भाग–३२
राजीव ने शायद मेरा फोन चेक किया था उसने देखा मैने लास्ट कॉल मिहिर को किया था । उसने व्हाट्सएप खोलने की कोशिश की लेकिन मैं व्हाट्सएप पर लोक रखती थी। वजह थी राजीव के बारे में की गई बातें मीशा और मिहिर से ।
मैं जब कमरे में आई तो मेरा फोन मैने जैसा रखा था वैसे नही पड़ा था जिस वजह से मैं समझ गई थी कि फोन राजीव ने चेक किया होगा।
"लो राजीव , चाय ले लो" मैने चाय के साथ नाश्ता भी रखा था । राजीव बाथरूम में ब्रश करने गया और आकर चाय और नाश्ता करने लगा ।
मैं सोच रही थी कि राजीव ने मेरे फोन में क्या देखा या वो क्या देखना चाहता था ? क्या उसके मन में भी वो पति वाली भावनाएं आ रही है ? वो चाहता तो मुझसे मांग सकता था मेरा फोन मैं उसे दे देती क्योंकि मेरे फोन में तो ऐसा कुछ भी नही है । हां अक्सर मिहिर और मीशा से राजीव की बातें किया करती थी वो मेसेज होंगे लेकिन अब से मैं उन्हे डिलीट कर दूंगी।
मैने राजीव से कहा " आज मेरी पग फेरे की रस्म है, घर जा रही हूं ,वापसी का मुहूर्त 2 दिन बाद का है "
"ठीक है " तभी सम्राट अंकल कमरे के बाहर आकर दरवाजा खटखटाने लगे।
"कौन? " राजीव ने पूछा । दरवाजा हल्के से अटका कर बंद किया हुआ था ।
"राजीव बेटा , अंदर आ सकता हूं?"
"हां अंकल आइए ना"
राजीव ने कहा ।
अंकल अंदर आए तो मैं राजीव के पास से उठकर खड़ी हो गई ताकि अंकल को बैठने की जगह मिल जाए।
"बेटा , ये लो" उन्होंने एक लिफाफा राजीव को दिया ।
"ये क्या है ?" राजीव ने लिफाफे को उलट पलट कर देखा।
"खुद ही देख लो"
राजीव ने लिफाफे को खोला तो अंदर गोवा के दो टिकट्स थे ।
"अंकल ये ,?" राजीव ने थोड़ा अजीब तरह से उन्हे देखा ।
"बेटा , ये तुम्हारे हनीमून के टिकट्स है , होटल मैने बुक कर दिया है सारी व्यवस्थाएं हो चुकी है , जब कीर्ति बेटा पग फेरे की रस्म पूरी करके वापिस आयेगी , उसी दिन रात को तुम्हारी फ्लाइट है, "
"लेकिन अंकल"
"बेटा , नए जीवन की शुरुआत अच्छे से करो, कीर्ति को लेकर घूमने जाओ" वो उठकर मेरे पास आए और मेरे सिर पर हाथ फेरकर बोले।
"बेटा , परसो जल्दी आ जाना और आकर तैयारी कर लेना "
"जी अंकल " मैने नज़रे झुका कर कहा।
अंकल को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वो जानते हो कि मेरे और राजीव के बीच कल रात कुछ नही हुआ होगा। शायद अंकल जानते थे कि राजीव ने प्रॉपर्टी के लिए मुझसे शादी की है ।
करीब एक घंटे बाद में तैयार होकर नीचे आई और अपना बैग भी साथ ले लिया ताकि वापिस ऊपर ना चढ़ना पड़े।
बैग छोटा ही था क्योंकि बस दो दिन के लिए ही जाना था और वहां मेरा सभी सामान था ही।
कुछ देर में , मामा मामी ,भैया भाभी और स्वीटी आ गए
"आइए , आइए " अंकल ने उनका स्वागत किया।
सभी लोग कुछ देर बैठे चाय नाश्ता किया, और रिवाज के मुताबिक सभी को अंकल ने शगुन दिया ।
मेरे ही घर जाने का मेरा दिल नही कर रहा था । मैं चाह रही थी कि राजीव मुझे रोक ले । क्यों ऐसी रस्में होती है । 365 में से दो दिन तो गए ही समझो। मेरा जाने का बिलकुल मन नहीं था । मैं खयालों में थी और शायद भैया मुझे आवाज लगा रहे थे लेकिन मैं राजीव की और देखे जा रही थी। जो सामने ही बैठा था।
" लगता है कीर्ति का राजीव को साथ लेकर जाने का इरादा है , या फिर वो घर आना ही नही चाहती" उनकी इस बात से मेरा ध्यान राजीव से हटा और मैं शर्मा गई । सभी हंसने लगे ।
राजीव भी हंस रहा था । मुझे उसे खुश देखकर सुकून मिल रहा था ।
मैं घर आ चुकी थी। भैया भाभी आज जाने वाले थे । बस मुझे लेने के लिए रुके थे। मुझे घर छोड़कर वो लोग खाना खा कर तुरंत निकल गए । मामा मामी कल तक रुकने वाले थे ।
मम्मी ने मुझे देखते ही गले से लगा लिया । और उनकी पलके भीग गई।
"एक दिन में ही घर इतना सुना लग रहा था तेरे बिना , तेरे पापा तो तेरे कमरे में ही सो गए थे कल। "
उनकी बात सुनकर मेरी आंख भर आई थी। मैने पापा की और देखा तो वो नजरें चुराने लगे । मैं जान चुकी थी ऊपर से कठोर दिखने वाले मेरे पापा का दिल कितना नाजुक था ।
जल्द ही दो दिन निकल गए इस दौरान मेरी राजीव से बस दो बार बात हुई । वो ऑफिस से आकर रात को मुझसे बात करता और ऑफिस में क्या है वो मुझे बताता। बस इतनी ही बात होती थी हमारी। आज राजीव मुझे लेने आने वाला था ।
क्या होगा हनीमून पर ? क्या राजीव और मेरी नजदीकिया बढ़ेंगी?