जब कालबाह्यी अपनी माता कालवाची से विलग हुई तो उससे बोली....
"ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे आपसे मेरा कोई पूर्व सम्बन्ध है,नहीं तो मुझे इतनी शान्ति एवं सन्तुष्टि का अनुभव नहीं होता",
"कुछ सम्बन्ध ऐसे होते हैं मनोज्ञा! जो हृदय से जुड़े होते हैं,उन्हें ना तो समय तोड़ सकता है और ना ही विपरीत परिस्थितियाँ",कालवाची बोली...
"कदाचित! आपका कथन सत्य है",मनोज्ञा बनी कालबाह्यी बोली....
इसके पश्चात् कालबाह्यी वहाँ से चली गई,कुछ समय तक सभी के मध्य वार्तालाप चलता रहा,इसके पश्चात् जब विराटज्योति वहाँ से चला गया तो तब कालवाची अचलराज और भैरवी से बोली....
"मेरी पुत्री से मेरी भेंट इतने वर्षों के पश्चात् हुई है और मेरा दुर्भाग्य देखो मैं उससे ये भी नहीं कह सकती कि मैं तुम्हारी माता हूँ"
"किन्तु हम अभी उसे ये बताऐगें कि हम ही तुम्हारे माता पिता है तो वो ये कभी स्वीकार नहीं करेगी,उसके मन में अभी हम दोनों के प्रति अत्यधिक घृणा है",भूतेश्वर बोला...
"हाँ! कदाचित भूतेश्वर का कथन सत्य है,समय आने पर उसे ये बात ज्ञात होनी चाहिए",अचलराज बोला....
उधर सभी के मध्य वार्तालाप चलता रहा और इधर कालबाह्यी अपने कक्ष में आकर रोने लगी,उसे ना जाने कैसा लग रहा था,वो सोच रही थी कि उसकी माँ ने एक प्रेतनी होकर किसी मानव से विवाह क्यों किया और मेरे जन्म के पश्चात् मेरे पिता की हत्या करके मुझे क्यों त्याग दिया,यदि मेरी माता अब भी जीवित है तो वो कहाँ है...?
कितनी भाग्यशाली हैं ये चारुचित्रा,इसके पास पति,माता पिता और ना जाने कितने सगे सम्बन्धी हैं,उसका वो विश्वसनीय मित्र यशवर्धन भी तो है जो हर क्षण चारुचित्रा की सुरक्षा में उपस्थित रहता है, यदि मैं चारुचित्रा जैसा भाग्य पा जाऊँ तो कितना अच्छा हो,वो मेरे स्थान पर और मैं उसके स्थान पर आ जाऊँ तो मेरा तो भाग्य ही बदल जाऐगा,तब महाराज विराटज्योति को भी मैं सरलता से प्राप्त कर सकती हूँ,मैं घृणा के बल पर तो ये सब प्राप्त नहीं कर पाऊँगी,मुझे कुछ ऐसा करना होगा कि मुझे ये सब प्राप्त भी हो जाएँ और मैं सबकी दृष्टि में अच्छी भी बनी रहूंँ,किन्तु मैं ऐसा क्या करूँ जिससे ये सभी बातें असम्भव से सम्भव में परिवर्तित हो जाएँ....
और यही सब सोचते सोचते कालबाह्यी के मन में एक विचार कौंधा,जिससे उसकी सभी मनोकामनाएंँ पूर्ण हो सकतीं थीं,इसलिए वो अपने लक्ष्य को पूर्ण करने हेतु चल पड़ी...
रात्रि हो चुकी थी,सभी रात्रि का भोजन करने के पश्चात् अपने अपने कक्ष में जा चुके थे,विराटज्योति पुनः राज्य भ्रमण हेतु निकल चुका था और चारुचित्रा चिन्तित सी अपने बिछौने पर लेटी करवट बदल रही थी,तभी कालबाह्यी उसके कक्ष के द्वार पर आकर बोली...
"रानी चारुचित्रा! आप सो गईं क्या?",
"नहीं! अभी जाग रही हूँ, भीतर आ जाओ कालबाह्यी!",चारुचित्रा बोली...
इसके पश्चात् कालबाह्यी चारुचित्रा के कक्ष के भीतर आई तो चारुचित्रा ने उससे पूछा....
"क्या हुआ कालबाह्यी! कोई आवश्यक कार्य था क्या मुझसे",
"जी! इसलिए तो आई हूँ आपके पास",कालबाह्यी बोली...
"तो कहो",चारुचित्रा बोली....
"जब आपको ज्ञात हो ही चुका है कि मैं एक प्रेतनी हूँ तो क्यों ना हम एक समझौता कर लें", कालबाह्यी बोली...
"कैसा समझौता?",चारुचित्रा ने पूछा...
"आप मेरे संग राजमहल के प्राँगण में चलिए तब मैं आपको अपनी बात समझाती हूँ",कालबाह्यी बोली...
"चलो! प्राँगण में ही चलो",चारुचित्रा बोली...
इसके पश्चात् दोनों प्राँगण में आईं,चहुँ ओर केवल अँधेरा ही अँधेरा था,ऐसा प्रतीत होता था कि अमावस्या की काली रात्रि थी,प्राँगण के स्तम्भ में केवल एक ही अग्निशलाका जल रही थी,उसी अग्निशलाका के प्रकाश ने प्राँगण में उजियाला कर रखा था,वहाँ केवल एक सैनिक पहरा दे रहा था,सारे सैनिक या तो राजमहल के बाहर पहरा दे रहे थे या विराटज्योति के संग राज्य भ्रमण पर गए थे....
तब चारुचित्रा कालबाह्यी से बोली...
"बोलो !क्या कहना चाहती थी तुम?"
तब कालबाह्यी तनिक मुस्कुराई और चारुचित्रा के समीप आकर बोली.....
"मैं चाहती हूँ कि आप सभी के समक्ष जाकर ये सिद्ध करें कि वो प्रेतनी आप ही हैं जो इस राज्य में हो रहीं हत्याओं का कारण है"
"मैं...किन्तु मैं तो ये सब नहीं कर रही तो मैं क्यों अपने सिर पर ये लाँछन लूँ",चारुचित्रा बोली...
"यदि आप ऐसा नहीं कर सकतीं तो इस बार तो महाराज सकुशल बच गए किन्तु इस बार मैं महाराज को जीवित नहीं छोड़ूगी क्योंकि जिसे मैं प्राप्त नहीं कर सकती,उसे मैं किसी और का भी नहीं होने दूँगीं", कालबाह्यी बोली....
उसकी इस बात पर चारुचित्रा हँसी और बोली....
"ओह....तो अब तुम महाराज को प्राप्त करने हेतु ऐसा करोगी",
"हाँ! मैं वो सब प्राप्त करना चाहती हूँ जो आपके पास है,माता पिता,पति,मित्र,धन वैभव एवं महाराज विराटज्योति की रानी बनने का गौरव",कालबाह्यी बोली...
"यदि मैं ऐसा ना करूँ तो",चारुचित्रा ने पूछा....
चारुचित्रा के ऐसा कहने पर कालबाह्यी अपने बीभत्स रूप में आ गई,उसके इस बीभत्स रुप को चारुचित्रा ने कभी नहीं देखा था,इसलिए उसके उस रूप को देखकर वो भयभीत हो उठी,जब सैनिक ने कालबाह्यी को ऐसा करते देखा तो वो शीघ्रता से कालबाह्यी की ओर बढ़ा,किन्तु पलक झपकते ही कालबाह्यी ने उस सैनिक को अचेत करके उसका हृदय निकालकर ग्रहण कर लिया एवं उस सैनिक का मृत शरीर लेकर वो वायु में उड़ गई और जब वो लौटी तो उसके हाथ खाली थे,वो शीघ्रता से चारुचित्रा के समीप आकर उससे बोली....
"आपने देखा! रानी चारुचित्रा! मैं ऐसा महाराज के संग भी कर सकती हूँ"
"उस सैनिक का मृत शरीर कहाँ गया?", चारुचित्रा ने पूछा...
"उसे तो मैं राजमहल के बाहर छोड़ आई हूँ,इससे किसी को ये ज्ञात नहीं होगा कि मैं ही वो सब कर रही हूँ", कालबाह्यी बोली...
"ओह....",चारुचित्रा बोली....
"तो अब आपने क्या सोचा,अब आप तत्पर हैं ना अपने सिर दोष लेने हेतु",कालबाह्यी ने पूछा....
"तुमने और कोई मार्ग भी तो नहीं छोड़ा कालबाह्यी! मुझे ऐसा करना ही होगा",चारुचित्रा बोली...
"इसका तात्पर्य है कि आप तत्पर हैं",कालबाह्यी बोली...
"हाँ! अब तुम बोलो कि मुझे क्या करना होगा?",चारुचित्रा ने पूछा....
"आपको केवल समूचे राज्य में प्रेतनी का वेष धरकर भ्रमण करना होगा,बाकि मैं सब कर लूँगी",कालबाह्यी बोली...
"ठीक है तो अब तुम मुझे प्रेतनी बना दो किन्तु मुझे तुम वचन दो",चारुचित्रा बोली...
"कैसा वचन?",कालबाह्यी ने पूछा....
"ये वचन कि अब से तुम स्वयं को शक्तिशाली एवं सुन्दर बनाने हेतु किसी भी मानव की हत्या नहीं करोगी, महाराज के संग ईमानदारी के साथ प्रेम निभाओगी और महाराज के संग एक साधारण युवती की भाँति रहोगी",चारुचित्रा बोली....
"हाँ! मैं वचन देती हूँ कि मैं महाराज के संग साधारण युवती की भाँति ही रहूँगी एवं साधारण स्त्री की भाँति ही वृद्ध होकर मर जाऊँगीं",कालबाह्यी बोली....
"अब तुम अपना कार्य कर सकती हो",चारुचित्रा बोली....
तब कालबाह्यी ने चारुचित्रा को एक प्रेतनी का रुप दे दिया,वो अत्यधिक बीभत्स दिख रही थी,किन्तु वो चारुचित्रा थी,रुप बदलने से किसी का हृदय नहीं बदल जाता,बस उसने अपने पति के लिए ऐसा किया था,परन्तु उसने अन्तिम बार कालबाह्यी से एक बात अवश्य कही....
"तुम्हें अनुमान भी नहीं है कालबाह्यी! कि प्रेम क्या होता है,जो तुमने किया वो प्रेम नहीं तृष्णा है",
"जो भी हो,वो मुझे नहीं ज्ञात,मैं एक प्रेतनी हूँ और मैं अपना कार्य उसी प्रकार ही करूँगीं",कालबाह्यी बोली....
"कितना अच्छा होता यदि तुम ये समझ पाती कि त्याग क्या होता है,किन्तु तुम एक दिन ये अवश्य समझ जाओगी,तब तुम अपना शरीर त्यागने से भी पीछे नहीं हटोगी",चारुचित्रा बोली...
"निरर्थक वार्तालाप बंद कीजिए रानी चारुचित्रा! अब आप राज्य भ्रमण हेतु जाइए,ताकि आपको राज्य के निवासी देखें तो भयभीत हो जाएँ,किन्तु सर्वप्रथम आप राजमहल का भ्रमण कीजिए ताकि राजमहल में ये बात फैल जाएँ कि आप ही वो प्रेतनी हैं",कालबाह्यी बोली...
"मुझे मृत्यु का भय नहीं है कालबाह्यी! तुम चिन्तित ना हो,मैं वही करूँगी जो मेरे स्वामी के लिए उचित होगा"
और ऐसा कहकर रानी चारुचित्रा राजमहल में भ्रमण करने लगी.......
बीभत्स रुप धरकर जब चारुचित्रा राजमहल में भ्रमण कर रही थी तो सभी उसे देखकर भयभीत होकर यहाँ वहाँ भागने लगे,महल की सभी दासियों के बीच चीख पुकार होने लगी,उन सभी दासियों की चीख पुकार सुनकर राजमहल के बाहर जो भी सैनिक उपस्थित थे,वो राजमहल के भीतर आ गए,इसके पश्चात् वे चारुचित्रा को प्रेतनी समझकर राजमहल से भगाने का प्रयास करने लगे,किन्तु किसी में भी इतना साहस नहीं हो रहा था कि वो उसे हानि पहुँचा सके,सभी को भय था,सभी को अपने प्राणों से प्रेम था...
चारुचित्रा कालबाह्यी की ओर देख रही थी कि कदाचित कालबाह्यी की उस पर कृपादृष्टि हो जाएँ और वो अपना अपराध स्वीकार कर ले,किन्तु कालबाह्यी ने ऐसा नहीं किया,सैनिकों के निरन्तर प्रहार से अब चारुचित्रा रक्तरंजित हो चुकी थी,उसके मस्तक एवं भिन्न भिन्न अंगों पर गहरें घाव आ चुके,अब उसमें इतना साहस ना बचा था कि वो स्वयं को सम्भाल सके,इसलिए वो अचेत होकर धरती पर गिरने को हुई तभी वहाँ पर यशवर्धन आ पहुँचा और सभी सैंनिको से बोला....
"यदि किसी ने भी रानी चारुचित्रा पर प्रहार कर किया तो मैं उसे जीवित नहीं छोड़ूगा"
इसके पश्चात् उसने चारुचित्रा को अपने काँधे पर लाँदा और अपने साथ कहीं ले गया एवं ये दृश्य दूर खड़ी कालबाह्यी देखती रही और जब महाराज विराटज्योति महल में वापस लौटे तो कालबाह्यी ने उनसे कहा कि...
"महाराज! रानी चारुचित्रा ही वो प्रेतनी थीं,जो सभी की हत्याएंँ कर रहीं थीं एवं उनके साथ वो आपका मित्र यशवर्धन भी मिला हुआ है"
कालबाह्यी के संग संग वहाँ उपस्थित सैनिकों एवं दासियों ने भी विराटज्योति से यही बात कही,तब सैनिक बोले कि महाराज जब हमें ज्ञात हो ही चुका है कि वो एक प्रेतनी है तो हमें अब और अधिक बिलम्ब नहीं करना चाहिए,शीघ्रता से उसकी हत्या कर देनी चाहिए और सभी की बातें सुनकर विराटज्योति उस प्रेतनी की हत्या करने चल पड़ा....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....