Ardhangini - 5 in Hindi Love Stories by रितेश एम. भटनागर... शब्दकार books and stories PDF | अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 5

Featured Books
Categories
Share

अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 5

मैत्री को उसके बचपन की यादो को याद करके खुश होते देख जगदीश प्रसाद को लगा था कि यही सही मौका है मैत्री से उसकी दूसरी शादी के लिये बात करने का लेकिन शादी की बात सुनकर मैत्री ने जिस तरह की प्रतिक्रिया दी उसकी उम्मीद ना तो सरोज को थी ना ही जगदीश प्रसाद को!! उन्हे लगा था कि मैत्री उनकी बात को इत्मिनान से सुनेगी और शायद इस बारे मे सोचने के लिये समय मांगेगी लेकिन उसके सीधे सीधे तल्ख लहजे मे मना करने से जगदीश प्रसाद आहत से हो गये थे.. वो मैत्री को समझाते हुये बोले- बेटा अभी तेरी उम्र ही क्या है जो तू इतना बड़ा निर्णय ले रही है वो भी बिना सोचे समझे, तुझे टाइम चाहिये सोचने के लिये तो टाइम ले ले पर ऐसे मना मत कर...

अपने पापा जगदीश प्रसाद की इस बात को सुनकर मैत्री ने कहा- नही पापा मुझे कुछ नही सोचना मै डिसाइड कर चुकी हूं कि मै अब आप लोगो के साथ ही रहूंगी, कोई जॉब कर लूंगी उसी मे मेरा मन लगा रहेगा बाकि अब मुझे जिंदगी से कुछ नही चाहिये...

मैत्री की इस बात को सुनकर पहले से आहत जगदीश प्रसाद बोले- बेटा हमारी उम्र हो गयी है हम आज हैं कल नही, क्या पता कब बुलावा आ जाये भगवान का... तेरी चिंता दिल मे लिये कम से कम मै तो इस दुनिया से नही जाना चाहता...!!

अपने पापा की बात सुनकर भावुक हुयी मैत्री ने कहा- कहीं नही जा रहे आप लोग, पापा ऐसी बाते मत किया करिये मै वैसे ही अपना सब कुछ खो चुकी हूं, अब और कुछ भी खोने की हिम्मत नही है मुझमें...!!

ऐसा कह कर मैत्री रोते हुये अपने कमरे मे जाने लगी तो पीछे से उसके पापा जगदीश प्रसाद ने खिसियाते हुये थोड़ा तेज आवाज मे उससे कहा- बेटा मान ले कि हम आज ही इस दुनिया से चले गये तब...!!!

अपने पापा की बात सुनकर अपने कमरे मे जाते जाते मैत्री रुकी और बहुत दुख करके रोते हुये और खिसियाते हुये बोली- मै विधवाश्रम चली जाउंगी,आप लोगो को भी मै बोझ लगने लगी हूं शायद इसीलिये बार बार ऐसी बाते कर रहे हो, मना किया फिर भी...!!

ऐसा कहकर बहुत दुख करके रोते हुये मैत्री अपने कमरे मे चली गयी... इधर अपनी लाडली बेटी के मुंह से विधवाश्रम का नाम सुनकर जगदीश प्रसाद जैसे स्तब्ध से रह गये और हांफते और खिसियाते हुये सरोज से बोले- ह.. हमारी बेटी विधवाश्रम जायेगी!! सरोज सुना तुमने मेरी बच्ची विधवाश्रम जाने की बात कर रही है...!!

सरोज को ऐसा महसूस हुआ जैसे जगदीश प्रसाद ये बात बोलते बोलते बदहवास से हो रहे हैं... वो बस यही बोले जा रहे थे "सरोज मेरी गुड़िया विधवाश्रम जायेगी, क्या इसी दिन के लिये हमने अपनी इकलौती संतान को इतने प्यार से पाला था कि उसे ये दिन देखने पड़ें!!"

ऐसा कहते कहते जगदीश प्रसाद की सांसे बहुत तेज तेज चलने लगी थीं, वो हांफने लगे थे और बस यही बोले जा रहे थे... "विधवाश्रम जायेगी मेरी बच्ची, नही मै नही जाने दूंगा उसे कहीं भी, नही ये नही हो सकता, सरोज ये नही हो सकता!!"

ऐसा कहते कहते जगदीश प्रसाद जैसे अपने ऊपर से अपना नियंत्रण खोते जा रहे थे.. उन्हे देखकर सरोज घबराई सी बोली- आप क्यो हार मान रहे हो... अरे आप संभालो ना अपने आप को, अरे सुनिये.. सुनिये ना..

जगदीश प्रसाद बदहवास से बड़बड़ाते हुये जमीन पर गिरे जा रहे थे और उनकी सांसे जैसे उखड़ने सी लगी थीं, उनकी आंखे चढ़ रही थीं... विधवाश्रम का नाम सुनकर उनको इतना गहरा सदमा लगा था कि अब वो इतने बदहवास हो चुके थे कि उनका सिर्फ मुंह चल रहा था पर आवाज नही निकल रही थी, वो बार बार अपनी छाती को सहला रहे थे और उन्हे संभालते हुये सरोज भी बौखला रही थीं, जगदीश प्रसाद के हाथों को मलते हुये और खिसियाते हुये सरोज भी बस बोले जा रही थीें - अरे सुनिये ना, ये क्या कर रहे हैं आप? ये क्या हो रहा है आपको, सुनिये... उठिये प्लीज ऐसे मत करिये... (ऐसा कहते हुये सरोज फफक कर रोने लगीं और जोर से चिल्लाईं) मैत्री..... मैत्री.....!!

उधर अपने कमरे मे रोते हुये पेट के बल लेटी मैत्री ने जब अपनी मम्मी सरोज की ऐसी बौखलाई चीख सुनी तो घबरा के वो एकदम से उठी और अपने आंसू पोंछते हुये बाहर की तरफ भागी, बाहर जाकर जो उसने देखा उसे देखकर वो एकदम से बुरी तरह बौखला गयी, उसने देखा कि उसके पापा जगदीश प्रसाद जमीन पर पड़े मानो सांस लेने के लिये तड़प से रहे थे और सरोज बौखलाई सी उनके हाथ रगड़ते हुये उनसे उठने की लगातार मिन्नते कर रही थीं और बदहवास सी होकर बस रोये जा रही थीें...कि तभी मैत्री को देखकर सरोज ने कहा - गुड़िया देख तेरे पापा को क्या हो गया, ये बात नही कर रहे... कुछ कर बेटा प्लीज इन्हे उठा दे..!!

अपनी मम्मी सरोज की बात सुनकर मैत्री भी बदहवास सी होकर हांफने लगी और जोर से "पापााााााााााा" चिल्लाकर उनके पास जाकर उनके पैरो को रगड़ने लगी और रोते हुये बोली- ये क्या हो गया पापा आपको, प्लीज ऐसा मत करिये पापा... प्लीज उठिये... पापा उठिये ना...

मैत्री भी सरोज की तरह जगदीश प्रसाद से मिन्नते कर ही रही थी कि उसके दिमाग मे जाने क्या आया.. वो वहां से उठी और अपने कमरे मे जाकर अपना मोबाइल उठाया और अपने चाचा नरेश के बड़े बेटे राजेश को कॉल कर दिया, राजेश के फोन उठाते ही मैत्री ने रोते हुये उससे कहा- भइया... भइया प्लीज जल्दी आ जाइये... पापा को कुछ हो गया है.... (इतना कहकर मैत्री ने फोन काट दिया)

उधर दूसरी तरफ राजेश जो ऑफिस से बस घर पंहुचा ही था... मैत्री की बात सुनकर उल्टे पैर वो अपने ताऊ जी के घर की तरफ अपनी कार तेज चला के भागा!! मुश्किल से पांच मिनट मे राजेश अपने ताऊ जी जगदीश प्रसाद के घर पंहुच गया... जब उसने अपने ताऊ जी को इस हालत मे देखा तो वो भी घबरा गया और सोचने लगा कि "हे भगवान अब मै क्या करूं ताऊ जी की तबियत तो बहुत खराब है" वो ये सोच ही रहा था कि तभी उसकी नजर पास ही पड़े एक न्यूज पेपर पर पड़ी... उसने उस न्यूज पेपर को रोल किया और उसका एक सिरा अपने ताऊ जी जगदीश प्रसाद के मुंह मे लगाया और दूसरे से उन्हे सांस देने लगा..!! लगातार पांच मिनट तक सांस देने के बाद जगदीश प्रसाद की उखड़ती हुयी सांसे बहुत थोड़ी सी नॉर्मल हुयीं, उनके हल्का सा नॉर्मल होते ही राजेश ने उनको गोद मे उठाया और बाहर खड़ी अपनी कार की तरफ दौड़ लगा दी...!!

क्रमश:

क्या राजेश की ये तत्परता जगदीश प्रसाद की जान बचा पायेगी या रवि को खोने के दर्द को अभी तक अपने दिल में महसूस कर रही मैत्री को एक और आघात लग जायेगा!!