Bhayanak Yatra - 29 in Hindi Horror Stories by नंदी books and stories PDF | भयानक यात्रा - 29 - हितेश की गलती ।

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भयानक यात्रा - 29 - हितेश की गलती ।

हमने पिछले भाग में ये देखा की !!!!
वैध जी के वहां से आ ने में देर होने के कारण सुशीला परेशान हो जाती है लेकिन बाद में सबको गाड़ी से आया देख खुश हो जाती है । जगपति के हाथ में लगी पट्टी देखकर सुशीला उसके बारे में पूछती है तो जगपति उसको थोड़ा गुस्से में बोल देता है लेकिन थोड़ी देर बाद जगपति उससे क्षमा मांग लेता है , खाना खाने के बाद हितेश सतीश और विवान बाहर चले जाते है । और तभी आसमान में अलग सी हलचल दिखने लग जाती है । ये देखकर वो लोग परेशान से हो जाते है । तभी एक चीत्कार सी सुनाई देती है और बड़े से गगनचर वहां पर आ पहुंचते है वो एक साथ आसमान में गोलाई बनाकर घूमते है और अलग सी आवाज के साथ ऊपर की तरफ उड़ने लगते है । थोड़ी देर बाद वो लोग अपने पैरों में छोटे मोटे जीव को लेकर उड़ रहे होते है और मरे हुए जीवों का खून यहां वहां जमीन पर गिर रहा होता है ।तभी एक गगनचर सतीश की तरफ बढ़ता है लेकिन हितेश उसको बचा लेता है , लेकिन वो गगनचर के पैरों में रहे जीव का सिर डिंपल के ऊपर एक गिरता है और डिंपल बहुत ज्यादा डर जाती है ।

अब आगे ....
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हितेश जब आगे बढ़कर देखता है तो उसको मोबाइल की टॉर्च की रोशनी में एक कटा हुए कौवे का सिर दिखाई देता है । वो यह देखकर आश्चर्य से भर जाता है , उसको ये जान ने की इच्छा होती है की गगनचारों ने सबको ऐसे मारा क्यू ?
हितेश जगपति से कहता है – चाचा , क्या हम घने पेड़ों के बीच में जा सकते है ?
हितेश की बात सुनकर डिंपल ही डर के मारे चिल्ला देती है – नही हितेश ! क्या इतना सबकुछ देखकर भी तुम्हे सामने से वहां जाना है ?

हितेश डिंपल की ऐसी हालत देखकर समझ गया की अभी वहां जाना सही नही होगा , उसके दोस्तो की हालत और ज्यादा खराब हो जाए ऐसा हितेश नही चाहता था इसीलिए अभी उसने अंधेरे की तरफ जाना सही नही समझा ।

उसने डिंपल को सांत्वना देते हुए कहा – अरे डिंपल ! तुम डरो मत , मैं बस यहां हुए वारदात के बारे में जान ना चाहता था लेकिन अभी में वहां नही जाऊंगा ।
हितेश वहां से डिंपल के पास आ जाता है लेकिन उसकी नजर मुड़ मुड़ कर वही अंधेरे की तरफ झाड़ियों में जा रही होती है ।

जगपति जब उसको देखता है , तो उसको समझ आ जाता है की हितेश का मन अभी भी वहीं पर अटका हुआ है । वो हितेश के नजदीक जाकर उसके कंधो पे हाथ रख देता है और आंखो ही आंखो में बता देता है की उसको हितेश के मन की बात समझ आ चुकी है ।

हितेश भी जगपति को देखकर थोड़ा सा व्यथित हो जाता है क्यू की अब वो हर समस्या की जड़ तक जाना चाहता था । लेकिन उसके दोस्तो के कारण अभी वो अपने कदम पीछे ले रहा था ।

आसमान की चहल पहल के कारण परेशान सब लोग अब नींद के पिटारे से भर चुके थे । तभी जगपति अपना बिस्तर हितेश और सतीश के पास में लगाकर वहीं पर सोने की तैयारी करता है , और बाकी सब लोग अपने मन में विडंबना लेके खोली में सोने के लिए चले जाते है ।

आज फिर से गिर जाने की वजह से सतीश को अभी भी दर्द ज्यादा हो रहा होता है , वैध की दी हुई दवाई का भी अभी उसको असर नहीं हो पा रहा होता है । बेचैन होकर वो खाट में कभी दाएं तो कभी बाएं घूम रहा था , हितेश भी अपनी आंखे खोल कर बस अंधेरे में हुई वारदात को याद कर रहा था , उसके मन में अभी क्या हुआ है उसे जान ने की कामना दिल में बैठ सी गई थी ।
पास में लेटा हुआ जगपति भी थोड़ा परेशान जरूर था लेकिन अब वो नींद के कारण आंखे बंद कर चुका था ।

सबके सो जाने के बाद हितेश अपने खाट से उठता है , और चारों तरफ देखता है , फिर वो जगपति और हितेश के खाट की तरफ देख के ये निश्चित कर लेता है की दोनो सो गए है , सतीश का मुंह दूसरी तरफ होने के कारण उसको पता नही चलता की सतीश अभी भी जगा हुआ था । जगपति खर्राटे ले रहा था और बड़े ही आराम से सो चुका था ।

तभी हितेश खाट के नीचे रखे हुए जूते पहनकर अंधेरे की तरफ बढ़ने लग जाता है , और जाते समय फिर से एक और बार जगपति और सतीश की खाट की तरफ देख लेता है । वो अब जल्दी से अंधेरे की तरफ बढ़ने लग जाता है । और हाथ में एक छोटा सा लकड़ी का टुकड़ा अपने पास में रख लेता है ताकी किसी जानवर के सामने अपना बचाव कर सके ।

घने पेड़ों के कारण थोड़ी सी भी रोशनी ज़मीन तक नही पहुंच पा रही थी , और हितेश के कदम बड़े ही सावधानी से आगे की तरफ बढ़ रहे थे । उसके कानों में कई सारे जीवों के बोलने की आवाज आ रही थी लेकिन वो धीरे धीरे आगे की तरफ बढ़ रहा था ।

वो लकड़ी के टुकड़े को अपने शरीर से आगे की तरफ करके चल रहा था , ताकि वो कहीं पे टकरा न जाए ।
तभी उसका पैर वहां कोई चीज में गिरता है , और वो उसको देखने के लिए वहां मोबाइल की टॉर्च चालू करता है , तभी उसको कई सारे छोटे छोटे जीवों को वहां मरा हुआ देखता है , किसी की गर्दन कटी हुई थी तो किसी के पेट को फाड़ दिया गया था , किसी का सिर गायब था तो किसी के आंखो को नोचा गया था । और वहां पर खून की तीव्र बदबू आ रही थी , जिसके कारण हितेश अपना मुंह अपने एक हाथ से दबा लेता है ।
वो ये सब देख रहा होता है तभी उसकी नजर बीच में पड़े हुए एक बड़े से गगनचर पे जाती है , ये वैसा ही गगनचर होता है जो उसने थोड़ी देर पहले आसमान में उसे हुए देखे थे । वो गगनचर के पंखों को नोच लिया गया होता है ,और चारों तरफ उसके पंख फैले हुए होते है । उसके शरीर के हर एक अंग से मांस निकला हुआ होता है , और उसके सिर के पास एक कौवे का शव भी पड़ा दिखता है ।

हितेश रोशनी में वो गगनचर को देखने की कोशिश करता है , तब उसको पता चलता है की वो एक आसमान में राज़ करने वाली चिल थी , लेकिन चिल एक ऐसा पक्षी है जिसको छोटे पक्षी मार नही सकते ।
तो ये गगनचर छोटे पक्षियों की लपेट में कैसे आ गया होगा ।
जब ये सोच ही रहा होता है तभी अंधेरे के दूसरे छोर से किसी के घुर्राने की आवाज आती है , हितेश तभी सतर्क होकर वहां से पीछे की तरफ कदम खिंचता है ।
उसकी नजर अंधेरे में चमक रही चार आंखो पर जाती है , तब उसका दिल बहुत ही तेज धड़कने लगता है , और सांसें जैसे जनरेटर की तरह चल रही थी ।
उसको लग रहा था की अब उसकी मौत सामने खड़ी है ।

वो पीछे मुड़ कर बड़ी ही तेजी से जगपति के घर की तरफ भागने लग जाता है , वो इतना तेज दौड़ रहा होता है की उसके चेहरे पे दौड़ते समय लग रही टहनियां भी उसके चेहरे को खुरेद रही होती है । बड़ी बड़ी छलांग के साथ वो भाग रहा होता है तभी उसका पैर एक गीली मिट्टी के ढग में फस जाता है । वो हांफते हांफते अपने पैरो को निकाल ने की कोशिश करता है और पूरी ताकत के साथ अपने पैर को बाहर की तरफ खिंचता है । एक दो बार ताकत लगाने के बाद उसका पैर निकल तो जाता है लेकिन उसका जूता अंदर ही फंस जाता है , ये देखकर हितेश और गबरा जाता है , पीछे की तरफ से आ रही चार आंखे उसकी तरफ तेजी से बढ़ रही होती है । ये देखकर हितेश वहां अपना दूसरा जूता भी निकाल देता है और फिर से दौड़ने लग जाता है ।

दूसरी तरफ जगपति के पास सोए सतीश को नींद नहीं आ रही होती है , तो वो अपने खाट में उठ कर बैठ जाता है । अचानक उसकी नजर हितेश के खाट की तरफ जाती है और उसकी आंखे चार हो जाती है । वो डर जाता है और जगपति को उठाने की कोशीश करता है तभी उसके शरीर में उसको जलन का एहसास होता है । वो खाट के सहारे पे उठ जाता है और जैसे ही जगपति के खाट की तरफ अपना हाथ आगे बढाता है तब वो कांपने लग जाता है । और उसके शरीर पे छोटे से फफोले निकलना चालू हो जाते है , अचानक से अपने शरीर में बदलाव देख कर सतीश का मन गबरा ने लग जाता है । उसकी खुली आंखे भी सामने का दृश्य नही देख पा रही थी , वो जगपति को उठाने के लिए आवाज लगता है , लेकिन उसकी आवाज दब सी जाती है ।

जगपति अभी भी बहुत नींद में होता है , तभी खोली का दरवाजा खुलने की आवाज आती है और उसमे से जूली बाहर की तरफ आती है । उसको भी अभी नींद नहीं आ रही होती है इसीलिए वो बाहर की तरफ आ जाती है ।
लेकिन वहां का नजारा देखकर वो चौंक गई , और वो जल्दी से सतीश की तरफ भागी ।

वहां जाकर उसने ऊंची आवाज में कहा – सतीश ! सतीश क्या हुआ ?
तभी सतीश छटपटाने लगा और उसके मुंह से जाग निकलने लगी ये देख कर जूली और जोर से चिल्लाने लगी ।
जूली की आवाज सुनकर बाजू में सोए हुए जगपति नींद से डर से जग गया , और आंखो मसलते हुए खड़ा हो जाता है ।

वो सतीश की हालत देखकर पहले तो वो कुछ समझ नही पाता है लेकिन फिर वो जूली को पानी लाने के लिए कहता है और वो सतीश के पैरों को मसलने लग जाता है ।

खोली के अंदर जाति हुई जूली जब खोली में पहुंचकर पानी लेकर आती है तभी उसके पैरो के नीचे कुछ आता है , वो उसको अनदेखा करके भागना चाहती है लेकिन उसकी नजर अंधेरे में वो चीज पे जाती है , और वो चौंक जाती है ।
जूली वो चीज को उठाकर बाहर की तरफ भागती है , और जगपति को पानी देते हुए कहती है – चाचा , एक भूल हो गई है , शायद उसकी वजह से सतीश की ये हालत हुई है ।
जूली की बात सुनकर जगपति उसके सामने देखने लग जाता है और कहता है – क्या भूल ? कौन सी भूल ?
ये सुनकर जूली अपना हाथ जगपति की तरफ बढ़ाती है और वो चीज को जगपति को देती है ।
वो वैध ने दी हुई दवाई की टिकी थी , पुड़िया गिरने के बाद उसमे से ये टिकी जूली के हाथ नही आई थी ।

तभी जगपति सतीश के मुंह को साफ करके उसको पानी पिलाने के लिए हाथ बढाता है तभी उसकी नजर हितेश के खाट की तरफ जाती है , और वो हड़बड़ा जाता है । वो जल्दी से सतीश को पानी पिला देता है और उसको दवाई भी साथ में पिला देता है ।
फिर वो जूली को पूछता है – आपने हितेश भाई साहब को देखा हैं ?
जूली भी ये प्रश्न सुन कर हितेश के खाट की तरफ देखती है , वो भी सहम सी जाती है ।
एक तरफ सतीश की हालत खराब थी और दूसरी तरफ हितेश वहां नही था ।

जगपति सोच रहा होता है की जो उसने सोचा था वही हुआ , हितेश कुछ चीज जान ने के चक्कर में अंधेरे पेड़ों के बीच चला गया होगा ।
वो जल्दी से उठता है और खोली में से एक बड़ा सा लकड़ी का डंडा लेके बाहर आता है , जिसके ऊपर लोहे का नुकीला हिस्सा लगा हुआ होता है ।
कबसे जूली और जगपति की आवाज के कारण घर में सब की निंद्रा टूट चुकी होती है , सभी लोग अब बाहर की तरफ चिंता में चले आते है ।

डिंपल को वहां पर हितेश नही दिखता उसी कारण वो बेहोश सी हो जाती है , और विवान का हाल भी बेहाल सा होता है । पहले बर्मन और फिर हितेश !

जगपति अपने हाथ में जब डंडा लेके अंधेरे पेड़ों की तरफ जा ही रहा होता है तब उसको दूसरी की तरफ से भागता हुआ हितेश उनकी तरफ आता दिखाई देता है , ये देखकर जगपति उसके सामने दौड़ता है ।

लेकिन हितेश चिल्लाता है – चाचा , अंदर भागो ।
जगपति हितेश की बात समझ जाता है और सबको अंदर जाने के लिए कहता है , और सतीश को अपनी गोदी में उठा कर खोली में रख आता है ।
तभी हितेश हांफते हुए उनके सामने आ खड़ा होता है , और जगपति को खोली के अंदर की तरफ खींच के ले जाने लगता है ।
जगपति जल्दी से उसके साथ खोली में चला जाता है , और खोली का दरवाजा बंद कर देता है ।

हितेश के चेहरे से खून की बूंदे जमी हुई होती है , और उसके पैरो की हालत तो जैसे उसको कांटों की चद्दर पे चलाया हो ऐसी हो चुकी थी । ऊपर से पैरो में बड़े घाव भी लग चुके थे ।
जल्दी से सुशीला ने उसको पानी पिलाया और पूछा – क्या हुआ भाई साहब ?
ये पूछने के तुरंत बाद बाहर की तरफ से किसी के घुर्राने की आवाज आई ।
आवाज सुनकर जगपति समझ गया की हितेश के पीछे कोई जानवर आ गया है , वो जानवर ने फिर खोली के दरवाजे पे आकर एक जोरदार धक्का लगाया जैसे वो अब हितेश को अपना भोजन बना ने का निर्णय ले चुके हो ।

उनके पैरों की आवाज अंदर सबके दिलों में उनकी दहेशत बढ़ा रही थी , डिंपल की हालत खराब हो चुकी थी और वो जूली से लिपट के खड़ी हो गई थी । उसी दौरान हितेश की नजर सतीश पे गिरती है , उसके बदन के ऊपर निकले फफोले साफ साफ बता रहे थे की सतीश की तबियत खराब जो चुकी है ।
तभी जगपति हितेश के सामने देखकर कहता है – भाई साहब , सतीश भाई साहब की एक दवाई गलती से छूट गई थी , जिसके कारण उसकी ये हालत हुई है ।
तभी जूली की आवाज आती है – वो मेरी गलती की वजह से छूटी थी जगपति चाचा ।
अंदर सतीश बीमार पड़ा था , और बाहर कोई जानवर उनके बस बहार निकलने का इंतजार कर रहे थे ।

हितेश के पैरों में भी बहुत ज्यादा घाव लगने के कारण अब उससे खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था । ये देखकर सबका दिल अब बैठ गया था ।
बाहर की तरफ पैरों की आवाज अब खोली के पीछे की तरफ से आने लग गई थी और फिर कुछ देर खोली के आगे पीछे घूमने के बाद दरवाजे के सामने आके बंद हो गई ।
आवाज बंद हो जाने के बाद जगपति को लगा की अब बाहर को भी नही है , तो उसने धीरे से खोली का दरवाजा खोलना चाहा । वो जैसे खोली के दरवाजे को हल्का सा खोलके बाहर की तरफ देखता है तो उन्हे वहां दो खूंखार जानवर दिखाई देते है । जो बस उनकी ही प्रतीक्षा कर रहे होते है ।

क्या सतीश ठीक हो पाएगा ? क्या हितेश की गलती की सजा सबको भुगतनी पड़ेगी ? वो खूंखार जानवर कौन थे ? क्या वो जानवर सबकी जान ले लेगा ?
जान ने के लिए पढ़ते रहिए हमारी कहानी भयानक यात्रा ।