मीतू अपनी धुन में सड़क के किनारे जल्दी जल्दी आगे बढ़ी जा रही थी , आंखो पर गहरा काला चस्मा चमकदार नीली शर्ट के साथ टाइट काली जींस पहने मीतू देखने में कोई स्कूल या कालेज की लड़की लग रही थी, भरे बदन की मीतू को देख कर आसपास वाले कुछ बुदबुदा रहे थे पर दुनिया से बेखबर मीतू अपनी धुन में ही चले जा रही थी, तभी फोन की घंटी बजी और मीतू का ध्यान अपने फोन पर गया सुक्खी माई लिखा देख के मीतू का चेहरा अजीब सा हो गया फोन उठाते ही उधर से कड़क सी आवाज आई ...क्या री हरामजदी अभी तू बाबू साहब के बंगले नही पहुंची कित्ती बार फोन कर चुके है कही और मुंह मारने लगी होगी साली तेरे नखरे बहुत बढ़ गए है आ आज तेरा इलाज करती हूं, मीतू का हलक सूख गया कांपती आवाज़ से बोली नही माई जाम बहुत था बस बंगले के पास पहुंच गई हूं बाबू साहब से बोलो 5 मिनट में आ गई मीतू, तू फोन रख बस मैं पहुंच गई सुक्खी माई ने एक भद्दी सी गाली देते हुए फ़ोन काट दिया, मीतू अब और तेज कदमों से बढ़ी जा रही थी
बाबू साहब यानि रमेश बाबू जिनका पूरे शहर में नाम था शहर के सबसे अमीर आदमियों में उनकी गिनती थी वैसे तो रमेश बाबू अभी कुंवारे थे पर उम्र 37 से पार हो रही थी, रंगीन मिजाज के थे तो कबाब और शबाब का शौक काफी ज्यादा था, रमेश बाबू काफी देर से मीतू का इंतजार कर रहे थे तभी गेट की घंटी बजी और गेट खोलते ही मीतू रमेश बाबू के सामने खड़ी थी, रुपट्टे से मुंह ढांक के खड़ी मीतू को पहली बार रमेश बाबू ने उड़ती नजर से देखा और बोले क्या है ...कौन हो.. मीतू हकला के बोली वो..वो सुक्खी माई ने भेजा है मुझे आप रमेश बाबू है न... दरवाजे से हटते हुए रमेश बाबू बोल पड़े हां मैं ही हूं एंड आ जाओ..
अंदर अच्छे से सजे व्यवस्थित कमरे में लगे किंग साइज बेड पर बिना किसी झिझक के मीतू बैठ गई रमेश बाबू दूसरे कमरे में थे इतनी देर में मीतू ने दुप्पटा खोल दिया और चस्मा भी निकाल दिया और पैर फैला कर ऊपर आराम से बैठ गई रमेश बाबू अंदर आते समय बोल रहे थे इतना देर कहां लगा दी टाइम की....बोलते बोलते रुक गए रमेश बाबू सामने मीतू थी बड़ी बड़ी आंखें गोल चेहरा दूध सा गोरा रंग और बच्चो सी मासूमियत वाली लड़की .. रमेश बाबू एक बारगी ठिठक गए तुम .. क्या नाम तुम्हारा कहां की हो तुम ...एक साथ इतने सवाल सुनकर मीतू घबरा गई एक सांस में ही बोल गई बाबू साहब मैं मीतू हूं 6 नंबर कोठे में रहती हूं सुक्खी माई के साथ ....बाबू साहब क्या हुआ कोई गलती हुई मुझसे....तो तक रमेश बाबू सम्हल चुके थे ..अरे नही ऐसी कोई बात नही ...तब तक मीतू समझ चुकी थी की लगता है ये नए है अभी शरारत से बोली लगता है आपको पसंद नई मैं क्यों रमेश बाबू...... झेपते हुए रमेश बाबू बोले नही तुम तुम तो बहुत प्यारी हो ...एक बात बताओ तुम गोरखपुर गई हो कभी....दिल्ली के बंद एसी कमरे में बैठी मीतू गोरखपुर का नाम सुनते ही पसीने से भीग गई ...उसने जल्दी से अपना रुपट्टा ठीक किया..हड़बड़ा के बोली..गोरख...गोरखपुर हां नही पर आ..आप ने ये क्यो पूछा बाबू साहब...
कौन थी मीतू ?....गोरखपुर का नाम सुनते ही कांप क्यों गई?... रमेश बाबू ने गोरखपुर का नाम क्यों लिया ?... जानते है अगली कड़ी में