकाल सके",नवयुवक बोला...
"हाँ! भई! तुम ठहरे साहबजादे,कब सोते हो,कब जागते हो ये तुम्हारे सिवाय कोई नहीं जानता,वैसे आज तुम हमारे गरीबखाने में तशरीफ़ कैंसे ले आएँ,ये बताया नहीं तुमने",भागीरथ जी ने पूछा...
"दरअसल बात ये है दादाजी! कि आउटहाउस का खानसामा भाग गया है,भूख लगी थी तो यहांँ चला आया",वो नवयुवक बोला...
"ओह...मतलब साहबजादे अपना पेट भरने यहाँ आएँ थे,हमसे मिलने नहीं,जब हम मर जाएँ ना तब शायद उस दिन तुम हमारी मिट्टी में भी ना आ पाओ,दोनों बाप बेटे को इस बूढ़े की परवाह ही नहीं है,जब हम मर जाऐगें ना तब तुम दोनों को पता चलेगा कि यहाँ कोई ऐसा भी रहता था जिसे तुम दोनों की परवाह थी",ऐसे कहते कहते भागीरथ जी रूआँसे से हो उठे...
"नहीं! दादाजी! ऐसा मत बोलिए,मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ",नवयुवक बोला...
"वो तो दिखाई दे रहा है धनुष! यूँ ही हफ्ते गुजर जाते हैं और हम तेरी सूरत देखने के लिए तरस जाते हैं",भागीरथ जी बोले...
"अब से आपको ये शिकायत कभी नहीं रहेगी,मैं आज के बाद सुबह का नाश्ता,दोपहर का खाना और रात का खाना आपके साथ ही खाया करूँगा",धनुष बोला...
"अभी भी पी रखी है क्या तूने,जो तू ऐसी बहकी बहकी बातें कर रहा है,",भागीरथ जी बोले...
"नहीं! आपकी कसम! दादाजी! मैंने पी नहीं रखी है,मैं सच कहता हूँ,मैं अब से हर रोज आपके साथ ही खाना खाया करूँगा",धनुष बोला...
"रहने दे बेटा! ये तुझसे नहीं हो पाएगा,खामख्वाह में झूठा दिलासा मत दे हमें,इस बूढ़े को उसके हाल पर छोड़ दे,हमें मालूम है कि हमें उम्मीद देकर फिर नाउम्मीद ही करेगा तू",भागीरथ जी बोले...
"नहीं! ऐसा कुछ नहीं होगा दादाजी! मैं अपना वादा हरगिज़ नहीं तोड़ूगा",धनुष बोला...
"हमें तुम पर भरोसा नहीं है",भागीरथ जी बोले...
"तो अगर मैं यहाँ शिफ्ट हो जाऊँ तो तब भी आप मुझ पर भरोसा नहीं करेगें",धनुष बोला...
"तू आउटहाउस में ही रह बेटा! तू यहाँ रहेगा और हमारी आँखों के सामने पीकर धुत्त पड़ा रहेगा तो हमारा और भी जी जलेगा,इससे अच्छा है तू वहीं रह",भागीरथ जी बोले...
"ठीक है तो मैं आउट हाउस में रहता हूँ लेकिन मैं यहाँ खाना खाने जरूर आया करूँगा",धनुष बोला...
"देखते हैं भला! तू कितने दिन यहाँ खाना खाने आता है"भागीरथ जी बोले...
" देखिएगा! मैं यहाँ हर रोज खाना खाने आऊँगा",धनुष बोला...
"लेकिन हमारी एक बात तू कान खोलकर सुन ले,इस घर की रसोई में माँस,अण्डा,मच्छी नहीं पकेगा", भागीरथ जी बोले...
"ठीक है,जो आप खाऐगें,मैं भी वही खा लिया करूँगा",धनुष बोला...
"हाँ! वही खाना पड़ेगा", भागीरथ जी बोले...
इसके बाद फिर धनुष ने इस बारें में बात नहीं की और उसने बात बदलने के लिए भागीरथ जी से पूछा...
"विलसिया काकी कहाँ हैं,दिखाई नहीं दे रहीं"
"विलसिया....वो हमारे साथ बाजार गई थी,उसे बाजार में वक्त लग रहा था इसलिए मोटर और ड्राइवर को वहीं छोड़कर हम टैक्सी पकड़कर घर आ गये,वो प्रत्यन्चा के लिए कुछ सामान खरीदने गई है वहाँ", भागीरथ जी बोले....
"प्रत्यन्चा.....कौन प्रत्यन्चा?",धनुष ने पूछा...
"अरे! हाँ! हमने तुम्हें प्रत्यन्चा से तो मिलवाया ही नहीं",भागीरथ जी बोले...
"कोई नई नौकरानी है क्या?",धनुष ने पूछा...
"नहीं! अनाथ लड़की है,हमारी मोटर से टकरा गई थी,इसलिए हमने उसे इस घर में आसरा दे दिया", भागीरथ जी बोले...
"मतलब कोई भी आपकी मोटर से टकराएगा तो आप उसे अपने घर में आसरा दे देगें,दादाजी! इतनी दरियादिली भी अच्छी नहीं है इस जमाने में",धनुष बोला...
"लेकिन वो अच्छी लड़की है",भागीरथ जी बोले...
"तो ये क्या उसके चेहरे पर लिखा है",धनुष मुस्कुराते हुए बोला...
"लिखा तो नहीं है लेकिन जो भला होता है वो चेहरे से दिख जाता है",भागीरथ जी बोले....
"मतलब वो कोई जादूगरनी मालूम होती है,जिसने आप पर जादू कर दिया है",धनुष बोला....
"ये सब छोड़ पहले ये बता कि तेरे गाल पर ये निशान कैंसा"?,भागीरथ जी ने धनुष के गाल पर थप्पड़ के निशान पर बात करते हुए कहा...
"निशान को छोड़िए पहले ये बताइए वो आपकी हूरपरी प्रत्यन्चा कहाँ है",धनुष ने बात को पलटते हुए कहा...
"हाँ...हाँ...वो अपने कमरे में होगी,अभी आवाज़ देकर हम उसे बुलाते हैं",भागीरथ जी बोले....
"रहने दीजिए! मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है आपकी प्रत्यन्चा मे,मैं अब आउटहाउस जा रहा हूँ,जब डिनर रेडी हो जाए तो बुलवा लीजिएगा मुझे",
और ऐसा कहकर धनुष वहांँ से चला गया,भागीरथ जी ने भी उसे नहीं रोका क्योंकि धनुष किसी की सुनता ही नहीं है,उसे तो अपनी अय्याशियों से ही फुरसत नहीं है,आज जब उसे आउटहाउस में खाना नहीं मिला तो वो ना जाने महीनों बाद यहाँ आया था,पहले तेजपाल जी की कभी कभार धनुष से बहस हो जाया करती थी, लेकिन अब तेजपाल जी ने वो सब भी छोड़ दिया है,उन्हें पता चल गया है कि धनुष उनकी बात मानने वाला तो है नहीं,इसलिए उन्होंने भी उससे बहसबाजी करना बंद कर दिया है,दोनों बाप बेटे वैसे तो ज्यादा मिल नहीं पाते,लेकिन जब मिलते हैं तो दोनों के बीच कहीं अनबन ना हो जाएँ इसलिए तेजपाल जी अपना रास्ता बदल लेते हैं....
और ये बात भागीरथ जी को बहुत अखरती है,बाप बेटे के बीच सामन्जस्य ना होने के कारण उन्हें हमेशा ये डर लगा रहता है कि उनके जाने के बाद उन दोनों का क्या होगा,बहू के जाने के बाद तेजपाल ने दूसरी शादी नहीं की और ये पोता है कि ये भी शादी नहीं करना चाहता,भागीरथ जी ये सब सोच ही रहे थे कि तभी विलसिया बाजार से वापस आकर बोली...
"बड़े मालिक! कहाँ बिटिया! अपना सामान देख लेती"
"शायद अपने कमरे में होगी,हम अभी उसे बुला लाते हैं"
और ऐसा कहकर भागीरथ जी प्रत्यन्चा के कमरे की ओर बढ़ गए और वे उसके कमरे के पास जाकर बोले...
"प्रत्यन्चा बेटा! विलसिया बाजार से वापस आ गई है और तुम्हें पूछ रही है",
"जी! मैं आती हूँ"
और ऐसा कहकर प्रत्यन्चा अपने कमरे से बाहर निकली,तब भागीरथ जी ने उसके चेहरे की ओर देखा उसकी आँखें एकदम लाल थी,उसकी आँखें साफ साफ बता रहीं थीं कि वो रो रही थी,लेकिन उस समय भागीरथ जी ने उससे कुछ नहीं पूछा,वे उससे कुछ पूछकर उसे दुख नहीं पहुँचाना चाह रहे थे,इसलिए वे प्रत्यन्चा से बोले...
"विलसिया तुम्हें बुला रही है,चलो.... नीचे चलो"
और फिर भागीरथ जी की बात सुनकर प्रत्यन्चा उनके साथ नींचे आ गई....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....