gulabo - 27 in Hindi Women Focused by Neerja Pandey books and stories PDF | गुलाबो - भाग 27

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गुलाबो - भाग 27

भाग 27


पिछले भाग में आपने पढ़ा की जगत रानी रज्जो के बेटा होने का तार पा कर रुक नही पाती। उसे देखने जाती है। फिर एक महीने तक उनकी देख रेख कर घर ले कर आती है। अब आगे पढ़े—



उस दिन भी रोज की तरह गुलाबो ने बच्चो को रात का कलेवा खिला दिया था। चूल्हे पर दाल चढ़ा कर थाली में चावल ले कर बाहर चारपाई पर बैठ कर पड़ोसन से बातें कर रही थी। बाते करती जाती, बीच बीच में चावल भी बीनती जाती। बच्चे बाकी बच्चो के साथ खेल रहे थे। इस एक महीने में ही गुलाबो अब एक दम पुरखिन की तरह व्यवहार करने लगी थी। ना उसमे कोई बहू वाली झिझक बची थी ना शर्म।

तभी इक्का रुका घर के सामने। जब तक गुलाबो कुछ समझती तब तक जगत रानी इक्के से उतर कर रज्जो की गोद में बालक की पकड़ा दिया। और गुलाबो को आगवानी करके धार देने के लिए पुकारने लगी।

गुलाबो अंदर कहां थी..? वो तो बाहर ही थी। अब वो अंदर कैसे जाए..? अम्मा तो देख ही रही हैं।

तब तक बच्चे जगत रानी के पास आकर खड़े हो गए। जगत रानी बच्चों से पूछती उससे पहले उसकी निगाह बाहर ही खड़ी गुलागो पर पड़ गई।

वो गुस्से से बोली, "अच्छा तो तू यही पर मजलिस लगाए बैठी है। मैं अंदर किसे पुकार रही हूं… ? तुझे दिखता नहीं तेरी जेठानी दरवाजे पर गोदी में बच्चा लिए खड़ी है। धार वार तू देगी या ऐसे ही घर में घुसा दूं..?"


आते ही सास का डांटना गुलाबो को अखर गया। वो भी पड़ोसन के सामने। जिससे चंद घड़ी पहले वो घर की मालकिन बनी बतियां रही थी। गुलाबो कहां मानने वाली थी चट से बोली, "पर अम्मा दीदी तो अपने घर जायेगी ना। तो मैं कैसे..?"

अब जगत रानी का सब्र टूट गया। वो चिल्लाई,"ठहर जा..! ला मेरी लाठी तो बताती हूं कहा जायेगी…?"

गुलाबो तेजी से अन्दर गई और लोटे मे पानी और सूप में चावल,हल्दी की कुछ गांठे डाल कर ले कर आई। रज्जो और बच्चे को उबार कर धार दिया और फिर बच्चे को सूप में लिटा कर उठा लिया। पर ये सब गुलाबो चालाकी से रज्जो वाले हिस्से में ले जा कर ही किया कि कही ऐसा ना हो की दीदी मेरे घर में ही न रहने चली आए और मुझे उसकी सेवा करनी पड़े। जगत रानी सब समझ रही थी पर वो इस वक्त उसे ज्यादा बोलना ठीक नही लगा।

घर में जगत रानी का वापस आना गुलाबो को अच्छा नही लग रहा था पर वो कुछ भी नही कर सकती थी। विवश थी। इसका एक उपाय उसे सूझा की वो घर के काम में लापरवाही करेगी, खाना समय से नही बनाएगी तो दीदी अम्मा को अपनी ओर ही खिला पिला देगी। अब जगत रानी और विश्वनाथ जी रहते तो थे गुलाबो और विजय वाले हिस्से में पर खाना रज्जो समय से बना कर उन्हे पहले खिला देती।

रज्जो मां नही बनी थी पर वो श्याम को दिल से अपना बेटा मानती थी। पर गुलाबो की जलन ने सूरज को प्यार से गोद में नही लेने दिया। गुलाबो की एक तकलीफ तो थी ये थी की श्याम ही अब तक घर का अकेला वारिस था अब सूरज भी हिस्सा बटवाने आ गया। दूसरा उसका दूध जैसा उजला रंग गुलाबो को कचोटता। वो श्याम से सूरज की तुलना करती। एक साथ देखने पर सूरज और श्याम, दिन और रात जैसे प्रतीत होते। जो गुलाबो के कष्ट का बहुत बड़ा कारण था।

जगत रानी ने शीतला माता की पूजा रखी थी। पूजा के बाद जय छुट्टी खत्म होने तक रुका। जब वो जाने लगा तो रज्जो को भी साथ ले जाने लगा। वो जगत रानी से बोला, जगत रानी ने जब रज्जो को जाने की तैयारी करते देखा तो जय से बोली,"क्यों रे.. जय..! क्या रज्जो को भी ले जा रहा है..? पगला गया है क्या..? इतना छोटा सा बच्चा है। कैसे वो घर और बच्चा दोनो संभाल पाएगी..? ना .. ना.. अभी मत ले जा। जब कुछ बड़ा ही जाए सूरज तब ले जाना।" जगत रानी नही चाहती थी की रज्जो और सूरज जाएं।

पर जय को गुलाबो के व्यवहार से अंदाजा ही गया था की वो बिलकुल भी नहीं चाहती की रज्जो और सूरज यहां रहे। अगर वो अम्मा की बात मान कर रज्जो को यहां रहने देता तो उसे पूरी आशा थी की रोज कुछ न कुछ नोक झोंक लगी ही रहेगी। जिससे गांव वालो को हंसने और बात बनाने का अच्छा मौका मिल जायेगा। इन सब से तो अच्छा था की वो अम्मा को थोड़ी देर नाराज करके रज्जो और सूरज को साथ ही ले जाए।

इन्ही सब बातों को सोच विचार कर जय अम्मा को समझाते हुए बोला, "अम्मा..! तुम परेशान क्यों होती हो..? सब हो जायेगा। सुबह शाम तो मैं रहता ही हूं। जब मैं रहूंगा सूरज को संभालूंगा, रज्जो काम निपटा लेगी। फिर दो लोगों का काम ही कितना होता है..? फिर भी अगर रज्जो नही संभाल पाई तो पहुंचा जाऊंगा तुम्हारे पास। अब कोई बंबई थोड़े ना है..? पास ही तो है।"

जय के समझाने पर जगत रानी रज्जो और सूरज को भेजने पर राजी हो गई। पर साथ ही वादा लिया की हर त्योहार पर वो घर आएगा। जय ने खुशी खुशी ये वादा कर दिया और बोला, "अम्मा तुम नही कहती तब भी मैं यहीं आता त्योहार मनाने।"

जय अम्मा और पिता जी से आशीर्वाद ले अपने परिवार ले कर लखीमपुर चला आया।

रज्जो के चले जाने पर गुलाबो विजय से खूब लड़ी। उसका कहना था की देखा ..! भईया जी दीदी और सूरज को साथ ले गए अपने साथ ले गए। अम्मा की एक ना सुनी। एक तुम ही अम्मा के भक्त। अम्मा ने मना कर दिया तो श्रवण कुमार मान गए। हिम्मत ना हुई साथ ले जाने की।

पहले तो विजय सुनता रहा। फिर जब नही रहा गया तो झल्ला कर बोल उठा, "तुम भाभी की बराबरी कर रही हो..? गुलाबो तुम…? ना तुमसे घर संभलता है ना बच्चे। तुम बंबई में एक कमरे में बच्चे को भी संभाल लेती और घर भी..? अरे..! अम्मा है जो बच्चे इतने अच्छे से पल गए। वरना तुम तो…? छोड़ो भी तुमसे कौन अपना सर खपाए..?" विजय गुलाबो को बड़बड़ाता छोड़ खेत पर चला गया।

रज्जो यहां बिना किसी परेशानी के सूरज को भी संभाल लेती और घर के सारे काम भी निपटा लेती। सूरज धीरे धीरे रज्जो के अमृतमई छाया में बढ़ने लगा। हर दीपावली और होली में वो घर जाते। साथ ही रक्षा बंधन में सूरज की कलाई सुनी ना रहे इसलिए रिद्धि, सिद्धि से राखी बंधवाने भी जाते। रज्जो और जय कोई कमी नही रखते। सूरज और श्याम दोनो के लिए एक जैसे ही कपड़े खरीदते। पर गुलाबो का व्यवहार अच्छा होने की बजाय दिन प्रतिदिन खराब ही होता गया।


अगले भाग मे पढ़े क्या गुलाबो का व्यवहार ऐसा ही रहा या वो कुछ बदली..? आखिर रज्जो और जय घर से दूर रह कर जब तक बात संभाल सकेंगे..? क्या जगत रानी और विश्वनाथ जी बस ऐसे ही देखते रहेंगे..? पढ़े अगले भाग में।