उधर यशवर्धन चारुचित्रा को उठाकर ऊँचे पहाड़ के पास जो वन था,वो उसे वहाँ लेकर पहुँच गया और उसने चारूचित्रा को धरती पर लिटा दिया,तब तक मान्धात्री भी वहाँ आ पहुँची और उसने यशवर्धन से पूछा...
"ये कौन है,मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि ये तो रानी चारुचित्रा हैं"
"हाँ! ये चारुचित्रा ही है,इसे कालबाह्यी ने अपनी शक्तियों द्वारा ऐसा बना दिया है,यदि हमने कुछ ना किया तो चारुचित्रा कुछ समय पश्चात् समाप्त हो जाऐगी"यशवर्धन बोला....
तब चारुचित्रा लरझती स्वर में यशवर्धन से बोली.....
"तुम मेरी चिन्ता मत करो यशवर्धन! कदाचित मेरी यही नियति है,यदि मेरी मृत्यु के पश्चात् सब ठीक हो सकता है तो मुझे मर जाने दो"
"नहीं चारुचित्रा! तुम नहीं मर सकती,तुम्हें नहीं ज्ञात कि तुमने क्या किया है,तुम राजमहल एवं विराटज्योति को जिसके हाथों में सौंपकर आई हो वो उसके योग्य नहीं है,वो एक प्रेतनी है,उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता",यशवर्धन बोला...
"किन्तु कालबाह्यी महाराज से प्रेम करती है",चारुचित्रा बोली....
"महाराज से प्रेम तो तुम भी करती हो",यशवर्धन बोला....
"हाँ! इसलिए तो उनकी सुरक्षा के लिए मैंने ऐसा किया",चारुचित्रा बोली....
"नहीं! रानी चारुचित्रा! आप नहीं मर सकतीं,आपको जीवित रहना होगा आप स्वयं को कालबाह्यी पर ऐसे बलिदान नहीं कर सकतीं,आप महाराज एवं उनके राज्य दोनों के लिए ही आवश्यक हैं",मान्धात्री बोली....
"नहीं! मान्धात्री! इसी मैं सबकी भलाई है कि मैं मर जाऊँ"चारुचित्रा बोली...
उन सभी के मध्य अभी वार्तालाप चल ही रहा था कि तभी विराटज्योति,कालबाह्यी,राज्य की प्रजा और सैनिक वहाँ आ पहुँचे और सभी कहने लगे कि कहाँ है वो प्रेतनी,आज वो यहाँ से बचकर नहीं जा पाऐगी, ये सब सुनकर तभी सभी के समक्ष मान्धात्री और यशवर्धन आकर खड़े हो गए और यशवर्धन सबसे बोला....
"वो प्रेतनी नहीं है,उसने कुछ नहीं किया,उस पर किसी ने अपनी शक्तियों का प्रयोग करके ऐसा बना दिया है",
"नहीं! उसे मरना ही होगा,वो राज्य के लिए घातक है",सेनापति दिग्विजय सिंह बोले....
तभी राजा विराटज्योति सबसे बोले....
"आप चाहते हैं कि मैं इसे मार दूँ,किन्तु मुझसे किसी ने पूछा कि मैं क्या चाहता हूँ"
"मुझे ज्ञात है महाराज! कि आप इस प्रेतनी को कभी भी क्षमा नहीं करना चाहेगें",सेनापति दिग्विजय सिंह बोले....
"मुझे ज्ञात है कि एक राजा होने के नाते मुझे इसे मार देना चाहिए,किन्तु ये मेरी रानी और प्रेमिका दोनों ही है, इसलिए मैं इसे नहीं मार सकता,मैं विवश हूँ" और ऐसा कहकर वे चारुचित्रा के समीप गए और वहीं धरती पर बैठ गए,जहाँ चारुचित्रा लेटी थी....
तब चारुचित्रा विराटज्योति से लरझते स्वर में बोली...
"मैं एक प्रेतनी हूँ,मैंने इतने लोगों की हत्याएंँ की हैं,मेरा मरना ही उचित होगा महाराज! मुझे मार दीजिए और अपने राज्य एवं स्वयं को मुझसे मुक्त कर लीजिए"
"तुम कैंसी भी हो चारुचित्रा! तुमने कितने भी हत्याएंँ की हों,किन्तु मैं ने तुमसे सदैव प्रेम किया है और मैं ऐसा नहीं कर सकता,मैं ना तो तुम्हारी हत्या करूँगा और ना ही किसी और को तुम्हारी हत्या करने दूँगा" महाराज विराटज्योति बोले....
विराटज्योति एवं चारुचित्रा के मध्य प्रगाढ़ प्रेम को देखकर कालबाह्यी आश्चर्यचकित भी हुई और उसके मन में क्रोध भी उत्पन्न हुआ,उस दृश्य को देखकर उसके मन में चारुचित्रा के प्रति घृणा उत्पन्न हो गई और वो ये सोचने लगी कि ये इन दोनों का किस प्रकार का प्रेम है,मैंने चारुचित्रा को प्रेतनी भी बना दिया तब भी चारुचित्रा के प्रति महाराज का प्रेम समाप्त नहीं हुआ.....
कालबाह्यी ये सब सोच ही रही थी कि तभी चारुचित्रा ने शीघ्रता से विराटज्योति की कृपाण निकाली और स्वयं के उदर में घोंप ली,वो दृश्य देखकर कालबाह्यी मंद ही मंद मुस्कुराई और ये सोचने लगी कि चलो उसके मार्ग की बाँधा स्वयं ही दूर हो गई,अब वो महाराज विराटज्योति की रानी बनकर सुखपूर्वक जीवन बिताऐगी,वो ऐसा सोच ही रही थी कि तभी वहाँ पर अचलराज,भैरवी,भूतेश्वर और कालवाची आ पहुँचे और कालवाची कालबाह्यी से बोली....
"पुत्री! कालबाह्यी मुझे ज्ञात है कि ये सबने तुने किया है,अपना अपराध स्वीकार कर लो पुत्री! और चारुचित्रा को जीवनदान दे दो"
"नहीं! मैंने कुछ नहीं किया",कालबाह्यी बोली....
"मुझे ज्ञात है पुत्री कि तुम मनोज्ञा नहीं मेरी पुत्री कालबाह्यी हो और मैं ही तुम्हारी माता कालवाची हूँ,जिसने तुम्हें जन्म दिया था" कालवाची बोली...
"मैं ये नहीं मानती,मुझे ज्ञात है कि आप ये बात इसलिए कह रहीं हैं कि मैं अपना अपराध स्वीकार कर लूँ",कालबाह्यी बोली....
"नहीं! पुत्री! ये सत्य है",भूतेश्वर बोला....
"ये सत्य नहीं है,मेरी माता ने तो मेरे पिता की हत्या कर के मुझे त्याग दिया था",कालबाह्यी बोली....
"नहीं! मेरी हत्या नहीं की गई कालबाह्यी! मैं जीवित हूँ और तुम्हारे समक्ष खड़ा हूँ,वो सब झूठ था,धवलचन्द्र और उसकी माँ तुम्हारी माता कालवाची से प्रतिशोध लेना चाहते थे,इसलिए उन्होंने तुम्हें ये झूठी कहानी बताई",भूतेश्वर बोला....
"तो आप दोनों ने मुझे त्याग क्यों दिया",कालबाह्यी ने पूछा...
"बस इसी भय से जो तुम आज कर रही हो,बड़ी कठिनाइयों के पश्चात् मैं प्रेतयोनी से मुक्ति पाई थी,इसलिए मैं नहीं चाहती थी कि मेरी पुत्री भी वही सब अनुभव करें,इसलिए मैंने तुम्हारी मृत्यु चुनी थी पुत्री! मैं ये भली प्रकार जानती हूँ कि मेरा अपराध क्षमा के योग्य नहीं है,तब भी मैं तुमसे क्षमा चाहती हूँ पुत्री!" कालवाची बोली....
"ये आपने क्या किया माता? यदि आपने मुझे अपने संग रहने दिया होता तो कदाचित मैं ऐसी ना बनती, आपके संस्कार मुझे एक अच्छी पुत्री बनाते,अब देखिए मेरी क्या दशा हो गई है,मैं अब किसी योग्य नहीं रही,सभी मुझसे घृणा करते हैं", कालबाह्यी बोली....
"पुत्री! अभी भी बिलम्ब नहीं हुआ है,ये सब तुम अब भी सुधार सकती हो",भूतेश्वर बोला...
"नहीं मैं कुछ नहीं सुधार सकती,जो मुझे नहीं मिला मैं उसे किसी को भी नहीं लेने दूँगी,मैं सबकी हत्या कर दूँगीं,मैं इस संसार के सभी प्राणियों की हत्या कर दूँगी,मैं किसी को भी जीवित नहीं छोड़ूगी,मैं महाराज से प्रेम करती थी और वो मुझे नहीं मिले,वे तो अभी तक चारुचित्रा को ही चाहते हैं"
और ऐसा कहकर कालबाह्यी ने अपनी शक्तियों से सैंनिको पर आक्रमण करना प्रारम्भ कर दिया,एक एक करके सभी सैनिक अचेत होकर धरती पर गिरने लगे,ये सब देखकर यशवर्धन शान्त ना बैठ सका और उसने अपनी खड्ग से कालबाह्यी पर प्रहार किया ,किन्तु कालबाह्यी पर उस खड्ग का कोई भी प्रभाव ना पड़ा,उस समय तक चारुचित्रा प्राण त्याग चुकी थी इसलिए विराटज्योति कालबाह्यी के समक्ष पहुँचा और उससे बोला....
"तुम मुझे प्राप्त करना चाहती थी,जो कि असम्भव है"
और ऐसा कहकर उसने खड्ग स्वयं के उदर में घोंप ली एवं रक्तरंजित होकर धरती पर गिर पड़ा,ये देखकर कालबाह्यी बिलख पड़ी और विराटज्योति के समीप जाकर धरती पर बैठकर बोली...
"आप ऐसा नहीं कर सकते महाराज! आप मुझे छोड़कर नहीं जा सकते"
तब विराटज्योति लरझते स्वर में बोला....
"मैं अपनी चारुचित्रा के पास जा रहा हूँ",
और ऐसा कहकर विराटज्योति ने भी अपने प्राण त्याग दिए,वो दृश्य देखकर कालबाह्यी चीख पड़ी और बोली....
"ये मैंने क्या किया?"
तब मान्धात्री उसके समक्ष आकर बोली...
"कालबाह्यी! अत्यधिक घृणा है इस संसार में,यदि तुम इस घृणा को मिटाना चाहती हो तो तुम्हें महाराज और चारुचित्रा को जीवित करना होगा"
"हाँ! मैं ये करूँगीं,चाहे मेरे प्राण ही क्यों ना चले जाएँ,मैं उन दोनों को अवश्य जीवित करूँगीं",कालबाह्यी बोली...
तभी धवलचन्द्र ना जाने कहाँ से उड़ कर आया और उससे बोला....
"तुम ऐसा कदापि नहीं करोगी कालबाह्यी! नहीं तो मेरा प्रतिशोध पूरा नहीं होगा",
"मैं ऐसा ही करूँगीं",कालबाह्यी बोली....
"मैं तुम्हें जीवित नहीं छोड़ूगा",
और ऐसा कहकर धवलचन्द्र जैसे ही कालबाह्यी की ओर झपटा तो मान्धात्री ने अपने पूर्वजों की विभूति भरपूर मात्रा में धवलचन्द्र पर बिखरा दी,जिससे कि धवलचन्द्र क्षण भर में ही विभूति में परिवर्तित हो गया,अब कालबाह्यी अपने स्थान से उठी और उसने सभी से क्षमा माँगी,वो अपने माता पिता से बोली....
"मैंने आप दोनों के नाम को कलंकित किया है,किन्तु अब ऐसा नहीं होगा,अब आपको अपनी बेटी पर गर्व होगा"
और ऐसा कहकर उसने अपनी शक्तियों का प्रयोग करना प्रारम्भ किया,उसने पहले चारुचित्रा को जीवित किया,उसके पश्चात् विराटज्योति को और इसके पश्चात् वो सभी सैनिकों को जीवित करके विभूति बनकर धरती में मिल गई,अब विराटज्योति और चारुचित्रा जीवित थे,विराटज्योति ने चारुचित्रा को अपने हृदय से लगा लिया ,तब यशवर्धन विराटज्योति से बोला.....
"अन्तोगत्वा कालबाह्यी को समझ आ गया कि प्रेम क्या होता है,वो अब इस धरती में मिलकर सदैव के लिए अमर हो चुकी है"
कालवाची और भूतेश्वर की आँखें अश्रुपूरित थी,उनकी आँखों में प्रसन्नता एवं दुख दोनों के ही भाव दिखाई दे रहे थे,प्रसन्नता इसलिए कि उनकी पुत्री का हृदयपरिवर्तन हो गया था और अपने अन्तिम समय में वो सुमार्ग पर चल पड़ी थी और दुख इसलिए कि वो सदैव के लिए उन दोनों से दूर जा चुकी थी....
विराटज्योति और चारुचित्रा एकदूसरे को जीवित देखकर प्रसन्न थे और पुनः विराटज्योति ने अपने राज्य का कार्यभार सम्भाल लिया था,राज्य निवासी भी प्रसन्न थे क्योंकि अब उनके राज्य में किसी का भय नहीं था,अब सभी पुनः प्रसन्नतापूर्वक रहने लगे...
अब अचलराज के माता पिता कौत्रेय और त्रिलोचना ने यशवर्धन के राज्य का कार्यभार उसे पुनः सौंप दिया था,क्योंकि यशवर्धन ने अब मान्धात्री से विवाह कर लिया था और सभी प्रसन्नतापूर्वक रहने लगे...
समाप्त...
सरोज वर्मा...