Laga Chunari me Daag - 17 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | लागा चुनरी में दाग़--भाग(१७)

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(१७)

फिर विलसिया प्रत्यन्चा को उसके कमरे में ले गई,जो कि ऊपर था और उससे बोली...
"बिटिया! इ है तुम्हार कमरा,कैसन लगा"
"अच्छा है काकी!",प्रत्यन्चा बोली....
"तो अब तुम आराम करो,हम तब तक तुम्हरे खीतिर दूध लावत हैं",
और ऐसा कहकर विलसिया दूध लाने चली गई,इसके बाद भागीरथ जी प्रत्यन्चा के पास आएँ और उससे बोले....
"बिटिया! कमरा ठीक ना लगे तो बता देना,हम दूसरे कमरे में तुम्हारे रहने का इन्तजाम करवा देगें",
"जी! मुझे घर मिल गया,सिर ढ़कने को छत मिल गई और भला इससे ज्यादा मुझ अभागन को क्या चाहिए", प्रत्यन्चा बोली...
"अब इसे अपना ही घर समझो और कोई दिक्कत हो तो विलसिया से कह देना,वो हमारी सबसे भरोसेमंद और पुरानी नौकरानी है,हमारी बहूरानी के पिता जी ने दहेज के साथ यहाँ भेजा था इसे,तब से ये यहीं हैं,शादी भी हो गई थी बेचारी की लेकिन शादी के दो साल के बाद ही बेवा हो गई,फिर वो कहीं नहीं गई यही रह गई,हमारे पोते का ख्याल भी यही रखती है",दीवान साहब बोले....
"जी!ठीक है दीवान साहब!",प्रत्यन्चा बोली...
"घर में और भी नौकर हैं लेकिन विलसिया के अलावा तुम सनातन और पुरातन पर भी पूरा पूरा भरोसा कर सकती हो,ये दोनों भाई गाँव से हमारे साथ यहाँ आए थे और तब हमारी सेवा कर रहे हैं",भागीरथ दीवान बोले....
"जी! दीवान साहब!",
प्रत्यन्चा जब फिर से ये शब्द बोली तो भागीरथ जी उससे बोले...
"ये क्या दीवान साहब...दीवान साहब लगा रखा है,तुम हमारी पोती की उमर की हो इसलिए आज से तुम हमें दादाजी कहोगी"
"इतना अपनापन मत दीजिए मुझे,मैं इस काबिल नहीं हूँ"प्रत्यन्चा बोली....
"हीरे की परख केवल जौहरी को ही होती है प्रत्यन्चा बेटी! इसलिए हम तुम्हारी काबिलियत अच्छी तरह से जानते हैं",भागीरथ दीवान बोले....
"देखिए ना! मेरी किस्मत भी मुझे कहाँ ले आई,अपनो ने तो नहीं अपनाया,लेकिन परायों ने मुझसे कुछ पूछे बिना ही अपने घर में पनाह दे दी",प्रत्यन्चा बोली....
"खबरदार! जो आज के बाद खुद को पराया कहा",भागीरथ जी डाँटते हुए बोले....
और तभी विलसिया भी दूध लेकर कमरे में आ पहुँची और प्रत्यन्चा से बोली....
"लो बिटिया! दूध पी लो और कुछ खाओगी तो अभी बनाकर लाएँ देते हैं",
"नहीं! काकी! और कुछ नहीं चाहिए,दूध से काम चल जाऐगा",प्रत्यन्चा बोली...
"ठीक है बिटिया! अब तुम दूध पीकर सो जाओ,सुबह बात करेगें",
ऐसा कहकर भागीरथ जी और विलसिया कमरे से चले गए,फिर प्रत्यन्चा ने दूध पिया और कमरे के दरवाजे बन्द किए, फिर बिस्तर पर लेटकर कुछ देर वो सब सोचती रही जो उसके साथ हो चुका था,इसके बाद उसे उस नरम बिस्तर पर गहरी नीद आ गई,क्योंकि दिनभर चलते चलते वो बहुत ज्यादा थक चुकी थी.....
सुबह हुई तो चिड़ियों की चहचहाहट से उसकी आँख खुल गई,वो बिस्तर से उठी और उसने अपने कमरे की खिड़की खोल दी,उसके कमरे की खिड़की बगीचे की ओर खुलती थी,उसने खिड़की से बाहर झाँका तो अभी सूरज पूरी तरह से नहीं निकला था,फिर उसने सूर्यदेवता को प्रणाम किया और बाहर का नजारा देखने लगी और तभी उसने ऊपर से देखा कि बगीचे के पास बनी पार्किंग में एक मोटरकार आकर रुकी और उससे ड्राइवर उतरकर बाहर आया,फिर उसने मोटरकार के पीछे का दरवाजा खोलते हुए कहा....
"चलिए आइए! छोटे बाबू! घर आ गया "
तब मोटरकार के भीतर से लरझती सी आवाज़ आई....
"रामानुज! मैं खुद से खड़ा नहीं हो सकता और तुम घर के भीतर जाने की बात करते हो"
"ठीक है छोटे बाबू! अभी मैं सनातन और पुरातन को आवाज़ देकर बुलाता हूँ"
और ऐसा कहकर ड्राइवर रामानुज ने दोनों नौकरों सनातन और पुरातन को आवाज़ दी,दोनों नौकर जल्दी से भागकर बाहर आएँ फिर ड्राइवर रामानुज ने दोनों नौकरो से कहा कि वो छोटे बाबू को आउट हाउस में ले जाएँ,इसके बाद कार से एक नवयुवक उतरा,जो कि शराब के नशे में धुत लग रहा था,फिर सनातन और पुरातन उस नवयुवक को सहारा देकर आउट हाउस ले गए,प्रत्यन्चा ये सब देख रही थी और उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो नवयुवक कौन है?
फिर उसने उन सब चींजों से अपना दिमाग़ हटाया ,इसके बाद उसे स्नान करने का मन हो आया,लेकिन उसके पास पहनने के लिए दूसरे कपड़े ही नहीं थे और जो कपड़े उसने पहने थे वो बहुत मैले दिख रहे थे,धुलने लायक हो चुके थे,इसलिए वो बिस्तर पर बैठकर फिर से कुछ सोचने लगी और तभी विलसिया ने उसके कमरे का दरवाजा खट खटाकार कहा...
"जाग गई हो का बिटिया! हम तुम्हरे खीतिर चाय लाए रहे"
"हाँ! काकी! अभी दरवाजा खोलती हूँ"
और ऐसा कहकर प्रत्यन्चा ने अपने कमरे के दरवाजे खोल दिए,फिर विलसिया काकी चाय की ट्रे लेकर भीतर आई और प्रत्यन्चा से बोली....
"तुम तो जल्दी जाग बिटिया!"
"हाँ! काकी! मुझे जल्दी जागने की आदत है,मैं अपने गाँव में भी जल्दी जाग जाया करती थी",प्रत्यन्चा बोली....
"कहाँ है तुम्हार गाँव बिटिया!",विलसिया ने पूछा....
"काकी! अब ये ना पूछो",प्रत्यन्चा बोली...
"ठीक है नहीं पूछते,लो अब तुम चाय पी लो",विलसिया काकी बोली...
"चाय पीने का मन नहीं है काकी! नहाने का मन कर रहा है,उसके बाद ही मैं कुछ खाऊँगीं...पिऊगीं" प्रत्यन्चा बोली....
"तो नहा लो,तुम्हारे कमरे से लगा हुआ इतना बड़ा स्नानघर तो है"विलसिया काकी बोली....
"स्नानघर तो है,लेकिन मेरे पास दूसरे कपड़े नहीं है ना! तो बताओ कैंसे नहाऊँ",प्रत्यन्चा बोली...
"बिटिया! अब तुम्हारी समस्या तो बड़े मालिक ही हल कर सकते हैं,अभी नीचे जाकर हम उनसे तुम्हारी समस्या बताते हैं",
और इतना कहकर विलसिया काकी भागीरथ जी के पास गई और उनको प्रत्यन्चा की समस्या बता दी...
तब भागीरथ जी विलसिया से बोले....
"जरा! बिटिया को नीचे लेकर आओ"
और फिर विलसिया प्रत्यन्चा को लेकर भागीरथ जी के पास आई,तब भागीरथ जी प्रत्यन्चा को एक कमरे में ले गए,शायद ये उनका ही कमरा था और उन्होंने लकड़ी की एक बड़ी सी अलमारी खोलकर प्रत्यन्चा से कहा....
"बेटी! ये तुम्हारी दादी की साड़ियाँ हैं,इनमें जो भी तुम्हें पसंद हो तो ले लो"
"लेकिन दादाजी! ये तो बहुत भारी वाली बनारसी साड़ियाँ हैं,मैं इन्हें सम्भाल नहीं पाऊँगी",प्रत्यन्चा बोली...
"अच्छा! तो ये बात है,अच्छा इधर देखो,शायद कोई तुम्हारे काम की निकल आएँ", भागीरथ जी ने दूसरी अलमारी खोलते हुए कहा....
और फिर दूसरी अलमारी में कुछ सूती और हल्की साड़ियाँ निकल आईं,जो प्रत्यन्चा के काम की थीं,प्रत्यन्चा उन्हें लेते हुए बोली...
"दादाजी! मैं ये वाली साड़ियाँ सम्भाल सकती हूंँ",
"तो फिर ले लो और शाम को तुम हमारे साथ बाजार चलकर अपने लिए कुछ कपड़े खरीद लेना,तब तक इन साड़ियों से काम चला लो",भागीरथी जी बोले....
"जी! ठीक है"
और ऐसा कहकर प्रत्यन्चा वो साड़ियाँ लेकर स्नान करने चली गई,जब वो नहाकर आई तो उसने विलसिया से पूछा....
"काकी! यहाँ मन्दिर कहाँ है,दिया जला आती हूँ"
"मन्दिर....वो तो बाहर बगीचे में आउटहाउस के पास है,बड़ी मालकिन ने बनवाया था,जब तक वो थी तो उस मंदिर में पूजा पाठ होती रहती थी,लेकिन उनके जाने के बाद उधर कोई दिया बाती करने भी नहीं जाता",विलसिया बोली...
"तो ठीक है,तुम मुझे सामान ला दो,मैं वहाँ दिया जला आती हूँ",
फिर विलसिया पूजा का सामान ले आई और प्रत्यन्चा मन्दिर जाकर दिया जलाकर जब वापस आ गई तो उसने सबको प्रसाद दिया,उसके इस काम से घर के नौकर और भागीरथ जी बड़े खुश हुए,फिर प्रत्यन्चा से बोले...
"बेटी! आज सालों बाद घर के मन्दिर में किसी ने दिया जलाया है,तुम्हारे आने से कम से कम मन्दिर में दिया बाती होने लगी,अच्छा चलो अब नाश्ता कर लो"
और फिर प्रत्यन्चा भागीरथ जी के साथ नाश्ता करने बैठ गई,विलसिया ने गरमागरम आलू के पराँठे बनाएँ थे,जब भागीरथ जी और प्रत्यन्चा नाश्ता करके उठ गए तो फिर भागीरथ जी अखबार पढ़ने लगे,अखबार पढ़ते पढ़ते वे बोले....
"अच्छा! तो पप्पू गोम्स मर गया,उसके साथी शौकत ने ही उसे रेलगाड़ी के सामने फेंक दिया,लेकिन शौकत भी पीठ में चाकू लगने से मर गया,पुलिस ने दोनों की लाश बरामद करके शिनाख्त भी कर ली"
शौकत की मौत की खबर सुनकर प्रत्यन्चा भीतर तक हिल गई,तब विलसिया ने भागीरथ जी से पूछा...
"ये दोनों कौन थे मालिक?"
"तस्करी थे,पुलिस कब से तलाश रही थी पप्पू गोम्स को,सजा मिलने के बाद जेल से भाग था ",भागीरथ जी बोले....
"अच्छा! तो ये बात है",विलसिया बोली....
शौकत की मौत की खबर सुनकर प्रत्यन्चा का फूट फूटकर रोने को जी कर रहा था,इसलिए वो भागीरथ जी से बोली....
"मैं अपने कमरे में जाऊँ"
"हाँ...हाँ...क्यों नहीं बेटी!,तुम जाकर आराम करो",
फिर प्रत्यन्चा अपने कमरे में आ गई....

क्रमशः....
सरोज वर्मा...