Toronto (Canada) Travelogue - 2 in Hindi Travel stories by Manoj kumar shukla books and stories PDF | टोरंटो (कनाडा) यात्रा संस्मरण - 2

Featured Books
  • સરખામણી

    સરખામણી એટલે તુલના , મુકાબલો..માનવી નો સ્વભાવ જ છે સરખામણી ક...

  • ભાગવત રહસ્ય - 109

    ભાગવત રહસ્ય-૧૦૯   જીવ હાય-હાય કરતો એકલો જ જાય છે. અંતકાળે યમ...

  • ખજાનો - 76

    બધા એક સાથે જ બોલી ઉઠ્યા. દરેકના ચહેરા પર ગજબ નો આનંદ જોઈ, ડ...

  • જીવનની ખાલી જગ્યાઓ કોણ પુરશે ?

    આધ્યા અને એના મમ્મી લગભગ પંદર મિનિટથી મારી સામે બેઠેલા હતાં,...

  • ક્રોધ

    क्रोधो मूलमनर्थानां  क्रोधः संसारबन्धनम्। धर्मक्षयकरः क्रोधः...

Categories
Share

टोरंटो (कनाडा) यात्रा संस्मरण - 2

साहित्यक मित्रों द्वारा बिदाई गोष्ठी


हमारी विदेश यात्रा की खबर हमारे साहित्यकार मित्रों तक जा पहुँची थी। हमारे अत्यधिक आत्मीय मित्र श्री विजय तिवारी ‘किसलय’ जी ने अपने घर पर ‘साहित्य संगम’ संस्था के बैनर तले एक कार्यक्रम रख लिया। इस कार्यक्रम में मशहूर कवि शायर श्री इरफान झांसवी, श्री विजय तिवारी ‘किसलय’, बुंदेली कवि श्री द्वारका गुप्त ‘गुप्तेश्वर’, कुशल मंच संचालक श्री राजेश पाठक ‘प्रवीण’, श्री विजय नेमा ‘अनुज’ एवं श्री सुरेश सोनी ‘दर्पण’ आदि उपस्थित थे।


सभी ने अपने अंर्तमन भावों से काव्य सुमनों की माला को गूंथकर हमारे गले में पहनायी। इस अविस्मरणीय याद को सहेज पाना हमारे लिए बड़ा कठिन कार्य था। कृतज्ञता से गला भर आया था। सभी ने मुझे फूलों से लाद दिया। इस परिवारिक काव्यगोष्ठी में सभी ने एक से बढ़कर एक रचनाएं सुनाईं। श्री विजय तिवारी ‘किसलय’ एवं श्रीमती सुमन तिवारी के आतिथ्य सत्कार को देखकर हम कृतज्ञ हो गये। श्री द्वारका गुप्त ‘गुप्तेश्वर’ जी ने बुंदेली में एक रचना जो कि मेरे बारे में कुछ आशा और अपेक्षाओं के साथ लिखी थी वह पढ़ी और पढ़ने के बाद मुझे भेंट की जिसे में प्रस्तुत कर रहा हूँ।

सुप्रसिद्ध बुंदेली साहित्य के कवि: श्री गुप्तेश्वर द्वारका गुप्त द्वारा

कवि मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’ के कनाडा प्रवास के सम्मान में प्रस्तुत कविता

माँ सरसुति सें चावना.......


माँ सरसुति सें चावना, इत्ती मोरी आज।

ढार सुरत में छंद खों, राखें रइये लाज।।


कविता के छंदन गसौ,ऐसौ मन कौ ओज।

उछल-कंूद सुर में भरै,कविवर उतै मनोज।।


जाव कनाडा इतै सें, फूँकत कविता शंख।

लय में ढार सुनाइयौ,तकतई रअें मनंख।।


बगरा कें अइयौ उतै,ऐंसी कविता गंध।

सबखों नोंनें ज्यों लगे,मोदी के अनुबंध।।


बांद गांठ रइयौ उतै,लोक रुची ब्योहार।

आन बान उर शान सें, सबके हीकें यार।।


राग में पढ़ कें गीत खों,खेंचै लय की चाप।

वाह वाह सब कर उठें,एैसी छोड़ौ छाप।।


देस काल की नबज तक, करतई चलनें कर्म।

गुप्तेश्वर तुमसें कहत,समजौ जीवन-धर्म।।


श्री गुप्तेश्वर द्वारका गुप्त

जबलपुर से दिल्ली की यात्रा


अंततः वह दिन भी आ गया जब मैं जबलपुर से देहली के लिए ट्रेन से रवाना हुआ। जब देहली रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म में उतरा और बाहर निकला तो मेरे पास लगेज ज्यादा देखकर होटल के दलालों ने घेरना शुरू कर दिया। किसी तरह जान बचाई और कहा कि मेरा तो होटल इंटरनेशनल हवाई अड्डे के पास रिजर्व है भाई। किन्तु जब रेलवे स्टेशन से इंटरनेशनल हवाई अड्डे के पास रिजर्व होटल को फोन लगाया तो निराशा हाथ लगी। किन्हीं कारणों से उन्होंने मना कर दिया। किंकतव्र्य विमूढ़ हो भारी लगेज के कारण आखिर उन दलालों के हाथों में अपने आप को सुपुर्द कर दिया। जिसका उन्होंने भरपूर दोहन भी किया।


कहीं तो रुकना था, तो रुक ही गया। पर रास्ते मैं उनसे रेट के बारे में जो बात स्पष्ट कर दी थी, वहाँ जाकर उलटा ही हुआ। फिर मँहगे होटल में ही हम दोनों ने दो दिन विश्राम किया। देहली के स्टेशन के आसपास का बाजार श्रीमती को घुमाता रहा। दो दिनी विश्राम के बाद इंदिरा गांधी इंटरनेशनल हवाई अड्डे पर रात्रि के दस बजे टैक्सी से जा पहुँचा। नियत समय से दो घंटे पूर्व लगेज बुकिंग व अन्य फारमिल्टी के लिए हवाई अड्डे में उपस्थित होने का निर्देश मिला था। होटल से हवाई अड्डा लगभग डेढ़ घंटे की दूरी पर था।