Bhayanak Yatra - 28 in Hindi Horror Stories by नंदी books and stories PDF | भयानक यात्रा - 28 - बड़े गगनचर ।

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भयानक यात्रा - 28 - बड़े गगनचर ।

हमने पिछले भाग में देखा की..
इंतजार करने पर भी आलोकनाथ होश में नहीं आते है इसीलिए हितेश और जगपति इंतजार में परेशान हो जाते है । जगपति उनको जागने के लिए अलग तरीका बताने कहता है तभी हितेश उनका तरीका समझ जाता है । लेकिन उमर की वजह से वो लोग आलोकनाथ को उठा ने के लिए जल्दी से वो तरीका नही अपनाना चाहते । कुछ देर बाद हर तरीका नाकाम होने के बाद हितेश पूरा पानी का बर्तन आलोकनाथ के मुंह पे डाल देता है । जिसके कारण आलोकनाथ उठ जाते है । और तभी वो सतीश के बारे में पूछते है लेकिन कमरे में सतीश गायब होता है , तब उनको रसायन कक्ष से किसी के गिरने की आवाज आती है । सब लोग वही जाते है तब सतीश वहां पर गिरा हुआ दिखता है और वो नीले रंग की शीशी का प्रवाही उसके फफोले से उसके शरीर में चला जाता है जिससे वैध जी चिंतित होकर उसको औषधि पिलाते है । तभी धनजीभाई वैध जी के लिए खाना लेकर आते है और उनको मेहमान के बारे में बताते है । फिर जगपति के गाड़ी में सब घर आ जाते है वहां बाहर सुशीला उनका इंतजार करती खड़ी होती है , और उसको जगपति और सबको देखकर जान में जान आती है ।

अब आगे .....
*******************************
सुशीला खोली के दहलीज पे खड़ी रहकर कबसे सबका इंतजार कर रही थी , तभी जगपति गाड़ी लेकर आता है उसको जान में जान आती है ।
गाड़ी से उतर के सब लोग खोली की तरफ आते है , तभी सुशीला की नजर जगपति के हाथ के ऊपर जाती है ।
सुशीला जगपति से चिंतित हो कर पूछती है – क्या हुआ आपको ? आपके हाथ में पट्टी कैसे लगी हुई है ?
जगपति थोड़ा चीड़ जाता है और रूखे स्वर में कहता है – अभी घर में तो आने दो हमे , सांस लेके बैठ ने तो दो ।
जगपति का रूखा स्वभाव सुशीला को अच्छा नहीं लगा , उसने अपना मुंह नीचे की तरफ कर लिया ।
तभी जगपति को एहसास हुआ की उसने सुशीला के साथ गलत बर्ताव कर लिया है तो उसने सुशीला के सामने देखा और बोला – क्षमा करना सुशीला , पूरे दिन के तनाव और थकान के कारण थोड़ा तुमपे गुस्सा कर लिया ।
सुशीला तभी खुश हो कर बोली – कोई बात नही जी ! आप का तो हक बनता है गुस्सा करने का ।

दोनो की बाते वहां खड़े हुए सब लोग सुन रहे थे और उनके प्यार को देख कर मुस्कुरा रहे थे । तभी सुशीला की नजर सबके ऊपर पड़ी और वो शर्मा गई ।
ये देखकर जगपति भी मुस्कुरा दिया ।

सुशीला ने बोला – अब अंदर भी आ जाओ सब , बैठ के बात करेंगे । कब तक बाहर खड़े रहोगे सब !
जगपति ने मजाक करते हुए कहा – दरवाजे से तुम हटोगे तो हमको रास्ता मिलेगा ना ?
सबने एक साथ तब हंस दिया और सब खोली में चले गए ।
रात का खाना तो सुशीला ने पहले ही बना दिया था , तो सब एक साथ ही खोली के फर्श पे बैठ कर खाना खाने लगे ।
तभी जगपति ने वैध जी के वहां हुई घटना बताई , जिसमे उसको कांच का टुकड़ा लग जाने की वजह से पट्टी लगाने पड़ी और सतीश को नीला प्रवाही उसके फफोले के अंदर से शरीर में चला गया , ये सब बाते जगपति ने जल्दी से बता दिया ।
ये सब बात सब जगपति के सामने देखकर ध्यान लगाकर सुन रहे थे ।

खाना खाने के बाद हितेश को याद आता है की वैध जी ने सतीश के इलाज के लिए एक पुड़िया दी थी , जो खाना खाने के बाद उसे खिलानी है । उसने अपने जेब में से वो पुड़िया निकाली और सतीश की तरफ बढ़ाते हुए कहा – ये दवाई जल्दी से ले लो , और तुम अभी आराम करो ।
सतीश हितेश के हाथ से वो दवाई लेता है और पुड़िया खोलता है , तभी उसके साथ से वो पुड़िया गिर जाती है और उसमे से दवाई नीचे की तरफ गिर जाती है ।

वो पुड़िया में कुछ दवाई की टिकिया थी , और उसके अलावा कोई पाउडर को बनाकर कागज के टुकड़े में रखा हुआ था । सतीश जुककर दवाई उठाए उससे पहले जूली जल्दी से दवाई वहां से उठा लेती है और सतीश के हाथ में रख देती है ।

सतीश बिना देखे सब दवाई जल्दी से ले लेता है , और खोली के बाहर की तरफ चला जाता है । उसके साथ साथ हितेश और विवान भी चले जाते है ।

अंधेरा काफी हो जाने के कारण आसपास से झिंगुरो की आवाज तो आ ही रही होती है लेकिन आज आसमान में बड़ी चिड़ियों का सैलाब जा रहा था , और कहीं दूर से कुत्ते की रोने की आवाज आ रही होती है ।

चिड़ियों का समूह जाते हुए आवाज करता जा रहा था इसी कारण तीनो लोगों की गर्दन उनको देख ने के लिए आसमान की तरफ चली गई ।
हितेश बोला – ऐसा लग रहा है जैसे आसमान में तारों के बीच में चांद की सवारी निकली हो ।

विवान बोला – हां , बहुत दिनों बाद आसमान में कुछ अलग सा प्रतीत होता हुआ दिख रहा है , जहां जमीन पे सब शांत है लेकिन आसमान में हलचल सी मची हुई है ।
सब यह बात कर ही रहे थे तभी जगपति भी वहां आ पहुंचा , जगपति ने उन तीनों को आसमान की तरफ देखते देख उसने भी आसमान की तरफ अपनी नजर दौड़ाई और बोला – सुबह से भोजन की तलाश में गए हुए पंछी रात में अपने आशियाने में लौटते है , और फिर ऐसे ही रोज अलग अलग दिशाओं में भटक कर उनको भोजन के लिए जाना पड़ता है ।

जगपति को अचानक से अपने पीछे की तरफ देखकर तो तीनों लोगों की धड़कने तेज हो गई । अंधेरे में अगर हवा भी आवाज कर जाए तो भी अब सब सतर्क हो जाते थे , इसीलिए जगपति की अचानक आवाज से तीनो डर से गए थे ।

फिर सम्हलते हुए हितेश ने कहा – हां चाचा , रात को आसमान का और दिन में जमीन का दोनो के मौसम में बहुत अंतर है ।

तभी अंधेरे की तरफ से एक दर्द नाक चीत्कार की आवाज सुनाई देती है , वो चीत्कार सुनकर किसी की भी रुह तक भी कांप जाए । सबके कानो में वो दर्द भरी आवाज सुनाई दी की तुरंत उनके बदन में एक डर का कंपन शुरू हो गया । और वो कंपन की लहर उनके सिर से लेके पांव तक बिजली की भांति बह गई ।

उनके कान खड़े हो गए , आंखे झाड़ियों की तरफ देखने लगी , इतनी बड़ी आवाज सुनकर खोली में बैठे सब लोग उठकर खोली से बाहर की तरफ भागे । उनको लगा शायद बाहर बैठे लोगों में से किसी की चीख की आवाज है , लेकिन बाहर की तरफ तो सब बुत की भांति खड़े थे ।

ऐसी चीत्कार तो जगपति ने भी कही पे नही सुनी , उसको लगा जैसे किसी का चीखते उसका गला फट गया हो , और उसमे से खून निकल गया हो । ऐसी आवाज सुनकर उसकी हालत भी ढीली हो गई थी ।

तभी आसमान में परिंदो में भी हलचल मचने लग गई , एक ही दिशा में जा रहे परिंदे अलग अलग झुंड बनाकर विपरीत दिशाओं में जाने लगे । आसमान में हो रही ऐसी हरकत से नीचे खड़े हुए सब लोग परेशान होने लगे ।
तभी कुछ बड़े बड़े गगनचर उनके पंख फैलाके अंधेरे की तरफ बढ़ने लगे , अचानक से झिंगुरो की आवाज भी बंद हो गई थी और गांव में जैसे सन्नाटा छा गया हो ऐसी शांति हो गई । सब के सांसों की आवाज भी सुनाई दे रही थी , और हवाएं भी अब जोर से आवाज के साथ गुजर रही थी ।

रात में वो गगनचर कोई राक्षक की भांति लग रहे थे , को थोड़ी दूर जाकर आसमान में रुके और वहीं पे गोल गोल घुमाना चालू कर दिया , अंधेरे में घूम रहे वो गगनचर देखने में भी डरावने लग रहे थे । फिर अचानक से वो सब गगनचर ऊपर की तरफ जाने लगे और एक बड़े सी आवाज के साथ अचानक से नीचे की तरफ मुड़ गए ।
उनकी आवाज सुनकर वैसे ही गगनचर अलग अलग दिशाओं से आने लगे और पूरा आसमान जैसे वही गगनचर से भर गया ।

ये देखकर जगपति ने सबकी सुरक्षा हेतु बोला – भाई साहब , हम सब खोली के अंदर चले जाए तो अच्छा है , ये कुछ अनहोनी के संकेत है , ये कहते कहते उसकी छाती जोरो से धड़क रही थी ।
ऊंचे पेड़ो के कारण उनको अंधेरे में क्या हलचल हो रही है उसका पता नही चल रहा था । लेकिन उनका भी जैसे मन अब गबरा रहा था ।

तभी हितेश बोला – चाचा , ये दृश्य कोई काल्पनिक दुनिया जैसा लग रहा है , जो हमे हर बार देखने नही मिलेगा । मुझे देखना है की यहां आगे क्या होता है ।

जगपति ने हितेश के नजदीक आते हुए कहा – भाई साहब , आप जिद मत करो । खोली में चलो ताकि कोई अनहोनी से हम बच पाए ।
लेकिन हितेश वहां से टस से मस नहीं हो रहा था , वो अपनी जिद पे आसमान में देखता हुआ हाथ में हाथ डालकर खड़ा था ।

हितेश का ये हठ देखकर तो थोड़ी देर के लिए उसके दोस्तो को भी अचरज हुआ , उनको डर लगने लगा की हितेश की वजह से अब कोई अनर्थ ना हो जाए ।
वो लोग बस ये सोच ही रहे थे तभी अंधेरे में जहां गगनचर पेड़ो की तरफ से ऊपर की तरफ आने लगे और उनके पैरो में कोई छोटे मोटे जीव प्रतीत हो रहे थे ।

वो बड़े गगनचर फिर से बड़ी सी गोलाई बनाकर चारों और गोल गोल घुमाने लगे , उनके पैरो में रहे जीव थे वो मर चुके थे , जिनके कारण उनका खून चारों तरफ जमीन पे गिर रहा था । गगनचरों की गति अब तेज सी हो गई थी और बाकी के गगनचर अलग सी आवाजे निकाल रहे थे । अगर ये आवाज के साथ कोई अकेला इंसान उनको देखले तो उसकी रूह तक कांप जाए इतना भयानक माहोल बन चुका था ।

सबको ये समझ नही आ रहा था की रात में आए ये गगनचर कौन है , और साथ में ये कैसी आवाजे निकाल रहे थे । और किस की चीत्कार सुनकर इतने सारे पक्षियां एक साथ इकठ्ठा हो चुके थे ।
वहां पर चक्कर लगा रहे पक्षियों ने फिर से अंधेरे की तरफ अपनी उड़ान भरी और फिर से एक बड़ी सी आवाज के साथ आसमान की तरफ एक फव्वारे की तरह एक साथ निकले और जैसे जस्न माना रहे हो वैसे आवाज में चिल्लाने लगे ।

कुछ देर बाद गगनचर का समूह उनके सिर की तरफ से जाने लगा , जो बहुत ही ताकत से उड़ रहे थे , उनके पंख की आवाज जैसे रात में बादल गरजने जैसी थी ।
उसी समय उनके ऊपर से गुज़र रहा एक गगनचर उनकी तरफ बढ़ता है , और सतीश के सिर पे जैसे वो ही चोंच मारने जाता है तभी हितेश उसको पीछे की तरफ खींच लेता है ।
तभी उसके पैरो में रहे जीव की गर्दन डिंपल के सिर पे जाके गिरती है , और वो गगनचर चला जाता है ।
डिंपल उसको देखकर डर जाती है और वो अपनी आंखे बंद करके जोर – जोर से चिल्लाने लग जाती है , उसकी आंखों से डर के कारण आंसु निकलने लगते है ।
जूली उसको अपनी बांहों में लेकर उसको शांत करने की कोशिश करती है और सुशीला तभी उसके लिए दौड़कर अंदर से पानी लेकर आती है ।

सब लोग वहां से हट जाते है जहा किसी जीव की गर्दन गिरी हुई होती है , और डिंपल को सम्हाल ने लग जाते है ।
जगपति जब ये सब देखता है तो उसको लगता है कोई ऐसी चीज हुई है जिसके कारण बड़े गगनचर छोटे जीवों को अपना शिकार बनाकर लेकर गए है , लेकिन अंधेरे के कारण वो अभी झाड़ियों से गुजरते कहीं नहीं जाना चाहता था ।
थोड़ी देर के बाद जब डिंपल स्वस्थ हो गई तभी , हितेश वो जीव की गर्दन की तरफ बढ़ता है , वो अंधेरे मे देखता है तो उसको किसी पक्षी की गर्दन ज्ञात होती है ।
सही से नही देख पाने के कारण वो अपनी मोबाइल की टॉर्च उसके ऊपर डालता है ।
टॉर्च डालते ही वो देखते है की वहां पड़ी गर्दन किसी और पक्षी की नही बल्कि कौवे की थी ।

कौन थे वो बड़े से गगनचर ? क्या कोई अनहोनी के संकेत है गगनचर का आना? क्या सब जान पाएंगे गगनचर के आने का कारण ? क्या होगा आगे ?
जान ने के लिए पढ़ते रहिए हमारी कहानी भयानक यात्रा !