भाग 2
थाने में अमोल की बात कोई सुनने को तैयार नहीं था। सब उसका मज़ाक उड़ाने में लगे हुए थे।
“सर, मैं आपसे रिक्वेस्ट कर रहा हूँ, प्लीज़ नीलम को ढूंढ़िए। हो सकता है वो किसी मुसीबत में हो।” अमोल ने फिर से इंस्पेक्टर से विनती की।
"देख भाई! पहली बात अभी तेरी बीवी को गये हुए चौबीस घंटे नहीं हुए। तो हम तहकीकात शुरू नहीं कर सकते। और दूसरा….ये वाले पर ध्यान देना, हो सकता है कि तेरी बीबी तुझसे परेशान हो किसी और के साथ भाग गई हो….हा हा हा।" इंस्पेक्टर यादव ने अपने मोटे से पेट पर हाथ रख हंँसते हुए कहा।
“सर, मैं फिर कह रहा हूँ कि मैं और नीलम बहुत खुश थे एक साथ। वो मुझसे परेशान होकर क्यों कहीं जाएगी?” अमोल ने स्वर ऊँचा करते हुए कहा।
“ओए! साहब से ऊँची आवाज़ में बात नहीं करने का। समझा क्या!” हवलदार ने डंडा दिखाते हुए कहा।
“सॉरी…पर सर आप अपना फोकस नीलम को ढूंढने में लगाइए ना, मेरी पर्सनल लाइफ क्यों डिस्कस कर रहे हैं।” अमोल बोला।
“क्योंकि ऐसी सिचुएशन में अक्सर देखा गया है कि पति-पत्नी में से कोई घर से गायब होता है तो ज़्यादातर केस में वो अपनी मर्ज़ी से चले जाते हैं। तेरे केस में भी ऐसा ही है। अब देख, तू अपने आपको देख और अपनी बीवी को देख। भागेगी नहीं तो और क्या करेगी।” इंस्पेक्टर यादव ने ज़ोर से हँसते हुए कहा। साथ में दोनों हवलदार भी हँसने लगे।
“सर ऐसा होता तो नीलम पहले ही चली जाती। ग्यारह साल इंतज़ार क्यों करती? सर, ये बात मैं मानने को तैयार नहीं हूँ।” अमोल ने इंस्पेक्टर यादव को समझाने की कोशिश की।
उसकी बात पर एक हवलदार बोला, “बेचारी को देर में एहसास हुआ होगा, क्यों सर! हा..हा..हा।”
“और क्या! मेरी तो ये समझ नहीं आ रहा साहब कि इतनी सुंदर औरत ने ऐसी शक्ल-सूरत के इंसान के साथ ग्यारह साल कैसे निकाल दिए?” दूसरे हवलदार ने भी अमोल का उपहास किया।
“हम्मम, मिल गया होगा अब कोई बेचारी को, जो उसको वो सुख दे सके जो पति ना दे सका। इसलिए भाग गई।” इंस्पेक्टर यादव ने नीलम की तस्वीर को हाथ में पकड़ते हुए कहा। उसकी आँखों में नीलम के लिए हवस साफ झलक रही थी।
अमोल की आंँखों में खून उतर आया था। पर उसने अपने आप को किसी तरह शांत किया क्योंकि वह थाने में कोई हंगामा नहीं चाहता था।
घर पर उसके दो छोटे बच्चे उसका इंतज़ार कर रहे थे। वह तेज़ी से उठा और थाने से बाहर निकल गया।
बाहर निकलते ही वह एक और इंस्पेक्टर से टकरा गया।
"ओह! सॉरी सर, वो ध्यान नहीं दिया।" अमोल ने माफी मांँगते हुए कहा।
इंस्पेक्टर ने उसकी तरफ हंँसते हुए देखा और कुछ पल रुक कर बोला, "अरे! अमोल! तू यहांँ।"
अमोल ने आंँखें उठा उस इंस्पेक्टर को बहुत गौर से देखते हुए कहा, "विक्रम राठोर! ओहो! सॉरी इंस्पेक्टर राठोर….कैसा है भाई!"
"मैं बिल्कुल ठीक हूँ। पर ये बता तू यहाँ कैसे?" इंस्पेक्टर राठोर ने उसे गले लगाते हुए पूछा।
"वो….मेरी पत्नी…कल सुबह के बाद से घर नहीं आई। इसलिए यहाँ थाने के चक्कर काट रहा हूँ। पर ये लोग कुछ कर ही नहीं रहे।" अमोल ने बेबस होते हुए कहा।
"एक मिनट….तू इधर आ, बैठ, अब बता क्या हुआ है?" इंस्पेक्टर राठोर उसे थाने के कम्पाउन्ड के बैंच पर बैठाते हुए बोला।
"कल ग्यारह बजे नीलम किसी काम से बाहर गयी थी। कुछ घर की खरीदारी करने। पर….अभी तक लौटी नहीं। जब शाम तक वो नहीं आई तो मैंने पुलिस कम्पलेन लिखवाने की कोशिश की पर ये लोग बोले कि चौबीस घंटे से पहले कुछ नहीं कर सकते।" अमोल ने कहा।
"हम्मम, चौबीस घंटे तो हो चुके अब। अब इंस्पेक्टर यादव का क्या कहना है?" इंस्पेक्टर राठोर ने अमोल से पूछा।
"अरे! ये क्या कहेगा। नीलम की तस्वीर देख कर बकवास बोल रहा है। कह रहा है कि इतनी सुन्दर बीवी है, तुझ से परेशान हो भाग गयी होगी यार के साथ। दिल तो किया मुँह तोड़ दूँ। पर …रुक गया।" अमोल गुस्से में आगबबूला हो रहा था।
“यार! ये सब एक जैसे हैं। सबकी सोच घटिया है। अच्छा ज़रा फोटो दिखा अपनी वाइफ की।” इंस्पेक्टर राठोर ने अमोल को शांत करते हुए कहा।
अमोल ने कोट की जेब से नीलम की तस्वीर निकाल कर राठोर को दी। इंस्पेक्टर राठोर भी कुछ पल के लिए नीलम की तस्वीर को देखता ही रह गया।
“क्यों, तू भी यही सोच रहा है कि इस लंगूर के हाथ में ये हूर की परी कैसे लग गई?” अमोल ने कटाक्ष भरे स्वर में पूछा।
“अरे! कैसी बातें कर रहा है अमोल! मैं ऐसा क्यों सोचूंँगा?” इंस्पेक्टर राठोर ने जवाब दिया।
“सब यही सोचते हैं भाई, सब। मेरे घरवाले, रिश्तेदार, दोस्त, और अब तेरे थाने के इंस्पेक्टर भी। तो तू भी सोच लेगा तो क्या ही फर्क पड़ेगा।” अमोल ने थके स्वर में कहा।
“नहीं मैं दरअसल कुछ और सोच रहा था। वो…याद आ गया था मुझे कि कॉलेज में तेरा अफेयर प्रीति के साथ था ना। तो…बस यही सोच रहा था कि तू बहुत सीरियस था उससे शादी करने के लिए। तो क्या हुआ ऐसा कि वो तेरी पत्नी नहीं बनी?” इंस्पेक्टर राठोर ने अमोल से पूछा।
राठोर के इस प्रश्न ने अमोल को थोड़ा परेशान कर दिया। वो नज़रें चुराते हुए बोला, “छोड़ यार! वो बात खत्म हुए एक अरसा बीत गया। तू ये बता कि तू मेरी मदद कर सकता है कि नहीं?”
इंस्पेक्टर राठोर ने अमोल से उसकी पत्नी नीलम की तस्वीर की फोटो मोबाइल पर खींचने की इजाज़त मांगी। और उसे आश्वस्त किया कि वो जल्द ही खुद इस केस पर काम करेगा।
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विक्रम ने पुलिस कमिश्नर से सिफारिश करवा कर अमोल का केस अपने हाथ में ले लिया।
घर पहुंँच विक्रम अपना फोन निकाल अमोल की पत्नी नीलम की तस्वीर देख रहा था कि अचानक कविता ने पीछे से उसे अपनी बाहों में घेरते हुए कहा, "क्या बात है राठोर साहब, बहुत खूबसूरत तस्वीर है। हमें छोड़ने का इरादा तो नहीं है कहीं जनाब का?"
"सोच तो कुछ ऐसे ही रहा हूँ। वैसे….हैं ना ये मोहतरमा खूबसूरत?" विक्रम ने अपनी पत्नी कविता को छेड़ते हुए कहा।
"बहुत खूबसूरत हैं। पर ये हैं किसकी?" कविता ने पूछा।
"अरे! अमोल याद है तुम्हें? वो चुप सा रहने वाला लड़का जिसको तुम सब लड़कियांँ अमोल पालेकर कह कर बुलाते थे। आज पुलिस स्टेशन में मिला। उसकी पत्नी कल से घर नहीं आई। ये…उसकी पत्नी है।" विक्रम ने जैसे ही ये कहा कविता हैरान होकर बोली,"ये अमोल की पत्नी हैं? नहीं…मतलब…वो तो ठीक ठाक ही दिखता था…और ये तो बहुत खूबसूरत है।"
"यार! ये क्या बात है। ये अमोल से शादी क्यों नहीं कर सकती? हमारा अमोल एक मेहनती, होनहार और बढ़िया इंसान है।" विक्रम ये कह कर चुपचाप कुछ सोचने लगा।
“अरे! मेरा मतलब वो नहीं था। आजकल की लडकियाँ अपने जीवन साथी को लेकर बहुत चूज़ी होती हैं। सबको हैंडसम, स्मार्ट और डैशिंग लड़का चाहिए होता है। मतलब, खुद चाहे दिखने में उन्नीस हों लड़का इक्कीस चाहिए। तो…ये मोहतरमा तो दिखने में बाइस हैं…इन्होंने कैसे उन्नीस दिखने वाले से शादी कर ली?” कविता ने कहा।
“खैर, वो तो ये मैडम जाने। फिलहाल ये केस मैंने अपने अंडर ले लिया है। दोस्त के प्रति मेरा भी कुछ फ़र्ज़ बनता है कि नहीं।”
"विक्रम…. क्या मैं भी तुम्हारे साथ इस केस पर काम कर सकती हूँ। पर्सनल तौर पर।" कविता ने पूछा।
कविता स्वयं एक प्राइवेट डिटेक्टिव थी। उसकी खुद की एजेंसी थी। और विक्रम को बहुत बार उसके केस में पर्सनल तौर पर मदद कर चुकी थी।
"ऑफकोर्स कविता, मुझे कोई आपत्ती नहीं है। तुम वैसे भी वो देख-सुन लेती हो जो मैं नहीं देख पाता। कल सुबह तैयार रहना अमोल के घर जाना है।" ये कह विक्रम केस के बारे में सोचते हुए सो गया।
क्रमशः
©® आस्था सिंघल