Kalvachi-Pretni Rahashy - S2 - 23 in Hindi Horror Stories by Saroj Verma books and stories PDF | कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२--भाग(२३)

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कालवाची-प्रेतनी रहस्य-सीजन-२--भाग(२३)

तभी मनोज्ञा बनी कालबाह्यी ने रानी चारुचित्रा को देख लिया तो महाराज से बोली...
"महाराज! ऐसा प्रतीत होता है कि रानी चारुचित्रा ने हमारे मध्य हो रहे वार्तालाप को सुन लिया है",
"हाँ! सुन तो लिया किन्तु मुझे महाराज एवं उनके प्रेम पर पूर्ण विश्वास है",चारुचित्रा बोली...
"जी! महारानी! आपका विश्वास महाराज ने टूटने नहीं दिया"
और ऐसा कहकर वो वहाँ से चली गई,समय यूँ ही बीत रहा था यशवर्धन को उस राज्य एवं विराटज्योति का शत्रु घोषित कर दिया गया,इसलिए वो राज्य के समीप वाले वन में छुपकर रहने लगा,अब वो वैतालिक राज्य नहीं लौट सकता था,इसलिए उसने मान्धात्री से चामुण्डा पर्वत जाने को कहा,मान्धात्री ने तब यशवर्धन से पूछा....
"राजकुमार यशवर्धन! आप मुझे चामुण्डा पर्वत क्यों भेज रहे हैं?"
"आप वहाँ जाकर वैतालिक राज्य के भूतपूर्व राजा अचलराज और रानी भैरवी को यहाँ वापस लौटने के लिए कहेगीं, उन दोनों को यहाँ की सभी परिस्थितियों से अवगत करवाऐगीं,अब यहाँ आकर वे ही कुछ कर सकते हैं" यशवर्धन बोला....
"जी! मुझे भी यही आभास था कि कदाचित आप यही कहेगें",मान्धात्री बोली...
"तो आप शीघ्रता से चामुण्डा पर्वत की ओर प्रस्थान करें",यशवर्धन बोला....
"जी! और कोई बात तो नहीं कहनी उनसे ,जो आपको अभी याद ना हो",मान्धात्री ने पूछा...
"नहीं! अभी तो मुझे याद नहीं आ रहा",यशवर्धन बोला...
"हाँ! तो मैं अब चलती हूँ एवं शीघ्रतापूर्वक उन दोनों को अपने साथ लेकर यहाँ वापस लौटूँगी",मान्धात्री बोली...
"हाँ! ठीक है! वे दोनों यहाँ आ जाऐगें तो उनके आने पर यहाँ की सभी समस्याएंँ हल हो जाऐगीं",यशवर्धन बोला...
"जी! तो अब मैं चलती हूँ",
और ऐसा कहकर मान्धात्री ने चामुण्डा पर्वत की ओर प्रस्थान किया,वो वहाँ पहुँची तो उसने अचलराज और भैरवी को वैतालिक राज्य में हो रही सभी घटनाओं से अवगत कराया और अचलराज से शीघ्रतापूर्वक वैतालिक राज्य चलने का आग्रह किया,अचलराज को भी वो सब सुनकर राज्य और चारुचित्रा की चिन्ता हुई एवं अचलराज,भैरवी और मान्धात्री पुनः शीघ्रतापूर्वक वैतालिक राज्य लौट आएँ,राज्य लौटकर अचलराज ने सर्वप्रथम कालवाची एवं भूतेश्वर से भेंट करने का सोचा और वो उन दोनों से मिलने बंदीगृह पहुँचा,जब कालवाची ने अचलराज को अपने समक्ष देखा तो वो उससे बोली....
"अचलराज! अब भी तुम्हें हम दोनों पर ही संदेह है",
"नहीं! अब मुझे तुम दोनों पर संदेह नहीं रहा,इसलिए मैं तुम्हें इस बंदीगृह से मुक्त करने आया हूँ", अचलराज बोला...
"यदि मैं नहीं तो वो कौन है जो ये सभी हत्याएँ कर रहा है",कालवाची ने अचलराज से पूछा...
"कर रहा नहीं कर रही है",अचलराज बोला....
"तुम्हारे कहने का आशय है कि वो कोई युवती है",भूतेश्वर बोला...
"हाँ! वो और कोई नहीं तुम्हारी पुत्री कालबाह्यी है जो वैतालिक राज्य में मनोज्ञा बन कर रह रही है,तुमने झूठ कहा था ,तुमने मृत नहीं जीवित कन्या को जन्म दिया था",अचलराज बोला....
"हाँ! मैंने तुमसे झूठ कहा था कि मैंने मृत कन्या को जन्म दिया है,परन्तु! वो अब जीवित नहीं हो सकती,मैंने तो उसकी हत्या कर दी थी", कालवाची बोली...
"वो जीवित है कालवाची! तुम जिस शिशु कन्या को अँधेरी कन्दरा में मरने के लिए छोड़ आई थी,उसे किसी ने उस कन्दरा से सुरक्षित निकाल लिया था एवं तुम्हारे विरुद्ध उस कन्या के मन में विष घोला गया,इसलिए अब वो कन्या ऐसी हो चुकी है",अचलराज बोला....
"अब इस समस्या का क्या समाधान है अचलराज!",भूतेश्वर ने पूछा....
"अब तुम्हें अपनी पुत्री से जाकर ये कहना होगा कि तुम दोनों ही उसके माता पिता हो,तब कदाचित उसका हृदय परिवर्तित हो जाएं",अचलराज बोला....
"किन्तु उसे बचाया किसने?",कालवाची ने पूछा...
"तुम्हें याद है कालवाची! तुमने मगधीरा के राजा विपल्व चन्द्र की हत्या की थी,उसी की पत्नी हिरणमयी ने उसे बचाया था,उसी ने तुम्हारी पुत्री का लालन पालन किया और उससे ये कहा कि उसकी माँ तो उसकी शत्रु थी तभी तो उसने उसे उस कन्दरा में मरने के लिए छोड़ दिया था,हिरणमयी और विपल्व चन्द्र का पुत्र है धवलचन्द्र जो तुम्हारी पुत्री कालबाह्यी की सहायता करता है",अचलराज बोला....
"तुमने ये बात विराटज्योति और चारुचित्रा को बताई",कालवाची ने पूछा....
"अभी तक तो नहीं, कदाचित इस बात से चारुचित्रा तो अवगत है किन्तु महाराज विराटज्योति नहीं", अचलराज बोला...
"तो अब क्या कर सकते हैं हम लोग?",भूतेश्वर ने पूछा...
"वही तो सोच रहा था कि ऐसी क्या योजना बना सकते हैं जिससे कालबाह्यी का हृदय परिवर्तन हो जाएँ, मुझे तो ये भी ज्ञात हो गया है कि मनोज्ञा बनी कालबाह्यी महाराज विराटज्योति से प्रेम करने लगी एवं उन्हें पाने का स्वप्न वो अपनी आँखों में सजा बैठी है,राजा विराटज्योति को भी उस पर पूर्ण विश्वास है कि वो कोई प्रेतनी नहीं है,इस बात का वो पूर्ण लाभ उठा रही है",अचलराज बोला...
"किन्तु! ये तो अनुचित है,कालबाह्यी ऐसा कैंसे कर सकती है",कालवाची बोली....
"उसे जो समझाया गया है,वो केवल वही समझ रही है,जब उसे कोई ये बता देगा कि वो जो कर रही है वो उचित नहीं है तभी उसकी प्रवृत्ति बदलेगी,क्योंकि वो जन्म से प्रेतनी है अपनी माता की भाँति,किन्तु उसमें कुछ लक्षण अपने पिता के भी तो होगें",अचलराज बोला....
"हाँ! मैं अपनी पुत्री को अब और पाप नहीं करने दूँगा",भूतेश्वर बोला...
"हाँ! इसलिए अब तुम दोनों मुक्त हो,मेरे साथ तुम दोनों महल चलो,वहाँ हम सभी विराटज्योति,चारुचित्रा और मनोज्ञा से भेंट करेगें,इतना ध्यान रहे कि कालबाह्यी को ये ज्ञात नहीं होना चाहिए कि हम उसके विषय में सबकुछ जानते हैं,इसलिए उसे मनोज्ञा कहकर ही पुकारना,मैंने भैरवी को भी ये बात भलीभाँति समझा दी है",अचलराज बोला...
"हाँ! अचलराज! तुम्हारी कही सभी बातें हम दोनों याद रखेगें",भूतेश्वर बोला....
इसके पश्चात् अचलराज कालवाची एवं भूतेश्वर को बंदीगृह से मुक्त करवाकर राजमहल ले गया,वहाँ कालवाची और भूतेश्वर ने सभी से भेंट की,चारुचित्रा को तो सबकुछ ज्ञात था कि ये सब यहाँ क्यों आएँ हैं,इसलिए उसने सामान्य रहने का अभिनय किया,किन्तु विराटज्योति को तो कुछ भी ज्ञात नहीं था कि वे सब किस कारण से राजमहल आएँ हैं.....
कुछ समय पश्चात् मनोज्ञा जलपान लेकर वहाँ सभी के समक्ष उपस्थित हुई,तब चारुचित्रा ने उससे सभी का परिचय करवाया,कालवाची और भूतेश्वर ने जैसे ही अपनी पुत्री कालबाह्यी को देखा तो वर्षों से उनके मन के भीतर दबी हुई ममता जाग उठी,तब कालवाची कालबाह्यी बनी मनोज्ञा से बोली....
"पुत्री! मनोज्ञा! मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ"
"जी! कहिए!",कालबाह्यी बनी मनोज्ञा बोली....
"यदि तुम्हें कोई आपत्ति ना हो तो,मेरा जी चाह रहा है कि मैं तुम्हें अपने हृदय से लगा लूँ", कालवाची बोली...
"काकी जी! भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती,ये तो मेरे लिए बड़ी सम्मानजनक बात होगी",कालबाह्यी बनी मनोज्ञा बोली....
इसके पश्चात् कालवाची ने जैसे ही मनोज्ञा बनी कालबाह्यी को अपने हृदय से लगाया तो मनोज्ञा को एक विचित्र सी अनुभूति का अनुभव हुआ,उसे कालवाची का स्पर्श किसी शीतल बयार सा लगा,उसे उस समय ऐसा लग रहा था कि वो एक अलग ही संसार में विचरण कर रही है,वो मन में सोच रही थी कि यदि उसकी माँ उसके समक्ष होती तो उसके स्पर्श से भी क्या उसे ऐसा ही आभास होता,उसे एक अद्भुत शान्ति का अनुभव हो रहा था,अब मनोज्ञा बनी कालबाह्यी की आँखें अश्रुपूरित थी एवं उनसे अविरल धारा बह रही थी,जो सभी के लिए एक विचित्र बात थी....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....