Mere Khushiyon ki Wajah Ho Tum...! - 2 in Hindi Fiction Stories by Ankit Mukade books and stories PDF | मेरे खुशियों की वजह हो तुम.... - 2

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मेरे खुशियों की वजह हो तुम.... - 2

मेरे खुशियों की वजह हो तुम....2

(Note:- मैं कहानी ढूंढता रहा, इस कहानी के किरदार मेरे जहन में हमेशा रहते थे, इस कहानी का दूसरा पार्ट आने में इतना वक्त इसलिए लग गया क्यू की में अपने निजी के मे व्यस्त था, कुछ कारणों के कारण कहानी अधूरी छूटती जा रही थी, में लिखता और वो मुझे उस किरदार को न्याय देने लायक वो हिस्सा खाली लग रहा था... तो कुछ वक्त तक मैने लिखना छोड़ दिया था। फिर एक दिन ऐसा आया कि मुझे उन किरदारों ने फिर आवाज लगाई...और कहने लगे कि हमें उन पन्नों पे फरसे आना है...)


में इस कहानी का दूसरा पार्ट लिखने जा रहा हु, कैसे उस हादसे के बाद वैशाली और विक्रांत पास आए, आखिर क्यू विक्रांत कहता है कि, तुम मेरे खुशियों की वजह हो....

स से शुरुवात

हॉस्पिटल में जब विक्रांत ने उसके परिवार को देखा की वो सब तीनों एडमिट है, और बाहर वैशाली खडी है, तो वो उससे पूछता है,

"आखिर क्या हुआ था ? आपको पता है कैस एक्सीडेंट हुआ?"
वैशाली विक्रांत को बेंच पर बैठाते हुए बोली, "देखिए सर में टैक्सी से दिल्ली आरही थी, तो एक ट्रैक वाले ने आपके फैमिली जिस कार में जा थे, उसे उड़ा दिया...मेरे आंखों के हुआ ये हादसा तो मैं तुरंत उसे आई हु"

विक्रांत वैशाली के हाथ पकड़ उसे कहता है कि, "थैंक यू, आपने मेरा परिवार बचा लिया, और मैं आपका यह उपकार कैसे पूरा करूंगा..."

ऐसा कहते ही वैशाली, विक्रांत टोकते हुए बोली,
"सर देखिए यह तो में फर्ज था, पेशे से में एक डॉक्टर हु, मुझे एक काम से दिल्ली जाना था, चलो कोई ना, में मेरा फर्ज निभा लिया है."

बातों बातों में विक्रांत ने वैशाली से एक मादा मांगी, वो चाहता है कि तक उसके फैमिली में पूरी तारा ठीक नहीं हो जाते तब तक वो उन खयाल रखे।
वैशाली ने पहले इनकार किया मगर विक्रांत को लोगो को मनाना बड़ी अच्छी तरह से आता है, उसने कहा कि,
"देखिए आप पर मुझे अब भरोसा है और आप देख ही सकती है की उनकी क्या हालत है..."

"जी में समझ सकती हूं कि आप क्या फील कर रहे होंगे..." वैशाली उसके मन बात को समझ को समझ कर कहती है।

तो ऐसी रही दोनों की मुलाकात, जैसे जैसे वक्त बीतता जा रहा था, वैशाली हर वीकेंड को आकार विक्रांत के फैमिली में सब का हाल चल पूछ कर जाती, अब उस हद को हो तीन महीने हो गए।वैशाली के आने जाने की व्यवस्ता विक्रांत ने का रखी थी।


विक्रांत अपने काम के साथ वैशाली से बात भी चलती रहती, दोनो अब काफी कंफर्टेबल हो गए थे।
एक दिन दिल्ली में, एक कैफे में ऐसे वैशाली को मिलने बुलाया, दोनों को मिले बोहत वक्त हो गया था।


द से दोस्ती

आज विक्रांत वैशाली के साथ एक नया रिश्ता शुरू करना चाहता है...
विक्रांत उससे कहता है, "आपने अभी तक शादी क्यू नहीं करी, मेरा मतलब सुंदर है आप और उमर भी ह, सॉरी में पर्सनल सवाल पूछ रहा हु।"
वैशाली कॉफी पीते हुए बोली,

"विक्रांत ऐसा नहीं है की मुझे शादी नहीं करनी, बट अभी नहीं मुझे सोचना पड़ेगा आगे, वैसी तुम मुझे क्यू पूछ रहे हो।"

"ऐसी ही, एक बात कहूं मेरा न प्रोफेशनली बोहत लोगो एक साथ उठना बैठना है, पर्सन लाइफ में कोई दोस्त नहीं है, की तुम मेरी दोस्त बनोगी..?"
विक्रांत एकदम बच्चों की तरह उस कहता है।

वैशाली उससे अच्छे से जान चुकी थी, उसने देखा था कि वो अपनो के लिए किस तरह कंसर्न है...
"हा क्यू नहीं, मेरे भी दोस्त नहीं है ज्यादा, और पता है, तुम बोहत अच्छे बेटे हो, मैने देखा है कैसे तुम उन सबता ध्यान रखा है, मुझे अच्छा लगेगा की तुम मेरे भी दोस्त हो, और तुम अपने फैमिली के लिए इतना कर सकते होते तुम अपने दोस्त के लिए क्या करोगे।"

विक्रांत इस बात पर बोलता है,
"तुम अब मेरी दोस्त हो तो तुम्हे कभी खोने नहीं दूंगा... यह मेरा वादा है।"


ऐसे ही अब दोनों की दोस्ती हो गई, और में जल्द ही अगले पार्ट में नई शुरुवात के सा उस पलो जोड़ूंगा जो अधूरे गए थे।

अंकित मुकाडे
(17/05/2024)