Amanush - 23 in Hindi Detective stories by Saroj Verma books and stories PDF | अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(२३)

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अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(२३)

अब सतरुपा ये सोचने लगी कि वो अपनी जान कैंसे बचा सकती है,इसलिए वो इधर उधर अपनी नजरें दौड़ाने लगी कि काश ऐसा कुछ मिल जाएँ,जिससे वो कैंसे भी करके इस फार्महाउस से निकलने में कामयाब हो जाए और तभी उसकी नजर वहाँ रखे कबाड़ पर पड़ी,वहाँ उसे एक लाइटर दिखा जो कि सामान के बीच पड़ा था,लेकिन वो उससे बहुत दूर था,क्योंकि वो कुर्सी जिससे उसे बाँधा गया था,वो स्टोररूम के बिलकुल बीचों बीच रखी थी,सतरुपा को कैंसे भी करके उस कुर्सी को उस लाइटर तक ले जाना था,इसलिए वो अब धीरे धीरे उस कुर्सी को उस पर बैठे ही बैठे उस लाइटर तक घसीटने लगी,लेकिन बहुत कोशिश करने के बाद भी वो कुर्सी थोड़ी सी ही खिसक पा रही थी,फिर भी सतरुपा ने हार नहीं मानी और वो लगातार बिना रुके उस कुर्सी को उस लाइटर की तरफ ले जाने लगी....
कोशिश करते करते आखिरकार वो कामयाब भी हो गई,लेकिन अब वो लाइटर उठाएँ कैंसे क्योंकि उसके हाथ पैर दोनों ही बँधे थे,इसलिए उसके दिमाग़ में एक आइडिया आया,अब वो अपनी कुर्सी को एक साइड पलटाने की कोशिश करने लगी और फिर उसकी कुर्सी पलटी,फिर वो फर्श पर एक साइड गिर पड़ी,उसे चोट भी लगी लेकिन उसने उस चोट की परवाह ना करते हुए उस लाइटर को उठाने की कोशिश की,वो फर्श पर घिसट घिसट कर आखिरकार उस लाइटर तक पहुँच ही गई और थोड़े बहुत सामान को हटाने के बाद उसके हाथ वो लाइटर लग ही गया,बड़ी मुश्किलों के बाद वो लाइटर जला और उसने उस लाइटर की सहायता से पहले अपने हाथों की रस्सी जलाई,रस्सी जलाने के चक्कर में उसके हाथ भी झुलस चुके थे,लेकिन उसने तब भी हार नहीं मानी और अपने हाथों की रस्सी को जलाकर ही दम लिया,जब उसके हाथों की रस्सी जल चुकी तो तब उसने अपने मुँह का टेप निकाला,मुँह का टेप निकालने के बाद उसने अपने पैंरों की रस्सी भी खोल दी और वहाँ से भागने का रास्ता ढूढने लगी....
पहले उसने खिड़की से भागने का सोचा,लेकिन उसने देखा तो उसमें लोहे की बहुत महीन ग्रिल लगी थी,जिससे भाग पाना मुमकिन नहीं था,वो बाहर भी आवाज़ नहीं दे सकती थी,क्योंकि उस सुनसान जगह पर उसे कोई भी नहीं सुन सकता था,बहुत दिमाग लगाने के बाद भी उसे भागने का कोई भी रास्ता नहीं दिखा,वो कुर्सी पर बैठकर कुछ सोच ही रही थी कि तभी उसे किसी के कदमों की आहट सुनाई दी और वो उस आवाज़ को सुनकर सावधान हो गई,तब वो कबाड़ में से एक मोटा सा लकड़ी डण्डा निकालकर दरवाजे के पास छुप गई और जैसे ही रघुवीर ने दरवाजा खोला तो उसने जोर से वो डण्डा उसके सिर पर दे मारा, फिर क्या था रघुवीर सिर पर चोट लगते ही एक पल को शान्त हो गया,वो तब तक कुछ समझ पाता तो सतरुपा ने बाहर से स्टोररूम का दरवाजा बंद कर दिया और फार्महाउस से भाग निकली....
और जब वो फार्महाउस के गेट पर पहुँची तो उसने देखा कि मेन गेट पर बड़ा सा ताला लगा है, इसलिए अब सतरुपा के पास गेट पर चढ़कर भाग निकलने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं था,वो अब गेट पर चढ़ने लगी और उस पर चढ़कर वो उस तरफ जैसे ही उतरने को हुई तो जल्दबाजी में उसका पैर फिसल गया और वो धड़ाम से गेट के दूसरी ओर गिर पड़ी,अब उसके पैर और एक हाथ में बहुत जोर की चोट आई थी,लेकिन वो अपनी चोटों को अनदेखा करके लगड़ाते हुए भागने लगी,कुछ देर के बाद वो जैसे तैसे मेन रोड पर पहुँची और वो उस रोड से आने जाने वाली गाड़ियों से मदद माँगने लगी,लेकिन कोई भी उसकी मदद करने को तैयार नहीं था,वो बहुत परेशान थी उसके हाथ लाइटर की आग से झुलसे हुए थे जिससे उनमें धूप लगने से जलन पैदा हो रही थी.....
उसकी बिगड़ी हुई हालत देखकर कोई भी अपनी कार नहीं रोक रहा था,लोगों को लग रहा था कि ऐसा तो नहीं कि वो उन्हें बेवकूफ बनाकर लूट लेगी,बहुत कोशिश करने के बावजूद भी सतरुपा किसी भी कार को अपनी मदद के लिए ना रोक सकी,तभी एक दूधवाला अपनी मोटरसाइकिल में बहुत से दूध के कैन लटकाकर वहाँ से गुजरा,वो शायद लोगों को दूध बाँटकर वापस लौट रहा था,उसे सतरुपा ने हाथ दिखाकर रोकना चाहा,वो उस समय तो नहीं लेकिन थोड़ी दूर जाकर रुक गया,उसने पीछे मुड़कर देखा तो सतरुपा उसके पास आ रही थी,सतरुपा के उसके पास आने तक वो वहीं पर रुका रहा और जब सतरुपा उसके पास पहुँची तो वो उससे बोला...
"के बात हो गई बहनजी! म्हाणे को क्यों रोका"
" मैं बहुत मुसीबत में हूँ भइया! अगर आप थोड़ी मदद कर देते तो मैं इस मुसीबत से निकल सकती हूँ", सतरुपा ने उस दूधवाले से कहा...
"हाँ..बताओ,के करना होगा म्हाणे को",दूधवाले ने पूछा...
"बस आप मुझे अपना फोन दे दीजिए,मैं पुलिस को फोन करके बता देती हूँ कि मैं कहाँ हूँ", सतरुपा बोली...
"हाँ...हाँ...फोन चाहिए,लो लेलो म्हाणा फोन",दूधवाला बोला...
फिर सतरुपा ने दूधवाले का फोन लेकर फौरन ही इन्सपेक्टर धरमवीर को फोन लगाकर सारी बात बता दी, तब इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"सतरुपा! तुम वहीं पर रहना,मैं अभी वहांँ पहुँचता हूँ",
"लेकिन मैं ज्यादा देर यहाँ नहीं रुक सकती,वो रघुवीर किसी भी वक्त मुझे ढूढ़ता हुआ यहाँ पहुँच जाऐगा", सतरुपा बोली...
"तो तुम ऐसा करो,उस दूधवाले से कहो कि मैं जब तक वहाँ नहीं पहुँचता तो तब तक वो तुम्हारे साथ वहाँ रह ले", इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"ठीक है मैं उनसे बात करके देखती हूँ",
और ऐसा कहकर सतरुपा ने उस दूधवाले से उसके साथ रहने को कहा,दूधवाला अच्छा इन्सान था इसलिए वो फौरन ही सतरूपा की बात मान गया,उसके पास पानी था उसने सतरुपा को पीने के लिए पानी दिया और फिर उसने अपने रुमाल के दो टुकड़े किए और उन्हें पानी से गीला करके उसके दोनों हाथों पर बाँध दिया,अब सतरुपा को थोड़ी राहत महसूस हुई उसने उस दूधवाले का शुक्रिया अदा किया,दोनों बातें ही कर रहे थे कि तब तक पुलिस वहाँ पहुँच गई,इन्सपेक्टर धरमवीर ने भी उस दूधवाले का शुक्रिया अदा किया फिर वो दूधवाला अपने रास्ते चला गया,इधर इन्सपेक्टर धरमवीर सतरुपा के साथ फार्महाउस पहुँचे और उनके कहने पर कोन्स्टेबल ने मेन गेट का ताला तोड़ दिया,फिर वे सभी फार्महाउस के भीतर पहुँचे तो रघुवीर स्टोररूम में नहीं था,वो स्टोररोम के रोशनदान से बाहर भाग निकला था.....
अब इन्सपेक्टर धरमवीर ने फौरन ही अपने पुलिस स्टेशन में फोन किया और कहा कि शहर के सारे पुलिस स्टेशन में फोन करके बताओ कि रघुवीर फरार हो गया है और सभी जगह उसका स्केच बनवाकर लगवा दिया जाएँ....

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....